IGSSS की रिपोर्ट: ‘बेघर’- जिन पर जन-धन योजना और शौचालय योजनाएं नहीं होती लागू

10 अक्टूबर, ‘विश्व बेघर दिवस’ पर इंडो ग्लोबल सोशल सर्विस सोसाइटी (IGSSS) ने भारतीय सामाजिक संस्थान के सभागार में प्रेस कान्फ्रेंस करके मीडिया के सामने देश के पांच राज्यों के 15 शहरों में बेघरों पर एक सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी किया है। आइजीएसएसएस बेघरों और शेल्टर होम में रहने वालों के लिए काम करने वाली एक नॉन-प्रोफिट आर्गेनाइजेशन है। सर्वेक्षण रिपोर्ट के आँकड़े बिहार के पटना, मुज़फ्फरपुर, गया शहर, झारखंड के रांची, धनबाद ,, जमशेदपुर शहर, आंध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम, विजयवाड़ा, गुंटूर, तमिलनाड़ु के चेन्नई, कोयंबटूर, मदुरै शहर और महराष्ट्र मुंबई, पुणे, नासिक शहरों के कुल 4382 बेघर लोगों परअध्ययनपर आधारित है। जनगणना 2011 के अनुसार देश में 17,73,040 लोग बेघर हैं।

बेघरों के प्रति व्याप्त पूर्वाग्रहों को ध्वस्त करता IGSSS  का अध्ययन

बेघरों पर आइजीएसएसएस का अध्ययन बेघरों के प्रति तमाम सामाजिक पूर्वाग्रहों को ध्वस्त करता है। जैसे एक सामान्य सी धारण है कि बेघर लोग प्रवासी लोग है। जबकि आइजीएसएसएस का ये अध्ययन बताता है कि सिर्फ 40 प्रतिशत बेघर ही प्रवासी लोग हैं जबकि 60 प्रतिशत बेघर उसी शहर में जन्म लिया है।

बेघरों को लेकर एक पूर्वाग्रह ये भी होता है कि वो नशेड़ी होते हैं, भीख मांगते हैं और अपराधी होते हैं। अध्ययन में बताया गया है कि 81.6 प्रतिशत बेघर लोगों के पास कुछ न कुछ आय का स्त्रोत है जबकि 18.4 प्रतिशत बेघरों के पास आय का कोई स्त्रोत नहीं है।

आइजीएसएसएस के आंकड़े बताते हैं कि बेघरों में 23.6 प्रतिशत निर्माण मजदूर हैं। 6.9 प्रतिशत शादी पार्टी में वेटर का काम करते हैं। 5.4 प्रतिशत रिक्शा चलाते हैं।

4.1 प्रतिशत सफाईकर्मी, 3.6 प्रतिशत वेंडर, 3.2 प्रतिशत पल्लेदारी और 6 प्रतिशत घरेलू कामगार हैं। 10.7 प्रतिशत कबाड़ी का काम करते हैं। 6.3 प्रतिशत ट्रैफिक-लाइट वेंडर हैं। जबकि 17.5 प्रतिशत बेघर ही भीख मांगते हैं। भीख मांगकर गुज़ारा करनेवाले बेघरों में से अधिकांश को शहर की कंपनियों दुकानों कारखानों में काम नहीं मिला। कईयों ने फुटपाथ पर रेहड़ी लगाकर छोटा-मोटा धंधा जमाने की कोशिश की तो म्युनिसिपैलिटी ने उन्हें मारकर भगा दिया। जो काम न मिले और छोटा धंधा भी न करने दिया जाए तो बेघर लोग क्या करें। जब उन्हें कारखाने फुटपाथ पर काम नहीं मिलता तोवो मंदिरों की ओर रुख़ करते हैं।

बेघरों में 54 प्रतिशत पुरुष और 46 प्रतिशत स्त्रियां हैं। अमूमन एक अवधारणा ये भी होती है कि बेघर लोग निरक्षर होते हैं। जबकि IGSSS ने अपने अध्ययन में 53 प्रतिशत बेघरों का साक्षर पाया जबकि 47 प्रतिशत बेघर निरक्षर हैं। बेघरों में 46 प्रतिशत लोग 35 आयु वर्ग से कम के हैं। ये आयुवर्ग जीवन का सबसे उत्पादक आयुवर्ग है।

न जन-धन योजना न शौचालय योजनाका लाभ

सरकार जन-धन योजना के तहत लाखों मुफ्त खाते खुलवाने का दावा करती है। लेकिन 70 प्रतिशत बेघर लोगों के पास बैंक एकाउंट तक नहीं है। इसलिए 66% लोग बचत का पैसा अपने पास रखते हैं। 4 प्रतिशत लोग इंपलॉयर के पास ही अपना पैसा छोड़ देते हैं जबकि कुछ लोग अपने पैसे दुकानदारों के पास छोड़ देते हैं। सिर्फ़ 23 फीसदी बेघर लोग ही बैंक में अपना पैसा रख पाते हैं।

