लगभग दो महीने पहले हरियाणा में भाजपा ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की अगुवाई में 22 दिन की “जन आशीर्वाद यात्रा” में जिस समर्थन और उत्साह का प्रदर्शन किया था और उससे अभिभूत होकर ‘अबकी बार 75 पार’ की महत्वाकांक्षा के साथ प्रदेश में एक नया इतिहास रचने की जो उत्सुकता दिखायी थी, वो चुनाव की तारीख तक आते-आते जमीन पर धराशायी होता दिखने लगा है.
चुनाव की घोषणा से पहले भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने के लिए मनोहर लाल खट्टर और सभी मंत्रियों ने प्रदेश में हुए विकास के नाम पर मतदाताओं को एक बार फिर सरकार बनाने का संदेश देने की जी तोड़ कोशिश की थी. भाजपा ने प्रदेश में विपक्षी दलों को पूरी तरह से ख़ारिज करने की रणनीति के तहत हरियाणा में एकतरफा जीत को मील का पत्थर तक घोषित कर दिया था.
चुनावों की घोषणा से पहले बीजेपी ने विपक्षी पार्टियों की गुटबाजी और आपसी फूट को भुनाने के प्रयोग के तहत कई नेताओं व पूर्व विधायकों को पार्टी में शामिल करके हरियाणा की राजनीति में नए समीकरण गढ़ने की कोशिश को अंजाम दिया.
पिछले पांच वर्षों में प्रदेश में किये गए विकास कार्यों की उपलब्धि को आधार बना कर भाजपा फिर से सरकार बनाने के सपने को लेकर चुनाव मैदान में उतरी है, जबकि कांग्रेस प्रदेश में कुमारी शैलजा व भूपेन्द्र हुड्डा के नये नेतृत्व के साथ भाजपा को कठघरे में खड़ा कर रही है.
इनेलो के घरेलू विवाद में ओम प्रकाश चौटाला से अलग होकर देवी लाल की विरासत को आधार बना दुष्यंत चौटाला जननायक जनता पार्टी को नये विकल्प के तौर पर स्थापित करने में जुटे हैं.
प्रदेश स्तर पर जो स्थानीय मुद्दे हैं उनका कोई ठोस हल न होने के कारण मातदाताओं- जो ज्यादातर खेती-किसानी से जुड़े हैं- का वर्तमान सरकार के मंत्रियों और विधायकों के प्रति असंतोष और विरोध कई विधानसभा क्षेत्रों में अब खुल कर सामने आ रहा है!
हरियाणा के शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा का उनके अपने विधानसभा क्षेत्र के कई गांवों में विरोध हो रहा है. सतनाली में
एक चुनावी सभा में ग्रामीणों ने रामबिलास के खिलाफ नारे लगा कर उन्हें वहां से वापिस जाने को मजबूर कर दिया. उनके बेटे गौतम शर्मा के अहंकार भरे व्यवहार से भी मतदाता खासे नाराज हैं. रामबिलास शर्मा इस चुनाव में संकट में हैं.
कृषि मंत्री ओम प्रकाश धनखड़ बादली विधानसभा में मतदाताओं के रडार पर हैं. स्थानीय मुद्दे, सिंचाई के पानी की समस्या, कार्यकर्ताओं की उपेक्षा के कारण अधिकतर मतदाताओं में आक्रोश है.
सरकार के वितमंत्री कैप्टन अभिमन्यु को 5 महीने पहले हुये लोक सभा चुनाव में ही अपने गांव में जबर्दस्त विरोध का सामना करना पड़ा था! लोगों के काम न करवाने के आरोप अक्सर हलके के लोग लगाते रहे हैं. विभिन्न स्थानीय मांगों, युवाओं के रोजगार की उपेक्षा से गंभीर विरोध की आवाज पूरे क्षेत्र में जोर पकड़ रही है. ग्रामीण मतदाता का गुस्सा फूट कर व्यापक प्रदर्शन में बदल रहा है.
नारनौल की अनाज मंडी में 14 तारीख को सरकार की नीतियों के खिलाफ भारी विरोध प्रदर्शन हुआ ज़िससे प्रशासन के हाथ पांव फूल गए हैं. इस अप्रत्याशित विरोध ने अभिमन्यु के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है.
प्रदेश में सत्ता पर दुबारा काबिज होने के लिए जोरदार प्रयास कर रही बीजेपी के कई अन्य उम्मीदवार भी चुनावी चक्रव्यूह में फंसते नज़र आ रहे हैं.
भाजपा ने बेहतर समीकरण के हिसाब से प्रत्याशियों को उतारा था लेकिन टिकट बंटवारे के बाद व कांग्रेस में कुमारी शैलजा, भूपेन्द्र हुड्डा के कमान संभालने के बाद और जजपा के बढ़ते ग्राफ ने प्रदेश के सियासी हालात बदल दिये हैं.
अब देखना यह है कि अमित शाह की चुनावी चाणक्य नीति और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी धारा 370 के सहारे कितने विधायकों की नैया पार लगाने में सफल हो पाते हैं.