गोरखपुर हत्याकांड: मौत आ रही थी, पत्रकार चेता रहा था और सरकार सो रही थी !

पिछले दिनों ऐसी कई ख़बरें सामने आईं जिनसे पता चला कि किसी नामी अस्पताल ने शासन प्रशासन के सहयोग से अपने यहाँ मर चुके किसी मरीज़ का धड़कता दिल सैकड़ों किलोमीटर दूर किसी अस्पताल में भर्ती मरीज़ के लिए हवाईजहाज़ के ज़रिए भेजा जहाँ उसे सफलतापूर्वक प्रत्यारोपित कर दिया गया।

ऐसी ख़बरें, अपने साथ एक ईवेंट रचती हैं। महानगरों में व्यस्ततम ट्रैफिक वाली सड़कों पर अचानक करुणा का सागर बहने लगता है। टी.वी. पर लाइव के ज़रिए पल-पल की ख़बर बताई जाती है और एक मरीज़ का जीवन मनुष्यता की कसौटी बन जाती है। चिकित्सा विज्ञान अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के सहारे चमत्कार रच देता है।

लेकिन ग़रीबों की ऐसी क़िस्मत कहाँ। वरना ऐसा कैसे हो सकता है कि किसी अस्पताल को कम से कम 12 घंटे पहले जानकारी हो जाए कि लिक्विड ऑक्सीजन ख़त्म होने वाली है, सैकड़ों लोगों की जान ख़तरे में है जिनमें बहुसंख्या बच्चों की है और वह सोता रहे। हवाई जहाज, खाली सड़कें, तेज़ स्पीड टैंकर कुछ भी काम ना आए। डॉक्टर से लेकर शासन प्रशासन तक बस मौत की ख़बरों का इंतज़ार करते रहें ! वह भी तब जब सूबे का मुख्यमंत्री उसी शहर का हो जहाँ कुछ घंटों बाद मौत का यह तांडव होने वाला हो !

गोरखपुर में बिलकुल यही हुआ। आक्सीजन की कमी होने वाली है, सबको पता था लेकिन ना योगी आदित्यनाथ के गोरखधाम मंदिर की धड़कन बढ़ीं और ना मुख्यमंत्री आदित्यनाथ का लखनऊ आवास और दफ़तर ही काँपा।

गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार मनोज सिंह ने 10 अगस्त को ही छाप दिया था कि ऑक्सीजन सप्लाई ख़त्म होने वाली है। बहुत समय था शासन-प्रशासन के पास  अगर वे युद्धस्तर पर इस समस्या का समाधान चाहते तो..

नीचे पढ़िए, गोरखपुर न्यूज़ लाइन की यह ख़बर जिसका शीर्षक ही बता रहा है कि आने वाली रात कैसा अँधेरा घिरने वाला है–