अध्ययन के अनुसार 82.1 फीसदी  बेघरों को दिहाड़ी के रूप में पेमेंट मिलता है, 11.2 फीसदी को माहवार जबकि 6.2 फीसदी को साप्ताहिक पेमेंट मिलता है।

इसी तरह सरकार देश को बाहर शौच मुक्त करने का ढिंढोरा पीटती है। जबकि बेघर लोगों में से 30 प्रतिशत लोग शौच जाने के लिए हर बार पैसे खर्च करते हैं।

सरकार विज्ञापनों पर अरबों रुपए खर्च करती है। सुबह सुबह ‘स्वच्छ रहें हम’ का नारा घर-घर सुनाई पड़ता है पर कभी शेल्टर होम के बारे में कोई गाड़ी विज्ञापन करने सड़कों पर नहीं उतरती। 88% बेघर लोग शेल्टर होम के बारे में नहीं जानते। केवल 12% बेघरों ने माना कि वो शेल्टर होम के बारे में जानते हैं।

बेघरी में धर्म और जाति फैक्टर

बेघरों में सबसे ज़्यादा 86.6% हिंदू हैं जबकि 7.8% मुस्लिमऔर 5% ईसाई लोग बेघर हैं।

IGSSS का अध्ययन बताता है कि बेघरों में सबसे ज़्यादा 35.6% एससी, 23% एसटी और 21.4% ओबीसी समुदाय से हैं। जबकि सामान्य वर्ग के 20% लोग बेघर हैं।

बेघर और उनकी पहचान

29.5 प्रतिशत बेघर लोगों के पास अपने पहचान से जुड़ा एक भी दस्तावेज़ नहीं है।

जबकि 66.4 प्रतिशत बेघरों के पास आधार कार्ड है। ध्यान रहे आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है। 39.5 प्रतिशत लोगों के पास मतदाता पहचानपत्र है। 37.3 प्रतिशत लोगो के पास राशन कार्ड है। 27.7 प्रतिशत के पास बैंक पासबुक है। 3 प्रतिशत लोगों के पास जन्म प्रमाणपत्र है। 2.9 प्रतिशत के पास जाति प्रमाणपत्र है, .9 प्रतिशत लोगों के पास लेबर कार्ड है।

अप्रवास का कारण

बेघरों में 78.9% लोगो ने रोज़गार और गरीबी को कारण बताया है जबकि 13.7% ने घरेलू झगड़े को वजह बताया है। 4.7% लोग विवाह के कारण बेघर हुए हैं। 5% विस्थापन के चलते बेघर हुए हैं।

उत्पीड़नऔर बेदख़ली के शिकार बेघर

95% बेघर पुरुषों और 37.6% स्त्रियों ने माना कि उनका उत्पीड़न हुआ है। स्त्रियों का आंकड़ा इसलिए कम है क्योंकि स्त्रियां अपने उत्पीड़न को छुपा ले जाती हैं। अध्ययन बताते हैं कि इन उत्पीड़नो में 77% वर्बल (गाली गलौज) 73% फिजिकल (मार-पीट) उत्पीड़न, 2% यौन-उत्पीड़न, 3% मेंटल उत्पीड़न, जबकि 1% पैसे के लिए ब्लेड मारने और जान से मारने की कोशिश जैसे उत्पीड़न के शिकार होते हैं।

पुलिस का आतंक बेघरों पर कहर बनकर टूटता है। बेघर लोगो ने कहा कि उनका उत्पीड़न 67% पुलिस और 39% असमाजिक तत्व करते हैं।

शहरों के सौंदर्यीकरण, सार्वजनिक निर्माण, स्मार्ट सिटी और शहर को स्लम-मुक्त बनाने के उद्देश्य से चलाए जाने वाले परियोजनाओं तथा शहर में वीआईपी ट्रैफिक, इवेंट और स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस के आयोजनों के चलते लगातार एक नियमित पैटर्न में 70%बेघर लोग पुलिस और म्युनिसिपल कार्पोरेशन द्वाराबार बार बेदख़ल किए जाते हैं।

कहाँ सोते हैं बेघर

बेघरों के लिए रात गुजारने के लिए सरकार के पास रैन बसेरा योजना है। लेकिन 88% बेघर लोग रैनबसेरे के बारे में जानते ही नहीं। आँकड़ों के मुताबिक42% बेघर सोने के लिए फुटपाथ का इस्तेमाल करते हैं। 30% बेघर लोग सोने के लिए रेलवे स्टेशनों का इस्तेमाल करते हैं। 15% लोग सोने के लिए पुल औरओवरब्रिज के नीचे की जगह का इस्तेमाल करते हैं। जबकि 2% बेघर लोग रिकशे पर ही सो लेते हैं।

बेघरों का मासिक खर्च और स्वास्थ्य सुविधा

अध्ययन में पाया गया कि 95% बेघर लोग अपनी कमाई का सबसे बड़ा हिस्सा खर्च खाने पर करते हैं। जबकि  31.9% शौचालय के इस्तेमाल पर और 34.6% कपड़ों पर जबकि 17.6% बेघर लोग नहाने की सुविधाओं पर खर्च करते हैं। 19% बेघर कमाई का बड़ा हिस्सा यात्रा परखर्च करते हैं। लिए जबकि बेघरों की औसत कमाई 100-200 रुपए के बीच होती है।

