भले ही चुनाव हो पर मोदी जी को क्या जरा सा भी भान है कि वह किस पद पर बैठे हुए हैं?
भाषा क्या है – भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम होती है।
एक प्रधानमंत्री की भाषा और सड़कछाप गुंडे मवालियों की भाषा मे अंतर होना चाहिए कि नहीं ?…… यह बात इतनी छोटी नही है अब हम इसे अपने विमर्श में शामिल करने से इनकार कर रहे हैं ……नेहरू से मोदीं तक का भाषा का यह पतन इतनी छोटी चीज नही है कि हम इस पर चर्चा ही न करें…..इस पर बहस जरूर होना चाहिए।
पीएम कहते हैं कि ‘मेरी मां को गाली दिया, मेरे बाप को गाली दिया’, पर किसी को ‘पचास करोड़ की गर्लफ़्रेंड’ बताना, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ‘नाइट वाचमैन’, बताना, सोनिया गांधी को ‘जर्सी गाय’ बताना तथा राहुल गांधी को ‘संकर बछड़ा’ बताना ….क्या यह एक पीएम पद पर बैठे आदमी की भाषा है? क्या हम अपने बच्चों के साथ इस तरह भाषा मे बात करते हैं?.. यदि नही करते तो जरूर यह चिंता का विषय है क्योंकि पिछले 5 सालों से टीवी स्क्रीन पर यही शब्द गूंज रहे हैं !
कल उन्होंन सपा-बसपा-रालोद के गठबंधन को ‘सराब’ कहा। उन्होंने कहा कि सपा का ‘स’, रालोद का ‘रा’ और बसपा का ‘ब’ से बचें, क्योंकि ये सेहत के लिए हानिकारक है. इससे पहले के भाषणों में वह SCAM का फुलफोर्म बता चुके थे।
वो यही नहीं रुके उन्होंने कहा कि महामिलावटी लोगों की सरकार जब दिल्ली में थी तब देश में आए दिन बम धमाके होते थे। ये महामिलावटी आतंकियों को संरक्षण देते थे। ये आतंकियों की भी जात और उनकी पहचान देखते थे।
यह किस तरह का वाक्-कौशल है जिसकी कई पत्रकार तक प्रशंसा करते हैं ? क्या उनके भाषणों में विकास, शासन ओर शिक्षा से संबंधित शब्दावली किसी ने सुनी है?
ऐसा नही है कि यह कोई नयी चीज है जो पिछले तीन चार सालो में सामने आई हैं। अति आक्रमकता ओर बड़बोलेपन से भरी हुई भाषा जो साथ ही सांप्रदायिकता का तड़का लिए हो उनकी सदा से ही विशिष्ट पहचान रही है। उनकी बॉडी लैंग्वेज हमेशा से ऐसी ही कसी हुई होती है। लटके झटके देने की अदा सदा से ऐसी ही है।
जब वह मुख्यमंत्री थे तब वह चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह को जेम्स माइकल लिंगदोह और कांग्रेस नेता अहमद पटेल को अहमद मियां पटेल कहते थे।
इस तरह की भाषा उनके लिए एक सामान्य बात थी। जैसे हिटलर, यहूदियों के प्रति अपनी घृणा को सार्वजनिक व खुले रूप में व्यक्त करता था उसी तर्ज पर यह भी अपनी तथाकथित ‘वाक पटुता’ का सार्वजनिक प्रदर्शन करते हैं।
मोदी के भाषणों में उनकी भाषा की बात करें तो याद आता है कि सामाजिक मनोवैज्ञानिक आशीष नंदी ने सन 2001 में अर्चित याग्निक के साथ उनका इंटरव्यू किया था। इस इंटरव्यू के बारे में बात करते हुए आशीष नंदी ने कहा था-
‘मुझे मोदी का साक्षात्कार लेने का अवसर प्राप्त हुआ…..उसके बाद मेरे मन में तनिक भी संदेह नहीं रह गया कि वे एक पक्के व विशुद्ध फासीवादी हैं। मैंने कभी ‘फासीवादी’ शब्द का प्रयोग गाली के रूप में नहीं किया। मेरे लिए वह एक बीमारी है जिसका संबंध व्यक्ति की विचारधारा के साथ-साथ उसके व्यक्तित्व व उसके प्रेरणास्त्रोतों से भी है।’’
आशीष नंदी कतई राजनीतिक व्यक्ति नही हैं। वह मनोविश्लेषण के विशेषज्ञ हैं। यह उनका बयान था तो एक बार जरूर ठिठक कर सोचने की जरूरत हैं। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद आशीष नंदी से दोबारा यह सवाल किया गया कि वो अब प्रधानमंत्री बन गए हैं और ‘सबका साथ, सबका विकास’ की बात कर रहें है, तो अब आपका क्या कहना है? तब आशीष नंदी ने कहा कि ‘मैं अभी भी अपनी उस प्रोफेशनल राय पर कायम हूं !’
प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी के शाब्दिक कौशल की नयी सीमाए सामने आ रही है। दिल्ली की सत्ता पर बैठते ही उसमे धमकी का लहजा भी शामिल हुआ है।
अब वे न केवल अपनी भाषा और राजनीति में बल्कि अपने व्यवहार में भी एक तरह के अतिवाद के शिकार हुए हैं। नरेंद्र मोदी जानते हैं कि कब किसी पड़ोसी देश के राष्ट्रपति को ‘मियां’ कहकर संबोधित करना है ओर किसे ‘मियाँ का दोस्त’ कहना है। विपक्ष के जीतने पर पाकिस्तान में पटाखो फूटते हैं, यह उनकी पार्टी का आधिकारिक स्टैंड है।
2016 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से पत्र लिख कर कहा कि प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस के नेताओं और अन्य पार्टियों के नेताओं के लिए धमकी भरी भाषा का इस्तेमाल करते हैं जो कि प्रधानमंत्री पद पर बैठे किसी व्यक्ति को शोभा नहीं देता। पत्र में कहा गया है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने 6 मई को हुबली में रैली को संबोधित करते हुए विपक्ष के नेताओं के ख़िलाफ़ धमकी भरी भाषा का इस्तेमाल किया।
क्या किसी भी देश के लोकतंत्र में आपने कभी ऐसा सुना है कि पूर्व प्रधानमंत्री जो 10 साल सत्ता में रहा हो वह महज 3 साल प्रधानमंत्री रहने वाले व्यक्ति पर धमकी देने का आरोप लगाए? सोचिएगा जरूर !
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।