दलित आक्रोशित हैं क्योंकि मोदी सरकार ने वादा तोड़ा! योजनाओं में हुई कटौती!

 

संजीव कुमार

 

भाजपा सरकार के कारनामे ऐसे हैं कि दलित मुद्दे पर अभी तक की जो भी उपलब्धियां रही हैं, उनसे हाथ धो बैठने का ख़तरा दरपेश है. आज के इंडियन एक्सप्रेस में सुखदेव थोराट का लीड आर्टिकल ज़रूर पढ़िए. समय न हो तो तो उसके मुख्य बिंदु यहां देख सकते हैं:

• दलितों के सशक्तिकरण से सम्बंधित स्पेशल कॉम्पोनेन्ट प्लान (एससीपी) के लिए आवंटन पिछले चार सालों में औसतन बजट का 7.59% रहा है. लक्ष्य था 16.6%. यानी कुल 9% की कमी.

• 2017-18 के बजट में शीर्षक बदल दिया गया. ‘एससीपी’ की जगह ‘अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए आवंटन’. एससीपी का हवाला हटा दिए जाने का मतलब है कि विभिन्न मंत्रालयों और विभागों द्वारा होनेवाले आवंटन का मूल्यांकन करने के लिए अब मापदंड और प्रतिमानों को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है. कैसे कहेंगे कि आवंटन का अभी तक का क़ायदा यह रहा है जिससे कोई मंत्रालय/विभाग दूर हट रहा है!

• आवंटन कम होने से अजा के लिए चलनेवाली कई योजनाएं प्रभावित हुई हैं. सामाजिक न्याय मंत्रालय की पोस्ट-मैट्रिक स्कालरशिप स्कीम के लिए ज़रूरत जहां 8000 करोड़ रुपये की है, वहीं 2017-18 में आवंटन महज़ 3000 करोड़ का हुआ है, जिसके कारण 5 लाख 10 हज़ार अ.जा विद्यार्थियों को मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है.

• सरकार ने दलितों के बीच उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए SC/ST Hub के नाम से एक स्कीम बनाई. इसके लिए 490 करोड़ का आवंटन किया गया. स्कीम के क्रियान्वयन के लिए KPMG नामक अंतरराष्ट्रीय कंसल्टेंसी फर्म की सेवाएं ली जा रही हैं जिसे 46 लाख प्रतिमाह की दर से 15 से 18 करोड़ की फ़ीस दी जायेगी. स्कीम के लिए आवंटित राशि का बड़ा हिस्सा निजी पार्टियों द्वारा आयोजित कॉन्क्लेव में खर्च हो रहा है. मंत्रालय ने अपनी कुल खरीद का 4 प्रतिशत अजा/अजजा के उद्यमों से खरीदना तय किया है, लेकिन खरीद हुई 0.39 प्रतिशत. दलितों के द्वारा चलाये जानेवाले 59.7 लाख उद्यम हैं. उन्हें मज़बूत करने के लिए बेहतर योजना बन सकती थी.

• 2014 के चुनाव में भाजपा ने घोषणापत्र में वादा किया था कि दलितों-आदिवासियों को उत्पीडन के ख़िलाफ़ सुरक्षा देना उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता होगी. 2014 में उत्पीड़न/अत्याचार के 40,401 मामले सामने आये, 2015 में 38,670 मामले और 2016 में 40,801 मामले.सबसे ज़्यादा मामले भाजपा शासित राज्यों के हैं. प्रति लाख आबादी पर मध्य प्रदेश में अत्याचार के 43 मामले, राजस्थान में 42, बिहार में 34, गुजरात में 32, आंध्र प्रदेश में 27, केरल में 26, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश में 25-25.

• न्यायपालिका भी पीछे नहीं रही. Atrocities Act में जिस तरह के बदलाव लाये गए, वह एक मिसाल है. कई लोगों का बहुत ठोस आरोप है कि सरकार इसलिए इस मामले में हारी कि एडिशनल सोलिसिटर जनरल ने प्रासंगिक तथ्यों को अदालत के सामने रखा ही नहीं. यानी सरकार जान-बूझकर हारी.

• इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विश्वविद्यालयों में अजा/अजजा के आरक्षित पदों को लेकर ऐसा फैसला सुना दिया जिससे इन पदों की संख्या में भारी कटौती हो जायेगी, लेकिन केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने के बजाये हाई कोर्ट के फ़ैसले को मान लिया और यूजीसी ने उसके अनुरूप अपना आदेश सभी विश्वविद्यालयों के लिए जारी कर दिया.

 

 

आप यह लेख पढ़ना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक करें Broken promises

 

तस्वीर गुरमीत सिंह की। इंडियन एक्सप्रेस से साभार। 

 

 



 

First Published on:
Exit mobile version