सावधान ! मोदी के दीवानों में फैल रहा है सैनिक शासन का गुप्त रोग !

पीयू रिसर्च सेंटर के ताज़ा सर्वे का नतीजा है कि भारत के 10 में से 9 लोग मोदी जी के साथ हैं। यह किसी नेता की लोकप्रियता का चरम है। कुल 2,464 लोगों से बात करके पीयू ने यह नतीजा निकाला है। लेकिन ख़तरनाक संकेत यह है कि 53 फ़ीसदी लोग भारत में लोकतंत्र की जगह सैनिक शासन देखना चाहते हैं। मशहूर टीवी पत्रकार रवीश कुमार ने सर्वे के नतीजों के आधार पर कुछ गंभीर सवाल उठाए हैं। पढ़िए-

हम नहीं हमारे भारत के ये 2, 464 बकलोल लोग !

रवीश कुमार

2,464 लोग वो लोग हैं जो पीयू रिसर्च में शामिल हुए हैं। यही भारत हैं। भारत की आत्मा गांवों में नहीं, सर्वे के सैंपल में रहती है। सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे भवन्तु मोदीमया। लोकप्रियता भी एक किस्म का बुख़ार है। कई लोग थर्मामीटर लिए दिन रात नापते रहते हैं। जिसे देखो थर्मामीटर लिए घूम रहा है। अक्तूबर के महीने में कई लेख छपे कि मोदी की लोकप्रियता घटी है। नवंबर में लेख छप रहे हैं कि मोदी की लोकप्रियता बढ़ी है। घटी तो बस नौकरी और कमाई है। किसानों के पास दाम हैं न दवाई है। फिर भी मोदी लोकप्रिय हैं। इसमें कोई शक नहीं है। सर्वे ने जो बताया उसके पहले हम भारत के सर्वेसर्वा जानते हैं। मगर ये 2,464 लोग कौन हैं जो हम भारत के लोग हैं। सर्वे ही सर्वेसर्वा है और सर्वेसेवा ही देशसेवा है।

2,464 लोगों का मत है कि मोदी जी 10 भारतीय में से 9 में लोकप्रिय हैं। हमारे एक पत्रकार मित्र ज़फ़र ने फेसबुक पर लिखा कि वो दसवां कौन है? क्या वह देशद्रोही है? क्यों न हम सब उस दसवें को देशहित में समझाएं कि भाई तुम भी 9 के साथ मिल लो। अकेले रह कर कुछ तो होगा नहीं तुमसे। इस 9 में तो विरोधी दल के नेता भी आ गए हैं, हमारा यकीन करो, सारी पार्टी के सपोर्टर भी आ गए हैं। पता नहीं तुम किस बात से खुन्नस खा गए मोदी जी से, वरना आज 10 में 10 का स्कोर होता। अभी मेरी बात मान लो वरना मन की बात में मोदी जी तुम दसवें की बात करने लगेंगे। कहने लगेंगे कि भाइयों, ये दसवां कब मानेगा। इसे क्या प्राब्लम है। इसके लिए मैं दीनदयाल दशांश योजना भी चला देता हूं। अमित शाह तो मिशन न लांच कर दें। मिशन टेंथ। जब तक टेंथ हमारे सपोर्ट में नहीं आएगा तब तक हमें और मोदी जी को टेंशन रहेगा।

2,646 का सैंपल हो या 20,000 का सैंपल हो, झलक और झांकी तो मिलती है। सर्वे ग़लत भी होते हैं, सही भी होते हैं। इसलिए उस पर बहस नहीं। मोदी जी लोकप्रिय नेता हैं इसे किसी सर्वे से जानने की ज़रूरत भी नहीं है, अगर है तो बुरा भी नहीं है। मगर समस्या कहीं और है। पीयू रिसर्च ने 40 से अधिक सवालों पर जवाब मांगे हैं। उन जवाबों से इन 2464 लोगों की जो तस्वीर उभरती है, उस पर बात होनी चाहिए। ये लोग मोदी जी के मसले को छोड़ कर बाकी कई चीज़ों पर कंफ्यूज़ लगते हैं। मल्लब ये कहते हैं कि कानून बने तो उसमें चुने हुए प्रतिनिधि वोट न करें। हम नागरिक सीधे वोट कर दें। फिर यही लोग कहते हैं कि वे लोकतंत्र में यकीन भी रखते हैं। भाई, जब कानून भी तुम्हीं को ट्रैफिक जाम में ट्वीट कर बनाना है तो ये एम पी, एम एल ए क्यों चुनने जाते हों। नाखून पर स्याही के निशान के साथ सेल्फी लेने?

