प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पदभार संभालने के बाद ढाई साल के भीतर घोषित की गई दर्जनों योजनाएं भले ज़मीन पर अपने अंजाम तक न पहुंची हों, लेकिन जालसाज़ों और ठगों के लिए वे कमाई का अच्छा और आसान साधन बन गई हैं। प्रधानमंत्री की योजनाओं के संबंध में धोखाधड़ी और चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन से दो संबंधित दो प्रमुख खबरें उत्तर प्रदेश से आई हैं।
पहली ख़बर शुक्रवार को टाइम्स ऑफ इंडिया में ग़ाजि़याबाद डेटलाइन से प्रकाशित है। राज्य के ग़ाजि़याबाद जिले में प्रशासन ने एक कथित ‘घोटाले’ की जांच के आदेश जारी किए जिसमें कई महिलाओं को एक गिरोह ने प्रधानमंत्री की योजनाओं के तहत नकद राशि के नाम पर बड़े पैमाने पर ठगने का काम किया है। यह मामला तब सामने आया जब कई महिलाओं ने अधिकारियों से शिकायत की कि उन्होंने प्रधानमंत्री योजना के आवेदन पत्र खरीदने और योजना में नाम लिखवाने के लिए नकद राशि का भुगतान किया था।
ग़ाजि़याबाद के मुस्लिम बहुल क्षेत्र मसूरी में महिलाओं ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं योजना के आवेदन पत्र खरीदने के लिए पहले 400 रुपए प्रत्येक चुकाए, उसके बाद उनके प्रसंस्करण के नाम पर प्रत्येक 970 रुपये का भुगतान किया। यह भुगतान सिंह राज सेवा समिति नाम के एक स्थानीय एनजीओ को किया गया जो प्रधानमंत्री योजना के फर्जी आवेदन पत्र बेच रहा था।
यह घोटाला ऐसे समय में हुआ जब लोग नोटबंदी की मार से गुज़र रहे थे। इस एनजीओ के लोगों ने पक्के मकान बनवाने, बेटियों को पढ़वाने, बीमारों के मुफ्त इलाज और कर्ज माफी के नाम पर प्रधानमंत्री की विभिन्न योजनाओं के नाम पर इलाके के लोगों से पैसे ऐंठे और अपना दफ्तर बंद कर के चलते बने। मामला तब खुला जब पीडि़त महिलाओं ने पाया कि एनजीओ का दफ्तर करीब महीने भर से बंद पड़ा था। उन्होंने उसके अधिकारियों के फोन नंबर पर फोन मिलाए, लेकिन जवाब नहीं मिला। तब जाकर महिलाओं ने जिला प्रशासन में शिकायत दर्ज करवायी।
इससे कहीं ज्यादा महीन और संगीन मामला उत्तर प्रदेश में चुनावों के दौरान सामने आया जब बाकायदा प्रधानमंत्री योजना के नाम से चल रही एक निजी वेबसाइट ने चुनाव आयोग की वेबसाइट से मतदाताओं के फोटो वोटर स्लिप अपने यहां अपलोड कर दिए और सर्च इंजन में अपनी वेबसाइट को डलवा दिया। गूगल पर अगर कोई मतदाता voter slip with photo के नाम से सर्च करता तो उसे गूगल pradhanmantriyojana.in नामक वेबसाइट पर ले जाता। उस वेबसाइट पर एक सवाल लिखा होता- ”क्या 11 मार्च को कमल खिलेगा?”
अव्वल तो यह चुनाव आयोग के समानांतर काम करने और सूचना मुहैया कराने का फर्जीवाड़ा है, दूसरे केंद्र सरकार की सत्ताधारी पार्टी का प्रचार है जो आचार संहिता का उल्लंघन भी है। इस संबंध में बनारस से समाजवादी जन परिषद के नेता अफलातून देसाई ने बीती 10 फरवरी को राज्य निर्वाचन आयुक्त के पास शिकायत दर्ज करवायी थी (शिकायत संख्या UP/40/390/514629)। शिकायत में कहा गया था:
”आयोग का ध्यान एक अत्यन्त गंभीर आचार संहिता उल्लंघन की ओर दिला रहा हूं। कृपया इस वेब साइट को देखें- http://www.
