मेक्सिको के उत्तर, बिलकुल पास, वो संयुक्त राज्य है जिसने पिछले कई दशकों से लातीनी अमरीका में ऐसी कोई भी सरकार बर्दाश्त नहीं की है जो उसकी नजरों में उसके हितों के लिए ख़तरा हो या बन सकती हो। 11 सितम्बर 1973 को चिली में CIA की देखरेख में गिराई गई साल्वाडोर आयेंदे की सरकार से बहुत पहले से और बहुत बाद आज तक चल रहा यह सिलसिला हमें इस बात के लिए तैयार रहने का सबक देता है।
पी. कुमार मंगलम
“सबकी भलाई के लिए, सबसे गरीबों का ख्याल सबसे पहले रखा जाना चाहिए। हम इन तीन सिद्धांतों के साथ देश चलाने जा रहे हैं: न झूठ बोलेंगे, न देश को लूटेंगे, न जनता को धोखा देंगे”
ये शब्द 1 जुलाई की आधी रात को आए लातीनी अमरीकी देश मेक्सिको के राष्ट्रपति चुनाव नतीजों में जबर्दस्त बहुमत से जीते आंद्रेस मानुएल लोपेस ओब्रादोर के हैं। अपने समर्थकों में AMLO (उनके नाम के सभी पहले अक्षर) के नाम से पुकारे जाते लोपेस ओब्रादोर को 53 प्रतिशत मतों के साथ मिली यह जीत कई मायनों में इतिहास को चुनौती देने तथा नया वर्तमान रचने की संभावना रखती है। लोपेस ओब्रादोर की वाम रुझानों वाली पार्टी Movimiento Regeneración Nacional, MORENA (मोबिमिएंतो रेखेनेरासीयोन नासियोनाल) के नेतृत्व में बने गठबंधन Juntos Haremos Historia (खुन्तोस आरेमोस हिस्तोरिया) को मिली यह निर्णायक जीत पिछले कई दशकों से एक या दो पार्टियों के पंजे में फंसे मेक्सिको के लिए उम्मीद की एक आस है। इन दो पार्टियों (PRI तथा PAN, जिनकी चर्चा हम आगे करेंगे) की पूंजीपरस्त नीतियों के वजह से मूलवासियों सहित मेक्सिको की एक बहुत बड़ी आबादी लगातार भयावह गैरबराबरी, हिंसा और पिछड़ेपन का शिकार रही है।
मसलन, PAN के तरफ से राष्ट्रपति रहे Felipe Calderón (फेलिपे कालदेरोन) के समय 2006 में सयुंक्त राज्य अमरीका (अब से आगे संयुक्त राज्य) के पैसे, मिलिट्री ट्रेनिंग और दिशा-निर्देश पर ड्रग माफियाओं के खिलाफ अभियान के नाम पर Mérida Initiative शुरू किया गया। नतीजा यह रहा कि तब से मेक्सिको की सड़कों और गलियों में सेना और पुलिस की हिंसा तथा इससे लड़ने के नाम पर ड्रग माफियाओं और संलिप्त नेताओं के द्धारा स्कूल-कॉलेज जाने वाले बच्चों को हथियार थमाकर खड़ी की गई भाड़े के लड़ाकों की हिंसा बढ़ती ही चली गई है। Democracynow.org की एक रपट के हिसाब से इन 12 सालों में 3,50,000 लोग मारे गए हैं, 35,000 गायब कर दिए गए तथा 25,000 लोग विस्थापित हो गए हैं। उसी रपट के अनुसार पिछले दस सालों में करीब सौ पत्रकारों की हत्या की जा चुकी है, जिसमें सात तो हाल में मारे गए हैं[i]। वहीं, पिछले सितम्बर से इस चुनाव के पूरा होने तक 136 राजनीतिक कार्यकर्ताओं तथा नेताओं की हत्या हो चुकी है। उत्तर में संयुक्त राज्य और मेक्सिको की सीमा पर सयुंक्त राज्य की बॉर्डर पुलिस के हाथों रोजाना सैकड़ों मजदूरों, बेरोजगारों तथा गरीब परिवारों की गिरफ्तारी और मौतों को इन आकड़ों में नहीं जोड़ा गया है।
इन लोगों में कई मेक्सिको के दक्षिण में ग्वातेमाला, होंदुरास जैसे मध्य अमरीकी देशों के होते हैं जो पिछले कुछ सालों से मेक्सिको से लगती अपनी सीमा पर भी मेक्सिको के सुरक्षाबलों की हिंसा का शिकार हो रहे है, जिसके लिए मेक्सिको की सरकारों ने संयुक्त राज्य की उस नीति का जूनियर पार्टनर बनना मंजूर किया, जिसके मुताबिक़ इन देशों के लोगों को उत्तर पहुँचने से पहले ही रोका जाना है। इस तरह पूरे मेक्सिको और मध्य अमरीका को हिंसा की त्रासदी में झोंक देने वाली परिस्थितियाँ (2009 में आई Cary Joji Fukunaga की फ़िल्म Sin Nombre यानी “अनाम” इस त्रासदी का मार्मिक चित्रण है) डोनाल्ड ट्रम्प की उन बयानबाजियों तथा कार्रवाइयों से और ज्यादा हिंसक हुई हैं, जिनमें बॉर्डर की और दीवारें खड़ी करने, इन दीवारों को पार करने की कोशिश करने वालों के साथ और ज्यादा अमानवीय बर्ताव करने को लगातार सामान्य बनाया जा रहा है। मेक्सिको के होने वाले राष्ट्रपति ने, जो दिसंबर में पद संभालेंगे, “Oye Trump” यानी “सुनो ट्रम्प” के शीर्षक वाली अपनी किताब में ट्रम्प के निज़ाम के इस घातक दुष्परिणाम को उजागर किया है।
