मौलाना कासमी पर आए फैसले से दिल्‍ली पुलिस बेनकाब, सम्‍भल के झूठ से भी उठेगा परदा

अल कायदा के भारतीय मॉड्यूल का तूमार बांधने वाला मीडिया कासमी के फैसले पर चुप क्‍यों है

कासमी के रिहा होने से सम्‍भल के मो. आसिफ़ और ज़फ़र मसूद के खिलाफ भी कमज़ोर पड़ेगा केस


बंगलुरु के एक मदरसे के मौलाना अंज़ार शाह कासमी जिन्‍हें जनवरी 2016 में अल-कायदा का आतंकी बताकर एनआइए ने पकड़ा था, उन्‍हें दिल्‍ली की पटियाला हाउस अदालत ने मुकदमे की सुनवाई शुरू करने से पहले ही बरी कर दिया। यह ख़बर पूरे मीडिया से नदारद रही जबकि उनके पकड़े जाने के वक्‍त समूचे मीडिया ने चीख-चीख कर बताया था कि बंगलुरु के मदरसे से अल-कायदा का संदिग्‍ध आतंकी गिरफ्तार।

दिल्‍ली पुलिस की स्‍पेशल सेल ने कासमी के खिलाफ़ जो भी आरंभिक साक्ष्‍य रखे थे, उन्‍हें अदालत ने मुकदमा शुरू करने के लिए ही अनुपयुक्‍त माना और मौके पर कासमी को केस से डिसचार्ज कर दिया।

कासमी की गिरफ्तारी राष्‍ट्रीय सुर्खियों में आ गई थी जब मुख्‍यधारा के तमाम मीडिया संस्‍थानों ने पुलिस सूत्रों के हवाले से ख़बर चलायी थी कि अल कायदा इन इंडियन सब कॉन्टिनेंट (एक्‍यूआइएस) के साथ वह काम करते थे और उन्‍होंने सदस्‍यों की बहाली करने का भी काम किया था, साथ ही संगठन के आला नेताओं की बंगलुरु में एक बैठक आयोजित करने में मदद की थी। उनकी गिरफ्तारी के बाद बंगलुरु और समूचे कर्नाटक में भारी विरोध प्रदर्शन हुए थे।

कासमी के वकील एमएस खान ने TwoCircles.net से बातचीत में कहा कि केस शुरू होने से पहले ही कासमी का डिसचार्ज हो जाना दिखाता है कि आरोप कितने मनगढ़ंत थे। उन्‍होंने कहा, ”पुलिस ने दो अहम बिंदुओं के आधार पर अपना केस बनाया था- पहला, कासमी ने एक्‍यूआइएस के एक सदस्‍य को बंगलुरु में दूसरों से मिलने में मदद की। इनमें से एक को संभल से दिसंबर 2015 में गिरफ्तार किया था और वह अब भी जेल में है। पुलिस का कहना था कि इनके बीच पत्राचार हुआ था लेकिन वह उन पत्रों को दिखा नहीं पाई। दूसरे, पुलिस के मुताबिक कासमी भड़काऊ भाषण देते थे जिनसे प्रेरित होकर लोग एक्‍यूआइएस में चले जाते थे। इस मामले में भी पुलिस अपना दावा पुख्‍ता करने के लिए कोई सबूत नहीं पेश कर पाई।” उन्‍होंने कहा कि कासमी को जल्‍द से जल्‍द रिहा कर दिया जाएगा।

कासमी के ऊपर से मुकदमा हटने के बाद संभल के उन दो युवकों के मामले में भी आस बंधी है जिन्‍हें 2015 के अंत में एक्‍यूआइएस का आला ऑपरेटिव बताकर दिल्‍ली पुलिस ने उठा लिया था। संभल के एक ही मोहल्‍ले से दो लोगों की गिरफ्तारी के बाद पूरा का पूरा मीडिया संभल को उसी तर्ज पर बदनाम करने में जुट गया था जैसे आजमगढ़ को बटला हाउस एनकाउंटर के बाद बदनाम किया गया था। उस दौरान रिहाई मंच की एक टीम संभल जाकर पकड़े गए दोनों व्‍यक्तियों मोहम्‍मद आसिफ़ और ज़फर मसूद के परिवार से मिली थी।

