विष्णु राजगढ़िया
दुनिया भर में प्रचार एजेंसियां ऐसा करती आई हैं। हिटलर ने कम्युनिस्टों का खतरा दिखाने के लिए संसद में आग लगवा दी थी। आजादी की लड़ाई में विदेशी वस्तुओं की होली जलाने या अनशन के जरिए कुछ इमेज गढ़ी जाती थी। कोई युवा कवि एक कलम लेकर विचारमग्न मुद्रा में फोटो खिंचाता है। कोई पहलवान लंगोट पहनकर, गदा लेकर।जाय प्रधानमंत्री का ‘शवासन’ पर होना कैसी इमेज बनाता है?
जिस व्यक्ति की इमेज सचेत रूप से न गढ़ी जाए, उसकी भी एक इमेज बन जाती है। मनमोहन सिंह की कोई इमेज गढ़ने की कोशिश नहीं हुई। उनकी एक शांत, विद्वान लेकिन दब्बू पीएम की इमेज बनी।
दूसरी ओर, गुजरात का सीएम रहने के दौरान ही नरेंद्र मोदी की इमेज गढ़ने के सचेत प्रयास शुरू हुए, जो अब तक जारी हैं। ‘चायवाले’ से लेकर ‘राजा बाबू’ तक की छवि बनाई गई। ‘फिटनेस’ का ताजा वीडियो उसी छवि निर्माण का एक अंग है। सन्देश यह, कि मोदी फिट, तो इंडिया फिट।
लेकिन छवि निर्माण का भी अपना नियम है। खतरे हैं। वास्तविकता से भिन्न छवि बनाने की कोशिश कभी महँगी पड़ जाती है।
फिटनेस इमेज में भी यही हुआ। इसमें नरेंद्र मोदी एक बड़ी गोल चट्टान पर उल्टा लेटे हुए शवासन पर हैं। यानी ‘शव’ की मुद्रा में लेटे हुए। लेकिन इस छवि का उपयोग कार्टूनिस्ट ने जबरदस्त कर लिया। दिखाया कि जिस मोदी ने समस्या की चट्टान अपने कंधे पर उठाने का वादा किया था, वह समस्याओं को भूलकर चैन से सोये हैं।
मोदी के शवासन की गोल बड़ी चट्टान को जनसमस्याओं और चुनौतियों की तरह देखने की इमेज बन जाए, तो यह फिटनेस फार्मूला नकारात्मक साबित होगा।
फिलहाल दिल्ली के प्रसंग से इसे देखना दिलचस्प होगा। जिस दिल्ली में मोदी अपने बागीचे में यह शवासन कर रहे हैं, उसी दिल्ली में एलजी हाउस के वेटिंग रूम में तीन मंत्रियों सहित केजरीवाल छह दिनों से धरने पर हैं। इसकी भी एक इमेज बन रही है- “हम काम करते हैं, वे परेशान करते हैं।”
केजरीवाल की राजनीति का फोकस आम आदमी की मामूली समस्याएं हैं। वह आम आदमी के राशन, केरोसिन, सस्ती बिजली, पानी, शिक्षा इलाज की बात करते हैं। सरकारी बाबू घूस न ले, जाति-आय प्रमाणपत्र आसानी से बन जाए, ऐसी बातें करते हैं। इन कोशिशों में केंद्र और एलजी के इशारे पर अधिकारियों ने बाधा डाली। तीन माह तक एलजी का यही रवैया रहा, तो केजरीवाल ने उनके ही घर में धरना दे दिया। इसके जरिए यह छवि बनी कि दिल्ली के विकास में केंद्र सरकार रोड़े अटका रही है।
इस प्रकरण से भारत में लोकतंत्र की कैसी इमेज बनी? केजरीवाल की मांग सही या गलत हो सकती है, लेकिन उस धरने को नजरअंदाज करना मोदी की एक निष्ठुर इमेज बनाता है। एक निरंकुश तानाशाह, जो समस्याओं की चट्टान पर चैन से लेटा हो।
सामान्य नियम है कि कोई व्यक्ति या समूह जब सत्याग्रह करे, तो उसका संज्ञान लिया जाए। कोई मांग सही या गलत हो सकती है। लेकिन उसकी उपेक्षा हरगिज नहीं की जा सकती। हर सरकार कहती है कि हम आतंकवादियों, नक्सलियों या अन्य समूहों से बातचीत के लिए तैयार हैं। यहाँ एक सरकार से भी बात नहीं कर रहे?
दिल्ली में क्या हुआ? जनता के भारी बहुमत से बना एक मुख्यमंत्री अगर प्रशासनिक तंत्र की शिकायत लेकर जाए, तो उसका तत्काल हल होना चाहिए था। इसके बजाय प्रधानमंत्री का ‘शवासन’ पर होना कैसी इमेज बनाता है? लोग पूछ रहे हैं कि मोदी यह मामूली विवाद नहीं निपटा सके, तो कश्मीर क्या संभालेंगे!
इसी क्रम में कुछ भाजपा नेताओं ने दिल्ली सचिवालय की छत पर फ्लेक्स लटकाकर एक और निगेटिव इमेज बनाई है। यह, कि दिल्ली में केंद्र और भाजपा की गुंडई चल रही है, लोकतान्त्रिक संस्थाओं की मर्यादा से खिलवाड़ हो रहा है और पुलिस-प्रशासन कठपुतली बना हुआ है।
कल्पना करें, केजरीवाल ने जब एलजी से नाउम्मीद होकर धरने की घोषणा की, तो देश का मुखिया होने के नाते प्रधानमंत्री ने तत्काल संज्ञान लिया होता। फौरन एलजी, केजरीवाल तथा आईएएस एसोसिएशन के प्रतिनिधि को बुलाया होता। उसी रात बैठक होती और तत्काल कोई हल निकल जाता। इससे प्रधानमंत्री और भारतीय लोकतंत्र, दोनों की एक परिपक्व इमेज बनती।
अफसोस की मोदी यह अवसर चूक गए। उन्हें शवासन इमेज ज्यादा पसंद आई।
विष्णु राजगढ़िया वरिष्ठ पत्रकार हैं। राँची में रहते हैं।