बॉर्डर पर होने वाली नस्लीय हिंसा के इस नए रूप का शिकार मेक्सिको के वे लोग हो रहे हैं, जो पहले से ही गरीबी, असमानता और भेदभाव भुगत रहे हैं। Mexican Law Review के संपादक और National Autonomous University of Mexico में प्रोफ़ेसर John Ackerman बताते हैं कि 1980 के दशक से ही PRI और PAN के दबदबे वाली एक अत्यधिक केंद्रीकृत व्यवस्था के द्धारा थोपी गई मजदूर और किसान-विरोधी नवउदारवादी नीतियाँ मेक्सिको में गरीबों और अमीरों तथा शहरों और गावों के बीच की खाई को क्रूरतम स्तर तक बढ़ाती आई हैं (फ़ोर्ब्स की धनकुबेरों की सालाना सूची में मेक्सिको की नुमाइंदगी कभी कम नहीं हुई है, जबकि वहाँ गरीबी की स्थिति भयावह है!)[ii]। यह व्यवस्था शिक्षा, स्वास्थ्य तथा रोजगार आदि के मौलिक अधिकार के लिए काम करने के बजाय इन सभी को सुनिश्चित करने वाली संस्थाएं बाज़ार के हवाले करती आ रही है। घोर असमानता के बीच इस अनदेखी और वादाखिलाफी से उपजा असंतोष लगातार सेना-पुलिस-ड्रग माफिया तथा भ्रष्ट नेताओं की चौकड़ी की हिंसा में दबाया जाता रहा है। व्यवस्था के जन-विरोधी चेहरे, दमन तथा हिंसा का हाल के वर्षों में, जिसका इन चुनाव परिणामों से भी संबंध है, सबसे वीभत्स उदाहरण 2014 में 43 शिक्षकों की रहस्यमय गुमशुदगी रहा है। ये शिक्षक जो मेक्सिको के Guerrero (गेर्रेरो) राज्य के Ayotzinapa (आयोत्सिनापा) स्थित अपने प्रशिक्षण कॉलेज से 1968 में हुए ऐतिहासिक छात्र विद्रोह की बरसी मनाने तथा देश में शिक्षा संस्थानों की बदहाली की तरफ ध्यान दिलाने राजधानी मेक्सिको सिटी जा रहे थे, बीच रास्ते से ही पुलिस के द्धारा अगवा कर एक स्थानीय ड्रग माफिया के हवाले कर दिए और आज तक गायब हैं। इस प्रकरण में अभी राष्ट्रपति बनने जा रहे लोपेस ओब्रादोर की तब की पार्टी PRD, जिसकी चर्चा आगे की गई है, की ओर से उस राज्य के गवर्नर भी शामिल पाए गए थे जिसके बाद ही लोपेस ओब्रादोर और उनके कुछ साथियों ने PRD से इस्तीफा देकर आज चुनाव जीत चुकी MORENA पार्टी बनाई थी।
लातीनी अमरीकी राजनीति तथा मीडिया पर जनवादी रिपोर्टिंग के लिए जाने जाते Telesur के पोर्टल पर अपने लेख में Angel Gueraa (आंखेल गेर्रा) बताते हैं कि लोपेस ओब्रादोर का चुना जाना नव-उदारवादी व्यवस्था के पूरे तिलिस्म को एक मजबूत चुनौती है[iii]। और सिर्फ मेक्सिको ही नहीं पूरे लातीनी अमरीका में। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए आंखेल गेर्रा, लोपेस ओब्रादोर की जीत को लातीनी अमरीका में इस व्यवस्था के खिलाफ खड़े होते प्रतिरोधों की लम्बी परम्परा का अहम पड़ाव मानते हैं। इस जीत की अहमियत इसलिए भी और ज्यादा हो जाती है क्यूंकि ये उसी मेक्सिको में दर्ज की गई है जहाँ इन प्रतिरोधों की एक तरह से शुरुआत होती है। तब जब 1 जनवरी, 1994 को संयुक्त राज्य की कप्तानी में कनाडा और मेक्सिको की पूँजीपरस्त सरकारों ने NAFTA (North Atlantic Free Trade Agreement) यानी उत्तर अमरीकी मुक्त व्यापार संधि लागू किए जाने का फरमान सुनाया था और ठीक उसी दिन मेक्सिको के मूलवासी समुदाय ने उनके जमीन के हक़ के लिए शहीद हुए Emiliano Zapata (एमिलियानो सापाता) का नाम बुलंद करते हुए इस संधि और इसकी नव-औपनिवेशिक व्याख्याओं तथा तर्कों के खिलाफ़ अपना विद्रोह शुरू किया था।
