कल यानि 8 फरवरी को प्रधानसेवक नरेन्द्र मोदी ने राहुल गांधी को रायपुर में धमकाते हुए कहा कि ज्यादा शोर मत मचाओ नहीं तो परिवार के सारे रहस्य सार्वजनिक कर दूंगा।
प्रधानसेवक ने कहा कि ‘परिवार’ के हर सदस्य पर कोर्ट में केस चल रहा हैः “कोई बेल पर है तो किसी को एंटिसिपेटरी बेल मिली है‘’ (वैसे यह कहते हुए वे यह बताना भूल गए कि उनकी अपनी ही पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह को कोर्ट ने तड़ीपार कर दिया था)। प्रधानजी ने सभा को संबोधित करते हुए यह भी कहा कि ‘’राहुल गांधी के बहनोई राबर्ट वाड्रा से मनीलॉंड्रिंग के मामले में ईडी पूछताछ कर रही है, लेकिन मैं चौकीदार एलर्ट हूं, पूरे परिवार की पोल खोलकर रख दूंगा।”
जिसे हमने वोट देकर प्रधानसेवक बनाया, वो अब सिर्फ हमारे प्रधानसेवक नहीं रहे बल्कि वह ईडी के प्रवक्ता भी बन गए हैं। ईडी के प्रवक्ता के तौर पर वह बता रहे हैं कि वाड्रा के ऊपर नकेल कस दी गयी है। और यह बात वे दिल्ली में नहीं कह रहे, उस छत्तीसगढ़ की राजधानी में कह रहे हैं जहां की जनता ने दो महीने पहले उनकी पार्टी को सत्ता के दहलीज से धक्का देकर बाहर कर दिया है; उस छत्तीसगढ़ में, जहां खुद मोदीजी ने विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी को जिताने के लिए कई सभाएं की थीं।
क्या हमने इसलिए इस आदमी को सत्ता सौंपी थी कि वह सौदेबाजी करें? आखिर मोदीजी द्वारा राहुल गांधी को यह कहने का क्या अर्थ है कि ‘’ज्यादा शोर मत मचाओ नहीं तो पूरे परिवार की पोल-पट्टी खोल कर रख दूंगा’’! आखिर वह परिवार के किस रहस्य की बात कर रहे हैं और किस बात के लिए मुंह बंद रखने की धमकी दे रहे हैं?
पिछले साल भर से पहले तक प्रधानसेवक जी भले ही ‘एय्याश’ दिखते हों लेकिन आम जनता में उन्होंने अपनी छवि ईमानदार व्यक्ति और चाय बेचनेवाले गरीब के बेटे की ‘बना’ रखी थी। उनकी तथाकथित ‘ईमानदारी’ पर पहला पलीता नीरव मोदी और मेहुल ‘भाई’ ( इसी आदर से नरेन्द्र मोदी अपने आवास पर मेहुल चौकसी को संबोधित कर रहे थे) के देश छोड़कर भागने से लगी थी। वेसै विजय माल्या पहले देश छोड़कर भाग चुका था लेकिन मोदी ने इसे उस रूप में पेश किया कि वह उनके डर से भागा है (बाद में माल्या ने इंगलैंड में कोर्ट को बताया कि देश छोड़ने के दिन ही वह वित्त मंत्री अरूण जेटली से मिला था, तब पता चला कि वह भी इसी सरकार की मिलीभगत से भागा था)।
समूचा विपक्ष और खासकर राहुल गांधी इस बात को लगातार उठा रहे हैं। इसी बीच राफेल का मामला सामने आ गया। पिछले साल भर से यह मामला जोर पकड़े हुए है। राहुल गांधी हर जगह इस मसले को उछाल रहे हैं कि किस तरह सारे नियम-कानून को धता बताकर प्रधानसेवक मोदी ने अपने मित्र अनिल अंबानी पर 36000 करोड़ रुपए लुटाए हैं। बोफोर्स को उजागर करने वाले पत्रकार एन. राम ने अपने अखबार ‘दि हिन्दू’ में इस बात का फिर से खुलासा कर दिया कि जब रक्षा मंत्रालय की विशेषज्ञ कमिटी फ्रांस के साथ बातचीत कर रही थी, उसी बातचीत के समानांतर प्रधानमंत्री कार्यालय भी किसी और के माध्यम से राफेल डील कर रहा था। इस बात की जानकारी जब रक्षा मंत्रालय को हुई तो रक्षा सचिव के माध्यम से एक विरोध नोट लिखा गया। उस नोट पर तब के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का हाथ से लिखा एक नोट भी है जिस पर दर्ज है कि यह कुछ ज्यादा है, फिर भी इसे पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) को भेज दें।
कुल मिलाकर यह बात साफ है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अनिल अंबानी की कंपनी को हजारों करोड़ रूपए का लाभ पहुंचाया है जो सीधे तौर पर भ्रष्टाचार का मामला बनता है। राफेल का सौदा जिस रूप में किया गया वह देश की सुरक्षा को भी चुनौती देता है क्योंकि जब देश की सुरक्षा के लिए 126 राफेल की जरूरत थी तो सिर्फ 36 राफेल विमान ही क्यों खरीदे गए? आखिर बचे हुए 90 की कमी से देश की सुरक्षा पर असर नहीं पड़ेगा?
प्रधानसेवक मोदी इसका जवाब नहीं दे रहे हैं। इसका भी जवाब नहीं दे रहे हैं कि क्यों सत्तर साल पुरानी सरकारी कंपनी हिन्दुस्तान एरोनेटिक्स को हटाकर दो सप्ताह पहले बनी कंपनी रिलायंस डिफेंस के साथ राफेल का करार किया? चूंकि बात अब हर घर पहुंच गयी है कि मोदी जी और अंबानी जी के बीच गहरी ‘डील’ है, उतनी ही गहरी डील जो मोदीजी की गौतम अडानी जी के साथ है, इसलिए वह कांग्रेस अध्यक्ष को धमकी दे रहे हैं।
क्या आपने किसी प्रधानमंत्री को धमकी देते हुए सुना है? लेकिन जब किसी ने अपनी पूरी जिंदगी ही झूठ और ब्लैकमेलिंग से काटी हो तो उनसे किसी और चीज की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए! भले ही वह प्रधानसेवक बन गया हो। वे हर सभा में कम से कम दो बात जरूर दोहराते हैं- पहला, मेरा उससे (जगह या व्यक्ति) पुराना रिश्ता है और दूसरा- मैं गुजराती हूं, इसलिए व्यापार मेरे खून में है। रिश्ते के बारे में तो कोई खास टिप्पणी नहीं कर सकता लेकिन व्यापार उनके खून में बेशक है। और यह ‘व्यापार’ बिजनेस नहीं है जो कि सच्चा होता है, बल्कि ब्लैकमेलिंग है- अंडरवर्ल्ड का बिजनेस है जिसमें हर चीज ‘जायज़’ है!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और मीडियाविजिल के संपादकीय परामर्श मंडल के सदस्य भी हैं)