बुलंदशहर में साम्प्रदायिक भीड़ द्वारा पुलिस अधिकारी और एक युवक की हत्या पर तथ्यान्वेषी रिपोर्ट
जांच टीम के सदस्य
1.किरण शाहीन (वरिष्ठ पत्रकार)
2.एड.अन्सार इन्दौरी(NCHRO)
3.मनोज सिंह (AIPF)
4.आयशा खान (RTF)
5.प्रो.भावना बेदी (दिल्ली यूनिवर्सिटी)
6.अज़ीम नावेद(सामाजिक कार्यकर्ता)
पृष्ठभूमि
3 दिसम्बर 2018 की सुबह बुलंदशहर ज़िले के महाव गांव के पास एक खेत में गौकशी होते हुए देखे जाने और खेतों में गायों के कंकाल देखे जाने की बात को फैलते देर नहीं लगी।कुछ देर में ही लगभग दो सौ से ज़्यादा लोग खेतों में जमा हो गए।
कथित तौर पर गाय का कंकाल मिलने के बाद गांव वालों के अंदर ग़ुस्सा और उत्तेजना फैलने लगा, जिसमें हिंदू संगठनों के स्थानीय सदस्य और कार्यकर्ता योगेश राज और शिखर अग्रवाल आग में घी डालने का काम कर रहे थे। लोगों को उकसाया जा रहा था। धीरे धीरे आस पास के गांववाले भी वहां जमा होने लगे।साढ़े दस बजे तक इनकी तादाद तीन सौ से भी ज़्यादा हो गई।सैंकड़ो लोगों ने हाईवे पर स्थित चिंगरावठी पुलिस चौकी को घेर लिया। उस समय चौकी में केवल छह लोग थे। चौकी में मौजूद पुलिस वालों ने फ़ौरन पुलिस मुख्यालय से अतिरिक्त पुलिस बल भेजने का अनुरोध किया। स्याना थाने के पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध सिंह घटना स्थल से तीन किलोमीटर दूर थे।जैसे ही उन्हें ख़बर मिली उन्होंने अपने ड्राइवर राम आसरे को घटनास्थल पर चलने का आदेश दिया।
जब लगभग 11 बजे के आसपास वे घटनास्थल पर पहुंचे और योगेश राज के कहे अनुसार गौकशी का एफआईआर भी दर्ज़ किया और कार्रवाही का भरोसा दिया। उन्होंने नारे लगाती और जाम कर रही भीड़ के बीच जाकर भीड़ को आश्वस्त करने की कोशिश भी की और कहा कि इस मामले में उचित कानूनी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने लोगों से शांति बनाये रखने की अपील की।
लेकिन लगातार उकसावे और योगेश राज के नेतृत्व में हिंदूवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं के अड़ियल रवैये की वजह से भीड़ का गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा था।
उकसावे से जल्दी ही भीड़ अनियंत्रित हो गई। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि बीच-बीच में फायरिंग की आवाजें आ रही थीं। कइयों का कहना था कि बजरंग दल के योगेश राज और भारतीय जनता युवा मोर्चा के शिखर अग्रवाल लगातार लोगों को हिंसक होने के लिए उकसा रहे थे। गोली चलने की आवाज़ के बीच एक युवक सुमित की मौत भी हो गई। अनियंत्रित भीड़ ने पुलिस अधिकारी सुबोध सिंह की भी हत्या कर दी। सुबोध सिंह को न सिर्फ आँखों के पास गोली मारी गई बल्कि गोली लगने के बाद भी उन्हें बेरहमी से पीटा जाता रहा। उनके सर पर पथराव किया गया। उनके साथ पुलिस जीप में मौजूद अन्य पुलिसकर्मी अपनी जान बचा कर भाग खड़े हुए।
बजरंग दल के नेता योगेश राज द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी में गौकशी के आरोप में सात लोगों को नामज़द किया गया जिनमें दो बच्चे भी थे।बाद में पुलिस ने उनके नाम हटा लिए।चार लोग घटना के दूसरे दिन ही गिरफ्तार कर लिए गए। इन आरोपियों में कुछ ऐसे लोग भी नामजद किये गए थे, जो वर्षों पहले ही गाँव छोड़ कर जा चुके हैं।बीस दिन बाद पुलिस ने उन चारों को मामले में शामिल न मानते हए रिहा कर दिया और अन्य तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया।