यह एक त्रासदी से कम नहीं है कि Zapatista (सापातिस्ता) विद्रोह की ऐसी ऐतिहासिक पहल के बाद भी लातीनी अमरीका की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ करीब साढ़े तेरह करोड़ की आबादी तथा एक बेहद समृद्ध इतिहास और संस्कृति वाला यह मुल्क आज तक आबादी के बड़े हिस्से के लिए सही मायनों में एक लोकतंत्र नहीं बन पाया है। आश्चर्यजनक रूप से मेक्सिको तब भी पूंजीवादी पार्टियों की गिरफ्त में रहा जब 1999 से ही वेनेज़ुएला, उरुग्वे, ब्राजील, एक्वादोर, बोलीबिया सहित लातीनी अमरीका के कई देशों में वाम-प्रगतिशील रुझानों और कार्यक्रमों के साथ कई सरकारें आईं। लेकिन, यह भी एक सुखद आश्चर्य से कम नहीं है कि आज जब एक-दो को छोड़कर इन सारे देशों में अलग-अलग हथकंडे इस्तेमाल कर संयुक्त राज्य के परोक्ष या प्रत्यक्ष मदद से प्रतिक्रियावादी सरकारें दुबारा काबिज हो चुकी हैं और लातीनी अमरीका के “लाल या गुलाबी उभार” के ख़त्म होने का कार्पोरेटी ढोल पीटा जा रहा है, तब संयुक्त राज्य के ठीक नाक के नीचे मेक्सिको से बदलाव की एक बड़ी लकीर खींची जा रही है।
वैसे, यह बात नहीं है कि मेक्सिको इतने दिनों तक खामोश बैठा रहा; सापातिस्ता आंदोलन के साथ-साथ मूलवासियों, छात्रों, महिलाओं और नौजवानों के कितने ही आन्दोलन यहाँ चल रहे हैं और अपनी राजनीतिक दावेदारी भी पेश कर रहे हैं। मसलन, इस बार के चुनावों में सापातिस्ता आंदोलन की Ejercito Zapatista de Liberación Nacional (एखेर्सितो सापातिस्ता दे लिबेरासीयोन नासियोनाल-सापतिस्ता राष्ट्रीय मुक्ति सेना) तथा Congreso Nacional Indigenista (कोंग्रेसो नासियोनाल इन्दिखेनिस्ता- मूलवासी राष्ट्रीय कांग्रेस) ने साथ आकर Maria de Jesús Patricio Martínez (मारिया दे खेसुस पात्रिसियो मार्तिनेज़) की उम्मीदवारी का समर्थन किया जिनको उनके समर्थक Marichuy (मारिचुई) के नाम से भी जानते हैं। इस दफे पहली बार मेक्सिको के राष्ट्रपति चुनावों में स्वतंत्र उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने की इजाज़त दी गई थी और मारिचुई के साथियों ने आबादी का बड़ा हिस्सा होने के बावजूद स्पेनी औपनिवेशिक शासन से लेकर आज करीब पांच सौ सालों तक हाशिये पर रखे गए मूलवासियों की सत्ता में वास्तविक हिस्सेदारी का दावा पेश किया। यह बहुत अहम है कि मारिचुई सिर्फ मूलवासियों के मुद्दों की बात नहीं कर रही थीं, बल्कि युवाओं, बच्चों, महिलाओं सबको साथ लेकर और सबके लिए एक बेहतर भविष्य की बात कर रही थीं।
मारिचुई, हालाँकि, इस बार का चुनाव नहीं लड़ पाईं। मेक्सिको के चुनाव आयोग की कुछ असंभव सी शर्तों की वजह से उनका अभियान 19 फरवरी की हो खत्म हो गया, जो इन शर्तों के मुताबिक़ मेक्सिको के 32 राज्यों में कम-से-कम 17 अलग-अलग राज्यों से कुल वोटर संख्या के दस फीसदी यानी करीब 8 लाख वोटरों के हस्ताक्षर जमा कराने की आख़िरी तारीख थी[iv]। और तकनीक का पेंच यह कि ये हस्ताक्षर स्मार्टफोन पर चुनाव आयोग का ऐप डाउनलोड कर, अपना वोटर कार्ड स्कैन करा कर जमा किये जाने थे. उस मेक्सिको में जहाँ एक बड़ी आबादी ऐसे एक स्मार्टफ़ोन के लिए जरूरी 5000 पेसो (मेक्सिको की स्थानीय मुद्रा) से काफी कम करीब 1500 पेसो महीने का कमाती है और सुदूर इलाकों को कौन बात करे शहरों में भी ना तो इंटरनेट की सुविधा और ना ही अबाध पहुँच सबके पास है। इस सबके बावजूद अपने हर जनसंपर्क सभा में ड्रग माफिया-सेना की हिंसा तथा बाकी मुद्दों के साथ पर्यावरण पर लगातार बात करने वाला, इन सभाओं के लिए खर्च आम लोगों से चन्दा लेकर जुटाने वाला मारिचुई का अभियान आगे भी जारी रहने वाला है। उनके एक साथी Francisco Ortiz (फ्रांसिस्को ओर्तिस) कहते हैं, “हमारा कार्यक्रम चुनाव का नहीं, संघर्ष का है”. मारिचुई कहती हैं, “हमने देख लिया है कि बदलाव ऊपर से नहीं आता है, हमें बदलाव को नीचे से ले आना होगा”[v] ।
