अभिषेक श्रीवास्तव
चौहानपट्टी में कुछ ढहा हो या नहीं, लेकिन वहां कुछ ढहने के कगार पर बेशक है। वह है चार सौ साल से चली आ रही सामाजिक समरसता और बंधुत्व की मज़बूत इमारत। नहीं समझे? बीते दस दिन से राष्ट्रीय मीडिया दिल्ली के जिस सोनिया विहार में एक ‘मस्जिद’ के ढहाए जाने की ख़बर चला रहा है या इसके वायरल वीडियो का खंडन कर रहा है, दरअसल दोनों ही पैंतरों में उसने एक बात बड़ी चतुराई से छुपा ली है। वो यह, कि 7 जून की घटना सोनिया विहार की नहीं है बल्कि राजस्व रिकॉर्ड में कायदे से सभापुर शहादरा गांव का हिस्सा रहे चौहानपट्टी गांव की है। दूसरी बात यह छुपाई गई है कि इस गांव को बीजेपी के सांसद मनोज तिवारी ने दो साल से ‘सांसद आदर्श ग्राम योजना’ के तहत गोद लिया हुआ है। केवल इन दोनों तथ्यों को छुपाने से दो काम एक साथ हो गए हैं। पहला, सोनिया विहार की जनमानस में बनी पहचान को खंडित कर दिया गया है। दूसरे, दिल्ली की हवा में बेमतलब सांप्रदायिक ज़हर घोल दिया गया है।
सोनिया विहार का नाम आज से दसेक साल पहले दिल्ली के अख़बारों में खूब छपा करता था। लोग एक-दूसरे से जिज्ञासा में पूछा करते थे, ‘यार, ये सोनिया विहार कहां है?’ पूछने वाले आज तक वहां गए हों या नहीं, लेकिन लोगों के दिमाग में इस नाम की केवल एक ही पहचान कायम है। यहां दिल्ली जल बोर्ड का एक वाटर ट्रीटमेंट प्लांट है जिसमें मुरादनगर से गंगा का पानी आता है। यह प्लांट जब 2006 में चालू हुआ तब तक सोनिया विहार पाइपलाइन का नाम अख़बारों के रास्ते दिल्ली के लोगों की जुबान पर चढ़ चुका था। इस पाइपलाइन से उत्तर-पूर्वी दिल्ली की सुदूर सघन बस्तियों की प्यास खूब बुझी। पाइपलाइन आई तो ‘विकास’ का रास्ता बना। इलाके में बसावट बढ़ती गई और बाहरी गांवों में प्लॉट कटने लगे। जब 2008 में ग़ाजि़याबाद की ट्रोनिका सिटि की चर्चा चली, तो खजूरी से ट्रोनिका सिटि वाया सोनिया विहार का रास्ता ज़मीन खरीदने वालों की गाडि़यों से जाम होने लगा। आज भी यह रास्ता वैसे ही जाम है, लेकिन ज़मीन का रेट यहां दिल्ली में सबसे सस्ता है। कोई 20-22 लाख में सौ गज़ जमीन मिल जाती है जो और कहीं मुमकिन नहीं। बैठे-बैठाए बाहरी गांवों के खेतिहर राजपूतों ने प्रॉपर्टी के धंधे में जो हाथ डाला, तो उनकी ठसक अपनी हवेलियों के बुलंद फाटकों से निकलकर अबाध ‘विकास’ के आड़े आ गई। इसका नतीजा बीते 7 जून को देखने को मिला जब महज 90 गज के प्लॉट पर हुए एक अजीबोगरीब विवाद ने मज़हबी रंग ले लिया और सोनिया विहार से सटे चौहानपट्टी गांव में एक ‘मस्जिद’ ढहा दी गई।
