गिरीश मालवीय
जीएसटी के लागू किये जाने से पहले सूरत में रोजाना 4 करोड़ मीटर सिंथेटिक कपड़े का उत्पादन हो रहा था, जो अब घटकर 2.5 करोड़ मीटर प्रतिदिन रह गया है। रोजगार में भारी कमी आई है। जीएसटी से पहले उद्योग में 17 से 18 लाख कामगार थे। यह संख्या अब घटकर महज 4 से 4.5 लाख रह गई हैं
जीएसटी लागू होने के बाद किसी ने कपड़े का नया कारोबार शुरू नहीं किया है, जबकि जीएसटी लागू होने से पूर्व सूरत में प्रतिमाह 200 नए व्यापारी दुकान शुरू करते थे. खबर के मुताबिक स्थिति यह है कि शहर के एसटीएम, मिलेनियम, आरकेटीएम, अभिषेक, गुडलक, कोहिनूर जैसे कई मार्केटों में 15 से 20 फीसदी किराया कम करने के बाद भी दुकान लेने वाला कोई नहीं है जबकि पहले इन मार्केटों में किराए पर दुकान लेने के लिए वेटिंग लिस्ट रहती थी.
जीएसटी लागू होने के बाद पिछले एक साल में इस शहर के बहुत से पावरलूम मालिकों ने अपना काम-धंधा बंद कर दिया है सूरत में लगभग 6 लाख 50 हजार पावरलूम हुआ करते थे जिनमें से जीएसटी लागू होने के बाद 1 लाख कबाड़ के रूप में बिक चुकी हैं, बहुत से कपड़ा और हीरा कारोबारियों ने दूसरे कारोबारों का रुख कर लिया है
फेडरेशन ऑफ सूरत टेक्सटाइल ट्रेडर्स एसोसिएशन के महासचिव चंपालाल बोथरा ने कहा कि उनका कारोबार 40 फीसदी तक घट गया है
सूरत भारत में बने सभी मानव निर्मित कपड़े का 40% उत्पादन करती है. अब यदि सूरत में असंगठित क्षेत्र की यह हालत हुई है तो आप अंदाजा लगा लीजिए कि भारत के उद्योग धंधों में लगे असंगठित क्षेत्र की क्या हालत हुई होगी शहरी ओर ग्रामीण क्षेत्र में छोटे मोटे व्यापार करने वालो ने बड़ी संख्या में अपने यहाँ काम करने वालो की छटनी कर दी है, सीए और एकाउंटेंट का खर्च तीन से चार गुना अधिक बढ़ गया है एक साल में जितने दिन नही होते उससे अधिक 375 बदलाव जीएसटी में किये गए है
मलेशिया का जीएसटी जो भारत के लिए आदर्श माना गया था जो हर तरह से भारत से बेहतर तरीके से लागू किया गया तीन सालों में ही वहाँ से वापस ले लिया गया
कुल मिलाकर जीएसटी छोटे व्यापार धंधों को बरबाद कर बड़े कारपोरेट के लिए रास्ता साफ कर देने वाला सबसे कारगर ओजार साबित हुआ है, ओर इसी बात का डर था
लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं।
तस्वीर सोशल मीडिया से ।