खुद लोपेस ओब्रादोर के लिए राष्ट्रपति बनने का सफ़र एक लंबे और कठिन संघर्ष से कम नहीं रहा है। करीब 65 साल के लोपेस ओब्रादोर पिछले 40 सालों से राजनीति में हैं और अपनी जनवादी पक्षधरता से समझौता नहीं करने के लिए जाने जाते हैं। आज राष्ट्रपति का चुनाव भारी बहुमत से जीतने के पहले वे हर छः साल पर होने वाले इन चुनाओं में पिछले दो चुनावों यानी बारह सालों से वस्तुतः हराए जा रहे हैं। जैसा कि हम आगे देखेंगे, लोपेस ओब्रादोर के पहले भी इन चुनावों में देश की बड़ी आबादी के सरोकारों को लेकर आगे बढ़ने वाले उम्मीदवारों से मेक्सिको की राजनीति पर कुण्डली मारी बैठी PRI और PAN जैसी पार्टियों तथा कॉर्पोरेट मीडिया की जुगलबंदी जीत हड़पती आई है। John Hopkins University में समाजशास्त्र की प्रोफेसर और इन चुनावों में Scholars and Citizens Network For Democracy की तरफ से पर्यवेक्षक रहीं Christy Thornton बताती हैं कि इस बार भी मतदाताओं को डराने, खरीदने तथा उन्हें एक जगह जमा कर ख़ास पार्टी को वोट डालने के लिए मजबूर करने जैसे पुराने हथकंडे अपनाए गए[vi]। लेकिन, लोपेस ओब्रादोर के गठबंधन के द्वारा मेक्सिको मे लोकतंत्र के अस्तित्व पर ख़तरा बने कई संकटों से निपटने की ठोस इच्छाशक्ति और रणनीति दिखाए जाने की वजह से मिले अपार जनसमर्थन को इस बार इन हथकंडों से नहीं रोका जा सका।
चुनाव से पहले देश के हर हिस्से में रैलियां और जनसभाएं कर लोपेस ओब्रादोर ने ड्रग माफिया के जाल में फंस जाने वाले युवाओं को एक बेहतर भविष्य का भरोसा देते हुए 30 लाख छात्रवृतियाँ देने की बात की[vii]। इसी तरह, छोटे तथा गरीब किसानों को NAFTA की संधि की वजह से संयुक्त राज्य के बेहद सस्ते खाद्य पदार्थो (जिसमें ‘मुक्त व्यापार’ का पहाड़ा रटने वाले सयुंक्त राज्य के द्वारा अपने किसानों को दी जाने वाली भारी सब्सिडी का बड़ा योगदान है) की मार से बचाने के लिए उन्हें आर्थिक मदद, उनके फसलों के लिए सरकारी समर्थन मूल्य तथा NAFTA में जरूरी बदलाव का संकल्प किया। ड्रग-माफिया तथा उनसे लड़ने के नाम पर खड़े किए गए सेना और पुलिस के आतंक-तंत्र को ख़त्म करने के लिए युवाओं को ड्रग-माफिया के चंगुल में फंसने को मजबूर करती गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार जैसी बुनियादी समस्याओं को हल करने की बात कही गई है। एक अन्य बहुत महत्वपूर्ण कदम की दिशा में मूलवासी समुदायों की जीविका और संस्कृति के अधिकारों को पक्का करने वाले सान आंद्रेस समझौतों को पूरी तरह से लागू करने की बात भी की गई है। इस तरह, इन संकल्पों के साथ मेक्सिको की त्रासद और खतरनाक चुनौतियों से लोहा लेकर एक बेहतर मेक्सिको के इरादे को सामने लाने की वजह से ही लोपेस ओब्रादोर के गठबंधन को ये निर्णायक जनादेश मिला है। गठबंधन की एक कार्यकर्ता ने यह संकल्प कुछ यूँ जाहिर किया, “हम मेक्सिको के लोगों ने अब डरना छोड़ दिया है क्यूंकि अब हमारे पास छोड़ने को कुछ और बचा नहीं है”[viii]। इस जनादेश को मंजिल तक पहुंचाने तथा आगे बढ़ाने वाले पूरे अभियान की एक बहुत महत्वपूर्ण बात महिलाओं की मुसलसल तथा बराबरी की हिस्सेदारी रही है। लोपेस ओब्रादोर के चुनाव अभियान की कमान एक महिला Tatiana Clouthier के हाथों में थी, तो चुने जाने के बाद अपनी कैबिनेट का जो खाका उन्होंने बताया है महिलाएं उसका आधा हिस्सा हैं।
लोपेस ओब्रादोर और उनकी पार्टी MORENA की जीत के इन सन्दर्भों तथा मायनों को और बेहतर तरीके से समझने के लिए इस चर्चा को थोड़ा पीछे ले जाकर मेक्सिको और लातीनी अमरीका के मिले-जुले इतिहास की कुछ कड़ियाँ खोलनी जरूरी है।
हड़प लिए गए एक लोकतंत्र की त्रासदी
