सोहराबुद्दीन केस की सुनवाई करने वाले जज बृज लोया की 2014 में हुई ‘संदिग्ध परिस्थितियों में मौत’ पर दि कारवां की स्टोरी की श्रृंखला में यह चौथी स्टोरी है जो शुक्रवार को पत्रिका की वेबसाइट पर प्रकाशित हुई है। मीडियाविजिल अपने पाठकों के लिए इस रिपोर्ट का अविकल हिंदी अनुवाद दि कारवां से साभार प्रकाशित कर रहा है।– संपादक
बीते 29 नवंबर को दि कारवां को एक ईमेल मिला। भेजने वाले ने खुद को मरहूम जज बीएस लोया के बेटे अनुज लोया का दोस्त बताया था। उसने लिखा है कि 30 नवंबर को उसकी अनुज से बातचीत हुई थी। अनुज ने उन्हें फरवरी 2015 को लिखे अपने उस पत्र की प्रति दिखाई थी जो जज लोया की बहन के पास उन्होंने छोड़ रखी थी। जज की मौत से जुड़ी संदिग्ध परिस्थितियों पर अपनी स्टोरी में दि कारवां ने यही पत्र प्रकाशित किया था। पत्र में लिखा था, ”यदि मुझे या मेरे परिवार के सदस्यों के साथ कुछ भी होता है, तो षडयंत्र में लिप्त मुख्य न्यायाधीश मोहित शाह और अन्य उसके लिए जिम्मेदार होंगे।” जिस दोस्त ने दि कारवां से संपर्क किया था, उसे चिंता थी कि अनुज अब दबाव में है। उसने बताया कि अनुज ने उससे कहा था कि ”अगर उसके परिवार को कोई भी नुकसान होता है” तो ”मीडिया या ऐसे किसी शख्स को जो कुछ कर पाने में सक्षम हो”, इस पत्र के बारे में उसे खबर कर देनी चाहिए।
हमें 29 नवंबर को एक अन्य मेल मिला। भेजने वाले का दावा था कि वह अनुज लोया है। मेल से संलग्न एक पत्र में उसने लिखा है, ”मुझे, मेरी बहन और मेरी मां को इस तथ्य पर कोई संदेह नहीं कि मेरे पिता दिल का दौरा पड़ने से ही गुज़रे हैं, किसी दूसरी वजह से नहीं।” हमने उसका जवाब देते हुए उसे अपनी पहचान पुष्ट करने को कहा, लेकिन अब तक उसका कोई जवाब नहीं आया है। इसीलिए हम अब तक यह पुष्ट नहीं कर सके हैं कि पत्र उसी ने भेजा था और उसमें उसकी भावनाएं ही व्यक्त थीं। जज लोया की मौत पर दि कारवां में छपी सिलसिलेवार कहानियों (जिसके बाद से लोया परिवार के कई सदस्य लापता हैं) के करीब हफ्ते भर बाद टाइम्स ऑफ इंडिया में एक ख़बर आई जिसमें बताया गया कि अनुज ने बॉम्बे उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश मंजुला चेल्लूर से मिलकर यह बताया था कि ”परिवार को पिता की मौत की परिस्थितियों के बारे में कोई शिकायत या शुबहा नहीं है।” इस ख़बर में यह नहीं बताया गया था कि अनुज ने मुख्य न्यायाधीश से कैसे संपर्क किया या कि किसने इस मुलाकात को मुमकिन बनाया।
हमने 2015 वाले पत्र और अभी मिले हालिया पत्र पर किए गए दस्तखत का मिलान किया। शुरुआत में यह जानकार थोड़ी परेशानी हुई कि दोनों अलग थे। करीब से देखने पर पता चला कि दोनों एक जैसे थे लेकिन नए पत्र पर किया गया दस्तखत करीब 90 अंश के कोण पर मुड़ा हुआ था। अनुज की एक ऑनलाइन प्रोफाइल फोटो हमने देखी जिसमें वे दाएं हाथ से पूल खेलते दिखते हैं। इसका मतलब कि वे संभवत: दाएं हाथ से ही सारे काम करते हैं। इससे यह पता चलता है कि दस्तखत करते वक्त नए वाले पत्र के ठीक सामने वे नहीं बैठे हुए थे बल्कि कुछ इस मुद्रा में बैठे थे कि दस्तखत करते वक्त उनकी बांह पन्ने के लम्बवत् थी।
उनके दोस्त के मुताबिक वे 4 नवंबर तक अनुज के संपर्क में रहे, ”जब उसने मुझे बताया कि उसका फोन टूट गया है। उसने मेरा नंबर मुझसे मांगा था।” इस आखिरी संवाद तक अनुज ने अपने दोस्त को ऐसा कोई संकेत नहीं दिया था कि 2015 के पत्र में उसने जो भावनाएं ज़ाहिर की थीं वे बदल गई हैं या फिर वे उस चेतावनी को वापस ले रहे हैं जो उन्होंने पत्र में लिखी थी ”अगर कभी कुछ हो जाए”। अब इस बात के तीन हफ्ते बाद दि कारवां को भेजी उनकी चिट्ठी में अनुज ने जो लिखा है, उसकी कोई संगति खोज पाना मुश्किल दिखता है, ”मैं अपने पिता के मित्रों, सहकर्मियों और बंबई उच्च न्यायालय के अन्य माननीय जजों द्वारा मेरे परिवार को दी गई सांत्वना की ईमानदारी को महसूस कर सकता हूं।”
