कहना ना होगा कि आज मजदूर वर्ग सदी की सबसे बड़ी त्रासदी से गुजर रहा है। कोरोना के संक्रमण से मुक्ति को लेकर लॉकडाउन से प्रवासी मजदूरों का हाल बेहाल हो गया है। पिछले डेढ़ महीने से लॉकडान के कारण जो जहां हैं, उसे वहीं रुके रहना है। मजदूरों को भूखों रहने की नौबत आ गई है। ऐसे में प्रवासी मजदूर कहीं पैदल तो कहीं साईकिल से ही अपने—अपने गांव—घर निकल जा रहे हैं। क्योंकि सरकारी लफ्फाजी पर अब मजदूरों को भरोसा नहीं रही है। झारखंड के 10 लाख से अधिक मजदूर दूसरे राज्यों में फंसे हैं। छत्तीसगढ़ के नागपुर से झारखंड के 8 प्रवासी मजदूरों को घर लौटने का जब कोई साधन नहीं मिल सका तो वे झारखंड के लिए पैदल ही निकाल पड़े। इसमें एक मजदूर सराईकेला निवासी रवि मुंडा (42) की जान डिहाईड्रेशन के कारण रास्ते में ही चली गयी।
बिलासपुर शहर के निकट सरगांव पहुंचने पर रवि मुंडा की तबीयत बिगड़ी। तब तक वह 400 किलोमीटर की दूरी तय कर चुका था। उसे अचानक डिहाइड्रेशन की शिकायत हुई। लेकिन कोरोना का संदिग्ध मानकर उसका इलाज देर से शुरू किया गया। बताते हैं कि 3 मई को छत्तीसगढ़ आयुर्वेदिक संस्थान में रवि का दाखिला हुआ। उसके साथ चल रहे सात लोगों को भी जांच के लिए भर्ती किया गया। चार मई को रवि की मौत हो गयी। मौत के बाद रवि और उसके बाकी के साथियों की रिपोर्ट भी निगेटिव ही आई। रिपोर्ट के बाद 6 मई की सुबह रवि मुंडा के शव का अंतिम संस्कार छत्तीसगढ़ में ही कर दिया गया।
इसी तरह आंध्रप्रदेश के विजयवाड़ा में रोड कंस्ट्रक्शन के लिए झबली कांट्रेक्टर के पास काम करने वाले झारखंड के गढ़वा जिला के निवासी 30 मजदूरों को लॉकडाउन के बाद भूखों मरने की नौबत आई तो वे सभी मजदूर 3 मई को विजयवाड़ा से चल दिये। ये प्रवासी मजदूर 333 किलोमीटर यात्रा पैदल पूरी करके जब तेलंगाना और छत्तीसगढ़ सीमा के सुकमा जिला के कोंटा पहुंचे तो उन्हें रोक दिया गया। ये सभी मजदूर गढ़वा जिले के बरडीहा प्रखंड के सलगा गांव के रहने वाले हैं। जब इसकी जानकारी मिलने के बाद, इनसे फोन पर संपर्क किया गया तो धर्मदेव राम ने बताया कि जो हमारे पास मजदूरी के पैसे बचे थे अब वे भी खत्म हो गये हैं। यह पूछे जाने पर कि वहां का प्रशासन खाना वगैरह दे रहा है कि नहीं? तो धर्मदेव राम बताते हैं कि दिन भर में एक समय खाना दिया जा रहा है। पिछली रात से वे लोग खाने की व्यवस्था कर रहे हैं पर घर भेजने के लिए किसी गाड़ी की व्यवस्था नहीं कर पाये हैं। वे बताते हैं कि हमें खुले में रखा गया है और इधर कहीं भी जाने नहीं दिया जा रहा है। वहीं विकास यादव कहते हैं कि राज्य सरकार हमें अपने घर पहुंचा दे। हमलोगो को काफी परेशानी हो रही है। खाने-पीने के साथ पैसे भी खर्च हो गये हैं। सरकार ने मदद नहीं की तो घर लौटना अब मुश्किल होता जा रहा है।
जहां पूरे विश्व में कोरोना की महामारी सुर्खियों में है, वहीं भारत में मजदूरों के बीच भूख का भय, बेरोजगारी की चिंता, अपनों से मिलने की बेताबी से पैदा हो रही अफरा-तफरी से उत्पन्न हो रहे माहौल की खबरों की सुर्खियां कोरोना के खतरों से भी ज्यादा चिंताजनक हो गई हैं। कहीं सैकड़ों मील पैदल चल पड़ने, तो कहीं साईकिल से ही निकल पड़ने की खबर हमारी मानवीय संवेदनाओं को झंकझोर दे रही है। कभी भूखे प्यासे पैदल चलते-चलते हो रहीं मौतों की खबरें, कभी लगातार साईकिल चलाते हुए मौत का निवाला बन जाने की खबरें, तो कभी रेल की पटरी को ही सेज बनाकर निश्चिंत हो मौत का शिकार हो जाने की खबरें, कोरोना के खतरों को एक खास वर्ग तक सिमट कर रह जाने को मजबूर कर दिया है। कहना ना होगा कि ये खबरें हमारी विकृत राजनीति व दमघोंटू व्यवस्था की काली तस्वीर पेश कर रही हैं।
(ये ग्राउंड रिपोर्ट हमको झारखंड के स्वतंत्र पत्रकार विशद कुमार ने भेजी है। विशद कुमार, लगातार जन सरोकार के मुद्दो – ख़ासकर किसानों-मज़दूरों और आदिम जातियों के विषयों पर लिख रहे हैं और ज़मीनी रिपोर्ट्स कर रहे हैं।)