भाजपा का चुनावी घोषणापत्र चार साल में कैसे केवल जुमला बन कर रह गया!

हिमांशु शेखर झा 


नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी सरकार के चार साल पूरे होने को हैं और जनता को बताया जा रहा है कि इन चार साल में भारत ने वह सब कर दिखाया जो पिछ्ले 70 साल में नहीं हो पाया. सही है, कहा भी जाता है कि यदि किसी अतिथि को आते ही एक गिलास पानी पिला दो तो वह खुश हो जाता है. यही बात अतिथि पर भी लागू होती है कि कुछ नहीं तो बच्चों के लिए चॉकलेट ही ले जाए, परिवार वाले खुश हो जाते हैं. शायद मोदी भी चॉकलेट ही परोस रहे हैं. उनका बार-बार वही उबाऊ भाषण उन्हें अगले चुनाव में चुनौती देने वाला है.

भारतीय जनता पार्टी ने 2014 आम चुनाव से ठीक पहले चुनावी घोषणापत्र में कुछ महत्वपूर्ण वादे किये थे. जब सरकार के चार साल पूरे हो रहे हैं तो उन पर दोबारा विचार करना लाजिमी है. उनके घोषणापत्र के मुख़्य आकर्षण निम्न है: (1) लोकपाल की स्थापना, (2) आतंकवाद विरोधी तंत्र को पुनर्जीवित करने का काम, (3) मल्टीब्राण्ड रिटेल को छोड़कर सभी क्षेत्रों में परिसम्पत्ति निर्माण के लिये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देने, (4) सीमांध्रा और तेलांगना को पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने, (5) एक उच्च गति रेल नेटवर्क की डायमंड चतुर्भुज परियोजना शुरू करने, (6) मदरसा आधुनिकीकरण और (7) शौचालयों की सुविधाओं में सुधार. मोदी ने घोषणापत्र में उल्लिखित हर शब्द को पूरा करने की दिशा में पार्टी की प्रतिबद्धता का आश्वासन देते हुए कहा था कि भाजपा के लिए यह दस्तावेज केवल एक चुनावी अनुष्ठान नहीं है बल्कि “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” के पार्टी के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये किये गये अपने प्रयासों और ध्यान को सही दिशा देने का माध्यम है. वह घोषणापत्र के मुख्य आकर्षण में से एक-एक को पूर्ण करने के लिए संकल्पित हैं. मार्गदर्शक मंडल के सदस्य लालकृष्ण आडवाणी ने परोक्ष रूप से पूर्ववर्ती एनडीए सरकार को नाकाम बताते हुए कहा कि घोषणापत्र पूर्ण रूप से दोषमुक्त है, और यह सब पिछ्ली सदी में ही कर लेना चाहिए था, लेकिन उन्हें अब यह करना होगा.

उनका घोषणापत्र बिल्कुल सही और सामयिक था इसमें कोई दो राय नहीं किंतु उनकी मंशा वह सब करने की नहीं थी यह अब समझ में आ रहा है. प्र्ख्यात पत्रकार पी साइनाथ ने अपनी पुस्तक “एवरीबॉडी लव्ज़ अ गुड ड्राउट” में लिखते हैं कि भारत की सरकार काम करना नहीं चाहती और प्रायः यह देखने को मिलता है कि गरीबी और पृथक्करण उस समय समाचार में आते हैं जब कुछ विपदा आन पड़े और कुछेक लोगों को अपनी जान गँवानी पड़े. 1996 की यह कथा आज भी इस देश की राम कथा है.

लोकपाल बिल जिसके ऊपर राष्ट्रपति के अनुमोदन के पश्चात 1 जनवरी 2014 से यह पूर्ववर्ती सरकार द्वारा विधिक बना दिया गया उसके अनुपालन में भी इन्होंने कोताही बरती. उसके पीछे तकनीकी कारण बहुत ही बचकाना है. लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के अनुभाग 4(स) के अनुसार चयन समिति मे विपक्ष के नेता का होना जरूरी है और मोदी सरकार अभी तक इतनी दयालु भी नहीं हुई है कि वह किसी को विपक्ष का नेता चुने, अत: यह तकनीकी कारणों से ठन्डे बस्ते में बंद है. मोदी सरकार की काम नहीं करने की इच्छा के कारण उन्होंने किसी भी नेता को विपक्ष का नेता नहीं बनाया ताकि ढेर सारे कामों मसलन नियुक्तियों को तकनीकी कारणों बाधित किया जा सके. भाजपा की नीयत विपक्ष में रहते भी साफ थी, यह बात अलग है कि जनता समझ नहीं पायी, जब लोकपाल विधेयक स्थायी समिती के पास भेजा गया.