दूसरी एफआईआर में इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या के मुख्य आरोपी योगेश राज को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है। इस बीच सुबोध सिंह और सुमित के परिवार वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ बिष्ट से मिल चुके हैं।लेकिन अभी तक न तो आधिकारिक रूप से सुबोध सिंह के हत्यारों का पता पुलिस लगा पाई है और न ही सुमित के हत्यारों का। इस बात की भी आधिकारिक सूचना नहीं है कि खाली पड़े खेत पर गाय के कंकाल किसने डाले।
यहाँ इस बात का ज़िक्र करना भी जरूरी है कि एक से तीन दिसम्बर तक बुलंदशहर जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर दरियापुर में इस साल का इज्तेमा ( सुन्नी मुसलमानों की वार्षिक धर्मसभा ) हुआ था। दस लाख से ज्यादा भीड़ वाले इस इज्तेमा को बदनाम करने और देश भर में अंतर्धार्मिक तनाव पैदा करने की नीयत से महाव की वारदात को अंजाम दिया गया।
नेशनल कंफेडरेशन ऑफ़ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाजेशन (एनसीएचआरओ)
की तथ्यान्वेषी रपट
एनसीएचआरओ की पहल पर दिल्ली के सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं, वकीलों और पत्रकारों की एक छह सदस्यीय जांच टीम ने 14 दिसम्बर 2018 को बुलंदशहर जाकर इस वारदात से जुड़े सारे घटनाक्रमों का जायजा लिया। जांच टीम उन सभी स्थानों पर गई जो घटना से सम्बंधित थे। उन सभी लोगों और अधिकारियों से टीम के सदस्यों ने विस्तृत बातचीत की जो घटना से जुड़े थे। बुलंदशहर उपद्रव और पुलिस अधिकारी सुबोध कुमार सिंह समेत एक स्थानीय युवक सुमित कुमार की हुई मौत के कारणों और परिस्थियों को भी टीम ने बारीकी से समझने की कोशिश की।
पुलिस का पक्ष
सबसे पहले जांच टीम चिंगरावठी चौकी जहाँ यह पूरा उपद्रव हुआ था वहां पहुंची।यहाँ पिछले इंचार्ज सुरेश कुमार की जगह आये नए चौकी प्रभारी विजय कुमार ने पिछले दिन 13 दिसम्बर को ही यहाँ का कार्यभार संभाला था। हमारी जांच टीम जब वहां पहुंची तो पथराव और गोली चलने से टूटी फूटी चौकी की दीवारों की मरम्मत हो रही थी।राजमिस्त्री और मजदूर काम पर लगे हुए थे। पूछने पर नए चौकी प्रभारी विजय कुमार का कहना था कि चौकी को किसी भी बड़ी घटना के मद्देनज़र मज़बूत बनाया जा रहा है और उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी गई है।
विजय कुमार डासना जिला गाजियाबाद से ट्रांसफर हो कर आये थे और सुबोध कुमार सिंह से कभी नहीं मिले थे। उन्होंने हमारी जांच टीम को बताया कि :
– इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह ने उत्तेजित भीड़ को जांच और कार्रवाई का पूरा भरोसा दिया था फिर भी उपद्रव भड़काया गया।
– महाव गाँव में घटनास्थल का हमारी जांच टीम ने मुआयना किया,मुआयना करने पर गौकशी की संभावना कत्तई नहीं लगती, बल्कि किसी षड्यंत्र के तहत कई दिन पहले ही गायों के कंकाल लाये गए लगते हैं।
– चौकी इंचार्ज सुरेश कुमार उस समय 50 किलोमीटर दूर इज्तेमा की ड्यूटी पर थे, प्राथमिकी स्याना थाने में लिखवाई गई।
बुलंदशहर के नज़दीक ही मुख्य बाज़ार में स्थित स्याना पुलिस थाने जाने पर कोतवाली इंचार्ज किरणपाल सिंह ने हमारी जांच टीम से बात नहीं की और यह कह कर खिसक लिये कि उन्हें किसी जरूरी काम से बाहर जाना है। लिहाज़ा हम उनके मातहत अधिकारी से बात कर लें। एसआईटी के हवाले किये जाने से पहले किरणपाल सिंह ही इस मामले के जांच अधिकारी थे।
स्याना थाने के जूनियर अधिकारी विजय कुमार गौतम ने हमारी जांच टीम को कुछ बुनियादी जानकारियाँ दीं, जिनका आधिकारिक तौर पर महत्व है। उन्होंने कहा :
