एक ट्विस्टेड थ्रिलर
महाराष्ट्र की पिछले 3 दिनों से उलझी राजनीति, अब एक ट्विस्टेड थ्रिलर में बदलती जा रही है। एक तरफ गुवाहाटी में एकनाथ शिंदे के साथ शिवसेना और दूसरे बागी विधायकों की संख्या बढ़ती जा रही है तो दूसरी ओर शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की ओर से लगातार रुख, मुंबई के इस वक़्त के मौसम की तरह कभी धूप, कभी छांव और कभी बारिश में बदलते जा रहे हैं। गुरूवार की सुबह, पहली बार एकनाथ शिंदे के साथ गुवाहाटी के रेडिसन होटल में शिवसेना के विद्रोही और अन्य विधायक एक ग्रुप फोटोग्राफ में दिखाई दिए। इस बारे में शोर हर ओर था, सिर्फ भारतीय जनता पार्टी – जो कि इसके पीछे सबसे अहम खिलाड़ी मानी जा रही है, उसके अलावा। भाजपा की ओर से इस बारे में अभी तक चुप्पी है। इस मामले को पहले, शिवसेना का आंतरिक मामला कहने वाली एनसीपी ने खुल कर शिवसेना और उद्धव के प्रति समर्थन जताया।
इसी बीच, एकनाथ शिंदे ने ख़ुद के गुट को असल शिवसेना बता दिया और ख़बर आई कि वे चुनाव चिह्न तक पर दावा जता रहे हैं। इस सब में एक ख़बर दब गई कि विधानसभा के डिप्टी स्पीकर ने, उद्धव ठाकरे के दल के नेता को सदन का नेता माना और एकनाथ शिंदे का दावा खारिज कर दिया। शाम होते-होते, कांग्रेस ने भी अपनी ओर से बयान दे दिया कि महाविकास अगाढ़ी एकसाथ है। लेकिन इसके साथ ही शिवसेना नेता और सांसद संजय राउत ने माहौल को कन्फ़्यूज़ कर दिया कि शिवसेना के विधायक अगर आकर, अपनी बात रखें तो शिवसेना एनसीपी-कांग्रेस से गठबंधन तोड़ लेगी। इस के कुछ ही मिनट बाद, वे फिर बोल दिए कि विधायकों को ग़ुलामी नहीं करनी चाहिए और स्वाभिमानी होकर फ़ैसला लेना चाहिए। इसके बाद से ही मेनस्ट्रीम मीडिया ने ये शोर मचाना शुरू कर दिया है कि शिवसेना, गठबंधन से बाहर होने की तैयारी कर चुकी है जबकि ये न तो तथ्य है और न ही ऐसा कुछ भी संजय राउत ने कहा है।
राजनैतिक ‘सैराट’
महाराष्ट्र की राजनीति को हम ‘सैराट’ कह कर बुला रहे हैं, जिसका मराठी में अर्थ है उनमुक्त या अराजक या अंग्रेज़ी में कहें तो इसका सीधा अर्थ है – Going Wild. इस राजनैतिक कथा का, इसी नाम की मराठी फिल्म से बस इतना रिश्ता है कि दोनों में ही अंत दुःखद है। बुधवार का दिन, जहां शिवसेना के लिए नेतृत्व का संकट बनता दिखा और लगा कि महाविकास अगाढ़ी सरकार शाम तक ही गिर जाएगी। सीएम उद्धव ठाकरे इस्तीफ़ा दे देंगे। लेकिन शाम होते-होते शरद पवार, मुंबई पहुंचे और सुप्रिया सुले के साथ उन्होंने उद्धव ठाकरे से मुलाक़ात की। इसी बीच, कांग्रेस के विधायकों को बालासाहेब थोराट के घर पर इकट्ठा किया जा चुका था। इसके बाद शाम को साढ़े 5 के लगभग उद्धव ठाकरे फेसबुक लाइव पर आए और यहां से हालात उतने साफ नहीं रह गए, जितने इसके पहले दिखने लगे थे। उम्मीद के उलट, उन्होंने इस्तीफ़े का एलान नहीं किया…करना भी नहीं चाहिए था।