आयोग की वेबसाइट पर शिकायत ट्रैक करने वाले पेज पर शिकायत संख्या डालने पर कार्रवाई की तारीख 11 फरवरी के सामने ”ऐक्शन टेकेन” के अंतर्गत रोमन हिंदी में लिखा है, ”आपकी बातों को ध्यान में रखते हुए आयोग से बात हो रही है, थैंक्स”। दिलचस्प यह है कि बगल वाले कॉलम ”स्टेटस” में दर्ज है DISPOSED यानी शिकायत का निपटारा हो चुका।
अगर ‘आयोग से बात हो रही है’ तो स्टेटस DISPOSED कैसे लिखा जा सकता है?
संबद्ध वेबसाइट pradhanmantriyojana.in एक निजी वेबसाइट है जो हिमाचल प्रदेश से किसी निशांत कौडल नाम के व्यक्ति द्वारा पंजीकृत करवायी गयी है। पंजीकरण में दर्ज मोबाइल फोन नंबर 9569905006 पर फोन करने पर यह बंद बता रहा है। मीडियाविजिल ने वेबसाइट के स्वामी से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन संभव नहीं हो सका।
फिलहाल वेबसाइट पर से तो ”क्या 11 मार्च को कमल खिलेगा” वाला सवाल हटा दिया गया लेकिन उसके फेसबुक पेज पर अब भी सबसे पहली फीचर्ड पोस्ट में यह सवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर के साथ शाया है। फेसबुक पेज की प्रोफाइल तस्वीर भी प्रधानमंत्री मोदी की है जिससे साफ भ्रम पैदा होता है कि यह सरकारी पेज है।
इसी वेबसाइट के फेसबुक पेज पर 30 नवंबर को एक पोल किया गया था जिसमें लोगों से सवाल पूछा गया था, ”क्या मेरे द्वारा नए नोट जारी किए जाने के निर्णय से आप खुश हैं?” और साथ में प्रधानमंत्री की एक तस्वीर लगी हुई थी। जवाब हां, नहीं और पता नहीं के बीच से चुनना था। लोगों ने इसे वाकई सरकारी पोल समझकर अपना मत दिया है। क्या किसी को भी इस देश में प्रधानमंत्री की फोटो लगाकर उनकी तरफ से सर्वे करने की छूट होगी?
प्रधानमंत्री के नाम से पहले भी ऐसे फर्जीवाड़े होते रहे हैं। एस्सार समूह से लेकर पेटीएम तक निजी कंपनियों ने प्रधानमंत्री का चेहरा अपने विज्ञापन में इस्तेमाल किया है। वेव सिटी के बिल्डर ने प्रधानमंत्री आवास योजना के नाम का इस्तेमाल अमर उजाला में दिए अपने विज्ञापन में किया, जिसके खिलाफ शिकायतकर्ता अफलातून देसाई के हस्तक्षेप के बाद कार्रवई की गई। इस संबंध में मीडियाविजिल ने विस्तृत खबर छापी थी।
अब प्रधानमंत्री योजना के नाम पर ग़ाजि़याबाद में सामने आए घोटाले और pradhanmantriyojana.in नामक वेबसाइट पर सत्ताधारी पार्टी का चुनाव प्रचार इस बात की आशंका पैदा कर रहा है कि कहीं प्रधानमंत्री और उनकी योजनाओं के नाम का इस्तेमाल करने वालों के खिलाफ जानबूझ कर ढिलाई तो नहीं बरती जा रही। चुनाव आयोग को इस मामले में सख्ती दिखानी होगी वरना आने वाले समय में प्रधानमंत्री के नाम से और बड़ी ठगी हो सकती है।
यह भी जांच का विषय है कि सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय ऐसे मामलों में हस्तक्षेप क्यों नहीं कर रहा। कहीं यह सत्ताधारी पार्टी बीजेपी की सोशल मीडिया टीम और आइटी सेल का कारनामा तो नहीं है?