जो जानकारियां वहां से हासिल हुई थीं, उनसे बहुत साफ़ था कि मौलाना अंज़ार शाह कासमी के बारे में गढ़ी हुई कहानी के साथ कुछ और किरदारों को जोड़ने की कोशिश दिल्‍ली पुलिस ने की है और संभल से दो निर्दोष लोगों को उठा लिया है। जिस मोहम्‍मद आसिफ़ को दिल्‍ली पुलिस और मीडिया ने मिलकर अल कायदा के भारतीय मॉड्यूल का सरगना करार दिया था, उसके किराये के घर और बीवी की हालत देखकर किसी की भी रूह कांप उठती।

संभल की गिरफ्तारियों पर मीडियाविजिल के कार्यकारी संपादक अभिषेक श्रीवास्‍तव ने शुक्रवार पत्रिका में एक कहानी लिखी थी जिसका शीर्षक था- ”बेजान किरदार, संदिग्‍ध कहानी”। कासमी के डिसचार्ज होने के बाद अल कायदा के भारतीय मॉड्यूल से जुड़ी दिल्‍ली पुलिस की पूरी कहानी ही ध्‍वस्‍त हो गई है क्‍योंकि उन्‍हीं के आधार पर संभल से बाकी दोनों को उठाया गया था। ज़ाहिर है, किरदार बेहद बेजान थे और कहानी साफ़ तौर पर संदिग्‍ध।

मीडियाविजिल अपने पाठकों के लिए बार फिर से शुक्रवार के 16-31 जनवरी, 2016 के अंक से वह कहानी उठाकर दोबारा प्रकाशित कर रहा है ताकि पूरा मामला पाठकों को समझ में आ सके कि कैसे कासमी के मामले के साथ संभल की गिरफ्तारियों को जोड़ा गया था और यह केस अब कितना कमज़ोर पड़ चुका है।


अल-कायदा का सम्‍भल संस्‍करण

बेजान किरदार, संदिग्‍ध कहानी

अभिषेक श्रीवास्‍तव । सम्‍भल से लौटकर 

दिल्‍ली पुलिस के लोधी रोड स्थित स्‍पेशल सेल के मुख्‍यालय में काफी तेज़ी से एक कहानी आकार ले रही है। इस कहानी में तीन जगहों और चार किरदारों को आपस में जोड़ा जाना है। ज़रूरत पड़ने पर जगहों और किरदारों को बढ़ाया भी जा सकता है, लेकिन फिलहाल कहानी का पहला सबक आधिकारिक रूप से बीती 8 जनवरी को जारी कर दिया गया है: वो यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप में बनाई गई अल-कायदा की शाखा एक्‍यूआइएस (अल-कायदा इन इंडियन सबकॉन्टिनेंट) की हिट लिस्‍ट में भारतीय जनता पार्टी के आला नेता शामिल हैं। दिल्‍ली पुलिस को यह सूचना बंगलुरु से 6 जनवरी को पकड़े गए मौलाना अंजर शाह कासमी से कथित तौर पर हासिल हुई है जिसे एक्‍यूआइएस के स्‍लीपर सेल का मुखिया बताया जा रहा है।

दिसंबर 2015 के दूसरे हफ्ते से लेकर जनवरी 2016 के पहले हफ्ते के बीच दिल्‍ली पुलिस की स्‍पेशल ने एक्‍यूआइएस के नाम पर चार गिरफ्तारियां की हैं जिसके आधार पर वह साहसिक दावा कर रही है कि उसने अल-कायदा के भारतीय मॉड्यूल को ध्‍वस्‍त कर दिया है। दिलचस्‍प यह है कि इन चार में से दो लोग पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश के जिस सम्‍भल जिले से पकड़े गए हैं, वहां के आम लोग खुद यह दावा कर रहे हैं कि अगर अल-कायदा के सरगना ऐसे ही होते हैं, तो इस संगठन से किसी को कोई खतरा नहीं होना चाहिए और इसे खत्‍म करना वाकई चुटकियों का खेल है। यह अजीब विडंबना है, लेकिन इसके पीछे के तथ्‍य इंटेलिजेंस और पुलिस की इस साहसिक कार्रवाई की परतें उघाड़ कर रख देते हैं।