उद्धव ठाकरे ने अपने एक भावुक संदेश में न केवल शिवसैनिकों से भावुक अपील की और साफ कह दिया कि एक भी विधायक, उनके सामने आकर कह देगा कि उनको सीएम नहीं रहना चाहिए, तो वे इस्तीफ़ा दे देंगे। इस बेहद भावुक संदेश के बाद उन्होंने एक और फ़ैसला किया, जिससे शिवसैनिकों के लिए एक और भावुक राजनैतिक प्रतिबद्धता की स्थिति पैदा हो गई। मुख्यमंत्री के तौर पर उद्धव ने सरकारी आवास ‘वर्षा’ छोड़ दिया और वे अपने पारिवारिक-पारंपरिक आवास ‘मातोश्री’ की ओर सारा सामान पैक कर के निकल गए। मालाबार हिल्स में स्थित वर्षा से दादर में शिवसेना भवन और शिवसेना भवन से बांद्रा में मातोश्री तक सड़कों पर केवल शिवसैनिक ही दिखाई देने लगे। उद्धव के प्रति समर्थन जताने शिवसेना के कार्यकर्ता और आमलोग, मातोश्री पर हज़ारों की संख्या में पहुंच गए। उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे लोगों के बीच आकर, उनको अभिवादन करते दिखे। ये सिलसिला रुका नहीं है और गुरूवार को भी शिवसैनिक पूरे महाराष्ट्र से मुंबई पहुंच रहे हैं।
इसके बाद देर रात होते-होते एकनाथ शिंदे और उनके समर्थक विधायकों की ओर से लगातार बयान आते रहे कि वे इसलिए बग़ावत कर रहे हैं कि शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी से गठबंधन कर लिया है और उसको भाजपा से गठबंधन कर के सरकार चलानी चाहिए। एकनाथ शिंदे ने बुधवार सुबह से ही हिंदुत्व की अलख जगा रखी थी और उद्धव ने बाकायदा इसका जवाब अपने संदेश में दिया। देर रात से ये सुगबुगाहट शुरू हो गई कि शिवसेना के कुछ विधायक गुवाहाटी में अपनी मर्ज़ी से नहीं हैं और वे लौटना चाहते हैं। बुधवार को दिन में ही दो विधायक, सूरत से मुंबई लौट चुके थे।
क्या एकनाथ शिंदे की नाराज़गी की वजह असली है?
आप लगातार टेलीविज़न समाचार चैनलों पर सुन रहे होंगे कि एकनाथ शिंदे की नाराज़गी की वजह, शिवसेना का ‘हिंदुत्व’ से भटकना और भाजपा से गठबंधन तोड़ना है। लेकिन ये पूरा सच नहीं है और इसकी कुछ पुष्टि गुरूवार को एकनाथ शिंदे द्वारा जारी की गई एक चिट्ठी से होती है, जिसमें नाराज़गी मुख्यमंत्री के विधायकों के लिए उपलब्ध न होने और कामकाज में व्यवधान जैसी चीज़ों को बताया गया है। इसमें कांग्रेस-एनसीपी के प्रति नाराज़गी जताई गई है और उस बहाने से भाजपा के साथ जाने की बात कही गई है। एक सीधी बात इसमें ये भी है कि जिस तरह से बार-बार किसी न किसी बहाने से, भाजपा के साथ गठबंधन की बात कही जा रही है – उससे साफ है कि भाजपा इसमें शामिल न हो, इसके पीछे न हो – ये संभव ही नहीं है।
इसके अलावा हिंदुत्व और भाजपा के मुद्दे पर एकनाथ शिंदे के बयान की पोल, उनके ही पुराने बयानों से खुल जाती है। फिलहाल हिंदुत्व और भाजपा के साथ के प्रति निष्ठा जता रहे एकनाथ शिंदे अपने ही पुराने बयानों में भाजपा पर तीख़ा हमला बोल चुके हैं। हालांकि वो लगातार कह रहे हैं कि वो शुरू से ही भाजपा के साथ गठबंधन के पक्ष में थे, लेकिन वे सरकार में न केवल शामिल थे बल्कि भाजपा के हिंदुत्व को, शिवसेना के हिंदुत्व से अलग भी बता चुके हैं। इसलिए सच ये है कि गोदी मीडिया, आपसे जो कह रही है – वह झूठ है कि शिंदे हमेशा से भाजपा के पक्ष में थे। वे अब इस पक्ष में हैं और इसके कारण क्या हो सकते हैं, इस पर मुंबई-ठाणे में आपको सड़क पर चलते लोग भी बता देंगे।
आगे क्या घटेगा महाराष्ट्र में?