सभी मीडिया संस्थानों ने खुलकर एक ही नाम लिखा- सोनिया विहार। किसी ने भी इस बात की फिक्र नहीं की कि सोनिया विहार के इलाके को समझ लिया जाए और चौहानपट्टी को उससे न जोड़ा जाए। दूसरे, किसी ने भी चौहानपट्टी की विशिष्ट स्थिति बताने की ज़हमत नहीं उठाई कि यह बीजेपी सांसद मनोज तिवारी का गोद लिया गांव है। इसके अलावा, सबने एक स्वर में ‘ढहाई’ गई चीज़ को ‘मस्जिद’ का नाम दिया। बीबीसी की वेबसाइट ने भी अपनी ख़बर के पहले पैरा में ‘मस्जिद’ ही लिखा है, हालांकि शीर्षक और बाकी की ख़बर में संपादक को मस्जिद को इनवर्टेड कॉमा में घेरने की ज़रूरत नहीं समझ आई। उससे पहले भी जहां कहीं इस कांड की ख़बर छपी, सब ने बेरोकटोक मस्जिद ही लिखा। वॉट्सएप से लेकर यूट्यूब तक हर जगह ‘मस्जिद’ ढहाई गई है। मौलाना मदनी ने राजनाथ सिंह को पत्र लिखकर ‘मस्जिद’ ढहाने की बात कही है।
लोगों की प्यास बुझाने वाली पाइपलाइन का पर्याय बन चुका सोनिया विहार 2017 में मीडिया की कारस्तानियों के चलते ‘मस्जिद’ विध्वंस का कहीं प्रतीक न बन जाए, इसलिए हमने सोचा कि चलकर देखा जाए कि असल में हुआ क्या है। हमने बैटरी रिक्शेवाले से ‘वहीं’ ले चलने को कहा। वह बिलकुल ‘वहीं’ ले आया। वहां दिल्ली पुलिस की एक ट्रक खड़ी थी और कोई दर्जन भर पुलिसवाले भीतर गली में जुटे हुए थे। यह सोनिया विहार के पांचवें पुश्ते और थाने से काफी आगे चौहानपट्टी गांव की अम्बे कॉलोनी थी, जहां 7 जून को बवाल हुआ था।
यह इलाका आम आदमी पार्टी के बाग़ी विधायक कपिल मिश्रा और भाजपा सांसद मनोज तिवारी का क्षेत्र है। चौहानपट्टी के प्रवेश द्वार पर आदर्श ग्राम और श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वार लिखा हुआ है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता होते थे। सांसद मनोज तिवारी का गोद लिया यह आदर्श ग्राम है, लिहाजा इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए। यह तकरीबन 400 वर्ष पुराना गांव बताया जाता है। यमुना की बाढ़ के चलते यह गांव तकरीबन सात बार पूरी तरह उजड़ा और बार-बार बसाया गया। चौहानपट्टी पुराने समय में सभापुर शाहदरा गांव का हिस्सा था। बाद में समय-समय पर बाढ़ से प्रभावित होकर सभापुर गांव कट कर कई हिस्सों में बंट गया। पुराने समय में यहां आकर बसे ”सह चौहानों” के नाम पर गांव का नाम चौहानपट्टी पड़ा था। फिलहाल यहां चौहानों के अलावा, गुर्जर, ब्राह्मण, दलित एवं नाई सहित सभी जाति एवं धर्म के लोग रह रहे हैं।