आपने देखा होगा कि हवाई जहाज़ से लेकर रेलगाड़ी तक एक्सपर्ट ही चला रहे हैं। क्या आपने देखा है कि सांसद एयर इंडिया का विमान उड़ा रहा है? चीफ इंजीनियर का काम इंजीनियर ही तो कर रहा था, सेना का अध्यक्ष उसमें जीवन बिताने वाला एक्सपर्ट ही तो बनता है, फिर ये कौन से एक्सपर्ट बच गए हैं तो डेमोक्रेसी में चुने हुए प्रतिनिधि से ज़रूरी हो गए हैं? हम भारत के बाकी सवा अरब लोगों अपने इन 2,464 लोगों को समझाओं वरना ये पूरे इंडिया को बौरा देंगे। ये तो तब है जब ये ढाई हज़ार भी पूरे नहीं हैं।

 

इनमें से 55 फीसदी यानी बहुमत मानता है कि भारत में फैसला लेने के लिए मज़बूत नेता हो, जो संसद और कोर्ट की दखलंदाज़ी के बग़ैर फैसला ले। संसद और कोर्ट की बात जो नहीं मानेगा, आज के फैशन के हिसाब से इन्हें तो देशद्रोही कहा जाना चाहिए मगर लोग ऐसे चिरकुटों की राय का जश्न मना रहे हैं। इतने चुनावों में जीत देकर लोगों ने मोदी जी की लोकप्रियता साबित करने में कोई कमी छोड़ी है क्या, जो ऐसे लोगों की राय पर ख़बरें बन रही हैं।

बीजेपी के नेता और समर्थक कैसे लोगों की राय का जश्न मना रहे हैं। मेरी राय में उन्हें भी इन 2464 लोगों को समझाना चाहिए कि भाई, संसद, कोर्ट को बाइपास करना हमारे मोदी जी के हित में ही नहीं है। ये सब पहले हो चुका होता तो आज मोदी जी प्रधानमंत्री ही नहीं बन पाते। वैसे भी संसद का सत्र हम चुनाव के हिसाब से मैनेज कर लेते हैं तो इसे बाइपास करने की बात क्यों करते हो। संसद होनी चाहिए। गनीमत है कि इन 10 भारतीयों ने यह नहीं कहा कि कोर्ट की ज़रूरत नहीं है। सिर्फ मज़बूत नेता के लिए बाइपास करने की बात कही। मगर ये 2464 कानून बनाने का सीधा अधिकार अपने पास रखना चाहते हैं, संसद के सदस्यों को नहीं देना चाहते। पीयू को बताना चाहिए कि हमने ऐसे लोगों को चुना है जिन्हें न लोकतंत्र की समझ है और न सैनिक शासन का पता है। इन्हें ले जाकर किसी मिलिट्री ग्राउंड में दस राउंड लगवाना चाहिए तब पता चलेगा कि सैनिक शासन कैसा होता है। यही नहीं दोनों हाथ ऊपर कर बंदूक लेकर दौड़ने से एक ही राउंड में पता चल जाएगा।

नहीं जानने के कारण ही इन 2464 में से 53 फीसदी कहते हैं कि भारत मे सेना का शासन होना चाहिए। इस हिसाब तो आज प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जनरल वी के सिंह होते, नरेंद्र मोदी नहीं होते। जब 10 में से आठ भारतीय इस बात से खुश हैं कि जिस तरह से लोकतंत्र चल रहा है वो ठीक है तो उसी 10 में से ये 5 से अधिक भारतीय कौन हैं जो सेना का शासन बेहतर मानते हैं। ये जो 10 भारतीय हैं वो कमाल के हैं। भगवान बचाए इन 10 भारतीयों से।

ये सीरीयस है कि इनके भीतर सैनिक शासन की गुप्त कामना गुप्त रोग की तरह बजबजा रही है। इनसे बात करना ही होगा। इन चिरकुटों को समझाना होगा कि लोकतंत्र नहीं होता तो उनके लोकप्रिय मोदी जी उन्हें नहीं मिलते। सैनिक शासन होगा तो किसी रात पुलिस के लोग आएंगे और उठाकर जेल में दस साल तक बंद कर देंगे। मार देंगे। जिसका न सबूत होगा, न गवाही न न्याय। क्या वे ऐसा सिस्टम चाहते हैं? सैनिक शासन के बाद अगर ये सवाल पूछा गया होता तो इन 2,464 की हालत ख़राब हो जाती। क्या प्रोब्लम है इनकी लाइफ़ में? बाबा रामदेव और श्री श्री रविशंकर का इन्हें कोर्स कराना चाहिए।