दोस्त का ईमेल बताता है कि वह अनुज ओर उसके परिवार के अन्य लोगों से संपर्क करने की नाकाम कोशिश कर चुका था। उसने लिखा, ”मैं अनुज लोया का बहुत करीबी दोस्त हूं। मैंने उससे संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनके परिवार के किसी भी सदस्य का नंबर नहीं लग रहा है।” (हमने दोस्त का नाम उसकी निजता और सुरक्षा के मद्देनज़र न छापने का निर्णय किया है)। ईमेल आगे कहता है, ”मैं बस इतना जानना चाहता हूं कि मेरा दोस्त महफ़ूज़ है या नहीं और इस बारे में कोई भी सूचना सराहनीय होगी।”
बाद में इस दोस्त ने फोन पर
दोस्त ने बताया कि अनुज ने पिता की मौत के बाद परिवार में मोहित शाह के आने का जि़क्र उससे किया था। 2015 के अपने पत्र में अनुज ने लिखा था कि उसने शाह को ”डैड की मौत के संबंध में सब कुछ बता दिया था और उनसे एक जांच आयोग बैठाने की भी बात कही थी।” दोस्त ने बताया कि जब अनुज ने उसे शाह के घर आने के बारे में बताया तब वह ”काफी डरा हुआ” दिख रहा था। उसने याद करते हुए बताया कि अनुज ने तब उसे बताया था कि शाह ने कहा था- ”जांच करने लायक कोई बात नहीं है। दिल का दौरा पड़ने से यह हुआ है।”
दोस्त ने बताया, ”अनुज इसे मानने को राज़ी नहीं था।” उसने दोस्त से यह बात कही थी और इस बात पर ज़ोर दिया था कि ”बाद में वह इस मामले को देखेगा।” इस घटना ने अनुज पर इतना गहरा असर डाला कि ”वह मेरे साथ इंजीनियरिंग पढ़ रहा था और उसने पढ़ाई छोड़ दी, वह अपने पिता की राह पर चलना चाहता था सो उसने कानून की पढ़ाई शुरू कर दी।”
हमें 29 नवंबर को भेजे पत्र में अनुज होने का दावा करने वाला शख्स लिखता है, ”मैं जानता था कि मेरे पिता की मौत दिल का दौरा पड़ने से ही हुई है, किसी और कारण से नहीं।” उसने लिखा है, ”मैं जानता हूं कि मेरे पिता को उनके एक सहकर्मी की कार में अस्पताल ले जाया गया था।”
इस व्यक्ति ने यह भी कहा कि उसे ”मेरे पिता की दुखद मौत के संबंध में आपके द्वारा प्रकाशित दो लेखों के आलोक में उठे विवाद की भी जानकारी है।” उसने लिखा, ”मेरे पिता की मौत के वक्त और भावनात्मक दबाव के उस दौर में कुछ लोगों ने बेशक मेरे दिमाग में पिता की मौत की वजह को लेकर भ्रम पैदा किया। उसके बाद हालांकि जब मैंने तथ्य जुटाए, तब मुझे अहसास हुआ कि मेरे पिता की मौत वास्तव में दिल का दौरा पड़ने से हुई थी और उस दुर्भाग्यपूर्ण अवधि में उनके साथ बने रहे सहकर्मियों के तमाम प्रयासों के बावजूद उन्हें नहीं बचाया जा सका।”
महीने भर पहले तक अनुज ने अपने दोस्त को, जो कि उस पत्र का राज़दार था, नहीं बताया था कि अपने पिता की मौत को लेकर संदेह उसके मन से जा चुका है और दोस्त को अब इस पत्र के बारे में मीडिया को बताने की कोई ज़रूरत नहीं है।
इन दो संदेशों को आपस में मिलाकर समझना मुश्किल है या फिर यह कल्पना करना कि महीने भर से कम की अवधि में आखिर ऐसा क्या हुआ होगा जिसने अनुज के नज़रिये में नाटकीय तरीके से यह बदलाव ला दिया।
अनुज के दोस्त ने बताया कि उसने टाइम्स ऑफ इंडिया की वह रिपोर्ट पढ़ी जिसमें कहा गया है कि ”उसके पिता की मौत के साथ कोई समस्या नहीं थी और वह आगे उसके बारे में पड़ताल नहीं चाहता था।” उसने बताया, ”इसीलिए मुझे समझ नहीं आ रहा कि आखिर चल क्या रहा है? क्या उस पर दबाव जैसा कुछ डाला गया है?” यह दोस्त ”शनिवार से उससे संपर्क करने की कोशिश कर रहा है। शनिवार से ही उसका फोन नहीं लग रहा है।” उसने बताया, ”यहां तक कि उसके दादा से भी संपर्क नहीं हो पा रहा है और उसकी बुआ जो वीडियो में थीं, उनका फोन भी संपर्क क्षेत्र से बाहर बता रहा है।”
यह स्टोरी दि कारवां से साभार प्रकाशित है, अनुवाद अभिषेक श्रीवास्तव ने किया है