बकाया 63 लाख न मिलने पर कम्पनी ने बीआरडी मेडिकल कालेज में आक्सीजन की सप्लाई रोकी

 मेडिकल कालेज में आज रात तक का ही है लिक्विड आक्सीजन का स्टाक

गोरखपुर, 10 अगस्त। बीआरडी मेडिकल कालेज में आक्सीजन सप्लाई का संकट खड़ा हो गया है। लिक्विड आक्सीजन की सप्पलाई करने वाली कम्पनी ने बकाया 63 लाख रूपए न मिलने पर आक्सीजन की सप्लाई रोक दी है। बीआरडी मेडिकल कालेज में लिक्विड आक्सीजन का स्टाक आज रात तक का ही है। यदि आक्सीजन सप्लाई ठप हुई तो सैकड़ों मरीजों की जान पर खतरा आ जाएगा।
बीआरडी मेडिकल कालेज के सेन्टल आक्सीजन पाइन लाइन आपरेटरों ने आज ही मेडिकल कालेज के प्राचार्य, प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक, एनएचएम के नोडल अधिकारी को पत्र लिखकर इस बावत जानकारी दे दी है।
इस पत्र में कहा गया है कि लिक्विड आक्सीजन सप्लाई करने वाली कम्पनी पुष्पा सेल्स कम्पनी से आक्सीजन सप्लाई के बारे में कहा गया तो उन्होंने पिछला भुगतान किए जाने का हवाला देते हुए आक्सीजन की सप्लाई करने से मना कर दिया है। इस पत्र में कहा गया है कि आज सुबह 11 बजे तक लिक्विड आक्सीजन की रीडिंग 900 है जिससे आज रात तक ही आक्सीजन सप्लाई हो पाएगा।
पुष्पा सेल्स कम्पनी ने मेडिकल कालेज में लिक्विड आक्सीजन का प्लांट स्थापित किया है जिससे मेडिकल कालेज से सम्बद्ध नेहरू चिकित्सालय में आक्सीजन सप्लाई की जाती है जिससे टामा सेंटर, वार्ड नम्बर 100, 12, 10, 14 व अन्य वार्डों में भर्ती मरीजों को आक्सीजन दी जाती है। इसमें तीन ऐसे वार्ड हैं जिसमें इंसेफेलाइटिस के मरीज भर्ती होते हैं.
पुष्पा सेल्स कम्पनी ने एक अगस्त को बीआरडी मेडिकल कालेज के प्राचार्य को पत्र लिखकर कहा था कि मेडिकल कालेज पर 63.65 लाख बकाया है जिसका भुगतान बार-बार पत्र लिखने के बाद भी नहीं हो रहा है। यदि भुगतान नहीं हुआ तो आक्सीजन सप्लाई में बाधा आ सकती है।
इस पत्र के बाद भी पुष्पा सेल्स कम्पनी को भुगतान नहीं हो पाया। इसलिए कम्पनी ने आक्सीजन की सप्लाई रोक दी है जिससे आक्सीजन का संकट खड़ा हो गया है।

मनोज सिंह कई बड़े अख़बारों मेें काम करने के बाद अब स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे हैं। गोरखुपर न्यूज़ लाइन नाम की वेबसाइट के ज़रिए वे उस पत्रकारिता का सपना पूरा करने में जुटे है ंजो कारोबारी मीडिया में मुमकिन नहीं रह गई है। गोरखपुर में प्रतिरोध का सिनेमा शीर्षक से पिछले 12 सालों से हो रहे फ़िल्म फ़ेस्टिवल के सूत्रधार भी वही हैं। साथ ही जनसंस्कृति मंच के राष्ट्रीय महासचिव पद के लिए हाल ही में उनका चुनाव हुआ है। साथ ही वे मीडिया विजिल के सलाहकार मंडल के भी सम्मानित सदस्य हैं।

कहने का मतलब यह कि उसी गोरखपुर में मनोज सिंह वैकल्पिक मीडिया को धार देने में जुटे हैं जहाँ से मुख्यमत्री योगी आदित्यनाथ का भी रिश्ता है। मनोज सिंह लगातार दिमाग़ी बुखार की समस्या पर लिखते रहे हैं। इस बार भी वे जुलाई से ही सरकार को चेता रहे थे। जबकि कारोबारी मीडिया मुँह ढंक कर सो रहा था। 7 जुलाई को उन्होंने लिख दिया था कि कैसे बीते छह महीने में 70 मौतें हो चुकी हैं। 

ज़ाहिर है, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इस मसले पर ज़्यादा गंभीरता की उम्मीद की जाती थी। वे इससे जुड़े हर पहलू से वाक़िफ़ हैं। चाहे बीमारी की भयावहता हो या फिर अस्पताल में सुविधाओं की स्थिति। एक सांसद की हैसियत से वे लगातार इसे देखते रहे हैं। दो दिन पहले भी वे मुख्यमंत्री बतौर मुँह पर पट्टी बाँधकर वहाँ मुआयना करने गए थे। हद तो यह है कि इस मुआयने के दस दिन पहले ही लिक्विड आक्सीजन सप्लाई करने वाली कंपनी बाक़ायदा लीगल नोटिस जारी कर चुकी थी। यही नहीं, कर्मचारियों ने भी पत्र लिखकर चेता दिया था कि आक्सीजन ख़त्म होने वाला है

