आज से करीब बारह-तेरह साल पहले की बात है जब लखनऊ में एक रेस्त्रां खुला था। उसमें भगत सिंह के नाम का समोसा, राजगुरु के नाम का डोसा और ऐसे ही आज़ादी के मतवाले नायकों के नाम पर अलग-अलग व्यंजन परोसे जा रहे थे। इसकी ख़बर जब शहर के एक संगठन को मिली तो उसने वहां जाकर सशक्त विरोध दर्ज कराया और यह मामला सुर्खियों में आया।
उस छोटे से व्यापारी की दुकान बंद हुई हो या नहीं, लेकिन देश के सबसे विवादास्पद व्यापारी की करोड़ों की दुकान ने आज शहीदे आज़म के शहादत दिवस पर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की कसम खिलाते हुए देशभक्ति के नाम पर पतंजलि का ‘स्वदेशी’ माल खरीदने का संकल्प इस देश के लोगों को खुलेआम दिलवाया है और कहीं कोई चूं तक नहीं हुई है।
यह नए राष्ट्रवादियों का नया राष्ट्रवाद है जहां आज़ादी के नायक अब पतंजलि के चूरन से लेकर टूापेस्ट तक बेचने के काम आएंगे। पतंजलि कंपनी के मालिक बाबा रामदेव का विज्ञापन भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत का सहारा लेकर पतंजलि कंपनी के माल बेचने का संकल्प दिलवा रहा है। विज्ञापन कहता है, ”जब हमारे शहीदों ने देश के लिए कुरबानी दे दी तो क्या हम उनके नाम पर इतना भी नहीं कर सकते?”
ध्यान रहे कि इससे पहले भी योग गुरु रामदेव के पतंजलि ट्रस्ट से बनाए एक टूथपेस्ट के विज्ञापन में देशभक्ति का नारा दिया गया था। ग्राहकों और दुकानदारों से अपील की गई थी, ‘हमारे उत्पाद का प्रयोग करें जैसे देश के करोड़ों देशभक्त कर रहे हैं। भारत की समृद्धि में अपना योगदान दें।’ बरेली के एक वकील ने उस वक्त विज्ञापनों का मानक तय करने वाली संस्था (ASCI) में इससे संबधित शिकायत दर्ज कराई थी।
पतंजलि दंतकांति टूथपेस्ट के विज्ञापन अखबारों में प्रकाशित हुआ था। विज्ञापन में लिखा था, ‘करोड़ों देशभक्त की तरह पतंजलि के उत्पादों का प्रयोग ग्राहकों और विक्रेताओं को करना चाहिए। जो लोग जागरूक हैं उन्हें अपने पतंजलि के उत्पादों को अपने घर, दुकान और दिलों में जगह देनी चाहिए, ताकि वह देश के विकास और समृद्धि में योगदान दे सकें। हमारे उत्पादों के प्रयोग से महात्मा गांधी, भगत सिंह, राम प्रसाद जैसी देश की महान शख्सियतों का सपना पूरा होगा। इन महान लोगों का सपना था स्वदेशी उत्पादों का प्रयोग।’
उपभोक्ता मामलों के वकील मोहम्मद खालिद जीलानी ने ASCI में पतंजलि के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। सवाल उठता है कि एक ही अपराध के लिए आचिार कितनी बार मुकदमा किया जाए जब राष्ट्रवाद का सारा निचोड़ एक कंपनी के माल बेचने तक सीमित हो चुका हो। सवाल इस देश के लोगों से भी है जिन्हें भगत सिंह की तस्वीरें अपनी गाड़ी के पीछे लगाना तो पसंद है, लेकिन जिन्हें मार्केटिंग कर रहे भगत सिंह से कोई परहेज़ नहीं।