कहानी का सबसे अहम किरदार सम्‍भल का मो. आसिफ है जिसे एक्‍यूआइएस का सरगना बताया गया है। यह कथित सरगना एक कमरे के किराये के मकान में अपनी बीवी और दो बच्‍चों के साथ सम्‍भल के दीपासराय मोहल्‍ले में रहता है। उसके घर में कुल मिलाकर एक चौकी, एक रेफ्रिजरेटर, कुछ बरतन और प्‍लास्टिक की कुर्सियां आदि मौजूद हैं। पैसे की तंगी के चलते 11 साल के उसके बेटे हसाब का नाम स्‍कूल से कट चुका है। बिटिया खदीजा (8) अब भी स्‍कूल जा पा रही है। घर चलाने के लिए वह जून 2013 में नौकरी करने सउदी चला गया था, लेकिन वहां साल भर रोजगार एजेंटों का शोषण झेलने के बाद अक्‍टूबर 2014 में वापस आ गया। उसके बाद से वह दिल्‍ली से हर इतवार को कपड़े और इलेक्‍ट्रॉनिक के सामान लाकर यहां बेचता था। ऐसे ही एक इतवार 13 दिसंबर को वह सामान लाने दिल्‍ली गया था। उसके बाद से वह गायब है।

स्‍पेशल सेल ने दिल्‍ली के सीलमपुर से उसकी गिरफ्तारी 14 दिसंबर की दिखायी है। परिवार वालों को इस पर शक है। वह 24 दिसंबर को ईद मिलाद का मुबारक मौका था जब उसकी बीवी आफिया बेग़म घर में बेहोश पड़ी हुई थी। उसके हाथ में ड्रिप लगी हुई थी और लगातार पानी चढ़ रहा था। बड़ी मुश्किल से ताकत बटोरकर वह दूसरी औरतों के सहारे कमरे से बाहर आकर घटनाक्रम बताती है। आसिफ़ हर इतवार को दिल्‍ली से खरीदारी कर के दिन ढलते घर वापस आ जाता था। उस इतवार शाम को उसका फोन आया। उसने आफिया से कहा कि वह नहीं आ पाएगा। उसके बजाय कोई और घर पर आएगा। उसने पत्‍नी को हिदायत दी कि घर पर जो टूटी हुई स्‍क्रीन वाला स्‍मार्टफोन रखा है, उसे वह उस शख्‍स को सौंप दे। वह शख्‍स आया। आफि़या उस वक्‍त रसोई में थी। उसने बेटी के हाथों मोबाइल फोन दरवाजे पर भिजवा दिया। इसके बाद से आसिफ का फोन बंद आने लगा।

पेशे से लेडीज़ टेलर आसिफ के छोटे भाई सादिक कहते हैं, ”हमें लगता है कि पुलिस ने उन्‍हें पहले ही उठा लिया था। पुलिस ने ही शाम को भाई से फोन करवाया और पुलिस के लोग ही मोबाइल फोन लेने घर पर आए।” आसिफ़ की बड़ी बहन सबीहा बताती हैं कि शनिवार 12 दिसंबर की शाम वह उनसे 1000 रुपये उधार मांगकर ले गया था। पत्‍नी आफिया रोते हुए पूछती है, ”जो बंदा अपने घर के लिए एक वक्‍त की रोटी नहीं जुटा पाता, वह अल-कायदा जैसे संगठन का सरगना कैसे हो सकता है?” इलाके के लोग बताते हैं कि आसिफ इतना सीधा आदमी था कि किसी से हंसी-मज़ाक तक नहीं करता था। सादिक कहते हैं, ”आप मुसलमानों को छोड़ो, जाकर मेन्‍था मार्केट में हिंदुओं से उसका मिजाज पता कर लो जिनके यहां उसने बरसों मुनीमगिरी की है।” इलाके के हिंदू भी उसकी बराबर तारीफ़ करते हैं। स्‍थानीय बाज़ार के एक व्‍यवसायी कहते हैं, ”अगर आसिफ जैसा आदमी अल-कायदा का सरगना है, तो अल-कायदा कुछ नहीं है।”

पुलिस की कहानी के मुताबिक आसिफ से पूछताछ के आधार पर ही बंगलुरु से मौलाना अंजर शाह को गिरफ्तार किया गया, जिससे उसकी कथित मुलाकात बंगलुरु के किसी धार्मिक जलसे में हुई थी। सादिक बताते हैं कि सउदी अरब के अलावा आसिफ केवल एक बार मुंबई गया था, बंगलुरु तो वह कभी गया ही नहीं। सबसे दिलचस्‍प बात यह है कि अंजर शाह, जिसे एक्‍यूआइएस की स्‍लीपर सेल का मुखिया बताया जा रहा है, उसे खुद बंगलुरु पुलिस की क्‍लीन चिट हासिल है। एजेंसियों से 9 जनवरी को जारी एक खबर में बंगलुरु के पुलिस आयुक्‍त एन.एस. मेघारिक का बयान है, ”हमारे पास कोई साक्ष्‍य नहीं है कि वह आतंकवाद में लिप्‍त था।” आयुक्‍त ने हालांकि दिल्‍ली पुलिस की कार्रवाई को यह कहते हुए सही ठहराया कि दिल्‍ली पुलिस ने सबूत के आधार पर ही उसे गिरफ्तार किया होगा। दिलचस्‍प यह है कि जिस दिन मौलाना को उठाया गया, उसके अगले ही दिन उसके खिलाफ भड़काऊ भाषण से जुड़े एक पुराने मुकदमे की फाइल बंद होने वाली थी।