दैनिक जागरण 21 मई 2015 की एक ख़बर में लिखता है: ”सांसद मनोज तिवारी ने जब चौहानपट्टी गांव को गोद लेने की घोषणा की तो पता चला कि यह गांव राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार सभापुर शाहदरा गांव का ही एक हिस्सा है। इस दौरान पुराने रिकॉर्ड खंगालने पर यह बात सामने आई कि वर्तमान समय में राजस्व रिकॉर्ड के अनुसार सभापुर शाहदरा गांव की दो पट्टियां हैं। इनमें चौहानपट्टी एवं गुजरानपट्टी शामिल हैं। गुर्जर एवं चौहानों की अलग-अलग बसावट होने के चलते पूर्व में ये दोनों पट्टियां दो हिस्सों में बंटकर दो गांवों में तब्दील हो गई थीं। इन दोनों गांवों के अपने-अपने प्रधान भी चुन लिए गए थे, मगर बदलते वक्त के साथ गुजरानपट्टी में काफी तेजी से विकास हुआ, जो अब सभापुर गुजरान के नाम से जाना जाता है और वहां की आबादी 10 हजार से ज्यादा है। चौहानपट्टी गांव शिक्षा एवं विकास के क्षेत्र में पिछड़ गया। इसकी आबादी तीन हजार के अधिक है, मगर चौहानपट्टी गांव का नाम सांसद आदर्श ग्राम योजना के अंतर्गत चुने जाने के बाद दोनों के गांव के बीच की दूरी फिर कम हुई हैं।”
गांव के भीतर रास्ते में कुछ विकास कार्यों के बोर्ड बेशक लगे हैं जो बताते हैं कि कपिल मिश्रा यहां के विधायक और मनोज तिवारी सांसद हैं। एक गली है जिसके साइनबोर्ड पर ‘गली न.’ के आगे चूने से पोत कर लिख दिया गया है ‘786’। बाकी बड़े-बड़े मकान और प्रॉपर्टी डीलरों की दुकानें हैं जिन पर लिखे नाम इस बात का पता देते हैं कि यह गांव तोमरों का है यानी राजपूत बहुल है। एक गाड़ी के पीछे लिखा है ‘ठाकुर’, एक बाइक के पीछे लिखा है ‘राजपूत’। विवादित स्थल जिस गली में है, उसमें बाईं तरफ़ कुछ पिछड़ी जातियों के मकान हैं। एक नाम किसी मौर्या का है। आर्थिक स्थिति के हिसाब से ये कमज़ोर घर जान पडते हैं। दाईं तरफ कुछ मुस्लिम परिवार हैं। प्लॉट, जिसे ‘मस्जिद’ बताया गया है, इसी गली में बाईं ओर निकलती एक और गली में स्थित है जिसे फि़लहाल दिल्ली पुलिस ने सील कर दिया है। वहां कुछ ईंटें गिरी हुई हैं। खरपतवार बेढब उगी हुई है। रात बरसे पानी से थोड़ा कीचड़ हो गया है।
प्लॉट के सामने पहुंचने पर पहली मुलाकात दो पुलिसवालों से होती है। वे छूटते ही बताते हैं कि यहां कोई मस्जिद नहीं थी, बस एक छोटा सा प्लॉट है जिसे सांप्रदायिक रंग दे दिया गया है। उनके मुताबिक मामला जमीन के विवाद का है। बातचीत के बीच में एसएचओ पहुंच जाते हैं और हमें वहां से जाने को कहते हैं। वे कहते हैं कि यहां खड़ा होने की अनुमति नहीं है। हम गली से बाहर निकलकर उसी रास्ते पर और आगे बढ़ जाते हैं। कोई 50 मीटर आगे एक परचून की दुकान है। वहां बात होती है तो बताया जाता है कि विवादित प्लॉट किसी लखपत सिंह का है और वहां की अधिकतर ज़मीनें उन्हीं की हैं। दुकान पर बैठे दो पुरुष और एक महिला बताते हैं कि कोई अकबर नाम का शख्स यहां दीवार खड़ी कर के नमाज़ पढ़वाता था। वे बताते हैं कि कुल तीन दिन लोग नमाज़ पढ़ पाए थे, जिसके बाद चारदीवारी गिरा दी गई। अकबर का घर वहां से बमुश्किल 100 मीटर की दूरी पर है।