हम शायद ही कभी यह सोचते हैं कि सिर्फ एक देश संयुक्त राज्य अमरीका का आम प्रयोग (हिदी में और ज्यादा) में अमरीका कहा जाना एक शब्द के गलत प्रयोग से कहीं ज्यादा है। जैसा कि समकालीन लातीनी अमरीकी लेखक एदुआर्दो गालेआनो का कहना है, यह इस एक देश के द्वारा अपनी दक्षिणी सीमा के बाद शुरू होते लातीनी अमरीका का भूगोल, इतिहास, संस्कृति और राजनीति हथियाकर इस पूरे क्षेत्र को “एक दोयम अमरीका” में बदल देने की पूरी दास्तान है। यहाँ हम इस भयावह सच के पूरे ताने-बाने और अभी तक चल रहे सिलसिले की बात तो नहीं कर सकते, लेकिन मेक्सिको की बात करते हुए इसके कई पहलू खुलेंगे।
भूगोल के हिसाब से उत्तरी अमरीका में होने और संयुक्त राज्य से बिल्कुल सटे होने के बावजूद मेक्सिको स्पानी भाषा और स्पानी औपनिवेशिक इतिहास के साथ सीधे-सीधे दक्षिणी अमरीका का हिस्सा है। इस जुड़ाव की सबसे अहम बात यह है कि 1810-25 के बीच स्पानी हुकूमत से बाहर निकले मेक्सिको, मध्य और दक्षिणी अमरीका के देशों (इन तीनों तथा कैरिबियाई सागर के स्पानी-भाषी देशों तथा क्यूबा और डोमिनिकन रिपब्लिक को मिलाकर बना क्षेत्र ही लातीनी अमरीका कहलाता है) में बोई गई सामाजिक-आर्थिक गैर-बराबरी, धनिकों के राजनीतिक वर्चस्व और संयुक्त राज्य की दादागिरी की नर्सरी भी यही देश रहा है। बात चाहे इस ‘आज़ादी’ के बाद भी स्पेनवंशी क्रियोल और मिली-जुली नस्ल के स्थानीय पूँजीपतियों के पूरे देश के संसाधन, संस्कृति और सत्ता पर कब्जे की हो या 1844-48 में संयुक्त राज्य द्वारा मेक्सिको की आधी जमीन लील लिये जाने की हो, मेक्सिको कल और आज के लातीनी अमरीका की कई झाँकियां दिखलाता है।
‘आज़ाद’ मेक्सिको की लगातार भयावह होती गैरबराबरीयों के खिलाफ वहां के भूमिहीन किसानों और मजदूरों का गुस्सा 1910 की मेक्सिको क्रांति बनकर फूटा, हालांकि बहुत जल्द ही ब्रिटिश, फ्रांसीसी और आगे चलकर संयुक्त राज्य के बाज़ार और पैसे पर पलते क्रियोल वर्ग ने बदलाव के संघर्षों को बर्बरता से कुचल डाला था। 1910-20 के दशक में उत्तर के Pancho Villa (पांचो विया) और दक्षिण में चियापास क्षेत्र के एमिलियानो सापाता जैसे क्रांतिकारी नेताओं की हत्या कर बड़ी पूँजी और सामाजिक भेदभाव की शक्तियों ने पूरे राज्य-तंत्र पर कब्जा कर लिया था। 1929 में राष्ट्रपति रहे Plutarco Calles (प्लूतार्को कायेस) ने PRI (पार्तिदो दे ला रेवोलुसियोन इंस्तितुसियोनाल– व्यवस्थागत क्रांति का दल) बनाकर इन शक्तियों को संगठन और वैचारिक मुखौटा दिया। जैसा कि नाम से ही जाहिर है, यह पार्टी क्रांति के दौर में जोर-शोर से उठी समानता और न्याय की मांगों को एक अत्यधिक केंद्रीकृत राष्ट्रपति प्रणाली वाली व्यवस्था में दफनाने की शुरुआत थी[ix]।
Lázaro Cárdenas (लासारो कार्देनास) को छोड़ प्लुतार्को कायेस के बाद आए सभी राष्ट्रपतियों ने जनआकांक्षाओं का गला घोंटने वाली इस व्यवस्था को मजबूत किया। मजेदार बात यह कि यह सब लगातार जनता के नाम पर, लोकप्रिय नायकों की मूर्तियां वगैरह बनवाकर तथा लोकगीतों-लोककथाओं के कानफोड़ू सरकारी प्रचार के साथ-साथ किया गया! यह भी बताते चलें कि मूलवासियों सहित अन्य वंचित तबकों की कीमत पर विदेशी पूंजी का रास्ता बुहारती PRI सरकारें संयुक्त राज्य की सबसे करीबी सहयोगी बन गई थीं। आश्चर्य नहीं कि जब 1950 के दशक में हालीवुड में “कम्युनिस्ट” कहकर चार्ली चैपलिन जैसे कलाकारों को निशाना बनाया जा रहा था, तब वहां के सरकारी फिल्मकारों ने मेक्सिको क्रांति के नायकों को खलनायक दिखा कई फिल्में ही बना डाली! 1953 में आई एलिया काज़ान की ऐसी ही एक फिल्म में चियापास के भूमिहीन किसानों के योद्धा रहे एमिलियानो सापाता को बातूनी और छुटभैया गुंडा बना दिया गया था!
