किसानों को केवल सात रुपये का फायदा देकर सरकार क्रांतिकारी कदम गिना रही है

मनदीप पुनिया 

बुधवार को नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रीमंडलीय समिति (सीसीआई) की बैठक हुई. जिसमें अक्टूबर से सीजन 2018-19 के लिए गन्ने का उचित एवं लाभकारी मूल्य (FRP- Fair and Remunerative Price) में 20 रुपये की बढ़ोत्तरी की गई. इस हिसाब से किसानों को गन्ने की नई फसल के लिए 275 रुपये प्रति क्विंटल कीमत मिलने वाली है. सुनने में ऐसा लगा कि सरकार ने कोई बड़ा क्रांतिकारी कदम उठाया है. मगर सरकार ने गन्ने की रिकवरी दर को 9.5 फीसदी से बढ़ाकर 10 फीसदी करके अपने क्रांतिकारी गुब्बारे की खुद ही हवा निकाल दी है.

अब आप सोच रहे होंगे की सरकार ने किसानों को फायदा पहुंचाया है लेकिन इसमें एक झोल है. क्या है, वो समझिए-

पहले एफआरपी और रिकवरी के बारे में समझते हैं

एफआरपी किसानों को उनकी फसल के एवज में  मिलने वाला न्यूनतम मूल्य होता है, जिस पर गन्ना किसानों का कानूनन गारंटीशुदा अधिकार होता है. चीनी मिलें सरकार द्वारा तय एफआरपी से कम पैसों में किसानों से गन्ने की खरीद नहीं कर सकती. एक होती है गन्रे की रिकवरी. रिकवरी मतलब गन्ने से कितनी चीनी निकलेगी.

सरकार के इन फैसलों को असल सच क्या है?

सरकार अगर किसानों की एक जेब में 20 रुपये ज्यादा डाल रही है तो बड़ी चालाकी से दूसरी जेब से 13 रुपये निकाल ले रही है. बेशक गन्ने के उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) में केंद्र सरकार ने 20 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी कर दी हो. मगर उसमें से किसान के हाथ सिर्फ 7 रुपये आने वाले हैं. इसकी वजह है सरकार का गन्ने में रिकवरी दर के परसेंट को बढ़ाना. रिकवरी दर को 9.5 फीसदी से बढ़ाकर 10 फीसदी कर दिया है.

पिछले सीजन 2017-18 में 9.5 फीसदी रिकवरी दर से गन्ने का एफआरपी 255 रुपये प्रति क्विंटल था. इसका मतलब 100 किलो गन्ने से साढ़े नौ किलो चीनी निकलती थी तो 255 रुपये मिलते थे. लेकिन अगर आधा किलो बढ़कर रिकवरी 100 किलो गन्रे पर अगर 10 किलो चीनी हो जाती थी तो उस आधा किलो ज्यादा रिकवरी के एवज में किसान को 13 रुपये ज्यादा मिलते थे. इस हिसाब से पहले 10 फीसदी की रिकवरी के चलते किसानों को 267 से 268 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से पैसे मिल जाते थे. लेकिन आने वाले सीजन में 10 फीसदी की रिकवरी पर किसान को 275 रुपये प्रति क्विंटल ही मिलने वाले हैं. इस हिसाब से बढ़ोतरी सिर्फ 7 रुपये की हुई है.

इस बढ़ोतरी को ऐतिहासिक बताकर ढ़ोल पीटने वालों पर वरिष्ठ कृषि पत्रकार हरवीर सिंह ने एक ट्वीट में तंज कसा है,

गन्ने के फेयर एंड रिम्यूनेरेटिव प्राइस (एफआरपी) में फेयर कम और अनफेयर ज्यादा है. दाम तय करने की प्रक्रिया को बदलकर बढ़ोतरी के करीब आधे के बराबर डंडी मार दी गई. यानी जो दिखता है वह पूरा नहीं, अर्द्धसत्य है. लेकिन किसान भी अब सब समझता है यह बात राजनेताओं को समझ आ जाना चाहिए.

अभी तो बकाया ही नहीं मिला

इस सीजन में गन्ना चीनी मिलों तक पहुंचाने के बाद भी किसानों की जेबें खाली पड़ी है. इसकी वजह है उनको फसल की पेमेंट ना मिलना. इस सीजन में किसानों को चीनी मिलों से अभी भी बकाया 19,000 करोड़ से ज्यादा रुप

बढ़ोतरी ऊंट के मुंह में जीरा है

वी एम सिंह

सरकार द्वारा तय की गई फसलों की नई कीमतों को लेकर किसान खुश नहीं हैं. लगभग सभी किसान संगठनों ने इस बढ़ोतरी को महज छलावा बताया है. पत्रकारों से अपनी बातचीत में राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक वी एम सिंह का कहना है कि सरकार ने 20 रुपये बढ़ाकर 13 रुपये तो वापिस ही ले लिए हैं. प्रधानमंत्री को किसानों को सच बताना चाहिए कि उन्होंने एफआरपी में 7 रुपये ही बढ़ाए हैं. खेती की लागत की चीजें डीजल, खाद, बीज और कीटनाशकों की कीमतें लगातार बढ़ी हैं. उनकी तुलना में गन्ने के दामों में ये बढ़ोतरी ऊंट के मुंह में जीरा है.

मोदी जी को इस फैसले को ऐतिहासिक बताने से पहले कैलकुलेटर से हिसाब लगाना चाहिए. शायद कैलकुलेटर उन्हें बता दे कि बढ़ोतरी सिर्फ 7 रुपये की हुई है 20 रुपये की नहीं.

 

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