अकबर घर पर नहीं थे। वे मस्जिद में गए हुए थे, एक बच्ची ने तिमंजिला मकान की बालकनी से झांककर बताया। वे एकाध घंटे में आ जाएंगे, इस उम्मीद में हम लखपत सिंह को खोजने निकल लिए। रास्ते में एक प्रॉपर्टी डीलर ने पूछने पर बताया कि लखपत और उनके बेटे की मौत हो चुकी है। उनका पोता है जो सब काम देखता है। पूछते हुए लखपत के घर पर हम पहुंचे और वहां उनके पोते की दरयाफ्त की। एक युवक ने बताया कि वो घर पर नहीं है। उसने हमें चौधरी चरस सिंह से मिलने को कहा। चरस सिंह रसूखदार आदमी दिखे। उनके बड़े से मकान में सरकारी डिसपेंसरी चलती है और पैकेजिंग के काम की एक छोटी सी इकाई भी है जिसमें कुछ मजदूर काम पर लगे हुए थे। चरस सिंह ने अपने घर के सामने एक घेरी हुई जगह में बैठाया जिसमें उनका एक दफ्तर था और पार्किंग की भी जगह थी। देखने में लगा कि यह जगह शायद कभी चौपाल रही होगी। बातचीत की शुरुआत में चरस सिंह ने 7 जून की घटना से पल्ला झाड़ते हुए कहा कि वो जगह तो दूर है, 50 मीटर दूर, इसलिए उनका क्या लेना-देना। फिर बात आगे बढ़ी तो वे खुले। उनका साथ देने के लिए चौधरी भरत सिंह भी आ गए।
करीब घंटे भर की बातचीत से दो-तीन बातें समझ में आईं जिन्हें यहां बताया जाना ज़रूरी है। पहली, गांव के राजपूतों की राय अकेले अकबर को लेकर ठीक नहीं है। इसका आधार अकबर की संपन्नता है। कई बार हमसे कहा गया कि उसके पास छह प्लॉट हैं। भरत सिंह पूछते हैं, ”अगर वो पेंटिंग का काम करता है तो उसके पास इतना पैसा कहां से आया? आइएसआइ से आता होगा। आतंकवादी है।” चरस सिंह कहते हैं कि मुसलमानों के परिवार गांव में बहुत कम हैं। जहां विवादित प्लॉट है, वहां केवल एक मुस्लिम परिवार रहता है। उनके मुताबिक मुसलमानों के साथ गांव के लोगों के संबंध बहुत अच्छे हैं। अभी कुछ दिन पहले ये लोग एक मुसलमान की शादी में कन्यादान कर के आए हैं। इन्हें किसी से दिक्कत नहीं। वे कुछ और मुसलमानों के नाम गिनाते हैं जिनसे उनके रिश्ते घरेलू हैं। नाम से लगता है कि ये सभी मुसलमान परिवार पश्चिमी यूपी के ही रहने वाले होंगे। अकबर बिहार का है। छपरा से आया है। चरस सिंह के मुताबिक उसे यहां आए तीन साल हो गए। तीन साल के भीतर पेंटिंग कर के इतना संपन्न हो जाना इन्हें खटकता है। भरत सिंह कहते हैं, ”हम लैंडलॉर्ड हैं। इसके बावजूद हमें रोटी चलाने के लिए इतनी मेहनत करनी पड़ती है। ये तो कुछ नहीं करता। घर में रहता है। फिर पैसा कहां से आता है?”