इन 2,464 लोगों की बदौलत भारत इस सर्वे में दुनिया के चार मुल्कों में आ सका है जिसके पचास फीसदी से अधिक लोग मानते हैं कि सैनिक शासन होना चाहिए। यह सैंपल बताता है कि भले ही पूरा भारत लोकतंत्र को लेकर कंफ्यूज़ न हो मगर ये 2, 464 पक्का बकलोल हैं। इन्हें लोकतंत्र का मतलब मालूम नहीं है। कोर्ट का काम मालूम नहीं है। संसद की ज़रूर का पता नहीं है। एक नेता को जानते हैं जिनमें इनका खूब विश्वास है। उस विश्वास का आलम यह है कि इनमें से आधे का सैनिक शासन में भी विश्वास है।

अब एक बात गंभीरता से। सर्वे को खारिज मत कीजिए। मगर इसके सवालों के पैटर्न पर ग़ौर कीजिए। पीयू रिसर्च के सवाल शासन करने के लिए संसद, अदालत और निर्वाचित प्रतिनिधियों की हैसियत को कम करते हैं। हम सब जानते हैं कि दुनिया में आर्थिक खाई चौड़ी होती जा रही है। एक प्रतिशत लोगों के पास सारी दुनिया की दौलत है। यही अनुपात अमरीका में भी है और भारत में भी। नेताओं को ख़तरा है कि कहीं 90 फीसदी वंचित जनता उन पर हमला न कर दे। उन्हें सत्ता से बेदखल न कर दे। इसलिए ऐसे सवाल पूछे जाते हैं जिससे लगे कि दुनिया में लोकतांत्रिक संस्थाएं फेल हो गई हैं और अब सैनिक शासन ज़रूरी है। सैनिक शासन इसलिए ज़रूरी है कि इसके ज़रिए आप किसी भी जन विद्रोह को बेहतर तरीके से कुचलते हैं। दबाते हैं। इन सवालों और जवाबों के ज़रिए आप मीडिया और लोगों में एक कृत्रिम आकांक्षा भरते हैं कि सैनिक शासन से ही सब होगा। सैनिक शासन की कल्पना आम नागरिकों के अधिकारों की हत्या की कल्पना है। क्या ये लोग आम लोगों को मरवाना चाहते हैं।

मज़बूत नेता एक मिथक है। मज़बूत नेता के नाम पर उस नेता के भीतर इतनी असुरक्षा भरी होती है दिन भर भावुक मुद्दों की तलाश में रहता है। भावुकता में ही दस बीस साल मुल्क के निकाल देता है और एक दिन भरभरा कर गिर पड़ता है। आप गांधी, अंबेडकर, लिंकन, मंडेला को क्या मज़बूत नेता नहीं मानेंगे जिन्होंने लाखों लोगों का जीवन बदल दिया। एक मुल्क की पहचान बदल दी। लोगों को आवाज़ देकर जान भर दी। जहां जहां एकछत्र राज वाले मज़बूत नेता हुए हैं वहां वहां आम लोगों का अधिकार छिन गया है। चाहे वो कम्युनिस्ट रूस हो या पुतिन का रुस हो। आप चीन से लेकर अमरीका तक अनेक उदाहरणों से इसे देख सकते हैं।

मगर हम सब एक दिन भारत के लोकतंत्र को फेल कर देंगे अगर हम इन 2,464 लोगों की बातों को गंभीरता से लेंगे। एक ही बात ठीक है इनकी कि नरेंद्र मोदी लोकप्रिय नेता हैं और इन्हें लगता है कि लोकतंत्र ठीक चल रहा है। इस पर असहमति ज़ाहिर की जा सकती है मगर ये ख़तरनाक विचार नहीं हैं। ख़तरनाक और विकृत विचार हैं लोकतंत्र पर सैनिक शासन के विचार। इसलिए हे भारत के लोग इन 2, 464 की राय से दूर भागो।

 

रवीश कुमार के ब्लॉग कस्बा से साभार प्रकाशित 

 



 

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