प्रियंका चुनाव तक आती रहीं तो ठीक, वरना ये दौरा बासी कढ़ी में उबाल रह जाएगा!

लखनऊ से स्पेशल रिपोर्ट

16 जुलाई, 2021 को जब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी लखनऊ के चौधरी चरण सिंह एयरपोर्ट से बाहर आई, तो कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की भीड़ और जोश पिछली कई बार के मुक़ाबले अलग ही स्तर पर दिख रहा था। ये जोश हवाई अड्डे से हज़रतगंज के जीपीओ की गांधी प्रतिमा तक भी ऐसा ही दिखा। इस दौरे को कवर कर रहे कई पत्रकार इससे हैरान भी थे और प्रियंका गांधी के इस कदम की तारीफ़ भी कर रहे थे। गांधी प्रतिमा पर जब प्रियंका मौन धरने पर ढाई घंटे बैठी रही तो यूपी कांग्रेस के मुख्यालय से हज़ारों कार्यकर्ता भी गांधी प्रतिमा पर जा बैठे। लेकिन शाम को जब वो पार्टी कार्यालय पहुंची और अंदर 3 घंटे बैठ कर के – वहां से वापस लौटी तो कार्यकर्ता इस बात से निराश दिखे कि ‘दीदी’ ने एक बार भी मंच पर आकर उनको संबोधित नहीं किया।

उनके स्वागत के लिए सजा भव्य स्टेज खाली ही रहा और कार्यकर्ता उनका इंतज़ार करते रात 9 बजे तक वहां बैठे रहे। हालांकि यूपी भर के गांव-गांव से आए कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि दूसरे दिन प्रियंका उनको संबोधित करेंगी।


प्रियंका गांधी के लखनऊ दौरे के पहले दिन पर हमारा विशेष शो – सवाल

इस बीच पार्टी कार्यालय पहुंचते ही प्रियंका गांधी ने मीडिया के साथ एक छोटी सी बातचीत की। इस बातचीत में मुख्य रूप से प्रियंका गांधी ने पंचायत और ब्लॉक चुनावों में हुई हिंसा और महिलाओं के साथ हुई अभद्रता का सवाल उठाया। ये सवाल सीधे-सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से तो था ही – एक दिन पहले ही वाराणसी में भाजपा का चुनावी कैंपेन का आगाज़ करने वाले प्रधानमंत्री मोदी से भी था, जिन्होंने महिला सुरक्षा और कोविड प्रबंधन को लेकर योगी आदित्यनाथ की तारीफ़ की थी।

पहली शाम की बैठक, कांग्रेस के प्रदेश संगठन के पदाधिकारियों और किसान नेताओं के साथ-साथ रायबरेली और अमेठी से आए कुछ लोगों से भी थी। इसके अलावा प्रियंका गांधी ने 16 जुलाई की शाम ही कुछ वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठकें की, जिनमें पूर्व सांसद, पूर्व विधायक, वर्तमान विधायक, अलग-अलग प्रकोष्ठों के प्रमुख थे।

दूसरे दिन की तैयारी हाल ही में पुनर्गठित किए गए यूपी कांग्रेस के संगठन के लोगों से मिलने की थी। प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने जिस तरह से कांग्रेस के संगठन को पिछले 1 साल में तैयार किया है – उसका भी एक तरह से ये लिटमस टेस्ट होने वाला था। कांग्रेस के कई ग्रामीण कार्यकर्ता अगले दिन क्या होने वाला है, इस इंतज़ार में जहां-तहां रात काट रहे थे और अल-सुबह उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमिटी के दफ्तर जाने की तैयारी में थे। इसी बीच देर रात पत्रकारों को ख़बर मिली कि सुबह-सुबह ही प्रियंका गांधी लखमीपुर खीरी निकलेंगी।