संजय राउत के बागी विधायकों को संदेश में कहा गया है कि अगर विधायक चाहेंगे तो शिवसेना, गठबंधन तोड़ देगी लेकिन इसके लिए उनको सामने आकर अपनी बात रखनी होगी।
चर्चेतून मार्ग निघू शकतो.
चर्चा होऊ शकते.
घरचे दरवाजे उघडे आहेत..
का उगाच वण वण भटकताय?
गुलामी पत्करण्यापेक्षा स्वाभिमानाने निर्णय घेऊ!
जय महाराष्ट्र!— Sanjay Raut (@rautsanjay61) June 23, 2022
ज़ाहिर है कि इसका अर्थ ये नहीं है कि शिवसेना, गठबंधन तोड़ रही है बल्कि ये है कि वे विधायकों को कैसे भी मुंबई बुलाना चाहते हैं। अंदर के सूत्रों की मानें तो शिवसेना को ये यक़ीन है कि बाग़ी विधायकों में से आधे से अधिक, वापस आ सकते हैं। आगे जो घट सकता है, वो कुछ इस तरह की परिस्थितियां हैं;
- मामला चुनाव आयोग में जा सकता है, जहां शिवसेना किसकी है – ये फ़ैसला हो सकता है।
- मामला अदालत में जा सकता है, जहां पर विधायकों की सदस्यता पर फ़ैसला होगा। दल-बदल निरोधी क़ानून की पुनर्व्याख्या की मांग भी हो सकती है।
- सदन में फ़ैसला करवाने की क़ोशिश हो सकती है, जहां पर अंततः विधानसभा भंग भी हो सकती है।
- शिवसेना के कई बाग़ी विधायक वापस लौट सकते हैं, अगर वे मुंबई वापस लौटें और सरकार बच सकती है।
- सबसे कम संभावना है कि नई सरकार बने और भाजपा-शिवसेना साथ आएं क्योंकि शिवसेना की झुकने और समझौते की नीति, उसका राजनैतिक अस्तित्व ख़त्म कर देगी।
इस सब के बीच एक सच ये है कि भले ही एकनाथ शिंदे अभी, ख़बरों का केंद्र बने हुए हैं और मराठी राजनीति की धुरी उनके आसपास घूम रही है लेकिन अंततः इसमें सबसे अधिक नुकसान उनका ही है। अगर भाजपा के साथ गठबंधन में वे या शिवसेना किसी की भी सरकार बनती है तो न तो वे सीएम बनने वाले हैं और न ही उसके बाद उनका राजनैतिक कद, शिवसेना के अंदर पहले जैसा रहने वाला है। वे अंततः सीएम नहीं बनते हैं, तो इस पूरी उथलपुथल के बाद महाराष्ट्र में भी उनकी राजनैतिक हैसियत कम होती जाएगी। और अगर ये बगावत असफलत हो जाती है तो अंतत….हम सब जानते हैं…