लोकतंत्र के प्रहरियों पर भारत में बढ़ता पहरा

रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स की ओर से अप्रैल 2019 में जारी विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 180 देशों में से 140वें स्थान पर है. पेरिस स्थित रिपोर्टर्स सैन्स फ्रंटियर्स (आरएसएफ) या रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स एक गैर लाभकारी संगठन है जो दुनिया भर के पत्रकारों पर हमलों का दस्तावेजीकरण करने का काम करता है. सूचकांक में पाया गया है कि पत्रकारों के खिलाफ घृणा हिंसा में बदलने के साथ- साथ दुनियाभर के पत्रकारों के प्रति दुश्मनी की भावना भी बढ़ी है. सूची में नॉर्वे लगातार तीसरे साल पहले और फिनलैंड दूसरे स्थान पर है.

‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2019’ के अनुसार, भारत में भी पत्रकारों की स्थिति काफी खराब है. खासतौर पर लोकसभा चुनाव प्रचार के दौर को भारत में पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक समय चिह्नित किया गया है. प्रेस स्वतंत्रता की मौजूदा स्थिति में एक पत्रकारों के खिलाफ हिंसा भी है- जिसमें पुलिस की हिंसा, नक्सलियों के हमले, अपराधी समूहों या भ्रष्ट राजनीतिज्ञों का प्रतिशोध शामिल है. 2018 में अपने काम की वजह से भारत में कम से कम 6 पत्रकारों की जान गई जो बताता है कि भारतीय पत्रकार खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में गैर अंग्रेजी भाषी मीडिया के लिए काम करने वाले पत्रकार बहुत से खतरों का सामना कर रहे हैं और कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में तो रिपोर्टिंग करना और भी मुश्किल है.

रिपोर्ट बताती है कि भारत में 2019 के आम चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ भाजपा के समर्थकों द्वारा पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं. हिंदुत्व को नाराज करने वाले विषयों पर बोलने या लिखने वाले पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर घृणित अभियानों पर भी रिपोर्ट में चिंता जताते हुए बताया गया कि जब महिलाओं को निशाना बनाया जाता है तो यह अभियान ओर ज्यादा उग्र हो जाते हैं.

गौरतलब है कि 2018 में भारत में मीडिया में ‘मी टू’ अभियान के शुरू होने से महिला संवाददाताओं के संबंध में उत्पीड़न और यौन हमले के कई मामलों से पर्दा हटा था.

भारत में पत्रकारिता को “लोकतंत्र का चौथा स्तंभ” माना गया है. अकबर इलाहाबादी ने इसकी ताकत एवं महत्व को इन शब्दों में अभिव्यक्ति दी है कि न खींचो कमान, न तलवार निकालो, जब तोप हो मुकाबिल तब अखबार निकालो’. उन्होंने इन पंक्तियों के जरिए प्रेस को तोप और तलवार से भी शक्तिशाली बता कर इसके इस्तेमाल की बात कह ‘कलम को हथियार से भी ताकतवर’ बताया था. लेकिन रिपोर्ट को देखकर लगता है कि बुरी एवं स्वार्थी ताकतें आज तलवार और तोप का इस्तेमाल उल्टे खबरनवीसों की कलम को तोड़ने, उन्हें कमजोर करने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नेस्तनाबूद करने के लिए जी- जान से लगी हैं.


मोहम्मद ताहिर शब्बीर दिल्ली स्थित पत्रकार हैं

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