प्रज्ञा ठाकुर: पहले बढ़ावा फिर संसदीय दल से बाहर करने का दिखावा कर रही है बीजेपी!

लोकसभा चुनाव के दौरान प्रज्ञा ठाकुर ने कहा था कि नाथूरामगोडसे देशभक्त थे.. देशभक्त हैं.. और देशभक्त रहेंगे.. उनका यह बयान महात्मा गांधी के हत्यारे का समर्थन और महिमामंडन करने वाला था. इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वह प्रज्ञा ठाकुर को मन से कभी माफ नहीं कर पाएंगे. पर प्रज्ञा ठाकुर पर ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की गई,जिससे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का उन्हें ‘मन से माफ़ी न देने’ का मतलब किसी को समझ आ सके.

दरअसल, बीजेपी वोट बटोरने की होड़ में गाँधी और गोडसे दोनों की विपरीत विचारधाराओं पर ‘संतुलन’ बनाने की कोशिश कर रही है. वह एक ओर ब्रांड गाँधी का ‘चुनावी बिजनेस’ करना चाहती है और दूसरी ओर उनके हत्यारे गोडसे को आदर्श मानने वालों को संगठन और सरकार में आगे बढ़ा रही है ताकि उनका हिंदुत्व वाला एजेंडा चलता रहे.

BJP MP Pragya Thakur Calls Nathuram Godse "Patriot" In Lok Sabha

गोडसे बीजेपी के हिंदुत्व वाले आक्रामक विचारों को आगे बढ़ाते दिखाई देता है और गाँधी ‘मज़बूरी’ दिखते हैं. मज़बूरी इसलिए क्योंकि भारत में गाँधी आज भी अत्यधिक प्रासंगिक हैं.

उनकी अवहेलना या विरोध करने वाले को नुकसान ही पहुंचेगा. इसलिए बीजेपी और आरएसएस की कोशिश है कि गांधी की अवहेलना या आलोचना न करते हुए उनके हत्यारे नाथूरामगोडसे को देशभक्त के रूप में प्रचारित कर दिया जाए ताकि दोनों के समर्थक वर्गों को खुश रखा जा सके.

संतुलन की इसी नीति की वजह से प्रज्ञा ठाकुर पर कार्रवाई करने की जगह ‘साइलेंटली’ उन्हें आगे बढ़ाने की कोशिश की गई. जिस प्रज्ञा ठाकुर पर महात्मा गांधी के हत्यारे का महिमामंडन करने पर एक्शन होना चाहिए था, जो प्रज्ञा ठाकुर अहिंसा के पुजारी महात्मा गाँधी के हत्यारे को देशभक्त साबित करने की कोशिश में लगी हुई है उन्हें इनाम दिया गया.

बीजेपी उन्हें अपने संगठन में बढ़ावा देती तो चल भी जाता पर आतंकी गतिविधियों में लिप्त रहने के आरोप में जेल की सजा काट चुकी प्रज्ञा ठाकुर को अति महत्वपूर्ण रक्षा मंत्रालय की सलाहकार समिति का सदस्य बना दिया गया. नतीजा ये हुआ कि नरेन्द्र मोदी के ‘मन से माफ़ न करने’ की परवाह छोड़कर प्रज्ञा ठाकुर ने फिर से गोडसे को देशभक्त बता दिया.उसके बाद बवाल बढ़ा तो बीजेपी नें प्रज्ञा ठाकुर द्वारा नाथूरामगोडसे को देशभक्त कहने को निंदनीय बताया और उसे रक्षा मंत्रालय के सलाहकार समिति से बाहर किए जाने की बात भी कही. साथ ही बीजेपी ने यह भी बताया कि प्रज्ञा ठाकुर को इस सत्र में पार्टी की संसदीय दल की बैठक में हिस्सा लेने की अनुमति भी नहीं होगी. पर बीजेपी का यह कदम दिखावा नहीं है तो क्या है? क्या लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के हत्यारे को देशभक्त बताने वाली सांसद पर इतनी कार्रवाई काफी है?

 

सवाल ये भी है कि प्रज्ञा ठाकुर को संसद में यह सब बोलने लायक बनाया किसने? जिसे आतंकी आरोपों के लिए गिरफ्तारी का सामना तक करना पड़ा उसको संसद पहुंचाने की बीजेपी को क्या जरूरत आन पड़ी? जिसके मंसूबे हमेशा से खतरनाक रहे वह राष्ट्रहित में क्या योगदान दे सकती है?

क्या प्रज्ञा ठाकुर की मानसिकता और विचारधारा के बारे में भाजपा को पहले से पता नहीं था? अगर पता था तो फिर आतंकवाद की आरोपी को संसद पहुंचाने में भाजपा सहायक क्यों बनी? प्रज्ञा को संसद में पहुंचाने का आईडिया आखिर किस के मन में और क्यों आया? कोई पार्टी गांधी और गोडसे दोनों को एक साथ कैसे अपना सकती है?

महात्मा गांधी के पद चिन्हों पर चलने की बात करना और साथ ही गोडसे की पूजा करना दोनों एक साथ कैसे चल पायेगा? इन सवालों के जवाब हम सब को जरूरतलाशने चाहिए. भारत में तमाम राजनीतिक पार्टियां इससे पहले भी अपराध और भ्रष्टाचार के तमाम आरोपियों को टिकट देती रही हैं लेकिन ऐसा पहली बार हुआ जब आतंकवाद के गंभीर आरोप झेल रही महिला को किसी पार्टी ने टिकट दिया. जो बीजेपी राष्ट्रवाद पर केंद्रित राजनीति कर रही है उसने आतंकवाद की आरोपी को संसद में पहुंचाने के लिए मेहनत की. यह बीजेपी का दोहरापन नहीं तो क्या है?

महात्मा गाँधी के हत्यारे की प्रबल समर्थक प्रज्ञा ठाकुर को संसद पहुंचाने में सहायक बनने का जो अपराध बीजेपी ने किया है, उसके लिए उसे देश के सामने आकर सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए.
कोई गाँधी के विचारों का विरोधी हो सकता है, उनके विचारों की आलोचना कर सकता है.. इसमें गलत कुछ भी नहीं है पर गाँधी के हत्यारे को देशभक्त साबित करने की कोशिश करना. यह निन्दनीय है! ऐसा कभी नहीं हो सकता. चाहे कुछ भी कर लिया जाए पर गोडसे को इस देश में देशभक्त साबित नहीं किया जा सकता. प्रज्ञा और बीजेपी की तारीफों से गोडसे का व्यक्तित्व कभी बदल नहीं सकता वह हत्यारा था… हत्यारा है… और हत्यारा रहेगा!

वैसे भी वह दिन भारतीय संसद के इतिहास का सबसे काला दिन माना जाना चाहिए जिस दिन प्रज्ञा ठाकुर ने संसद में अपना कदम रखा.


(ये लेखक के निजी विचार हैं.) लेखक रालोसपा युवा के राष्ट्रीय सचिव हैं . 

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