ये एक अप्रत्याशित कदम था, जिसका निशाना भारतीय जनता पार्टी के साथ-साथ समाजवादी पार्टी भी थी। प्रियंका गांधी के साथ-साथ बड़ी संख्या में मीडिया था और मंज़िल था लखीमपुर का पसगंवा गांव। इस गांव में ब्लॉक प्रमुख चुनावों में हिंसा और अभद्रता का शिकार हुई सपा की महिला नेता अनीता यादव रहती हैं। प्रियंका गांधी का ये कदम दिलचस्प था क्योंकि अनीता यादव समाजवादी पार्टी की नेता हैं। प्रियंका वहां पहुंची, लखीमपुर शहर और पसगंवा दोनों ही जगह भारी भीड़ उमड़ी और टीवी से अख़बार तक उनकी अनीता यादव से मिलने, अनीता यादव के उनके कंधे पर सिर रख कर रोने और प्रियंका की ढांढस बंधाते तस्वीरें लाइव, फुटेज और तस्वीरों से हर जगह पहुंची।

लखीमपुर से निकलते समय प्रियंका ने चुनाव आयोग पर सवाल खड़ा करते हुए, जहां-जहां हिंसा हुई है – वहां दोबारा चुनाव कराने की मांग कर दी। दिलचस्प ये है कि लखीमपुर खीरी में सारी विधानसभा सीटों पर फिलहाल भारतीय जनता पार्टी का क़ब्ज़ा है। प्रियंका गांधी ने कहा कि कांग्रेस, इस बाबत चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखेगी।

प्रियंका गांधी के लखनऊ दौरे, लखीमपुर दौरे और बैठकों के ब्यौरे पर मयंक की विशेष रिपोर्ट

लखीमपुर से प्रियंका गांधी का काफिला वापस यूपी कांग्रेस कमेटी के मुख्यालय लखनऊ पहुंचा। यहां पर एक बार फिर बैठकों का सिलसिला शुरू हुआ। इस बीच भी हज़ारों कार्यकर्ताओं का कार्यालय और उसके बाहर की सड़कों पर जमावड़ा था। प्रियंका गांधी अंदर एक बार फिर पूर्व सांसदों, विधायकों के अलावा पूर्व ज़िला और शहर अध्यक्षों के अलावा ज़िला पंचायत-ब्लॉक और पार्टी के फ्रंटल संगठनों के मुखियाओं के साथ बैठक कर रही थी। संगठन के नए ढांचे का परीक्षण और नए पदाधिकारियों का परीक्षण भी चल ही रहा था। इस दौरान प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कई बार बाहर टहलते, मौके को भांपते-मुआयना करते और कार्यकर्ताओं को नसीहत देते भी दिखे।

और फिर प्रियंका गांधी कार्यकर्ताओं की इच्छा को देखते हुए कांग्रेस मुख्यालय में पीछे की ओर बने मंच पर आई। उन्होंने करीब 5 मिनट तक कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। इस संबोधन में प्रियंका ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को ज़मीन पर बने रहने की ज़िम्मेदारी की याद दिलाई। एक बार फिर से पंचायत और ब्लॉक चुनावों का मुद्दा उठाया। कोरोना काल में उनके किए काम की तारीफ़ की और फिर से कांग्रेस के झंडे को लहराने की अपील की।

इस दौरान भी कार्यकर्ताओं की बड़ी भीड़ यहां दिखी, उनका जोश भी दिखा। नेताओं का मंच पर उनके काम के लिए सम्मान भी किया गया। लेकिन कांग्रेस का इससे कितना भला होगा, ये सवाल कार्यकर्ताओं समेत मीडियाकर्मियों में भी पूछा जाता रहा। मीडिया विजिल ने दो दिनों में कम से कम 500 कार्यकर्ताओं और बड़े नेताओं से लेकर ग्रामीण नेताओं तक से बात की। उन सबका सवाल ये ही था कि क्या ये दौरा एक ही दौरा बन के रह जाएगा या फिर प्रियंका गांधी अब विधानसभा चुनाव तक लगातार ख़ुद अपनी अगुआई में कमान संभाल लेंगी। वो लखनऊ और यूपी दोबारा कब आएंगी, ये सवाल भी कार्यकर्ता कर रहे थे।