* चिंगरावटी में घटना की सूचना मिलते ही सुबोध कुमार सिंह, ड्राइवर राम आसरे, सुभाष कुमार और कांस्टेबल वीरेंद्र सिंह के साथ, घटनास्थल पर पहुंचे;
* सुबोध सिंह ने भीड़ की अगुवाई करने वाले योगेश राज और अन्य लोगों को समझाने की बहुत कोशिश की, एफआईआर दर्ज़ कर कार्रवाई का पूरा भरोसा दिया और गौवंश के टुकड़ों को चिंगरावटी चौराहे से हटाने और जाम ख़त्म करने की अपील भी की लेकिन भीड़ उपद्रव पर उतारू थी।
* यह एक प्लांटेड उपद्रव की साज़िश थी।
* योगेश राज और शिखर अग्रवाल सहित मुख्य आरोपियों के यहां लगातार दबिश ( छापामारी/कुर्की-जब्ती) ज़ारी है, वे जल्द पकड़ लिए जाएंगे।
* उपद्रव फैलाने में कुल 27 नामजद लोगों पर एफआईआर दर्ज हुई है, जिसमें 13 लोगों को अरेस्ट किया गया है और इनके अलावा 60 अज्ञात आरोपी हैं।
* गौकशी के आरोप में 7 लोग नामजद हैं जिनमें चार साज़िद, सरफुद्दीन, बन्ने और आसिफ को हिरासत में लेकर जेल भेज दिया गया है और इनके अलावा 2 अज्ञात लोग हैं।
* पिछले एक साल में इस कोतवाली में गौकशी का कोई मुक़दमा दायर नहीं हुआ है;
* अब इस केस की जांच SIT के अंतर्गत उदयवीर सिंह बालियान कर रहे हैं;
स्याना नगरपालिका के कर्मचारी लतेश कुमार ने भी इस बात की ताईद की,कि मौका ए वारदात पर गाड़ियों को जलाये जाने और जाम लगाए जाने के मद्देनजर सुबोध कुमार सिंह ने तत्काल JCB (गाड़ियाँ उठाने के लिए क्रेन) की मांग की थी।
घटनास्थलों का मुआयना
जांच दल ने उपद्रव स्थल चिंगरावटी चौकी, स्याना कोतवाली के साथ-साथ महाव गांव के उस स्थल का दौरा किया जहां गौवंश के अवशेष पाये जाने की बात कही गयी है।
टीम ने नयाबांस गांव का भी दौरा किया जहां के लोग या तो उपद्रव में शामिल बताये जाते हैं या प्रभावित हुए हैं।
यहां गौकशी के आरोप में नामजद लड़कों के रिश्तेदार मोहम्मद हुसैन, साबिर अली सहित कई अन्य ग्राम वासियों, जिसमें कुछ महिलाएं भी थीं,
इनसे हमारी जांच टीम की बातचीत के बाद जो स्थिति सामने आई वो स्पष्ट तौर पर बड़े साज़िश की तरफ इशारा करती है।
सबसे अजीब बात गौवध से संबंधित योगेश राज द्वारा लिखवाई गयी नामजद रिपोर्ट है। जिसमें दो बच्चों के नाम और सालों पहले गांव नयाबांस छोड़ चुके दो युवकों, जो अब फरीदाबाद में रहते हैं, के नाम प्राथमिकी में डाले गए हैं।इससे भी ज़्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि बाद में बच्चों के नाम तो हटा लिये गये लेकिन उनके नाम से मिलते-जुलते नाम के अन्य युवकों का नाम शामिल कर लिया गया और पुलिस ने घटना के कई दिनों बाद उन्हें गिरफ़्तार भी कर लिया।
ध्यान रहे कि नयाबांस वही गांव है जिसमें उपद्रव के मुख्य आरोपी योगेश राज का घर है। इस गांव में 400 से 500 सौ परिवार हिंदुओं के हैं और 125 से 150 परिवार मुस्लिमों के है।गौवध के आरोप में अधिकांश नाम इसी गांव से लिखाये गए हैं। गांव में रह रहे मुस्लिम परिवारों से बातचीत में हमारी जांच टीम को पता चला कि इस बिल्कुल शांत गांव में योगी सरकार के आने के बाद से ही भय का माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है।योगेश राज के नेतृत्व में कई लोग अक्सर मुस्लिम परिवारों को धमकाते और परेशान करने लगे थे।योगेश राज के द्वारा ही हिंदूत्ववादी संगठनों के सहयोग से गांव की मस्जिद से माइक हटवा दिया गया और एक पुराने कब्रिस्तान की भूमि पर भी कब्ज़े की कोशिश की गई। हिन्दुत्ववादी संगठनों की अगुआई में प्रभात फेरी और संध्या फेरी निकाली जाती है। जिसका उद्देश्य अल्पसंख्यक समुदाय के मन में बेचैनी और डर पैदा करना है. एक नामजद लड़के के परिवार के 6 साल के बच्चे से जब हमारी जांच टीम की एक सदस्या ने सवाल किया कि खेलने जाते हो? इसके जवाब में उसने अपनी मां का आँचल कस के पकड़ लिया, उसकी चुप्पी को उसकी माँ ने स्वर दिया – गली में जाते अब इसको डर लगता है।इस बच्चे का पिता नामजद था, इसलिए जेल में है।
