प्रकाश के रे
‘हमने अपनी आस- दो हजार सालों की हमारी आस- नहीं छोड़ी है अपनी जमीन- जायन और जेरूसलम की जमीन- पर एक आजाद कौम होने की.’ इजरायली राष्ट्रगान में यहूदी भावनाओं का उद्गार यूं होता है. आज यह भावना एक वास्तविकता का रूप भी ले चुकी है और यहूदी राष्ट्र का संचालन जेरूसलम से होता है. इस समुदाय के लिए सबसे पवित्र मानी जाने वाली जगह ‘वेस्टर्न वाल’ पर यहूदियों का दखल है. लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं रहा था. पिछले हिस्सों में हमने देखा कि टाइटस ने जेरूसलम को उजाड़ दिया था और मंदिर को बर्बाद कर दिया था. यहूदी इतिहास में मंदिर की तबाही बहुत बड़ी त्रासदी है, किंतु उस घटना के कुछ दशकों बाद कुछ ऐसा भी होना था कि यहूदी कौम का नामो-निशान मिटने की नौबत तक आ गयी थी. साल 132-135 के बीच जो आलम गुजरा, उसका अंदाजा रब्बाई एलिशा के कहे से लगाया जा सकता है. उन्होंने उस तबाही को देखा था, जब जूडिया के गांव-शहर रौंद दिए गए, यहूदियों का जनसंहार किया गया और कौम की अगुवाई करने वालों को तड़पा-तड़पा कर मौत दी गई. रब्बाई ने कहा कि ‘अब जब हम हेड्रियन के राज में हैं जिसने हमारे खिलाफ बुरे और कठोर आदेश जारी किए हैं, हमें शादियां बंद कर देनी चाहिए और बच्चे नहीं पैदा करने चाहिए, और धीरे-धीरे हमें अब्राहम के वारिसों को खत्म हो जाने देना चाहिए.’
किसी हिटलर से करीब दो हजार सालों पहले कोई हेड्रियन भी था और आज भी यहूदी अपने साहित्य में उसका नाम लेते हुए यह लिखना-कहना नहीं भूलते कि जहन्नुम में उसकी हड्डियां सड़ें. इस रोमन सम्राट ने न सिर्फ यहूदियों पर भारी जुल्म किया, बल्कि बर्बाद जेरूसलम की जगह उसने नया रोमन शहर भी बसाया. उस शहर में यहूदियों के आने-जाने पर पाबंदी लगा दी गई. नए शहर का नाम था इलिया कैपिटोलिना. यह नाम सातवीं सदी में अरबों द्वारा जेरूसलम फतह तक बरकरार रहा. अरबों ने भी इसी नाम के एक हिस्से को बनाये रखा- इलिया. इतिहास के भी अपने दांव होते हैं. जिस जेरूसलम में हेड्रियन के दौर में और कई सदियों बाद भी यहूदी कदम नहीं रख सकते थे, अन्यथा उनके सर कलम कर दिए जाते, उसी जेरूसलम में 2015-16 में तांबे की बनी हेड्रियन की तीन बची हुई मूर्तियों की प्रदर्शनी लगाई गई थी. आज रोम एक शहर भर है और इजरायल एक देश. आज रोम भी शहर कम, संग्रहालय अधिक है. उसी रोम से चलने वाले विशाल रोमन साम्राज्य के महानतम सम्राटों में गिने जाने वाले हेड्रियन की मूर्तियां जिस संग्रहालय में प्रदर्शित की गईं, उसका नाम इजरायल म्यूजियम है. एक मूर्ति फ्रांस के लूर से और दूसरी ब्रिटिश म्यूजियम से लाई गई थी, जबकि तीसरी इजरायली म्यूजियम की ही थी.
साल 130 में हेड्रियन ने जेरूसलम का दौरा किया था और नये शहर के निर्माण का आदेश दिया था. उसने यहूदियों के बेहद अहम रिवाज खतना पर भी पाबंदी लगा दी. यहूदियों को समझ में आ रहा था कि उनका मंदिर अब नहीं बन सकेगा और उनके लिए जीना मुहाल होता जायेगा. उन्होंने विद्रोह की तैयारी शुरू कर दी. आज जहां ईसाईयों का पवित्र मंदिर- होली सेपुखर- है, वहां उसने रोम के सबसे बड़े देवता जुपिटर का मंदिर बनाया. एक मंदिर टेंपल माउंट पर भी बना. शहर के विभिन्न हिस्सों में रोमन, यूनानी और मिस्री देवताओं की मूर्तियां लगा दी गईं. इस तरह से एकेश्वरवाद का सबसे पवित्र शहर बहुदेववादी रोमन शहर में तब्दील हो गया. कुछ समय बाद उस क्षेत्र से हेड्रियन भी रोम वापस चला गया. उसके जाते ही एक करिश्माई यहूदी युवा के नेतृत्व में यहूदियों ने विद्रोह कर दिया जो कि यहूदी इतिहास के सबसे बड़े युद्धों में से एक है.