मेक्सिको: वैश्वीकरण और मीडियाक्रेसी का मकड़जाल
संयुक्त राज्य से सटे होने के कारण मेक्सिको और फिर मध्य अमरीकी देश वैश्वीकरण के पहले शिकारों में रहे हैं। ‘उदारीकरण’, ‘आर्थिक सुधार’ आदि का लुभावना चेहरा देकर वैश्वीकरण की जो नीतियां आज पूरी दुनिया में लागू की जा रही हैं, मेक्सिको काफी पहले से उन सबकी प्रयोगशाला रहा है (शायद यहीं से मेक्सिको में खूब प्रचलित यह कहावत भी निकलती है: मेक्सिको, भगवान से इतना दूर और संयुक्त राज्य के इतना करीब!)। एक और खास बात यह कि लातीनी अमरीका के ज्यादातर देशों के उलट, जहां नव-उदारवादी नीतियां भयानक तानाशाहियों के द्वारा थोपी गईं, मेक्सिको में देश बेचने का काम छ्ह साला चुनावों के साथ और संसाधनों की लूट का हिस्सा मध्यवर्ग में बांटकर किया गया[x], हालांकि 1980 के बीतते-बीतते शोषित तबकों को हथियार और कभी-कभी ‘भागीदारी’ के सरकारी झुनझुने तथा मध्यवर्ग को ‘राष्ट्रवाद’ और ‘विकास’ के दावे से साधते रहने की PRI की रणनीति चूक गई थी। तब, जहां महंगाई और मेक्सिकन मुद्रा पेसो की कीमत में भारी गिरावट से कंगाल हुए उच्च और मध्य वर्ग सरकार को नकारा घोषित कर रहे थे, वहीं सालों की लूट और अनदेखी से बरबाद आबादी का बड़ा हिस्सा अपने आंदोलन खड़ा कर रहा था।
1988 के राष्ट्रपति चुनावों में वंचित तबकों के जमीन और जीवन की मांगों को साथ लेकर Cuauhtémoc Cárdenas (क्वातेमोक कार्देनास) PRD (पार्तिदो दे ला रेवोलुसियोन देमोक्रातिका– लोकतांत्रिक क्रांति का दल) के झंडे के साथ PRI उम्मीदवार Carlos Salinas de Gortari (कार्लोस सालिनास दे गोर्तारी) के खिलाफ़ लड़े। व्यापक जनसमर्थन और जबरदस्त लोकप्रियता के बावजूद, कार्देनास के पिता पूर्व समाजवादी राष्ट्रपति लासारो कार्देनास थे, वे चुनाव हार गए। जीत और हार का बहुत कम फासला किसी राजनीतिक उलटफेर से नहीं, बल्कि सोची-समझी सरकारी साजिश से तय हुआ था। इलेक्ट्रानिक मतों की गिनती में कार्देनास शुरू से आग चल रहे थे कि ठीक आधी रात को मशीनें ‘अचानक’ खराब हो गईं। और जब उन्हें ‘ठीकठाक’ कर अगली सुबह नतीजों का एलान किया गया, तो कार्देनास राष्ट्रपति के बजाय राष्ट्रपति के भूतपूर्व उम्मीदवार बन चुके थे! लोकतंत्र के खुल्लम-खुल्ला अपहरण के खिलाफ आज राष्ट्रपति चुने गए लोएस ओब्रादोर और उनके साथी तब PRI छोड़ PRD में शामिल हो गए थे। इस अपहरण में तब सरकारी भोंपू की भूमिका अदा करने वाले कॉर्पोरेट मीडिया ने छः साल बाद 1994 के चुनावों में अपनी भूमिका निर्णायक रूप से बढ़ा ली थी। इस बार, पहले से ज्यादा संगठित PRD की चुनौती को एक-दूसरे का पर्याय बने PRI और राज्यसत्ता (जैसे भारत में कांग्रेस/बीजेपी और सरकार) तथा सबसे बड़े मीडिया समूह Televisa (तेलेवीसा) ने मिलकर खत्म कर डाला था। श्रम ‘सुधार’ और ‘उदार’ कर-व्यवस्था के नाम पर पूरी तरह से संयुक्त राज्य का हुक्म बजाते NAFTA[xi] करार पर PRI की बलैयाँ लेने वाली तेलेवीसा ने अपने कारनामों से जनमत सरकार के पक्ष में या ठीक-ठीक कहें तो PRD के खिलाफ़ मोड़ दिया था।
सबसे पहले, तेलेवीसा ने अपने बड़े नेटवर्क और उसपर आम लोगों के भरोसे को भंजाते हुए PRI उम्मीदवार एर्नेस्तो सेदियो को अन्य उम्मीदवारों के मुकाबले 10 गुना ज्यादा प्रचार दिया। फिर, PRI विरोधी मतों को बांटने के लिए 1980 में खड़ी हुई कट्टर कैथोलिक रूझानों वाली पार्टी PAN(पार्तिदो दे ला आक्सियोन नासियोनाल– राष्ट्रीय कारवाई का दल) को PRD से ज्यादा तवज्जो देकर ‘विपक्ष’ बनाया गया। इतना ही नहीं, PRD की राजनीतिक चुनौती को कुंद करने के लिए बिल्कुल उसी के सुर में मजदूर-किसान हित और व्यवस्था परिवर्तन की बात करने वाली PT (पार्तिदो दे लोस त्राबाखादोरेस-मजदूर दल) को रातों-रात सनसनीखेज तरीके से देश का ‘हीरो’ बना दिया गया! यह और बात है कि इस पार्टी का न तो पहले कभी नाम सुना गया था और न ही देश में इसका कोई संगठन था! यह सब करते हुए बाकी खबरें (हां, कहने के लिए तो वे खबरें ही थी!) भी PRI की जीत के हिसाब से तय हो रहीं थी। मसलन, चुनाव से ठीक पहले सर्बिया-बोस्निया गृहयुद्ध और दूसरे देशों के अंदरूनी झगड़ों को बार-बार बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया। इशारा साफ था, अगर मेक्सिको को टूटने या कमजोर होने से बचाना है, तो देशवासियों को ‘अनुभवी’ और ‘सबको साथ लेकर चलने वाली’ PRI का साथ देना ही चाहिए! यहां PRD, जिसके हजारों कार्यकर्ता सरकारी हिंसा का शिकार हुए, और मेक्सिको के दक्षिण चियापास में भूमिहीन मूलवासियों के हथियारबंद सापातिस्ता आंदोलन को बतौर ‘खलनायक’ पेश किया गया।
तेलेवीसा की अगुआई में बड़ी मीडिया की इन सब कलाबाजियों का नतीजा PRD की एक और हार तथा PRI की ‘जीत’ के रूप में सामने आया। पहले से ही विदेशी पूंजी पर टिके और NAFTA में प्रस्तावित कर ’सुधार’ आदि से अपनी कमाई कई गुना बढ़ाने को आतुर बड़ी मीडिया ने इस जीत को तुरत-फुरत ‘ऐतिहासिक’ भी बता दिया था! वैसे इस जीत का असली खिलाड़ी तो सिर्फ रेफरी होने का ढोंग कर रहा यही मीडिया था, जिसने अपनी और अन्य धनकुबेरों की बेशुमार दौलत की खातिर मुनाफे की एक और सरकार बनवा दी थी। यहां बताते चलें कि PRI के लिए चंदे की खातिर रखे गए सिर्फ़ एक रात्रि-भोज के दौरान 750 मिलियन डालर (करीब 45 सौ करोड़ रू.) जुटाए गए, जिसमें 70 मिलियन डालर (करीब 4 सौ 27 करोड़ रू.) तो तेलेवीसा के मालिक एमीलीयो इसकारागा ने ही दिए थे!
