ब्रजेश राजपूत
मतदान केद्रों में लोग शांति से आ जा रहे थे। अगले जिस शख्स से मेरी बात हुयी वो खुशी पटेल थे। ये जिगर के भाई निकले लेकिन बिलकुल उलट कहने लगे क्यों बदलाव हो अच्छा चल रहा है मेरे आईसक्रीम के कारोबार मे मंदी आयी है घाटा है मगर देश आगे जा रहा है। बीजेपी को फिर आना चाहिये। दोनों लोगों से मेरी बात सुनने के बाद एबीपी न्यूज के गुजराती चैनल अस्मिता के मेरे सहयोगी राहुल पटेल ने हंसकर कहा सर ये है गुजराज चुनाव में हार्दिक पटेल इफेक्ट। हार्दिक के आंदोलन ने इस बार पटेलों के परिवारों को बांट दिया है। मेरे घर में पिता बीजेपी तो मेरी मां कांगे्रस को वोट करेंगीं बहन भी हार्दिक की बातें दोहराती है वो भी कांगे्रस के साथ जायेगी। आप जब पटेलों के गांवों में जायेंगे तो एक आदमी भी मुश्किल से मिलेगा
ये दक्षिण गुजरात की नान्दोद रियासत का शहर था जो अब राजपीपला हैं। शहर के पुराने इलाके में उंचा लंबा सा लाल रंग का घंटाघर बना हुआ है जिसे लाल टावर कहते हैं पुरानी बस्ती है इसलिये ज्यादा घनी है और मुसलिम बहुल भी है। यही मिल गये पुलिस से रिटायर्ड हाजी इकबाल हुसैन कहने लगे हम लोकशाही मे रह रहे हैं किसी एक आदमी को जरूरत से ज्यादा पावर नहीं आना चाहिये और कोई ये पार्टी भी ना ये सोचे कि बस वो ही वो है लोग अब चाहने लगे हैं कि राजकाज में पलटी आये। मगर ये सरकार तो पिछले बीस साल से राज्य का लगातार विकास कर रही है ये प्रचार है आप चलिये हमारे मोहल्ले और गलियों में देखिये कितना विकास हुआ और फिर विकास करना तो सरकार का काम है। आप तो बाहर से आये हैं हमारे राज मे भ्रष्टाचार बहुत है दिखता कम है मोदी थे तो अलग बात थी अब ये छोटे छोटे नेता सरकार नहीं चला पा रहे।
शहर की चुनावी आबोहवा जानने के बाद अब हमारा अगला पडाव पटेल बहुल गाँव की ओर था। राजपीपला से दस किलोमीटर दूर केलों के बगीचे पार करते हुये जब हसरपुर पहुंचे तो पोलिंग बूथ के थोडी ही दूरी पर ढेर सारे युवा कुर्सियां डालकर बैठे थे और अपने परिजनों के वोटों का हिसाब किताब रख रहे थे। बात शुरू करते ही फट पडे ये सब। किस विकास की बात करती है ये सरकार बीस सालों मे राजपीपला में एक नया सरकारी स्कूल ओर कालेज नहीं खुला हमारे बच्चे महंगी फीस देकर प्राइवेट कालेज और स्कूलों में पढ रहे हैं। आरक्षण की मार के चलते सरकारी कालेज और नौकरियां हमें नहीं मिलतीं। अब तो हमें भी आरक्षण चाहिये हम गाँव के लोग अब तक बीजेपी को जमकर वोट देते थे इस बार नहीं।
गांव से फिर शहर मे आते ही मिल गये बीजेपी के वरिष्ठ नेता जो पूर्व मंत्री रहे हैं, छूटते ही बोले मोदी सीएम होते तो 160 सीटें पक्की थीं मगर अब परेशानी में तो है बीजेपी, पर सरकार हम बना लेंगे कैसे भी करके। ये कैसे भी करके क्या होता है इस पर वो मुस्कुरा कर ही रह गये।
गुजरात विधानसभा चुनाव कवरेज का ये लगातार दूसरा मौका था पिछली बार 2012 में हमें बीजेपी के खिलाफ लोग ऐसा खुलकर बोलते नहीं दिखते थे मगर इस बार लोग बोल रहे और यदि वोट भी बीजेपी के खिलाफ ऐसे ही खुलकर कर दिए तो समझिये..कुल मिलाकर डगर कठिन है इस दफा बीजेपी की।
ब्रजेश राजपूत एबीपी न्यूज़ से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार हैं। भोपाल में तैनात हैं।