दूसरा, उनका आतंकवाद विरोधी तंत्र को पुनर्जीवित करने का काम अपने आप में इतना करुणामयी है कि किसी व्यंग्यकार की आँखें भर आएँ. कश्मीर घाटी में अलगाववादी पीडीपी से लेकर नगालैंड में NDPP और NPF, त्रिपुरा में IPFT के साथ मिल कर पार्टी ने अपनी सरकार बना ली है. इंद्र कुमार गुजराल के समय जुलाई 1997 में संघर्ष विराम पर नागों के साथ एक संधि की गई थी जो जून 2015 में मोदी के काल मे टूट गई और इसका खामियाजा हमारे 18  जवानों को अपनी जान देकर चुकाना पड़ा. फिर मोदी जवानों की शहादत को दरकिनार करते हुए अगस्त 2015 में पुन: सन्धि कर के खुश हो गये. वह न तो हिन्दु, न ही मुसलमानों में, ईसाई में या किसी  और धर्म में यह अलख जलाने में कामयाब रहे कि यह देश उनका है. उन सबों का है.

एफडीआई लॉटरी, जुआ, चिटफंड,  निधी कम्पनी, हस्तांतरणीय विकास के अधिकारों में व्यापार अर्थात ट्रेडिंग इन ट्रांसफरेबल डेवलपमेंट राईट्स, जमीन जायदाद के कारोबार या फार्म गृह के निर्माण (जमीन जायदाद के कारोबार में टॉउनशिप विकास, व्यापारिक या आवासीय घऱ, सडक या पुल निर्माण और रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट जो भारतीय प्रतिभूति नियामक बोर्ड (सेबी) के सेबी (आरईआईटीएस) विनियमन, 2014 से विनियमित हो उन्हें शामिल नहीं किया गया. सीधे शब्दों में कहें तो शायद जमीन खरीदने को छोड़ बाकी सब ठीक है. तम्बाकू या फिर तम्बाकू के विकल्प से सिगार के निर्माण, चुरूट, सिगारिलो और सिगरेट, तथा वह कार्यकलाप या क्षेत्र जहाँ निजी क्षेत्र की मनाही है जैसे एटोमिक इनर्जी तथा रेल को छोड़ बाकी सभी क्षेत्र जिसमें रिटेल भी सम्मिलित है- सबको एफडीआई के हवाले कर दिया. यह बात अलग है कि रेल में भी परोक्ष रुप से एफडीआई को स्वीकृत कर लिया गया है. सरकार की एफडीआई नीति के मुताबिक़ एक ब्राण्ड के रिटेल में शत प्रतिशत एफडीआई का आदेश है वहीं एक से अधिक ब्राण्ड के सामान में  51 प्रतिशत का प्रावधान है जो कि उनके अपने घोषणापत्र के विरूद्ध है.

अभी हाल ही में चंद्रबाबू नायडू ने खुद को NDA से यह कहते हुए अलग कर लिया कि प्रधानमंत्री किसी से मिलते नहीं हैं और उसके बदले में अमित शाह ने 10 पन्नों का पत्र लिखकर बताया कि नायडू झूठ बोल रहे हैं. आरोप–प्र्त्यारोप चला किंतु ढाक के तीन पात. माना जा रहा है कि दोनों में दरार मुख्यत: जिस बात को लेकर हुई वह पोलावरम प्रोजेक्ट के कांट्रेक्टर को लेकर हुई. केंद्र किसी और को कॉन्ट्रेक्ट देना चाह रही थी जिसे आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने ठुकरा दिया. फलत: कपू (एक जाति जिसे आंध्र प्र्देश सरकार अन्य पिछ्डी जाति मे जोड़ना चाह रही थी) को कोटा देने से मना कर दिया.