लैटिन अमेरिका इन क्राइसिस (संकटग्रस्त लातीनी अमरीका) के लेखक जान डब्ल्यू शेरमान ने मेक्सिको में बड़ी मीडिया के द्वारा रचे गए ‘लोकतंत्र’ के इस नाटक को ‘मीडियाक्रेसी’ कहा है। इस ‘मीडियाक्रेसी’ या मीडियाशाही में आबादी के बड़े हिस्से की सोच पर हावी एक या एक से अधिक कारपोरेट मीडिया, जैसे मेक्सिको में तेलेवीसा, अपने फायदे की सरकार बनाते-गिराते रहते हैं। यहां इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि सत्ता में कौन सी पार्टी आ रही है, बस इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता है कि जो भी आए इस मीडिया के काम आए! अपने मतलब के लिए सत्तासीन पार्टियों की अदला-बदली तो यहां की खास रवायत है!
साल 2000 आते-आते मेक्सिको यह सब कुछ देख चुका था, जब राष्ट्रपति चुनावों में जीत का सेहरा PRI के बजाय PAN के सिर बांधा गया। धार्मिक कट्टरता के अपने सभी दावों को बड़ी चालाकी से छुपा PAN अब बाजार की सबसे बड़ी हिमायती पार्टी बन गई थी और देश को नए राष्ट्रपति के रूप में कोका-कोला (मेक्सिको) के मुखिया रहे Vicente Fox (विसेंते फॉक्स) का ब्रांडेड तोहफा दिया था! कॉर्पोरेट मीडिया संचालित इस मीडियाशाही का यह खेल अगले दो चुनावों में भी देखने को मिला जिनमें लोपेस ओब्रादोर ने भी उम्मीदवारी पेश की थी। 2006 के चुनावों के पहले PRD के उम्मीदवार के बतौर वे काफी लोकप्रियता हासिल कर चुके थी और सामान्य राय यही थी कि वे चुनाव जीतेंगे। लेकिन, हुआ वही जिसका डर था. PAN के उम्मीदवार फेलिपे काल्देरोन उनसे सिर्फ 0.50 प्रतिशत के अंतर से विजयी घोषित किए गए। लोपेस ओब्रादोर और उनके हज़ारों समर्थकों ने इस परिणाम को चुनौती देते हुए चुनाव के दौरान और मतगणना में हुई धांधली के खिलाफ राजधानी मेक्सिको सिटी के सबसे महत्वपूर्ण मैदान एल ज़ोकालो में एक महीने तक धरना-प्रदर्शन किया। 2012 में भी यही कहानी दुहराई गई और फिर से PRD के टिकट पर लड़े लोपेस ओब्रादोर इस बार सत्ता में 12 सालों के बाद वापसी करने वाली PRI से पराजित घोषित किए गए। सरकारी मशीनरी के उनके मतदाताओं के खिलाफ गलत इस्तेमाल तथा वोटों की गिनती में हुई गड़बड़ी का मुद्दा उठाते हुए लोपेस ओब्रादोर ने विरोध-प्रदर्शन किया जिसके बाद कुल मतों के आधे की फिर से गिनती करवाई गई, लेकिन रहस्यमय तरीके से नतीजा फिर उनके खिलाफ़ ही आया था।
निष्कर्ष और सबक
आज जब व्यवस्था की तमाम चुनौतियों और साजिशों से लड़ते हुए लोपेस ओब्रादोर सत्ता तक अपनी दावेदारी तय कर चुके हैं, यह देखना पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण होगा कि उनका गठबंधन मेक्सिको को एक बेहतर सच देने की उम्मीदों पर कैसे और कितना खरा उतरता है। यह ध्यान में रखने वाली बात है कि उनका गठबंधन कई विरोधाभासों को समेटे हुए है, जिसमें एक ओर स्पष्ट रूप से वाम मत रखने वाली उनकी अपनी पार्टी MORENA है, तो वहीं रुढ़िवादी कैथोलिक मान्याता रखने वाली Social Encounter Party भी है। इसके अलावा संदिग्ध पृष्ठभूमि और इतिहास वाली PT या मजदूर पार्टी भी जिसका जिक्र ऊपर किया जा चुका है। फिर, चाहे यह रणनीति के बतौर हो या परिस्थितियों के कारण, लोपेज़ ओब्रादोर ने खुद इस बार के चुनाव अभियान में कई मुद्दों पर अपने पहले के आक्रामक रुख को नरम बनाए रखा। शायद इस नरम रुख के वजह से ही उन्हें कॉर्पोरेट मीडिया और सरकार में बैठी PRI के उतने हमलावर रुख का सामना नहीं करना पड़ा, जितना वह करते आए हैं। वैसे, हमें यह बिलकुल नहीं भूलना चाहिए कि खुद को सत्ता का असली मालिक समझते इन ‘हुक्मरानों’ का रुख कोई बहुत दोस्ताना भी नहीं रहा था और, जैसा कि हम ऊपर देख चुके हैं, मतदान को लोपेस ओब्रादोर के खिलाफ़ प्रभावित करने की कोशिशें कम नहीं थीं। व्यवस्था का रवैया आगे आने वाले दिनों में बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि लोपेस ओब्रादोर अपने कहे पर कितनी ईमानदारी से अमल करते हैं।