बहरहाल, इस पूरे घटनाक्रम में वैकल्पिक मीडिया का महत्व ख़ासतौर पर रेखांकित हुआ है। सत्ता और संसाधनों से भरपूर कारोबारी मीडिया जब चोटीकटवा का आनंद ले रहा था तो मनोज सिंह गोरखपुर न्यूज़ लाइन के ज़रिए, भयावह हक़ीक़त सामने ला रहे थे। लेकिन शासन-प्रशासन ने उस पर कान नहीं दिया। वह सिर्फ़ मुख्यधारा की पत्रकारिता को तवज्जो देता है जिसमें मक्खन की शक्ल में कीचड़ बह रहा है।

आइए पढ़ते हैं मनोज सिंह की एक ख़बर जो बताती है कि लिक्विड ऑक्सीजन ख़त्म होने के बाद मेडिकल कॉलेज में क्या हो रहा था–

18 घंटे सिर्फ 52 आक्सीजन सिलेण्डर से ही काम चलाता रहा मेडिकल कालेज

10 अगस्त की रात 7.30 बजे लिक्विड आक्सीजन सप्लाई बंद हो गई थी
11 अगस्त की दोपहर 1.30 बजे फैजाबाद से आए 50 आक्सीजन सिलेण्डर

मनोज कुमार सिंह

गोरखपुर, 11 अगस्त। बीआरडी मेडिकल कालेज में कल रात 7.30 बजे जब लिक्विड आक्सीजन की आपूर्ति खत्म हुई, उस समय सिर्फ 52 जम्बो सिलेण्डर ही थे और इसी से 11 अगस्त की दोपहर 1.30 बजे तक काम चलाया गया। इसके बाद शाम सात बजे तक दो बार में सिर्फ 60 सिलेण्डर आक्सीजन की ही आपूर्ति हो पाई। यह वह समय था जब इंसेफेलाइटिस वार्ड, नियोनेटल वार्ड और वार्ड संख्या 14 में सर्वाधिक मौतें हुईं। अब मेडिकल कालेज प्रशासन आंकड़ों में फेरबदल कर भले ही मौतों को ‘ सामान्य ’ करार देने की कोशिश करे लेकिन तथ्य यही है कि आक्सीजन की कमी ही इतनी बड़ी संख्या में मौतों के लिए जिम्मेदार है। मेडिकल कालेज के आंकड़े भी गवाह हैं कि 24 घंटे क्या 48 घंटे में भी 36 बच्चों और 18 वयस्कों यानि 54 की मौत कभी नहीं हुई थी।


10 अगस्त को पूर्वान्ह 11.20 बजे सेंट्रल आक्सीजन पाइप लाइन आपरेटरों ने एमएलओ प्लांट ( लिक्विड मेडिकल आक्सीजन प्लांट) की रीडिंग ली। उस वक्त रीडिंग 900 थी यानि की 20 हजार लीटर वाले आक्सीजन प्लांट में सिर्फ 900 केजी लिक्विड आक्सीजन उपलब्ध थी। इसके बाद चारों आपरेटरों ने तत्काल बाल रोग विभागाध्यक्ष को पत्र लिखा जिसकी काॅपी प्राचार्य, , बीआरडी मेडिकल कालेज से सम्बद्ध नेहरू अस्पताल के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक, एनेस्थीसिया विभाग के अध्यक्ष और नोडल अधिकारी एनआरएचएम मेडिकल कालेज को भेजा।


