ABP न्‍यूज़ ने पंद्रह मिनट की आक्रामक फेक न्‍यूज़ से कैसे हजारों साल का इतिहास झूठा ठहरा दिया!

एबीपी न्यूज चैनल ने फेक न्यूज को एक नया विस्तार दिया है। अब लगता है चैनलों पर खबरें इस तरह दिखायी जाएंगी कि किसी झूठी खबर को कुछ तथाकथित विशेषज्ञों के हवाले से जोर-शोर के साथ प्रसारित करो और अंत में कह दो कि इस खबर का कोई प्रमाण नहीं है और यह चैनल इसके लिए जिम्मेदार नहीं है। 16 अगस्त को एबीपी न्यूज ने अपने “घंटी बजाओ” प्रोग्राम में तकरीबन 14 मिनट का एक सेगमेंट प्रस्तुत किया जिसका शीर्षक था “देश को दर्द देने वाली ऐतिहासिक भूलों की घंटी बजाओ”। इस पूरे कार्यक्रम का मकसद नेहरू की विदेश नीति को गलत ठहराना था और इसके लिए कुछ विशेषज्ञों का सहारा लिया गया था।

कार्यक्रम की शुरुआत काफी शोर-शराबे के साथ हुई और टीवी स्क्रीन पर एक के बाद एक सुर्खियां इस प्रकार आती रहीं: नेहरू की गलती डोकलाम का जंजाल? नेहरू ने चीन को डोकलाम गिफ्ट में दिया? नेहरू ने चीन से दोस्ती के चक्कर में देश हित से समझौता किया?, नेहरू की गलती डोकलाम के जंजाल के लिए जिम्मेदार है? तिब्बत की तरह डोकलाम में चूके नेहरू?, डोकलाम पर नेहरू कटघरे में क्यों?

 

इसके बाद प्रोग्राम पेश करने वाले एंकर अनुराग मुस्कान प्रकट होते हैं और बोलते हैं- ‘‘हिन्दी चीनी भाई-भाई देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर नेहरू ने यह नारा दिया था। सोशलिस्ट नेहरू को कम्युनिस्ट चीन बहुत पसंद था। इसीलिए जब वे प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने चीन को गले लगाने के लिए दोनों बाहें फैला दीं। कहा जाता है कि देश के पहले गृहमंत्री सरदार पटेल ने चीन से सतर्क रहने की नेहरू को सलाह दी थी। लेकिन नेहरू माने नहीं और दोस्त के भेष में छिपे दुशमन को पहचान नहीं पाए। इसका नतीजा 1962 की जंग के रूप में सामने आया। चीन को लेकर नेहरू एक बार फिर कटघरे में हैं। इस बार मामला डोकलाम का है। उनपर इसे लेकर आरोप लग रहे हैं जिसके बाद सवाल उठ रहा है कि क्या डोकलाम विवाद भी जवाहर लाल नेहरू की ही देन है?”

इसके बाद स्क्रीन पर एक नक्शा आता है जिस पर मोटे अक्षरों में लिखा है ‘नेहरू की गलती डोकलाम का जंजाल।‘ दृश्य बदलता है और फिर नेहरू की तस्वीर के साथ लिखा दिखायी देता है- “देश को दर्द देने वाली ऐतिहासिक भूलों की घंटी बजाओ।”

विमान से उतरते नेहरू दिखायी देते हैं और पीछे से ऐंकर की आवाज आती है-क्या नेहरू ने चीन को डोकलाम गिफ्ट में दिया है?

 

फिर नेहरू-चाउ एन लाई की तस्वीर और आवाज–क्या नेहरू ने चीन से दोस्ती के चक्कर में देशहित से समझौता किया?