अगर चुनाव के दौरान उठाए गए मुद्दों पर वह तेजी और सख्ती से अमल करते हैं, तब यह रवैया निश्चित तौर पर दोस्ताना नहीं रहने वाला है तथा वेनेज़ुएला, एक्वादोर, ब्राजील जैसे देशों की तरह मेक्सिको में भी कॉर्पोरेट मीडिया, रुढ़िवादी सामाजिक संस्थाएँ और बाज़ार की बड़ी ताकतें (वैसे, क्या ये तीनों एक नहीं हैं?) अलग-अलग तरीकों से इस सरकार को अस्थिर करने का कोई भी मौक़ा छोड़ने वाली नहीं हैं। और मेक्सिको के उत्तर, बिलकुल पास वो संयुक्त राज्य है ही जिसने पिछले कई दशकों से लातीनी अमरीका में ऐसी कोई भी सरकार बर्दाश्त नहीं की है, जो उसकी नजरों में उसके हितों के लिए ख़तरा हो या बन सकती हो। 11 सितम्बर 1973 को चिली में CIA की देखरेख में गिराई गई साल्वाडोर आयेंदे की सरकार से बहुत पहले से और बहुत बाद आज तक चल रहा यह सिलसिला हमें इस बात के लिए तैयार रहने का सबक देता है।
संदर्भ सूची:
Canclini, Garcia Nestor. Hybrid Culture: Strategies for Entering and Leaving Modernity. Minneapolis, London: University of Minnesota Press. 1995.
Galeano, Eduardo. Memoria del fuego (II): las caras y las mascaras. Madrid: Siglo Veintiuno de España Editores. 1984.
Galeano, Eduardo. Upside Down: A Primer for the Looking Glass World (translation by Mark Fried). New York: Metropolitan Books. 2000
Sherman, W. John. Latin America in Crisis. Colorado: Westview Press. 2000.
Williams, Gareth. The Other Side of the Popular. Durham & London: Duke University Press. 2002
[i] https://www.democracynow.org/2018/7/3/mexicos_leftist_president_elect_amlo_promises.
[ii] https://www.democracynow.org/2018/7/3/mexicos_leftist_president_elect_amlo_promises.
[iii] https://telesurtv.net/bloggers/AMLO-y-nuestra-America-20180704-0002.html.
[iv] https://the panoptic.co.uk/2018//06/01.
[v] https://nacla.org/news//2018/02/09/election-and-movement-marichuy-mexico’s-indigenous-presidential-contender.
[vi] https://www.democracynow.org/2018/7/2/leftist_andres_manuel_lopez_obrador_wins.
[vii] https://www.democracynow.org/2018/7/3/mexicos_leftist_president_elect_amlo_promises.
[viii] https://nacla.org/news/2018/07/04/amlo-and-state-mexico.
[ix] इन मांगों को उनकी पूरी गहराई और तफ़सील में मेक्सिको की दीवारों पर दर्ज करने का काम दिएगो रिबेरा, दाविद सिकिएरोस और उनके साथियों ने किया।
[x] दुनिया में पहली बार लोकप्रिय समर्थन से चुनी गई साल्वादोर आयेंदे की साम्यवादी सरकार के 1973 में तख्तापलट के साथ चिली इन देशों का सबसे कुख्यात उदाहरण बना। यू.एस. के तब के विदेश मंत्री किसिंगर ने कहा था: “हम चुपचाप हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठेंगे, जब चिली की जनता की गैर-जिम्मेदारी से वहां कोई कम्युनिस्ट सरकार आ जाए”! 1973 में चिली के तानाशाह बने आगोस्तो पिनोचे यू.एस. के हथियारों और सैनिकों के बल पर ही सत्ता हथिया पाए थे।
[xi] North Atlantic Free Trade Agreement: उत्तर अटलांटिक मुक्त व्यापार संगठन 1 जनवरी, 1994 को यू.एस., मेक्सिको और कनाडा को शामिल करते हुए अस्तित्व में आया। ठीक इसी दिन भूमिहीन मूलवासियों के योद्धा रहे एमिलियानो सापाता के नारों को उठाते हुए चियापास के जंगलों और गलियों पर एकदम से छा जाने वाले सापातिस्ता फ्रंट के लड़ाकों ने इस तारीख को सचमुच ऐतिहासिक बना दिया था। सापाता के ये नए साथी गुलामी की नई शर्तें थोपने वाले इस करार को रद्द करने के साथ-साथ मेक्सिको की पूरी शासन व्यवस्था को बदलने के लिए भी लड़ रहे हैं.
कुमार मंगलम जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी से शोध कर चुके हैं और लातिनी अमेरिका सम्बन्धी विषयों के जानकार हैं