नामजद युवकों के परिवार वालों ने जांच दल को बताया कि गौकशी के आरोप में पकड़े गए गांव के युवक पूरे “इज़्तेमा” में पार्किंग की व्यवस्था की ज़िम्मेदारी देख रहे थे और इसी के चलते कई दिनों से गांव भी नहीं लौटे थे। उन्होंने अपनी बात के समर्थन में हमारी जांच टीम के सामने पार्किंग की देख रेख करने से सम्बंधित उन युवकों के पहचान पत्र भी दिखाए।गांव वालों का कहना था कि हिंदूवादी संगठनों की इन हरकतों से बहुत सारे हिंदू परिवार भी संतुष्ट नहीं है।जिसका प्रमाण फरीदाबाद में जा बसे मोहम्मद साबिर और उनके बेटों, जिन्हें पुलिस ने गिरफ़्तार किया है, के पक्ष में नयाबांस ग्राम प्रधान द्वारा ज़ारी प्रमाणपत्र है जिसमें बहुत सारे हिन्दू निवासियों ने इस बात की तस्दीक करते हुए हस्ताक्षर किये हैं कि मोहम्मद साबिर के बच्चे उस दिन वहां मौजूद ही नहीं थे।
स्याना में कुछ नामजद मुस्लिम युवकों के परिवारजनों से मिलने पर हमारी जांच टीम को पता चला कि इनमें से कुछ ने 26 जनवरी 2018 को तिरंगा यात्रा निकाली थी। उसी दिन योगेश राज के नेतृत्व में भी तिरंगा यात्रा निकली थी। इस दौरान इन लोगों के बीच हल्की कहा-सुनी भी हुई थी।
चिंगरावटी गांव के जिस युवक सुमित कुमार की मौत हुई है, उसके परिवार के सदस्यों ने हमारी जांच टीम को बताया कि सुमित का बजरंग दल से कोई लेना-देना नहीं था और वह नोएडा में रह कर पढ़ाई करता था और छुट्टियों में गाँव आया हुआ था और उपद्रव के दिन घर से किसी काम से जा रहा हूँ, कह कर निकला था।
सुमित के भाई और बहन का कहना था कि पुलिस के उकसाने से यह उपद्रव हुआ और वहां सिर्फ ईंट-पत्थर चले, लेकिन जब हमारी जांच टीम द्वारा पूछा गया कि वीडियो फुटेज में सुमित भी पुलिस पर हमला करता दिख रहा है तो उनका कहना था कि वीडियो फुटेज फर्जी हैं। उनका आरोप है कि सुमित पुलिस की गोली से मारा गया। जब जांच टीम उनसे बातचीत कर रही थी, तभी मोटरसाइकल पर कुछ लोग घर में आये और बातचीत में शामिल हो गए। लौटते वक़्त हमारी जांच टीम ने बाहर कुछ मोटरसाइकलें देखीं जिनपर “जय श्रीराम” के नारे लिखे हुए थे।
व्हाट्सएप्प सन्देश का राज़
चिंगरावठी चौकी के पास सामने वाली सड़क पर एक बस स्टॉप है। उसी के साथ एक चौड़ी गली अन्दर को गई है,अंदर एक माध्यमिक विद्यालय है।उपद्रव वाले महाव गांव के खेतों से इसकी दूरी लगभग एक किलोमीटर है।स्कूल की प्रधानाचार्या उमा देवी ने बातचीत के दौरान हमारी जांच टीम को बताया कि, ” इज्तेमा के लिए देश विदेश से बहुत सारे लोग बुलंदशहर आये हुए थे. वैसे ये इज्तेमा हर साल होता है लेकिन इस साल इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित किया गया था। स्कूल से कुछ ही दूरी पर आयोजन के शामियाने लगे थे जिसकी देखरेख मुस्लिम युवक ही कर रहे थे। 3 दिसम्बर को सड़क पर उपद्रव शुरू होने से तकरीबन दो घंटे पहले व्हाट्सएप्प पर एक मैसेज आया जिसमें तुरंत स्कूल बंद करने का आदेश था।हमने मिड डे मील खिलाते ही बच्चों को घर के लिए रवाना कर दिया।
‘अचानक मिले इन निर्देशों को हम समझ नहीं पा रहे थे। तभी कुछ ही देर में दंगा जैसा भड़कने की खबर मिली। यह भी पता चला कि चौकी के सामने वाली सड़क पर ट्रॉली में गाय के अवशेषों के साथ प्रदर्शन किया जा रहा था.”