इस पत्र में लिखा गया था-‘ हमारे द्वारा पूर्व में तीन अगस्त को लिक्विड आक्सीजन के स्टाक की समाप्ति के बारे में जानकारी दी गई थी। आज 11.20 बजे की रीडिंग 900 है जो आज रात तक सप्लाई हो पाना संभव है। नेहरू चिकित्सालय में पुष्पा सेल्स कम्पनी द्वारा स्थापित लिक्विड आक्सीजन की सप्लाई पूरे नेहरू चिकित्सालय में दी जाती है। जैसे कि-ट्रामा सेंटर, वार्ड संख्या 100, वार्ड संख्या 12, वार्ड  6, वार्ड 10, वार्ड 12, वार्ड 14 व एनेस्थीसिया व लेबर रूम तक इससे सप्लाई दी जाती है। ’

लिक्विड मेडिकल आक्सीजन प्लांट

पत्र में लिखा गया कि ‘ पुष्पा सेल्स कम्पनी के अधिकारी से बार-बार बात करने पर पिछला भुगतान न किए जाने का हवाला देते हुए लिक्विड आक्सीजन की सप्लाई देने से इंकार कर दिया है। तत्काल आक्सीजन की व्यवस्था न होने पर सभी वार्डों में भर्ती मरीजों की जान का खतरा है । ’
इसके पहले एक अगस्त को पुष्पा सेल्स प्राइवेट लिमिटेड के दीपांकर शर्मा ने कालेज के प्रिंसपल को पत्र लिखकर 63 लाख रूपए का भुगतान न होने पर आक्सीजन सप्लाई मजबूरी में रोकने की बात कही थी। श्री शर्मा का कहना था कि वे आईएनओएक्स कम्पनी से लिक्विड आक्सीजन की सप्लाई लेते है और उस कम्पनी ने बकाया होने के कारण आक्सीजन देने से मना कर दिया है।
पुष्पा सेल्स कम्पनी ने वर्ष 2014 में लिक्विड मेडिकल आक्सीजन प्लांट की स्थापना की थी जिसके जरिए पहले 100 नम्बर के इंसेफेलाइटिस वार्ड में आक्सीजन की सप्लाई की जाती थी।

इंसेफेलाइटिस वार्ड

आक्सीजन प्लांट की क्षमता 20 हजार लीटर की है। कम्पनी द्वारा हर महीने चार टैंकर आक्सीजन की सप्लाई की जाती है। एक टैंकर में 6 हजार केजी लिक्विड गैस होती है जिसकी कमीत लगभग तीन लाख की होती है। इस हिसाब से देखें तो एक से डेढ़ करोड़ की कीमत के लिक्विड आक्सीजन की खपत मेडिकल कालेज के नेहरू अस्पताल को है।
पुष्पा सेल्स प्राइवेट लिमिटेड और बीआरडी मेडिकल कालेज में हुए एग्रीमेंट के अनुसार प्रत्येक चार बिलिंग के बाद मेडिकल कालेज को भुगतान करना है। अधिकतम दस लाख रूपए की ही आउट स्टैडिंग हो सकती है लेकिन नवम्बर 2016 से ही कम्पनी को भुगतान अनियमित हो गया। मार्च माह में दो बार में 30 लाख का भुगतान हुआ था लेकिन उसके बाद कोई भुगतान नहीं हुआ जिसके कारण सप्लाई रूकने तक कम्पनी की आउटस्टैडिंग 72 लाख पहुंच गई।
पत्र पर पत्र लिखने के बावजूद जब मेडिकल कालेज ने भुगतान नहीं किया तो उसने लीगल नोटिस भेज दी। नोटिस का मेडिकल कालेज ने कोई जवाब नहीं दिया। उल्टे प्राचार्य ने कम्पनी के एक अधिकारी को खूब हड़काया। बात बिगड़ने लगी जिसका परिणाम यह हुआ कि आक्सीजन की सप्लाई ठप हो गई।

