पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले में 8 अक्टूबर को बंधु प्रकाश पाल, उनकी पत्नी ब्यूटी और पाँच साल के बेटे अंगन की निर्मम हत्या कर दी गई।
इस हत्या की खबर आते ही बंधु पाल को आरएसएस का कार्यकर्ता बताते हुए पूरा मीडिया ममता सरकार की निंदा अभियान में लग गया। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने आरोप लगाया कि संघ से जुड़ाव के कारण हत्या की गई।
मीडिया ने इसे आरोप की शक्ल में नहीं, सत्य की शक्ल में परोसा। ‘कथित’ या ‘आरोप है’ जैसे शब्दों के इस्तेमाल जैसी बुनियादी पत्रकारीय मान्यताओं को दरकिनार कर दिया गया। देश भर में तूफान उठाया गया।
दो दिन बाद यह सामने आने लगा कि मसला कुछ और है। परिवार ने साफ कहा कि बंधु का किसी राजनीतिक दल या विचारधारा से कोई लेना देना नहीं था। सौतेलों के बीच संपत्ति से लेकर पत्नी के साथ संबंध के एंगल से जाँच चल रही है।
सच्चाई सामने आने पर दिलीप घोष ने यू टर्न ले लिया। कह दिया कि उन्होंने कभी नहीं कहा कि हत्या राजनीतक कारणों से हुई।
जाहिर है, मकसद पूरा हो चुका था। मीडिया अपना काम कर चुका था। हद तो यह है कि सच्चाई सामने आने के बावजूद आरएसएस और बीजेपी इसे राजनीतिक हत्या बताने में जुटे हैं। 13 अक्टूबर को नोएडा से सटे ग्रेटर नोएडा में संघ कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में बाकायदा मोमबत्ती जुलूस निकाला गया। खबर 14 अक्टूबर के नभाटा में छपी।
कॉरपोरेट पूँजी के दम पर सत्य के संहार का यह दैनिक अभियान देश को अंधकार युग में ढकेल रहा है।