चूंकि सारी गिरफ्तारियों और सबूत का जिम्‍मा दिल्‍ली पुलिस की स्‍पेशल सेल के कंधे पर है, इसलिए सम्‍भल से उठाए एक और शख्‍स जफ़र मसूद का जि़क्र यहां अहम हो जाता है। मसूद का घर आसिफ़ के घर से बमुश्किल आधा किलोमीटर दूर उसी मोहल्‍ले में है। जिस दिन पूरा शहर ईद मिलाद के जश्‍न में डूबा था, मसूद का घर वीरान पड़ा हुआ था। उसकी पत्‍नी रूहीना इशरत बच्‍चों के साथ बगल वाले मोहल्‍ले में अपने मायके में थी। एक तंग गली में मौजूद इस छोटे से घर के आंगन में कुर्सी पर बैठी रूहीना के आंसू नहीं थम रहे थे। उसे बोलने में दस मिनट लग गए। उसने बताया कि वे लोग मुरादाबाद में एक शादी में गए हुए थे, जहां से लौटते वक्‍त सादे कपड़े में कुछ लोग आए और उसके पति को गाड़ी में बैठाकर ले गए। रूहीना कहती हैं, ”हमारी शादी को छह साल हो गए और खुदा कसम इस दौरान वे एक पल भी मुझे छोड़ कर दूर नहीं गए। दूसरे शहर में तो जाना दूर, वे शादी-जलसों में भी कम ही जाते थे। उनके मन में डर बना रहता था।”

मसूद का डर वाजिब था क्‍योंकि 2001 में एक आतंकी मामले में दो अन्‍य लोगों के साथ उसका भी नाम उछला था। पेशे से डॉक्‍टर मसूद के एक मित्र बताते हैं, ”उनका नाम एफआइआर में नहीं था। जैसे इस बार हो रहा है, वैसे ही तब भी मीडिया ने उनका नाम उछाल दिया था।” इसके बाद मसूद ने खुद ही सरेंडर का एक आवेदन लगाया और दिल्‍ली की अदालत ने उन्‍हें इस मामले में क्‍लीन चिट दे दी। दिल्‍ली की मुख्‍य मेट्रोपोलिटन मजिस्‍ट्रेट कावेरी बावेजा की अदालत में ज़फर मसूद और सम्‍भल के ही मोहम्‍मद उस्‍मान की सरेंडर अप्लिकेशन लगी थी। मामला दिल्‍ली पुलिस की स्‍पेशल सेल का था जिसमें एफआइआर संख्‍या 193/01 थी और थाना न्‍यू फ्रेंड्स कॉलोनी था। दिल्‍ली पुलिस स्‍पेशल सेल के इंस्‍पेक्‍टर सतेन्‍दर सांगवान द्वारा अदालत में 08.04.2009 को दाखिल जवाब में कहा गया है, ”उपर्युक्‍त मुकदमा 12.09.01 को दर्ज किया गया और स्‍पेशल सेल द्वारा इसकी जांच की गईा इस मामले में चार दोषियों को गिरफ्तार किया गया था और माननीय अदालत में चार्जशीट दाखिल की गई थी। इस मामले में ज़फर  मसूद और मो. उस्‍मान पी.ओ. नहीं हैं इसलिए उनकी आवश्‍यकता नहीं है।” इसी तारीख को सीएमएम कावेरी बावेजा का आदेश आया, ”सरेंडर के आवेदन के संबंध में जांच अधिकारी इंस्‍पेक्‍टर सतेन्‍दर सांगवान का जवाब प्राप्‍त हुआ है। बताया गया है कि दोनों आवेदकों की इस मामले में कोई आवश्‍यकता नहीं है। इसलिए आवेदक को बरी किया जाता हैा”

NEW DELHI, INDIA – DECEMBER 17: Suspected Al Qaeda terrorists Maulana Abdul Rehman (R) and Zafar Masood (L) in custody of Delhi Police special cell on December 17, 2015 in New Delhi, India. Their arrest follows the nabbing of Mohammed Asif (41), who is also a native of Sambhal and is believed to be one of the founding members and the Indian head (amir) of al Qaeda in the Indian sub-continents (AQIS) motivation, recruitment and training wing. (Photo by Sonu Mehta/Hindustan Times via Getty Images)