इसके बाद वॉयस ओवर— ‘देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू फिर सवालों के घेरे में हैं। तिब्बत के बाद अब डोकलाम को लेकर भी उन पर उंगलियां उठ रही हैं। कहा जा रहा है कि पंडित नेहरू की गलतियों का खामियाजा भारत आज डोकलाम में भुगत रहा है। नेहरू पर उठने वाले सवालों की दो वजहें हैं। पहली वजह है एक टॉप सिक्रेट केबुल जिसमें दावा किया गया है कि नेहरू ने 1950 में चुंबी वैली को भारत में नहीं मिलाया। वहीं नेहरू पर सवाल उठने की दूसरी वजह है चीन के विदेश मंत्रालय का दावा जिसमें यह कहा गया है कि नेहरू ने चुंबी वैली को चीन का हिस्सा माना। फिर बताया जाता है कि कैसे सिक्किम में तैनात एक भारतीय अफसर हरीश्वर दयाल ने 1950 में नेहरू सरकार को लिखा था कि चुबी वैली पर आक्रमण कर उसे भारत में मिला लिया जाय। यही देशहित में होगा।”

इसके बाद चैनल की संवाददाता श्रेया बहुगुणा स्क्रीन पर उस क्षेत्र के नक़्शे को दिखाते हुए समझाती हैं कि ‘अगर भारत चुंबी वैली को अपने साथ मिला लेता तो डोकलाम का विवाद ही खड़ा नहीं होता।’ अब एक बार फिर वायस ओवर–तो क्या चुंबी वैली को भारत में न मिलाने का नेहरू का फैसला देश को भारी पड़ गया… सच जानने के लिए हमने रक्षा मामलों के जानकार पी.के.सहगल से बात की। आपको बता दें कि पी.के.सहगल ने सिक्किम में आठ सालों तक काम किया है इसीलिए हमने उनसे बात करने का फैसला किया।”

(इसके बाद स्क्रीन पर पी.के.सहगल नजर आते हैं)

पी.के.सहगलः ‘‘अगर हिन्दुस्तान के पास होती चंबी वैली तो हम उसको चीनी खंजर नहीं कहते। उसको फिजिकली चीन ने आक्यूपाई किया हुआ है। एक जमाना था जब चुंबी वैली हमारे पास होती थी। हमने अपनी बेवकूफी से 1957 या 58 में खुद वो वैली चीन को दे दी। थैंक्स टू दि देन प्राइम मिनिस्टर नेहरू हू हैड नो स्ट्रेट्रेजिक विजन ऐट ऑल। सारी की सारी वैली हमारे पास थी और उसे लेने में चायना डिस इंट्रेस्टेड था… लेकिन हमने खुद चीन को वह गिफ्ट कर दिया–हिन्दी चीनी भाई-भाई। ऐंड दिस वाज इन 58। 1962 में वही भाई-भाई उल्टा पड़ गया। उस समय उसका महत्व शायद समझ नहीं आया…।’’

इस तथाकथित रक्षा विशेषज्ञ ने एक ऐसी बात कही थी कि एक बार फिर श्रेया बहुगुणा को स्क्रीन पर आकर कहना पड़़ा कि ‘पी.के.सहगल साहब चाहे जो भी दावा कर लें पर उनके पास ऐसा कोई भी सबूत नहीं है जिससे यह कहा जा सके कि नेहरू ने चुंबी वैली को चीन को गिफ्ट में दिया था। हम यहाँ पर यह भी साफ कर दें कि एबीपी न्यूज इस तरह का कोई दावा नहीं कर रहा है। हालांकि नेहरू पर हमेशा चीन को गलत आंकने का आरोप भी लगता रहा है।’

कायदे से देखा जाए तो प्रोग्राम यहीं खत्म हो जाना चाहिए था लेकिन दुबारा वॉयस ओवर में कहा गया कि नेहरू की दूसरी गलती यह है कि ब्रिटिश भारत और उस समय के चीन के साथ 1890 में जो समझौता हुआ था उसको नेहरू ने स्वीकार किया। उहोंने इस आशय की एक चिट्ठी चाउ एन लाइ को लिखी। इस समझौते के बहाने चैनल के दूसरे संवाददाता रविकांत बताते हैं कि ‘‘इस जानकारी से फिर जाहिर होता है कि चीन की विस्तारवादी नीति शुरू से रही है। 1950 में चुंबी वैली तिब्बत के साथ थी जिसे भारत चाहता तो अपने में मिला सकता था।’’