आक्सीजन की सप्लाई ठप होने के बावजूद मेडिकल कालेज प्रशासन, जिला प्रशासन चैन की नींद सोता रहा। हैरानी की बात है कि नौ अगस्त को मेडिकल कालेज में खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आए। वह करीब ढाई घंटे तक मेडिकल कालेज में रहे। उन्होंने आला अफसरों के साथ बैठक की। इस बैठक में इंसेफेलाइटिस व अन्य कारणों से बच्चों की मौत पर चर्चा हुई लेकिन आक्सीजन सप्लाई के मुद्दे को नजरअंदाज कर दिया गया। इस बैठक में प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा भी मौजूद थी।
इधर बड़े-बडे़ अफसर दौरा कर रहे थे और इंसेफेलाइटिस से जंग के बारे में ज्ञान दे रहे थे, उधर आक्सीजन प्लांट का रीडिंग तेजी से शून्य की तरफ बढ़ता जा रहा था।
गोरखपुर न्यूज लाइन ने यह सब बातें 10 अगस्त की शाम को खबर के बतौर प्रकाशित की।

डीएम राजीव रौतेला ने आक्सीजन की कमी से मौत होने से इंकार किया है

आखिरकार 10 अगस्त की रात 7.30 बजे लिक्विड आक्सीजन का प्रेशर लो हो गया। यह संकेत था कि अब आक्सीजन के दूसरे वैकल्पिक इंतजाम किए जाएं।
खुद मेडिकल कालेज व स्वास्थ्य विभाग ने उच्चधिकारियों को जो रिपोर्ट दी है, जिसकी एक कापी गोरखपुर न्यूज लाइन के पास है, जिसमें कहा गया है कि जब लिक्विड आक्सीजन का प्रेशर लोग हो गया तो स्टाक में मौजूद 52 सिलेण्डर को जोड़ा गया। अगले दिन दोपहर 1.30 बजे आक्सीजन सिलेण्डर की दूसरी खेप मेडिकल कालेज पहुंची जो फैजाबाद से आई। इसके बाद गोरखपुर से 22 और 28 और सिलेण्डर आक्सीजन आई जिससे शाम तक काम चलाया गया। शाम सात बजे तक 100 और सिलेण्डरों की आपूर्ति की राह देखी जा रही थी।


10 अगस्त की रात लिक्विड आक्सीजन की आपूर्ति रूकने और सिलेण्डर से आक्सीजन की आपूर्ति के दौरान ही सर्वाधिक मौतें हुईं।
एनआईसीयू, इंसेफेलाइटिस और पीडिया वार्ड में 10 अगस्त की सुबह से 11 अगस्त की शाम तो जो 36 बच्चों की मौत हुई उसमें 30 मौतें इसी दौरान हुईं जब सिलेण्डर से आक्सीजन की आपूर्ति की जा रही थी।
आज दोपहर इस रिपोर्टर ने खुद इंसेफेलाइटिस वार्ड के बाहर वार्ड के प्रभारी चिकित्सक डा कफील खान को लगातार आक्सीजन सिलेण्डर के लिए फोन पर फोन करते देखा। यहां तक कि निजी नर्सिंग होम से भी सिलेण्डर मंगाए गए। पूरे वार्ड में अफरा-तफरी का माहौल था। आक्सीजन की कमी की सूचना वार्ड में फैल गई थी और तीमारदार बैचेन थे। इसी दौरान एक नवजात शिशु की मौत हुई जिसे जल्दी में बाहर भेजा गया।
रात पौने आठ बजे जब डीएम पत्रकारों से बात कर रहे थे तो कमरे के बाहर रामकोला की संगीता और उसकी बेटी विलाप कर रहे थे। संगीता की बेटी का सात दिन का शिशु चल बसा था। इस बच्चे का अभी कोई नाम भी नहीं रखा जा सका था। वह 10 अगस्त की दोपहर मेडिकल कालेज आया था। मौतों की संख्या छुपाने के लिए बच्चे का शव भी संगीता को नहीं सौंपा गया था। वह वार्ड में ही था। नियोनेटल वार्ड के एक कर्मचारी मे धीमे स्वर में बताया कि तीन और नवजात मर चुके हैं लेकिन मीडिया की भीड़ के कारण उनके शव परिजनों को नहीं दिए जा रहे हैं।

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