उमा देवी को उपद्रव के बारे में अधिक जानकारी नही थी क्योंकि वे भी तुरंत वहां से घर जाने के लिए निकल गई थीं। पर अचानक फोन पर मिले निर्देश से उन्हें किसी अनीष्ठ की आशंका तो हो ही गई थी।
हमारी जांच टीम ने जांच के दौरान स्पष्ट पाया कि एक सोची समझी साजिश के तहत एक बड़े साम्प्रदायिक झगड़े की कोशिश थी।इसे पुरजोर सूझबूझ और अंततः अपनी जान देकर इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह ने नाकाम कर दिया। इलाके के अधिकांश पुलिस वाले पास ही चल रहे मुस्लिम समाज के धार्मिक सम्मेलन “इज़्तेमा” में व्यवस्था में लगे थे, जहां लाखों की संख्या में देश-विदेश से आये मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल थे। “इज़्तेमा” स्थल तक पहुंचने का एक प्रमुख रास्ता स्याना, चिंगरावटी, नया बांस और महाव गांव के पास से गुजरता है, जहां से इज़्तेमा की समाप्ति के बाद बहुत सारे मुस्लिम धर्मावलंबी अपने घरों को लौटने वाले थे। ऐसे में यह मानने में संकोच का कोई कारण नहीं दिखता कि कट्टर हिंदूत्ववादी संगठन बजरंग दल और उनके सहयोगी संगठनों द्वारा योगेश राज के नेतृत्व में बड़ी साम्प्रदायिक हिंसा की साज़िश रची गयी थी।
जिस तरह से महाव गांव के पास पगडंडी से सटे खुले खेत में गौवंश के अवशेष पाए गए, उससे साफ पता चलता है कि उसे कहीं और से लाकर प्लांट किया गया और घटना स्थल के आसपास किसी तरह का अपशिष्ट ना पाया जाना बताता है कि, यह एक साजिश थी। स्याना कोतवाली से इंस्पेक्टर सुबोध कुमार और कुछ पुलिस वालों के घटनास्थल पर पहुंचने पर और गौवध संबंधी प्राथमिकी दर्ज़ करने के बाद भी योगेश राज के नेतृत्व में उपद्रवी भीड़ ने गौवंश के अवशेष ट्रॉली में डाल मुख्य सड़क पर चिंगरावटी चौकी के समीप सड़क जाम कर दिया और प्रशासन पर अनावश्यक दबाव बनाने लगे। मुख्य आरोपियों में से एक शिखर अग्रवाल ने एक टीवी साक्षात्कार में स्वीकार किया है कि सुबोध कुमार सिंह गौ अवशेषों का वहीँ खेतों में अंतिम संस्कार करने की बात कह रहे थे लेकिन भीड़ ने इन कंकालों को जबरन ट्रैक्टर और ट्रोलियों में भर लिया और मुख्य सड़क जाम कर दी। याद रहे यह वही सड़क थी, जिससे “इज़्तेमा” के बाद हज़ारों मुस्लिम धर्मावलंबी गुजरने वाले थे। इंस्पेक्टर सुबोध कुमार के लाख समझाने के बावजूद न तो योगेश राज के नेतृत्व में गौवंश के अवशेषों को उपद्रवी वहां से हटाने देने को तैयार थे और न ही जाम ख़त्म करने को। इसकी तस्दीक हमारी जांच टीम ने स्याना नगरपालिका के एक कर्मचारी से भी की।जिसका जिक्र हम पहले कर चुके हैं। इस कर्मचारी लतेश कुमार ने साफ़ साफ़ कहा कि सुबोध कुमार ने फोन कर JCB भेजने का अनुरोध किया था। इसी बीच आक्रामक भीड़ ने ना सिर्फ चिंगरावटी चौकी पर हमला कर दिया बल्कि उपद्रवियों की इस हिंसा ने इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह और चिंगरावटी गांव के युवक सुमित कुमार की जान ले ली। इस पूरी बातचीत में पुलिस प्रशासन पर दबाव स्पष्ट दिख रहा था।अपने सहयोगी इंस्पेक्टर की मौत से पुलिसकर्मी चिंतित भी दिख रहे थे।
निष्कर्ष