बेघरों में सिर्फ़ 42% लोगों को ही स्वास्थ्य सुविधा मिल पाती है। जबकि 58% बेघरों को स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रहना पड़ता है। स्वास्थ्य सेवा हासिल कर रहे 96% लोगो के ये सुविधा सरकारी अस्पतालों के जरिये मिलती है। जबकि 3% को एनजीओ चालित अस्पतालों से।

वर्ल्ड बिग स्लीप आउट’का आयोजन

अध्ययन रिपोर्ट के अलावा कल 10 अक्टूबर बेघर दिवस पर वर्ल्ड बिग स्लीप आउट (WBSO)को लांच किया गया है।10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस के तीन दिन पहले 7 दिसबंर 2019 को दिल्ली समेत भारत के 30 शहरों केसाथ विश्व के 50 शहरों में ‘वर्ल्ड बिग स्लीप आउट’ का आयोजन किया जाएगा। WBSO को डेफ़ हेलेन मिरेन ने ट्राफलगर स्क्वायर लंदन और हॉलीवुड एक्टर विल स्मिथ द्वारा टाइम्स स्क्वॉयर न्यूयॉर्क में समर्थन मिला है। दोनो हस्तियां 7 दिसंबर 2019 को होने वाली सभा में भी शामिल होंगे। देश की राजधानी दिल्ली में कनॉट प्लेस स्थित सेंट्रल पार्क में वर्ल्ड बिग स्लीप आउट का आयोजन शाम 7 बजे से किया जाएगा। दिल्ली होने वाले WBSOको केजरीवाल सरकार, डीएमसी और जमघट संस्था का समर्थन मिल रहा है। इस कार्यक्रम में हिंदी फिल्म जगत की कई नामी हस्तियां भी भाग लेंगी। 7 दिसंबर 2019 के दिन अलग अलग क्षत्रों के लोग शाम 7 बजे से जुटेंगे और बेघरों की तरह खुले आसमान के तले रात गुजारेंगे। इसके अलावा इस कार्यक्रम के तहत बेघरों के लिए फंड एकत्र भी किया जाएगा। WBSO  में भाग लेने के इच्छुक लोग 500 रुपए देकर उनकी वैधानिक वेबसाइट https://www.bigsleepout.com पर अपना रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं।

बेघरों की आप-बीती

साईं बाबा मंदिर के बगल शेल्टर होम में रहने वाली बुजुर्ग महिला विमला बताती हैं कि पहले वो फुटपाथ पर सोती थी। रोज शाम 7 बजे पहले फुटपाथ की गंदगी साफ़ करती रात भर सोती और सुबह फिर अपने काम पर चल देती। ये रोज का काम था फिर एक दिन फुटपाथ पर सोते वक्त पुलिस पकड़कर ले गई और जेल में डाल दी। हफ्ते भर बाद छूटी तो दोबारा फिर फुटपाथ पर सोते समय उठाकर ले गई और 15 दिन के लिए जेल में डाल दिया।

दिल्ली की राज्य स्तरीय निगरानी समिति के सदस्य इंदु प्रकाश बताते हैं कि यह औद्योगिक क्षेत्र है यहां क्षेत्र में ऐसे बहुत से बेघर लोग खुले छत के नीचे रहते थे।यहीं बगल में मानवाधिकार के लोग भी रहते हैं। पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया। फिर हमने निजी स्तर पर प्रयास करके उनके लिए साईं मंदिर के बगल एक शेल्टर होम बनाया। तो औद्योगिक क्षेत्र के इंड्रस्टलिस्ट लोग, मानवाधिकार के लोग मंदिर के लोग सब एकजुट होकर आए और कहने लगे ये आप लोग क्या कर रहे हैं। बहुत मुश्किल से तो हमने इस क्षेत्र को झुग्गी-झोपड़ी मुक्त करवाया है।और आप लोग इलाक़े में शेल्टर होम बना रहे हैं।

एक और बेघर आइसा बीबी अपनी पीड़ा सुनाते हुए कहती हैं- बारिश के दिनों में टेंट में पानी भर आता है तो बाल्टी से भर भरकर फेंकना पड़ता है। उन्हें तीन दिन सांई मंदिर में खाना मिल जाता है बाकी के दिन खाना की इंतज़ाम करना पड़ता है। पुलिस आती है और हमारा टेंट तोड़ देती है। बार बार बनाना पड़ता है।

शेल्टर होम में केयर टेकर का काम करने वाली मीनाक्षी बताती हैं कि अधिकांश बेघर महिलाएं अकेली या छोटे बच्चे के साथ शहरों में आती हैं उन्हें किसी न किसी कारण से उनके परिवार वालों ने घर से निकाल दिया होता है। घर से बेघर होने के बाद वो बहुत दुखी, निराश, अवसादित और बेसहारा होती हैं।IGSSS के सोनू और अरविंद ने IGSSS के सर्वेक्षण के आंकड़ों को प्रोजेक्टर पर पेश किया।

 

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