लेकिन एक सवाल जो 2014 के लोकसभा चुनावों से आज तक लगातार कार्यकर्ताओं की बड़ी संख्या करती आ रही है, उसे हमारे सामने भी दोहराया गया। हमसे बात करते हुए, तकरीबन हर कार्यकर्ता ने राय जताई कि 2022 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस को प्रियंका गांधी के चेहरे के साथ ही लड़ना चाहिए। इस दौरे पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं का अलग ही उत्साह इस बात की तस्दीक भी कर रहा था कि प्रियंका के चेहरे का कार्यकर्ता के मनोबल पर अलग ही असर है। साथ ही सिर्फ बीजेपी को स्पेस दे रहा मेनस्ट्रीम मीडिया भी प्रियंका की कवरेज अलग ही स्तर पर कर रहा था। जिस तरह से प्रियंका का दौरा शुरू होते ही, यूपी से केंद्र तक के बीजेपी नेताओं के बयान आने शुरू हो गए – वो भी इसकी पुष्टि ही करता है।

अपने दौरे के तीसरे दिन सुबह प्रियंका गांधी ने पूर्व मंत्री-विधायक और बसपा में कभी मायावती के चहेते नेता रहे – अब कांग्रेस के अहम नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी के घर पर एक अनौपचारिक नाश्ते पर पत्रकारों से मुलाक़ात की। यहां पर प्रियंका गांधी ने साफ कहा कि फिलहाल कांग्रेस की प्राथमिकता सिर्फ और सिर्फ विधानसभा चुनाव के लिए संगठन को मज़बूत करना है। गठबंधन के लिए विकल्प बंद नहीं किए गए हैं लेकिन संगठन की कीमत पर कोई गठबंधन नहीं होगा। इशारों में उन्होंने ये भी कहा कि पिछले गठबंधनों से कांग्रेस को नुकसान भी हुआ है।

तीसरे दिन सुबह की इस अनौपचारिक बातचीत में साफ हो गया है कि फिलहाल कांग्रेस चाहती ये ही है कि वह यूपी में चुनाव अकेले दम पर ही लड़े और गठबंधन की सारी बातचीत, चुनाव के बाद हो। लेकिन दो सवाल जस के तस हैं। एक ये कि ग्रामीण स्तर पर अपने कोर वोटर के गंवाती गई कांग्रेस, उसे पार्टी के साथ वापस कैसे लाएगी? क्या उसकी नज़र सपा के यादव वोट पर है? क्या ऐसे में ग़ैर यादव ओबीसी फिर से उससे छिटक नहीं जाएगा? क्या मुस्लिम और दलित वोटर के लिए कांग्रेस किसी नई रणनीति की तलाश में है? क्योंकि दरअसल इसके बिना कांग्रेस के पास कुछ ज़्यादा फिलहाल नहीं दिखता है।

दूसरा सवाल वो है, जिसे कार्यकर्ता पूछ रहा है…वो ये है कि क्या यूपी विधानसभा चुनाव 2022, प्रियंका गांधी के चेहरे पर लड़ा जाएगा? क्या प्रियंका इसके लिए तैयार होंगी? क्या पार्टी उनको इसके लिए मना सकेगी, बल्कि क्या मनाना चाहेगी?

और तीसरा सवाल इस सारे घटनाक्रम पर नज़र रखते हुए, एक पत्रकार के तौर पर हम पूछ रहे हैं। वो सवाल ये है कि प्रियंका का ये दौरा, कहीं केवल पहला और आख़िरी ऐसा दौरा बनकर तो नहीं रह जाएगा? क्योंकि अगर प्रियंका गांधी ख़ुद और कांग्रेस के और बड़े नेता लगातार यूपी नहीं आते रहे – तो ये सिर्फ 3 दिन का एक ऐसा शो बन कर रह जाएगा, जो फिर फ्लॉप शो हो जाएगा। कार्यकर्ताओं को आया जोश महीने भर में ख़त्म हो जाएगा और ये बासी कढ़ी का उबाल बन जाएगा – जिसके होने से सिर्फ उबाल दिखता है पर स्वाद पहले से ज़्यादा खराब हो जाता है। कांग्रेस को यूपी में इस बार सिर्फ बेहतर नहीं करना है, दरअसल अपना अस्तित्व भी बचाना है।

 

लखनऊ से मीडिया विजिल के एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर मयंक की स्पेशल रिपोर्ट, जिन्होंने प्रियंका गांधी का ये पूरा दौरा कवर किया।

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