– योगी सरकार के पिछले तीन सालों में बुलन्दशहर के शांत एकजुट माहौल को हिन्दू मुस्लिम में बांटा गया है। संघी गुट इस फिराक में थे की एक बड़ा दंगा या नरसंहार कराया जाये। पुलिस इसमें मदद न करें तो उन्मादी भीड़ में से ही कही से गोली चलाकर एक तीर से दो निशाने किये जाएं। देश को मुस्लिमो से मुक्त तो कराना ही है,अगर कोई हिन्दू भी मरे तो उसकी लाश को मुआवज़े की चादर से ढका जाये। कुछ ऐसा माहौल हमें चिंगरावठी गांव के सुमित के घर देखने को मिला जिसकी उम्र 17 वर्ष की थी जो खुद भी भीड़ में शामिल हो गया था। उसे कहाँ पता था कि इस खुनी खेल को अंजाम देने के लिए एक हिंदू भी बड़ी आसानी से मारा जा सकता है। उसके परिवार से मुलाक़ात के दौरान ये पाया कि ये दुःख तो गहरा है, इस मामले की पूरी जांच हो इस मांग के बजाए उनकी सारी चिंता मुआवजे की राशि तक ही सिमट गई थी। मानो मुआवज़े की राजनीति की बिसात पर उनके बेटे की हत्या से जुड़े सच को और एक न्यायिक मांग को सवाल बनने ही नहीं दिया जा रहा है।दंगे कैसे,क्यों पैदा होते है क्यों वो चुनावी मौसम में ही दस्तक देते है।आपके गांवो, मोहल्लों और धार्मिक सभाओं के बीच,आपकी एकजुटता के ठीक बीचों बीच जिनकी शह पर ये होते है।वो गद्दी पर बैठ कर शासन कर रहे होते है। दूसरी सामान्य जनता जिनमे 10-12 साल के नाबालिग बच्चे भी आ जाते है सब स्याना की जेल में बिना सबूत, बिना जुर्म के ठूस दिए जाते है।
– जांच दल स्पष्ट तौर पर इस पूरे उपद्रव को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त हिंदूत्ववादी संगठनों की एक बड़ी साजिश समझता है जिसे रोकने की कोशिश में तत्परता से अपनी ड्यूटी कर रहे एक पुलिस अधिकारी की हत्या हुई और भीड़ में शामिल युवक सुमित की भी हत्या हुई।
– इस पूर्वनियोजित षड्यंत्र में एक तीर से दो निशाने साधने की योजना थी।सुबोध कुमार सिंह शुरू से ही बजरंगियों की हिट लिस्ट में थे।दादरी में मुहम्मद अखलाक की हत्या की जांच के दौरान भी उन्होंने बिना दबाव में आये, फ्रिज में गाय का नहीं, बकरे का मांस था, इसे सिद्ध किया था और इसके एवज में उन्हें दो महीने में ही तबादले का भी सामना करना पड़ा था।
इज़ेत्मा का समय एक अच्छा मौका था जब इंस्पेक्टर सुबोध कुमार को रास्ते हटाना और बड़े पैमाने पर साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ना – दोनों उद्देश्यों को अंजाम दिया जा सकता था। सितम्बर के महीने में एक पत्र लिख कर सुबोध कुमार सिंह के तबादले की मांग भी की गई थी और शिकायत बताई गई थी कि इंस्पेक्टर सुबोध सिंह हिन्दुओं की भावनाओं का सम्मान नहीं करते।
– योगेश राज द्वारा लिखवाई गई प्राथमिकी, जिसमें कहा गया कि महाव के जंगल में घूमते वक़्त, गौकशी के नामजद आरोपियों को गौकशी करते हुए देखा और शोर मचाया, बिल्कुल बेबुनियाद और गढ़ा हुआ लगता है, क्योंकि जिस जगह की बात प्राथमिकी में दर्ज है जांच टीम ने पाया कि वह खुले में एक खेत है और शुरुआती जांच में पुलिस को न तो वहां एक बड़े जानवर के मारे जाने के कोई चिह्न मिले और न ही अपशिष्ट और जो गौवंश अवशेष मिले भी वो कई दिनों के पुराने लगते थे।
यह भी हैरानी की बात है कि प्राथमिकी में दर्ज जगह, जो महाव गांव में है, के आसपास कोई मुस्लिम परिवार नहीं रहता।
– बजरंग दल से जुड़े योगेश राज और सहयोगी हिंदूत्ववादी संगठनों के राजनैतिक संरक्षण का अंजाम है कि इतना समय बीत जाने पर भी मुख्य आरोपी पुलिस की पुलिस की पकड़ से बाहर है।इस संबंध में पुलिस अधिकारी खुलकर कुछ कहना नहीं चाहते। इसकी तस्दीक तो ख़ुद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कर दी जब हिंदूत्ववादी संगठन द्वारा की गई हिंसक उपद्रव, साज़िश और एक पुलिस अधिकारी की हत्या को उन्होंने एक साधारण दुर्घटना बताया। मुख्यमंत्री का यह वक्तव्य स्पष्ट तौर पर जांच में जुटे सरकार द्वारा बनाये गए SIT को निर्देश लगता है। जांच दल को भी नयाबांस गाँव में अपनी तहकीकात के दौरान इस बात का इल्म हुआ जब योगेश राज सहित अन्य आरोपियों के ग़ैर जमानती वारंट और कुर्की-ज़ब्ती के आदेश के बावजूद कई गाड़ियों में हमने लोगों को योगेश राज की घर की तरफ जाते हुए देखा,वे निश्चित रूप से पुलिसवाले नहीं थे।
