इसरो की 50 साल की मेहनत निजी कंपनियों के हवाले! उपग्रह बनाएगी पनामा पेपर्स में दाग़ी कंपनी!

 

गिरीश मालवीय 

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को दुनिया भारतीय वैज्ञानिक मेधा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन मानती है। उपग्रह प्रक्षेपण में ऐसी क़ामयाबी पाने के लिए भारतीय विज्ञानियों ने रात दिन एक कर दिया था लेकिन उनकी 50 सालों की मेहनत से विकसित उपग्रह प्रक्षेपण की स्वदेशी तकनीक अब मोदी सरकार निजी हाथों में सौंपने जा रही है। उनके मित्र अडानी और पनामा पेपर में दाग़ी कंपनी ने इस पर दाँत गड़ा रखा है। मसला सार्वजनिक हो चुका है लेकिन कॉरपोरेट मीडिया इतनी बड़ी ख़बरको पचा कर डकार भी न लेने की जुगत भिड़ा रहा है।

पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अंतरिक्षा विज्ञान में भारत का नाम ऊँचा करने का सपना देखा था। 1962 में उन्होंने एक समिति बनाकर मशहूर विज्ञानी विक्रम साराभाई को ज़िम्मेदारी सौंपी थी जो 1969 की 15 अगस्त को इसरो के रूप में सामने आया।

मोदी सरकार के दबाव में आकर इसरो ने निजी क्षेत्र की कंपनियों को 27 सैटलाइट्स बनाने का काम सौंपा था  लेकिन अब इसरो के स्पेस कार्यक्रमों की रीढ़ समझे जाने वाले ‘पोलर सैटलाइट लॉन्च वीइकल’ (पीएसएलवी) और ‘स्मॉल सैटलाइट लॉन्च वीइकल’ (एसएसएलवी ) का निर्माण भी प्राइवेट सेक्टर से कराने का दबाव बनाया जा रहा है। इसरो के तमाम विज्ञानियों का साफ़ कहना है कि सरकार संस्था के कामकाज में दखलंदाजी कर रही है

हद तो ये है कि इस संबंध में अपनी आपत्ति जताने वाले इसरो के विज्ञानियों के साथ सरकार वैसा ही व्यवहार कर रही है जैसे कि अपने अधीन काम करने वाले बाबुओं से करती है। अब यह ख़बर सार्वजनिक हो चुकी है कि निजी क्षेत्र को उपग्रह बनाने का काम सौंपने से, इसरो की सैटलाइट बनाने वाली अहमदाबाद स्थित इकाई,  ‘स्पेस एप्लीकेशन सेंटर’ के डायरेक्टर डॉ. तपन मिश्र निजीकरण का विरोध कर रहे थे । वह जीसैट-11 के लॉन्च में देरी से भी नाखुश बताए जाते थे। उन्होंने अपनी नाराजगी का इजहार किया, तो उनको तत्काल पद से हटाकर इसरो का सलाहकार बना दिया गया जबकि इसरो के मौजूदा डायरेक्टर के. सिवन के बाद उनके चेयरमैन बनने की संभावना सबसे ज्यादा  थी। देश के कई महत्वपूर्ण उपग्रहों के निर्माण मे अहम भूमिका निभाने वाले डॉ. तपन मिश्र को पद से हटाने से एक दिन पहले ही इसरो ने दो प्राइवेट कंपनियों और एक सार्वजनिक उपक्रम के साथ 27 सेटेलाइट बनाने का करार किया था।

देश के कई शीर्ष विज्ञानियों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर इस मामले में दखल देने की अपील की थी, लेकिन अब पानी सर के ऊपर से गुजर गया है।  पीएसएलवी और एसएसएलवी बनाने का काम भी निजी क्षेत्र से कराने का इरादा जताकर मोदी सरकार ने जैसे भारतीय मेधा की शानदार उपलब्धियों को यूँ ही हवा में उड़ाने की ठानी है।

भारत गिने-चुने देशों में है जो स्वदेशी तकनीक से अत्याधुनिक उपग्रहों को डिजाइन, विकसित और लॉन्च करने की क्षमता रखता है। 2017 में मोदी सरकार ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में निजी कम्पनियों को आगे बढ़ाने के लिए अंतरिक्ष संबंधी कानून में अहम बदलाव किए। इरादा ये था कि इसरो की रिसर्च का फायदा सीधे निजी कम्पनियों को दिया जा सके और वे उपग्रह, रॉकेट और प्रक्षेपण वाहन बनाने का काम कर सकें।

सबसे चौंकाने वाली बात यह जानन है कि इसरो की तकनीक को किस निजी कम्पनी के साथ साझा किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि ‘अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजी’ की अगुआई में एक कंसोर्टियम को यह तकनीक सौपी गयी है। यह कंपनी मूल रूप से सेना के लिए साजो सामान बनाने वाली एक निजी कम्पनी है। इसी अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजी के साथ मिलकर अडानी की कम्पनी ‘अडानी एयरो डिफेंस सिस्टम्स ऐंड टेक्नोलॉजीज़’ ने इजरायल की कम्पनी ‘एलबिट-आईस्टार’ के साथ समझौते किया है। एलबिट मानव-रहित विमान प्रणाली और तमाम तरह की कार्यात्मक क्षमताएं देने की तकनीक दे रही हैं, जो खास तौर पर रॉफेल विमान के पायलटों को देखने-सुसने की ख़ास क्षमता से लैस हैलमेट में काम आएगी।

अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज़ उस इतालवी डिफेंस फर्म ‘इलेटट्रॉनिका’ की मुख्य भारतीय साझेदार भी है, जिसका नाम भारत में कथित तौर पर कमीशन खिलाने के लिए ‘पनामा पेपर्स’ में सामने आया है। पनामा में विदेशी एकाउंट्स के बारे में ग्लोबल मीडिया कवरेज के बाद ‘इलेटट्रॉनिका’ का नाम सामने आया था। रिपोर्ट्स में कहा गया था कि इतालवी डिफेंस फर्म ने भारत में रक्षा क्षेत्र के ठेकों के लिए 5% से 17% तक मीशन देने के एग्रीमेंट्स किए थे। इलेटट्रॉनिका के साथ ज्वाइंट वेंचर ‘अल्फा इलेटट्रॉनिका डिफेंस सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड’ में ‘अल्फा डिजाइन ‘ का हिस्सा 80 पर्सेंट है ओर इतालवी फर्म का 20 फ़ीसदी।

यानी एक ऐसी कम्पनी जिसका नाम पनामा पेपर्स में आया है, जो रक्षा सौदों में कथित रूप से भ्रष्टाचार में शामिल रही है वही विदेशी कम्पनी इस अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजी कम्पनी में 20 प्रतिशत की भागीदार है। इस कम्पनी को इसरो द्वारा 70 सालो से विकसित की जा रही पूर्ण रूप से स्वदेशी तकनीक को सौपे जाने का दबाव बनाया जा रहा है। मोदी सरकार में इस से बड़ा भ्रष्टाचार का दूसरा उदाहरण मिलना मुश्किल है। यह साफ साफ देश के साथ किया गया धोखा है।

 

लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

 



 

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