लालू प्रसाद यादव के रेल मंत्री रह्ते हुए 2006 में 28181 करोड़ रुपये की लागत से एक फ्रेट कॉरीडोर ट्रैक लगाने का काम चालू हुआ था जिसके तहत एक भारतीय समर्पित माल भाड़ा गलियारा निगम बना था. बाद में उसके नाम के साथ स्वर्णिम चतुर्भुज माल-भाड़ा गलियारा रखा गया जिसका दूरगामी परिणाम राजस्व की वृद्धि के रूप में देखा जा रहा है. फरवरी 2013 में तत्कालीन रेल मंत्री पवन बंसल की अगुवाई में 7 मार्ग को चिन्हित किया जा चुका था जिसके ऊपर उच्च गति के रेल का परिचालन हो सके. अभी हाल ही में रेल मंत्रालय ने चुम्बकीय उत्तोलन से चलने वाली ट्रेन जिसे मग्लेव ट्रेन भी कहा जाता है उसकी निविदा निकाली है जिसे पहले 15 किलोमीटर दूरी पर परीक्षण किया जायेगा. इस ट्रैन के ट्रैक की लागत होगी 150 करोड़ रुपये प्रति किलोमीटर. भारत को बुलेट ट्रेन जापान पहले ही बेच चुका है. इस चुम्बकीय उत्तोलन से चलने वाली ट्रेन के लिए मात्र दो कंपनियों ने रुचि दिख़ायी- पहली है अमेरिका की अमेरिकन मग्लेव टेक्नोलॉजी इंक और दूसरी है स्विजरलैंड की स्विसहेपिड एजी. इसके अलावा चार भारतीय कम्पनियाँ और एक सूरत अवस्थित और दूसरी तेलंगाना अवस्थित अनिगमित व्यवसायी ने रुचि दिखायी. भारतीय कम्पनियो के पास क्या यह तकनीक है यह भी एक विषय है. अभी तक सरकार एक उच्चगति रेल नेटवर्क की डायमंड चतुर्भुज परियोजना शुरू करने की दिशा में बस यही काम करती हुई दिख रही है. सवाल है कि पैसा कहाँ से आयेगा?

अपनी पुस्तक “वेअर इंडिया गोज” में डायने कोफे और डीन स्पीयर्स ने लिखा है कि भारत में सरकार द्वारा शौचालय तो बनवा दिए गए पर उनमें सुविधाओं का अभाव बहुत है जिसके कारण लोग शौचालय को स्टोर रूम और टैंक को बर्तन मांजने की जगह बना लेते हैं. लोकसभा में दी गयी सूचना के अनुसार यूपीए  सरकार ने 2008-09 से 2013-14 के मध्य कुल 54,251,711 शौचालयों का निर्माण कराया. अभी हाल ही में सूचना के अनुसार लगभग 60 फ़ीसदी शौचालयों में पानी नहीं है. सरकार ने लोगों को बताया कि वह 2014-15 में 5,855,666 शौचालयों का निर्माण करा चुकी है जबकि लोकसभा के अनुसार फरवरी तक यह संख्या मात्र 4,012,185 ही थी.

सरकार ने 2017 में डॉ. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में एक समिति बनायी जो देश की राष्ट्रीय शिक्षा निति को प्रारूप देगी. 2006 मे गठित यशपाल समिति की सिफारिश के मुताबिक शिक्षा संस्थाओं की बौद्धिक स्वायत्तता को संरक्षित करने तथा मौजूदा विनियामक निकायों के स्थान पर अथवा उनको समाहित करते हुए एक सर्वसमावेशी राष्ट्रीय उच्चतर एवम अनुसंधान आयोग (एनसीएचईआर) के गठन की अनुसंशा की है.  उस पर जो कुछ किया गया वह पूर्ववर्ती सरकार द्वारा ही किया गया. अभी तक इस सरकार द्वारा कोई अनोखी पहल नही की गई.

मोदी ने कहा, ”हमेशा से गरीब के जीवन की एक बड़ी चिंता रही है बीमारी का इलाज. बजट में प्रस्तुत की गई नई योजना ‘आयुष्मान भारत’ गरीबों को इस बड़ी चिंता से मुक्त करेगी”. सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि यह प्रस्ताव 10 करोड़ परिवारों को 500,000 रूपया सलाना तक बीमाकृत करेगा. 500,000 के बीमा के लिए तकरीबन 6000 रुपया सलाना बीमा शुल्क देना होता है. क्या सरकार 60000 करोड़ रुपये खर्च करेगी? सरकारी स्रोत के अनुसार सरकारी बीमा कम्पनी 1100 रुपये में प्रत्येक परिवार को बीमाकृत करेगी. यदि 1100 रुपये भी मान ले तो 11000 करोड़ रुपये का भार सरकारी खजाने पर पड़ेगा जबकि सरकार ने  इसके लिए मात्र 2100 करोड़ रुपये का प्रावधान दिया. आपको याद ही होगा कि इससे पहले 2016 में भी 100000 रूपये के स्वास्थ्य बीमा की बात कही गई थी  जो कभी वित्तपोषित नहीं की गई.


लेखक कोलकाता स्थित फ़ायनांशियल और बिज़नेस लॉ कंसलटेंट हैं 

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