– ख़बर यह भी है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चिंगरावटी चौकी पर हुए हिंसक उपद्रव और इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या के मुख्य आरोपियों योगेश राज, शिखर अग्रवाल और योगेंद्र राघव की तरफ से पुलिस को ध्यान हटाने और खोजबीन बंद करने का अनौपचारिक निर्देश दिया है और सारा ध्यान गौकशी से संबंधित आरोपियों पर अपनी जांच केंद्रित करने का इशारा दिया है। इस संबंध में बुलंदशहर एसपी और एसएसपी का वक्तव्य भी क़ाबिले ग़ौर है जिसमें कहा गया है कि पुलिस अब पिछले दस सालों में गौ तस्करी और गौवध की संभावना से जुड़े सारे मामलों की जांच करेगी और दोषियों के पूरे परिवार को जेल में ठूंस दिया जाएगा।
– यह घटना बुलंदशहर के इस शांत इलाक़े में संघ-बीजेपी से जुड़े संगठनों द्वारा की बर्चस्व बढ़ाने और मुस्लिम समुदाय में डर का माहौल बनाने की साज़िश है।
– स्थानीय स्तर पर कुछ व्यक्तिगत और समुदायों के बीच के छोटे झगड़ों को बहाना बनाकर इलाक़े को सांप्रदायिक आग में झोंकने की साज़िश रची गयी।
– सीधा प्रशासन से टकराव कर एक खास समुदाय के अंदर से कानून और प्रशासन के प्रति अविश्वास का भाव फैलाकर प्रशासन के ईमानदार हिस्से को हतोत्साहित करने की साज़िश रची गई।
– विहिप और अन्य मनुवादी संगठनों की सक्रियता साफ करती है कि बीते नवंबर में अयोध्या में हुए धर्म संसद के आयोजन की असफलता के बाद इस तरह से जनता को हिंदू-मुस्लिम में बांटने का षडयंत्र रचा जा रहा है;
– सुदर्शन चैनल के प्रमुख सुरेश चव्हाण ने घटना से पहले ही अपने निजी ट्विटर हैंडिल पर ट्विट किया था कि, ‘कल बुलंदशहर इज्तमे पर बहुत बड़ा खुलासा सुदर्शन पर देखें’ से साफ होता है कि यह घटना सुनियोजित षडयंत्र का नतीजा है जिसके निशाने पर मुस्लिम समाज का इज्तेमा था। घटना के दौरान भी चव्हाण ने ट्वीटर पर बवाल शब्द का इस्तेमाल करते हुए इसे इज़ेत्मा से जोड़ा था, जिसका खंडन पुलिस विभाग की तरफ से ट्वीटर के जरिये ही आया।
– पुलिस चौकी चिंगारावठी को आग के हवाले करने की कोशिश और पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की निर्मम हत्या का वीडियो बनाकर उसे वायरल कर हिन्दुत्ववादियों ने सरकारों को खुली चुनौती दी है।
– अखलाक लिंचिंग मामले में जाँच अधिकारी रहे सुबोध कुमार सिंह की हत्या की कोशिश पहले भी एक बार की जा चुकी थी जिसमें अपराधियों को सफलता नहीं मिल पाई थी। इस बार मिला मौका संघी गुंडे खोना नहीं चाहते थे।
जांच दल सरकार से मांग करता है :
– सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में एसआईटी इस मामले की जांच करे।
– गौरक्षा के नाम पर देश को गृहयुद्ध में झोंकने वाली हथियारबंद सेनाओं पर तत्काल प्रतिबंध लगे।
– भीड़ की हिंसा के खिलाफ तत्काल सख्त कानून बने।
….और आख़िर में!
ग़ौरतलब है कि 3 दिन बाद यानी 6 दिसम्बर को बाबरी मस्जिद ध्वंस की बरसी आने वाली थी और राम मन्दिर का मुद्दा पहले से ही गरमाया हुआ था; घटनास्थल से 50 किलोमीटर दूर ही मुसलमानों का धार्मिक समागम इज्तेमा हो रहा था.