बातचीत से आभास होता है कि एक तो किसी के बाहर (पढ़ें बिहार) से आकर संपन्न हो जाने वाला संकट इन्हें सता रहा है। दूसरे, मुसलमानों को ये अच्छे और बुरे मुसलमान की श्रेणी में बांटकर देख रहे हैं। वे बातचीत में एकाध हिंदुओं का हवाला देते हैं जिन्हें 7 जून को पुलिस ने ऐसे ही पीट दिया था। कोई राहगीर था तो कोई तमाशबीन दुकानदार, वे सब पुलिस की चपेट में आ गए। भरत सिंह कहते हैं, ”अब जो लोग ऐसे ही मार खा गए, उन्हें दुख तो होगा, गुस्सा तो आएगा कि देखो एक आदमी के चलते ये सब हो गया।” चरस कहते हैं, ”बाकी सब ठीक है, बस यही एक आदमी है जिसने गडबड़ कर रखी है।” दोनों का इशारा अकबर की ओर है।
सांसद मनोज तिवारी के किए काम के बारे में पूछने पर भरत सिंह भड़क जाते हैं। वे कहते हैं, ”उसे नाचने-गाने से फुरसत मिले तब तो यहां आएगा…।” पहली बार मनोज तिवारी यहां सांसद के रूप में जब गांव को गोद लेने की घोषणा करने पहुंचे, उस समय ग्रामीणों को मजबूत उम्मीद बंधी थी। इस गांव के विकास के लिए 2015 में तिवारी ने 24 लाख रुपये की रकम स्वीकृत करवायी थी। अब तक 90 प्रतिशत विकास कार्य सिर्फ कागजों तक सीमित है। चौहानपट्टी सभापुर गांव में जो 10 प्रतिशत काम शुरू भी किए गए हैं, वे किसी न किसी बाधा के चलते बीच में ही रोक दिए गए हैं। जागरण लिखता है कि गांव में सबसे पहले सांसद की ओर से प्रमुख मार्गो एवं गांव के प्रवेश द्वार पर काम शुरू किया गया, मगर इसी बीच पता चला कि सीवर लाइन से पहले सड़क बनना और बिजली की लाइन को हटाए बिना प्रवेश द्वार बनाया जाना संभव नहीं है। ऐसे में सांसद को पहले सीवर लाइन डालने के लिए अधिकारियों से बात एवं बिजली की लाइन को अंडरग्राउंड कराने का प्रस्ताव पास कराना पड़ा। सांसद के स्तर पर सांसद निधि के सौजन्य से कराए गए कार्यो में सिर्फ सभापुर गुजरान वाले हिस्से में प्रमुख मार्ग का निर्माण कार्य हुआ है।
बहरहाल, भरत सिंह 7 जून की घटना के संदर्भ में एक दिलचस्प बात बताते हैं। वे कहते है कि जिस दिन घटना हुई, वे बाहर थे और शाम को लौट कर आए तब उन्हें पता चला। इसके बावजूद उनका नाम पुलिस ने चरस सिंह के साथ कलंदरे में दर्ज कर लिया था। वे इस बात से नाराज़ दिखे कि बिना वजह के उन्हें ज़मानत लेने जाना पड़ा और वक्त बरबाद हुआ। वे बार-बार अकबर को इस सब का जिम्मेदार मानते हुए उसके खिलाफ कार्रवाई की बात कह रहे थे। बीच में उन्होंने किसी सबीना खान का नाम लिया जिसने उनके मुताबिक घटना से जुड़ा कोई वीडियो बनाकर यूट्यूब पर डाल दिया था जिससे गांव की बदनामी हुई। उसके लिए अपशब्द का इस्तेमाल करते हुए वे बोले, ”इस बार आए तो मार कर पत्रकार बना दूंगा।” घंटे भर की बातचीत के दौरान हर दूसरे वाक्य में गालियों का प्रयोग स्वाभाविक रूप से हो रहा था। भरत सिंह अकबर से कभी नहीं मिले हैं जबकि चरस सिंह की दो बार की मुलाकात है। ऐसा इनका दावा था।
हम वहां से निकलकर दोबारा अकबर के घर गए। इस बार अकबर का बड़ा बेटा रेहान बालकनी में आया। उसने जवाब दिया कि उसके अब्बू मस्जिद गए हैं। अकबर का फोन नंबर मांगने पर उसने कहा कि उसके पास नंबर नहीं है और इसकी कोई तकनीकी वजह उसने गिनवाई। रेहान इंटर में पढ़ता है और ये लोग बिहार के छपरा के रहने वाले हैं। मुलाकात नहीं हो सकी।
चौहान पट्टी से निकलते वक्त दो चीज़ों पर निगाह गई। एक हिंदुस्तान निर्माण दल का पोस्टर था जो विवादित स्थल से कुछ दूरी पर चिपका हुआ था और इस पर किसी प्रदीप सिंह की तस्वीर बनी थी। यह पोस्टर एमसीडी चुनाव के दौरान लगाया गया रहा होगा क्योंकि इस संगठन ने भी अपना प्रत्याशी चुनाव में खड़ा किया था। दूसरी एक होर्डिंग थी हिंदू हेल्पलाइन के नाम से, जिसमें 28 मार्च 2017 को चैत्र दुर्गा पूजा के अवसर पर आयोजित कलश यात्रा में आने का लोगों से आह्वान किया गया था। यह विशेष रूप से जिज्ञासा पैदा करने वाली बात थी क्योंकि चरस सिंह के मुताबिक गांव में मुसलमानों के मुट्ठी भर ही परिवार हैं और यह राजपूत बहुल गांव है। फिर हिंदुओं को आखिर खतरा किससे है कि उनके लिए हेल्पलाइन चलाई जा रही है?