पुलिस ने अब तक जो कहानी सामने रखी है, उसमें बताया गया है कि मो. आसिफ को बाहर भेजने का वित्‍तीय व अन्‍य इंतज़ाम ज़फर मसूद ने किया। दिलचस्‍प है कि ज़फर मसूद को खुद दिल्‍ली पुलिस स्‍पेशल सेल की क्‍लीन चिट 2009 में प्राप्‍त है। मसूद की पत्‍नी का एचडीएफसी बैंक में खाता देखने वाले उनके एक बैंककर्मी मित्र बताते हैं कि इस खाते में बमुश्किल पांच हज़ार रुपये हैं और रूहीना बड़ी मुश्किल से सिलाई का काम कर के घर चलाती हैं। मसूद अपने पार्टनर फुरकान के साथ ट्रक चलवाते थे जिससे परिवार का गुज़ारा होता था। इस कहानी का चौथा किरदार ओडिशा के कटक से पकड़ा गया अब्‍दुल रहमान नाम का एक शख्‍स है जिसके भाई ताहिर अली को कोलकाता में भारतीय कनसुलेट पर 2002 में हुए हमले के सिलसिले में एक बार पकड़ा जा चुका है। उसे 90 दिन की कैद के बाद छोड़ दिया गया था। खबरों के मुताबिक वह बीजू जनता दल का कार्यकर्ता था।

एक्‍यूआइएस से कथित तौर पर जुड़ी इन गिरफ्तारियों में मौजूद तकनीकी झोल तो एक आयाम है, लेकिन ज्‍यादा चिंताजनक बात मो. आसिफ और ज़फर मसूद की गिरफ्तारी के बाद सम्‍भल को कलंकित करने के लिए मीडिया में चलाया गया अभियान है। बरेली में इंटेलिजेंस ब्‍यूरो (आइबी) का जोनल दफ्तर होने के बावजूद सम्‍भल में आइबी अब एक और दफ्तर खोलने जा रही है। सम्‍भल निवासी जिस लापता शख्‍स सनाउल हक के साथ इनके तार जुड़े बताए जा रहे हैं, चैनलों ने उसके मकान के नाम पर एक एमबीबीएस डॉक्‍टर की हवेली को दिखाकर खूब प्रचारित किया है। पुलिस के मुताबिक मसूद के पास चार पासपोर्ट थे जबकि परिजनों की मानें तो एक बार उसका पासपोर्ट गुम हो गया था और दो बार उसका नवीनीकरण हुआ जिसके चलते उसके पास वैधानिक तौर पर चार पासपोर्ट हैं। यह तथ्‍य मीडिया की खबरों में सिरे से गायब है।

स्‍थानीय लोगों की मानें तो आज़मगढ़ की तर्ज पर सम्‍भल को बदनाम करने का एक सामाजिक आयाम भी है। सम्‍भल के 36 सरायों में से एक दीपासराय नाम के जिस मोहल्‍ले से ये गिरफ्तारियां ताल्‍लुक रखती हैं, वह काफी संपन्‍न और उच्‍चमध्‍यवर्गीय मोहल्‍ला है। इस इलाके से 24 एमबीबीएस डॉक्‍टर, 250 से ज्‍यादा इंजीनियर, देश के बड़े विश्‍वविद्यालयों में पढ़ने वाले शोधार्थी, दिल्‍ली की अदालतों में दर्जनों नामी वकील और अधिकारी आते हैं। दीपासराय में एक भी मदरसा नहीं है। एक स्‍थानीय डॉक्‍टर बताते हैं, ”हम लोग बरसों से दीनी तालीम की जगह मॉडर्न तालीम में भरोसा करते हैं। हमारे यहां का कोई भी बच्‍चा मदरसे में नहीं पढ़ता।” लोग कहते हैं कि जिस तरीके से बीते तीन दशक में सम्‍भल ने मुख्‍यधारा के जगत में अपनी काबिलियत के सहारे पहचान बनाई है, उसे धूमिल करने की कोशिश जान-बूझ कर की जा रही है। एक स्‍थानीय मेन्‍था व्‍यापारी कहते हैं, ”सरकार नहीं चाहती कि मुसलमान तरक्‍की करें। जहां का भी मुसलमान दुनिया में बाहर निकलकर किस्‍मत आज़माता है, उस इलाके को आतंकवाद से जोड़ दिया जाता है।”

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