मोदी का ‘भूख शतक’ ! तीन साल में ‘हंगर इंडेक्स’ में भारत का नंबर 55 से 100 हुआ !

हम सब नासमझ मंदी की बात कर रहे हैं जबकि वैश्विक भूख सूचकांक में भारत 2014 में 55 वें स्थान पर थे अब 100 वें स्थान पर है| 3 साल में 45 स्थान नीचे – इतना तेज विकास मोदी के अलावा कौन कर सकता था? विश्व की सबसे तेज अर्थव्यवस्था!

एशिया में मात्र अफगानिस्तान और पाकिस्तान भारत से नीचे हैं, नेपाल, बांग्लादेश तो ऊपर है हीं, लम्बे वक्त से युद्ध ग्रस्त इराक और प्रतिबंधों का शिकार उत्तर कोरिया भी भारत से बेहतर हैं| भारत में 21% बच्चे कुपोषण ग्रस्त हैं, दुनिया में 3 और ही देश हैं मुकाबले  में।

अर्थव्यवस्था पर चर्चा जब सिर्फ जीडीपी और शेयर बाजार के सन्दर्भ में होती है तो यह भुला दिया जाता है कि एक वर्ग विभाजित समाज में (जहाँ 10% लोग 81% संपत्ति के मालिक हों) जीडीपी, मुनाफों और शेयरों की कीमतों में यह वृद्धि शेष 90% जनता के मुँह से खाने का निवाला छीनकर, उनके श्रम से पैदा उत्पाद के मूल्य का अधिकांश पूंजीपतियों द्वारा कब्ज़ा लेने से ही होती है।

सच्चाई यही है कि नव उदारवादी आर्थिक नीतियों के दौर में अधिकांश जनता के लिए अनाज, दाल-सब्जी, फल, दूध और अन्य पोषक पदार्थों की उपलब्धता (खरीदने की क्षमता) भारी कमी आई है – उत्पादन चाहे बढे या घटे| पिछले सालों में यह प्रक्रिया और तेज हुई है| पहले इस पर नजर रखने के लिए एक नुट्रिशन मॉनिटरिंग ब्यूरो नाम की संस्था होती थी, मोदी सरकार ने उसकी रिपोर्टों से घबराकर 2015 में उसे बंद ही कर दिया|
नवउदारवादी नीतियां अधिकांश लोगों के जीवन में जिस तरह की विपत्ति और बरबादी ला रही हैं, उसके चलते पूंजीपति वर्ग अब जनतंत्र, बोलने और विरोध की आजादी के अवशेष और प्रहसन को भी झेल पाने की स्थिति में नहीं है इसलिए उसे फासीवादी राजनीति को बढ़ावा देने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं|

मुकेश असीम

 



 

 

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