सवाल यह उठता है कि अगर 1950 में चुंबी वैली तिब्बत के साथ थी, जैसा कि माना जा रहा है तो भारत इसे अपने में कैसे मिला सकता था। क्या आक्रमण कर के? एंकर फिर कहता है कि नेहरू को अपनी छवि की चिंता थी–चीन को नाराज नहीं करना चाहते थे। शयद एंकर भूल गया यह कहना कि वह युद्ध नहीं चाहते थे। लेकिन अपनी बात को पुष्ट करने के लिए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की संसद की एक क्लीपिंग दिखायी जाती है- ‘‘पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी विदेश नीति के कारण बहुत सम्मान कमाया–यह सत्य है लेकिन इसके साथ मैं एक वाक्य जोड़ना चाहूंगी कि प्रधानमंत्री नेहरू ने व्यक्तिगत रूप पर सम्मान कमाया, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूरे भारत को सम्मान दिलाया।“

अब तक यह स्पष्ट हो गया था कि चुंबी वैली चीन के पास थी, लेकिन प्रोग्राम का संचालक फिर सवाल  करता है कि क्या नेहरू ने चुंबी वैली को लेकर चीन पर दरियादिली दिखायी? इस सवाल का जवाब पाने क लिए वह एक पूर्व विदेश सचिव अनिल त्रिगुनायत के पास जाता है और वह बताते हैं कि ‘‘अब तक मेरी निगाह में ऐसा कोई तथ्य नहीं आया है कि नेहरू कभी भी इस तरह की स्ट्रेट्रेजिक पोजीशन को चीन को देने के लिए तैयार हुए हों।“

कुल 17 मिनट के प्रोग्राम में 13वें मिनट पर एंकर बताता है कि ‘‘चुंबी वैली को चीन को देने की बात कहीं नहीं थी जिससे यह साबित होता है कि चुंबी वैली को लकर नेहरू पर किया जा रहा दावा ठीक नहीं है।’’

एबीपी न्यूज ने इस झूठ से अपना पल्ला झाड़ लिया लेकिन पूरे ताम-झाम के साथ एक परसेप्शन का निर्माण किया कि नेहरू ने चीन के साथ उदारता दिखाते हुए भारत के खिलाफ काम किया।

लेकिन इससे भी बड़ा सवाल तथाकथित रक्षा विशेषज्ञ पी.के.सहगल के वक्तव्य से पैदा होता है। उन्होंने किस आधार पर यह कहा कि चुंबी वैली भारत का हिस्सा था जिसे 1958 में नेहरू ने चीन को सौंप दिया? क्या सत्ता में इस समय जो लोग बैठे हैं उनकी दलाली के लिए यह वक्तव्य दिया गया था? क्या पी.के.सहगल अपने इस झूठ के लिए माफी मांगेंगे?

यह बात मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ कह रहा हूं क्योंकि इन पंक्तियों को लिखने से पहले सिक्किम, भूटान, और डोकलाम से संबंधित एक हजार से ज्यादा नए पुराने दस्तावेजों की छानबीन करने पर भी मुझे कहीं यह प्रमाण नहीं मिला कि चुंबी वैली भारत का हिस्सा थी।


आनंदस्‍वरूप वर्मा: वरिष्‍ठ पत्रकार एवं अनुवादक, ‘समकालीन तीसरी दुनिया’ के संपादक-प्रकाशक, नेपाल व अफ्रीका समेत और तीसरी दुनिया के देशों के प्रामाणिक जानकार। मीडियाविजिल के सलहकार मंडल के वरिष्‍ठ सदस्‍य। 

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