‘इंडिया टुडे में ‘हत्यारोपी’ वंजारा को हीरो बनाने वाला संपादक वीएचपी का सलाहकार !’

क्या आपने इंडिया टुडे (अंग्रेज़ी) का 9 मई का अंक देखा है। इसमें सोहराबुद्दीन और इशरत जहाँ फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले में फँसे पूर्व आईपीएस डी.जी.वंजारा पर एक स्टोरी है। तमाम किंतु-परंतु के बीच यह बताती है कि कैसे वंजारा देशद्रोही ताक़तों के शिकार हुए हैं और जल्दी ही वे राजनीति में शामिल होकर हिसाब बराबर करेंगे। वंजारा लंबे समय से जेल के बाद अब पैरोल पर हैं। करीब नौ साल बाद पिछले दिनों जब वे अहमदाबाद पहुँचे तो उनके भव्य स्वागत से आह्लादित इंडिया टुडे के सीनियर एडिटर उदय महूरकर ने अपने “ड्रेसिंग फॉर बैटेल” शीर्षक लेख में उन्हें किसी हीरो की तरह पेश किया। साथ में एक तस्वीर भी लगाई जिसमें राजसी मेहराब के बैकग्राउंड में वंजारा अपनी तलवार के साथ किसी सेनानायक की तरह लग रहे हैं। लेकिन कारवाँ पत्रिका से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार हरतोष सिंह बल ने बताया है कि यह संयोग नहीं है। उदय महूरकर दरअसल वीएचपी के पुराने सलाहकार रहे हैं। सुनिये हरतोष सिंह बल की ज़ुबानी, उदय महूरकर और इंडिया टुडे की कहानी–

 “जऱा इशरत जहाँ केस पर नज़र डालें। यह डेविड हेडली की गवाही की वजह से फिर चर्चा में है। इस गवाही में डेविड के मुँह में ज़बरदस्ती यह बात डाली गई कि इशरत लश्कर से जुड़ी आतंकी थी। अदालत मे इस तरह की गवाही का कोई मतलब नहीं। लेकिन मीडिया और सोशल मीडिया इसे ले उड़ा और बहुत करीने से मुद्दा बनाया गया कि इशरत आतंकी थी या नहीं ?

इस मामले में सारे सबूत बताते हैं कि 19 वर्षीय इशरत आईबी की मदद से हिरासत में ली गई थी। अगर वह आतंकी थी भी तो उसे ज़िंदा पकड़ा गया था। वह कहीं भाग नहीं रही थी। अगर वह दोषी थी तो उसे अदालत के सामने पेश करना चाहिए था। उसे गोली मार दी गई तो कोई तो इसका ज़िम्मेदार है। लेकिन आप देखते हैं कि बजाय इसके कि डी.जी.वंजारा को गुनहगार ठहराया जाता, वह एक हीरो की तरह जेल से बाहर आता है। मीडिया भी इसी अंदाज़ में उसे पेश करती है।

हाल के इंडिया टुडे में वंजारा की एक तस्वीर छपी है जिसमें वह पूरी शान के साथ तलवार लटकाये खड़ा है। यह घृणित है। इंडिया टुडे का ऐसे वक़्त पर इसे प्रकाशित करना संयोग नहीं है और स्टोरी सीनियर एडिटर उदय महूरकर ने लिखी है। उदय महूरकर पहले अहमदाबाद में इंडिया टुडे के संवाददाता थे, और मुझे अफ़सोस है कि मुझे विस्तार से उनके बारे में बताना पड़ रहा है, क्योंकि यह ज़रूरी हो गया है।