चूंकि अकबर से हमारी मुलाकात नहीं हो सकी, इसलिए उनका पक्ष अधूरा रह जाता है। फिर भी एक दौरे में मामला जितना समझ में आया है, उससे कुछ सवाल खड़े होते हैं। सवालों के घेरे में मीडिया भी है और आम आदमी पार्टी के विधायक भी। सवालों के घेरे में पुलिस भी है और दिल्ली की सरकार भी। सवालों के घेरे में सबसे ज्यादा खुद यह मौजूद घटना है जिसमें एक प्लॉट पर कुछ दिन पढ़ी गई नमाज़ के आधार पर उसे ख़बरों में ‘मस्जिद’ रिपोर्ट किया गया है। कुछ सवाल हम नीचे दे रहे हैं जिनके जवाब हमारे पास भी नहीं हैं:
- विवादित ज़मीन को किस आधार पर मीडिया ने ‘मस्जिद’ लिखा?
- विवादित ज़मीन लखपत के परिवार की है, तो उस परिवार पर मुकदमा कायम क्यों नहीं हुआ?
- ज़मीन अगर लखपत सिंह की है तो चरस सिंह व भरत सिंह पर मुकदमा कायम क्यों हुआ?
- इस विवाद से चरस-भरत सिंह का क्या लेना-देना है?
- इस विवाद पर मौलाना मदनी द्वारा गृहमंत्री राजनाथ सिंह को लिखे पत्र से सवाल पैदा होता है कि क्या अकबर की कोई राजनीतिक संबद्धता है? चूंकि उसका पक्ष लिया जाना अभी बाकी है।
- आम आदमी पार्टी की सरकार और स्थानीय विधायक कपिल मिश्रा ने क्षेत्र में हिंदू संगठनों को खुलकर प्रचार करने पर कोई सवाल क्यों नहीं उठाया?
- बीजेपी सांसद मनोज तिवारी का गोद लिया आदर्श ग्राम होने के नाते सवाल बीजेपी से है कि उसने यहां विकास कराने के नाम पर हिंदूवादी संगठनों को पनपने की छूट क्यों दी?
अब तक 7 जून की घटना को सोनिया विहार के नाम से रिपोर्ट किया जा रहा है। फिलहाल दो चीज़ों को दुरुस्त किए जाने की ज़रूरत है। पहला, यह घटना बीजेपी सांसद मनोज तिवारी के गोद लिए गांव चौहानपट्टी में हुई है, इसलिए सोनिया विहार को बदनाम नहीं किया जाना चाहिए। दूसरे, मनोज तिवारी के गांव को गोद लेने के दो साल के भीतर वहां श्यामाप्रसाद मुखर्जी द्वारा की स्थापना और हिंदूवादी संगठनों का बढ़ता प्रभाव 7 जून की घटना की जड़ में है जि पर चर्चा की जानी चाहिए। तीसरे, एक प्लॉट को ‘मस्जिद’ बताकर प्रचार करने और इस बहाने गांव के अल्पसंख्यकों के मन में भय कायम करने की राजनीति चूंकि बीजेपी की राजनीति को ही फायदा पहुंचाती है, लिहाजा बीजेपी सांसदों द्वारा गोद लिए अन्य गांवों की भी सामाजिक-राजनीतिक समीक्षा तात्कालिक रूप से बेहद ज़रूरी है।
(महताब आलम के साथ)