अफगानिस्तान के सवाल पर पिछले हफ्ते चीन में चार देशों ने बात की। अमेरिका, रुस, चीन और पाकिस्तान ! इनमें भारत क्यों नहीं है ? क्या अफगानिस्तान से भारत का कोई संबंध नहीं है ? भारत और अफगानिस्तान के संबंध सदियों से चले आ रहे हैं। अफगानिस्तान को आज भी ‘आर्याना’ कहा जाता है। महाभारत की गांधारी कौन थी ? क्या महान वैयाकरण पाणिनी अफगानिस्तान में पैदा नहीं हुए थे ? ये तो हुई पुरानी बातें लेकिन पिछले 70 वर्षों में भी भारत और अफगानिस्तान के संबंध बहुत घनिष्ट रहे हैं।
यह ठीक है कि पाकिस्तान के बन जाने के बाद अफगानिस्तान और भारत की सीमाएं दूर-दूर हो गई लेकिन दोनों देशों की सरकारों और जनता के बीच सदभाव और सहयोग बना रहा। तालिबान के अल्पकालीन शासन के दौरान भारत-अफगान संबंध विरल जरुर हो गए लेकिन इन दोनों देशों के बीच वैसी दुश्मनी कभी नहीं रही, जैसी अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच कई बार देखी गई है। इन दोनों मुस्लिम राष्ट्रों के बीच चार बार युद्ध होते होते बचा है। इसमें शक नहीं आतंरिक संकट के समय लाखों अफगानों को पाकिस्तान ने शरण दी लेकिन पाकिस्तान ने अफगानिस्तान को अपना मोहरा बनाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। भारत ने अफगानिस्तान की जितनी निस्वार्थ सहायता की है, किसी देश ने नहीं की।
उसकी यह समझ सही नहीं है। इसमें शक नहीं कि तालिबान पर पाकिस्तान के अनगिनत अहसान हैं लेकिन मैंने अपने 50 साल के सीधे संपर्कों से जाना है कि तालिबानी पठान बेहद आजाद हैं और वे किसी के मोहरे बनकर नहीं रह सकते। ये चारों देश मिलकर उनसे ही बात कर रहे हैं। भारत तो दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा देश है। उसकी जिम्मेदारी सबसे ज्यादा है। उसे इस बातचीत में सबसे अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। यह ठीक है कि हमारी सरकार के पास ऐसे लोगों का टोटा है, जो तालिबान से सीधे संपर्क में हों लेकिन वह इस महाभारत में धृतराष्ट्र बना रहे, यह ठीक नहीं।
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं और अफगान मामलों के विशेषज्ञ हैं)