सिमोन बर कोखबा ने खुद को इजरायल का राजकुमार और सन ऑफ द स्टार घोषित कर दिया था. वह कई यहूदियों की निगाह में एक झूठा दावेदार था, तो कई के लिए डेविड के अवतार और मसीहा की तरह था. उसने बहुत जल्दी ही रोमन गवर्नर और सैन्य टुकड़ियों को हरा दिया. वह विद्रोह को लेकर जितना गंभीर था, उतना ही वह क्रूर भी था. उसके आदेशों की अवहेलना का मतलब भयानक सजा भुगतना होता था. उसने ईसाइयों पर भी खूब जुल्म ढाये. वह अपने लड़ाकों के समर्पण को जांचने के लिए उनसे उनकी अंगुली काटने को कहता था. उसने हेरोडियम के किले से इजरायल पर शासन करना शुरू किया और सिक्के चलवाये. लेकिन जल्दी ही हेड्रियन जूडिया का रुख कर चुका था और यहूदियों के विद्रोह के दमन के लिए उसने ब्रिटेन से अपने बेहतरीन सेनापति जुलियस सेवेरस को बुलाया. एक समय स्थिति यह थी कि पूरी रोमन सेना का एक-तिहाई हिस्सा जूडिया और आसपास तैनात था. उस युद्ध के बारे में कैसियस डिओ समेत कुछ अन्य इतिहासकारों ने लिखा है. डिओ के मुताबिक, यहूदियों की पचास चौकियां और 985 गांव नष्ट कर दिये गये, युद्ध में 5.85 लाख यहूदी मारे गये तथा इससे कहीं बहुत अधिक भूख, बीमारी और आग की भेंट चढ़ गये. ऐसी 75 यहूदी बस्तियों का पता है जो हमेशा के लिए खत्म हो गयीं. इतने यहूदी गुलाम बनाये गये कि हेब्रोन के बाजार में उनकी कीमत घोड़े से भी कम हो गई. सुदूर देहातों में यहूदी बचे रहे, पर जूडिया से उनका सफाया हो गया. उनके इलिया आने पर पाबंदी लगा दी गई. इतना सब होने के बाद भी हेड्रियन को चैन न आया. उसने जूडिया का नाम बदल कर यहूदियों के बहुत पुराने दुश्मन फिलिस्तीनियों के नाम पर पैलेस्टीना रख दिया. इस नाम का भी अपना इतिहास है, और वर्तमान तो हमारे सामने है ही. इस पर विस्तार से कभी लिखा जायेगा.
बहरहाल, मौत तो आनी है. हेड्रियन भी मरा, पर उसके हिस्से में रोम से जूडिया की घृणा ही आई और वह कई बीमारियों का शिकार होकर बहुत तकलीफ में मरा. उसने खुद ही मौत के बारे में मार्मिक कविताएं लिखी है. उसे सीनेट ने देवता घोषित करने से भी मना कर दिया. उसके उत्तराधिकारी एंटोनिनस पायस ने यहूदियों पर अत्याचार को कम किया और खतने की इजाजत फिर से मिल गई. पर, उसने टेंपल माउंट पर हेड्रियन के साथ अपनी भी मूर्ति लगवा दी. इसका सीधा मतलब था कि मंदिर के पुनर्निर्माण की कोई उम्मीद नहीं थी. जेरूसलम, जो अब इलिया कैपिटोलिना था, में बस दस हजार निवासी थे और शहर की कोई दीवार न थी.
उस सदी में हेड्रियन की नीतियां ही कमोबेश चलती रहीं. सदी के आखिर में जब रोम में गृह युद्ध शुरू हुआ, तब भूमध्यसागर के आसपास रहनेवाले यहूदी भी सक्रिय होने लगे. गृह युद्ध के बाद सम्राट बने सेप्टीमस सेवेरस को यहूदियों के स्थानीय विद्रोहों से मदद मिली थी. मोंटेफियरे ने लिखा है कि यह सम्राट अपने बेटे के साथ 201 में इलिया आया और शायद उसकी मुलाकात यहूदी नेता जुडा हानासी से हुई. जब अपने पिता के बाद काराकला सम्राट बना, तो उसने जुडा को आसपास में जागीरें भी दीं. इसी जुडा के सानिध्य में मंदिर के बाद की यहूदी मौखिक परंपरा का संचयन हुआ. समय के साथ शहर में यहूदी के आने और पूजा करने पर लगी बंदिश भी हटी. तीसरी सदी में जब रोमन साम्राज्य संकट के दौर से गुजर रहा था, तब उसका कहर ईसाइयों पर टूटा. इस दौरान ईसाइयत और यहूदी धर्मों के स्वरूप में भी बदलाव हो रहे थे तथा आज जो हम इनमें पाते हैं, उसका बहुत-कुछ तब ही तय हुआ था. साल 260 में फारसियों ने रोम को हरा कर साम्राज्य के पूर्वी हिस्से पर कुछ समय के लिए कब्जा कर लिया था जिसमें इलिया का इलाका भी था. इस पालमाइरा साम्राज्य का नेतृत्व जेनोबिआ नामक महिला के हाथ में था. उसकी कहानी भी बहुत दिलचस्प है, कभी पढ़ियेगा.
खैर, सदी के खात्मे तक रोम ने अपना खोया वजूद फिर से हासिल किया और डिओक्लेशियन सम्राट बना. एक बार 299 में वह सीरिया में रोमन देवताओं को बलि दे रहा था. उस आयोजन में कुछ सीरियाई ईसाई सैनिकों ने क्रॉस का चिन्ह बना दिया. इसे बलि में विघ्न माना गया और उसके बाद पूरे साम्राज्य में ईसाइयों पर भयानक जुल्म ढाये गये, किताबें जला दी गईं और चर्च नष्ट कर दिये गये. उसके बाद कुछेक सम्राट और आये, पर 306 में कॉन्स्टेंटाइन के सम्राट बनने के साथ ही हालात तेजी से बदले. उसके एक फैसले ने न सिर्फ जेरूसलम, बल्कि पूरी दुनिया के इतिहास को बदल कर रख दिया.
पहली किस्त: टाइटस की घेराबंदी
दूसरी किस्त: पवित्र मंदिर में आग
तीसरी क़िस्त: और इस तरह से जेरूसलम खत्म हुआ…
चौथी किस्त: जब देवता ने मंदिर बनने का इंतजार किया
(जारी)
Cover Photo : Rabiul Islam