ऋतु तिवारी
समर्थक या विचारधारा से अलग एक मतदाता की जमात होती है जो अपने दिल और दिमाग का इस्तेमाल करके वोट डालती है।
थोड़ी गंभीरता से इस पर यदि सोचें तो समझना आसान है कि इन्हें लेफ्ट या राइट के किसी विचार से कोई सरोकार नहीं। एक विचारधारा पर अमल करने वाले विंग से ज्यादा इनकी वोट संख्या है और इनकी तादाद ही किसी पार्टी को उठाती बैठाती है।किसान उसे वोट देता है जिसके चुनावी वादों में उनके लिए योजनायें होती हैं। उसी तरह बेरोजगार काम की उम्मीद लिए घोषणापत्र पढ़कर अपने लिए कुछ पाता है तो वोट करता है।महिलाएँ और छात्र-छात्राएं भी इनमें शामिल हैं जो अपने विचार और विवेक से वोट डालते हैं।और यही किसी भी पार्टी की जीत का मापदंड भी हैं। है।
पिछली सरकार में भ्रष्टाचार के मामलों ने इतना निराश किया था कि हम जैसे मिडिल क्लास वोटर्स ने विकल्प के रूप में भाजपा को आजमाया जिसमें उनके घोषणापत्र के साथ साथ सोशल मीडिया कैम्पेन ने एक अहम भूमिका निभाई क्योंकि मिडिल क्लास हमेशा से ही विज्ञापनों और केम्पेन्स से प्रभावित होते रहे हैं।
मेरी भी 2014 के चुनाव तक यही कैटेगरी थी और मैंने भी 2014 में भाजपा को वोट दिया था उनके #मेनिफेस्टो से प्रभावित होकर और उसमें कहीं भी लिंचिंग, करप्शन, बेरोजगारी,महिलाओं की असुरक्षा, सरकार के विधायकों द्वारा बेटियों के बलात्कार,बलात्कारियों को सजा के दायरे में न लाना, शेल्टर होम के नाम पर बच्चियों का यौन-शोषण जैसी बातें नहीं थी।कहीं भी हिन्दू-मुसलमान को बाँटने की बात नहीं थी।कहीं भी जिक्र नहीं था कि उनके सत्ता में आने से मेरा धर्म खतरे में पड़ जायेगा और वो सरकार नहीं चला पाएँगे फिर इसके लिए देश के लोगों को गुमराह करेंगे और नौजवान अपनी जिम्मेदारियों से इतर हिन्दू-मुसलमान और चौकीदारी में उलझ कर अपना समय और विवेक दोनों खो देंगे। हिन्दू नौजवानों को हिन्दू-मुसलमान के नाम पर नफ़रत
फैलाने की जिम्मेदारी डाल दिया इन्होंने।
यही नौजवान जो 2014 के पहले की सरकारों के रहते चर्चा में सरकार की नाकामियों या उपलब्धियों की बात करते थे वो अब मंदिर, हिंदुत्व और बीफ जैसे विषयों पर चर्चा करते हुए उग्र हो जाते हैं। इस सरकार की नाकामियों में एक और महत्वपूर्ण बात जो गौर करने लायक है वो अभद्र भाषा का प्रयोग।आज के वो नौजवान जो इनके समर्थक हैं उनकी भाषा ने अपनी शालीनता की गरिमा को खो दिया है।
साफ देख पा रही हूँ कि देश की जनता ने जिस काम के लिए उन्हें चुना उसमें उसे ही उलझा दिया। एक महिला होने के नाते मैंने इस सरकार की महिला विरोधी मानसिकता को गहरे महसूस किया।ये महिलाओं की जरूरत और उनकी सुरक्षा को लेकर बेहद संवेदनहीन रहे अपने पूरे कार्यकाल के दौरान।
पर उनका एक शुक्रिया जरूर करूँगी कि उनकी सरकार के रहते मेरे मुसलमान साथी परिपक्व, समझदार और धैर्यवान हुए हैं, उन्होंने भाईचारे को समृद्ध किया है।राम-मंदिर का मुद्दा हो या कोई और मुस्लिम विरोधी भड़काऊ कृत्य, इन भाइयों ने अपनी समझदारी से देश में एक बेहद सौहार्दपूर्ण माहौल दिया।हमारे मुसलमान साथियों ने इनकी चालाकी को भाँप गए और उन्हें अपनी साजिश में सफल नहीं होने दिया। पर इस सरकार की चालाकी देखिये साथियों कि इसने हमें ही आपस में लड़ा दिया।आज एक ही परिवार,रिश्ते सिर्फ राजनीतिक विचार के अलगाव से मनभेद कर बैठे हैं।
सरकार ऐसी तो नहीं होती है ना, साथियों!
आज जब फिर एक बार चुनाव सर पर हैं तो मैं सत्ता बदल देने वाले वोटर्स के कुनबे से अपील करूँगी कि वो अपने विवेक से वोट करें, वोट करने से पहले सिर्फ इतना देखें कि जो वादे भाजपा ने उनके लिए किया था उसे निभाने की कोई कोशिश की,यदि नहीं तो फिर सोचिये कि यदि ये सरकार दुबारा आती है तो हमारे भविष्य का क्या होगा और फिर वोट डालिये क्योंकि सरकार बनाई जाती है काम करने के लिए बातें करने के लिए नहीं।
इस सरकार ने अपने मेनिफेस्टो के आधार पे मुझे निराश किया है,अपने मतदाताओं को धोखा दिया है। इनमें सरकार को चलाने की कोई योग्यता नहीं है।इस पार्टी पर कतई भरोसा नहीं किया जा सकता है।
(ऋतु तिवारी कोलकाता स्थित उद्यमी हैं।)