2005 में मैं जब तहलका वैसा नहीं था, जैसा आज है, मैं नरेंद्र मोदी पर स्टोरी करने गुजरात गया था। वहाँ मैं विश्व हिंदू परिषद के दप्तर भी गया। मुझे बताया गया कि अंदर एक राज्यस्तरीय महत्वपूर्ण बैठक चल रही है। मैं अपने स्थानीय संवाददाता महेश लांगा के साथ बाहर इंतज़ार करने लगा। हम ऐसी जगह बैठे जहाँ से अंदर की बात सुन सकते थे। यह मीटिंग थी कि वीएचपी उन मुकदमों में पैरवी किस तरह करे जिनमें मोदी का नाम आया है। और जो शख्स सलाह दे रहा था, रणनीति सुझा रहा था, वह था उदय महूरकर। सोचिये मीडिया का एक बड़ा नाम वीएचपी की मीटिंग में ! और अब वही व्यक्ति डी.जी.बंजारा के बारे में राष्ट्रीय पत्रिका में लिख रहा है। आप उससे क्या उम्मीद करते हैं।

( सबसे बाँये, इंडिया टुडे में छपी एक और तस्वीर जिसमें वंजारा का स्वागत करते आरएसएस स्वयंसेवक। बीच में उदय महूरकर और दायें उनकी कितब “सेंटरस्टेज : इनसाइड नरेंद्रमोदी मॉडल ऑफ गवर्नेंस” का आवरण।) 

 

अब ज़रा दूसरा मामला देखिये। क्या हुआ जब जेएनयू का मामला सामने आया ? हम सब अब फर्जी वीडियो की बात कर रहे हैं, लेकिन एक छोटी सी घटना और हुई थी जो दिलचस्प है। उस समय हाफ़िज़ सईद के एक ट्वीट की चर्चा हुई जिससे पता चलता था कि वह ख़ुद जेएनयू घटनाक्रम के पीछे है। दिलचस्प बात यह है कि यह ट्वीट सबसे पहले इंडिया टुडे ग्रुप के ही पत्रकार गौरव सावंत ने सार्वजनिक किया। मैं तब से जानना चाहता हूँ कि गौरव सावंत को यह ट्वीट हासिल कहाँ से हुआ और उसने यह नतीजा कैसे निकाला कि वह ट्वीट हाफ़िज़ सईद का ही है। इंडिया टुडे चैनल ने इसे ब्रेकिंग न्यूज़ बताकर चलाया था। (बाद में यह ट्वीट फ़र्ज़ी साबित हुआ)। आख़िर चैनल ने इस ग़लती के लिए अपने पत्रकार को ज़िम्मेदार क्यों नहीं ठहराता ?  

यह कहना हास्यास्पद है कि देश के विश्वविद्यालयों के कैंपस में दिख रहे असंतोष के पीछे आतंकी संगठनों का हाथ है। यह चुटकुला है, लेकिन इसे एक गंभीर ख़बर की तरह एक नामी पत्रकार पेश करता है और फिर उससे कोई पूछता भी नहीं कि यह क्यों और कैसे संभव है !

इस तरह देखें तो बहुत से पत्रकार जो आजकल ख़ुद को दक्षिणपंथी बतौर पेश कर रहे हैं, दरअसल, सरकार के भोंपू हैं। कुछ ख़ास तरह के विचार को बड़े पैमाने पर प्रचारित करने और सरकार को पसंद आने वाली बातें करने वाले आज हर मीडिया संस्थान में अहम रोल में हैं। सरकार के तमाम बड़े मंत्रियों से उनका सीधा संबंध हैं। सोशल मीडिया में भी उन्हें फॉलो करने वालों की बड़ी तादाद है। वे ख़बरें दे सकते हैं, देते हैं, लेकिन उनकी कोई जवाबदेही नहीं है।”

.

 

 

 

 

(तस्वीर हरतोष सिंह बल की है। हरतोष चर्चित कारवाँ पत्रिका के राजनीतिक संपादक हैं और मई के आख़िरी हफ़्ते में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित ”आयडिया ऑफ इंडिया कान्क्लेव” में उन्होंने जो भाषण दिया था, उसी का एक हिस्सा यहाँ पेश किया गया है। भाषण की पूरी रिपोर्ट यहाँ पढ़ी जा सकती है।)

First Published on:
Exit mobile version