‘दैनिक जागरण’ की ख़बर के अनुसार महाव गाँव में गोवंश के अवशेष मिलने के बाद संघ परिवार के हिन्दू संगठन बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने चिरगाँवठी गाँव के पास बुलन्दशहर-गढ़मुक्तेश्वर स्टेट हाईवे पर गौ अवशेषों को ट्रैक्टर-ट्राली में रख कर जाम लगा दिया था। जिस समय जाम लगाया गया था, उसके ठीक एक घण्टे पहले यानी 11 बजे इज्तेमा का समापन हो गया था और इसी मार्ग से इज़्तिमा में शामिल मुसलमानों को अपने वाहनों से लौटना था। दंगे के लिए इससे बेहतर जगह और समय क्या हो सकता था! पुलिस ने समय रहते मुसलमानों को तो घटनास्थल से पहले ही दूसरे रूट से भेज दिया था लेकिन घटनास्थल पर हिंसा भड़क उठी।
बुलंदशहर के गली कूचों में किसी से भी पूछ देखिये. तुरंत जवाब मिलेगा – प्लानिंग तो कम्पलीट भिडंत की थी. मुज़फ्फर नगर और गुजरात दोहराने की साजिश थी इज्तेमा ( इस्लामिक धर्मसभा ) में आये लाखों लोगों के नाम पर, लेकिन लोगों की समझदारी से उनका षडयंत्र कामयाब नहीं हो सका.
चार गांवों के सभी किसानों ने अपने खेतों में 15 दिन पहले ही गन्ने की कटाई कर ली थी ताकि इज्तेमा के लिए जमीन समय पर उपलब्ध कराई जा सके. हफ्ते-दस दिन पहले से तिरपाल वगैरह लगा कर जाड़ों में श्रद्धालुओं के रहने का उचित इंतजाम किया जाने लगा. इस तैयारी में सबकी शिरकत थी – क्या हिन्दू, क्या मुसलमान. नमाज़ के लिए हर हिन्दू किसान का घर और पूजा स्थल खुला था.
शायद सौहार्द्र और आपसी सम्मान की यही भावना संघियों और बजरंगियों को लम्बे समय से खटक रही थी जिसे ख़त्म करने का उनका षड्यंत्र कामयाब न हो सका.
पायनियर में छपी एक खबर में एक पुलिस अधिकारी के हवाले से बताया गया है कि, ‘ऐसा लगता है कि यह सोच समझ कर की गई हत्या है. दंगाई हथियार, लोहे की छड़ों और लाठियों से लैस थे और उन्होंने सुबोध सिंह को अपने निशाने पर ले रखा था.’
इस पूरे मामले में हर दिन घटनाक्रम बदल रहा है. लेकिन जो नहीं बदल रहा, वह है योगी सरकार का रवैया. मुख्यमंत्री योगी कह चुके हैं कि थाना प्रमुख सुबोध सिंह की मौत एक दुर्घटना थी और इससे कानून व्यवस्था पर कोई संकट नहीं आया है. सुबोध सिंह की पत्नी रजनी सिंह से उन्होंने वादा किया था कि उनके पति के हत्यारों को बख्शा नहीं जाएगा, लेकिन अब तक मुख्य आरोपी को पकड़ा नहीं गया है. योगी गाय को लेकर अपनी चिंता कई बार जता चुके हैं. सुबोध सिंह की पत्नी और बेटे लगातार सरकार की नीयत पर सवाल उठा रहे हैं.
गाय जैसे एक कृषि प्राणी को हिंदुत्ववादी तत्व देश में सम्प्रदायगत अराजकता फ़ैलाने के लिए पिछले साढ़े चार साल से इस्तेमाल कर रहे हैं. अल्पसंख्यकों के मन में असुरक्षा पैदा करना, बहुसंख्यक समुदाय का धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण करना और बेरोजगार नौजवानों को काम के अवसर देने के बजाय उन्हें साम्प्रदायिकता की आग में झोंक देना ताकि वे एक किस्म के बनावटी गौरव के नाम पर अपने अधिकार भूल जाएँ – धर्मांध हिंदुत्व की ताकतों का यही पैटर्न है देश में सौहार्द्र की लोक- परम्परा को मटियामेट करने का.
सुबोध सिंह और सुमित के हत्यारे पकडे जायेंगे और बुलंदशहर के पीड़ितों को न्याय मिलेगा या नहीं, यह कहना ऐसी परिस्थितियों में बहुत मुश्किल है जहाँ कानून का पालन करवाने की जिम्मेदारी वाले लोग ही न्याय की प्रक्रिया से मुंह फेर लें.
यही वज़ह है कि जब नसीरुद्दीन शाह जैसे संजीदा इंसान एक गंभीर सरोकार की बात करते हैं तो उनकी वतनपरस्ती पर सवाल खड़े किये जाते हैं और साहित्य समारोह में उन्हें बोलने नहीं दिया जाता, उनके प्रति अभद्र व्यवहार किया जाता है.
क्या उन्होंने सचमुच यह गलत कहा कि धर्मान्धता के इस जिन्न को बोतल में वापस बंद करना मुश्किल होगा? कितने गुजरात, कितने मुज़फ्फरनगर और कितने बुलंदशहरों का इंतज़ार कर रहे हैं हम!