सत्येंद्र पी. सिंह
जिन साथियों को समझ में न आया हो कि किस विवाद की वजह से उर्जित पटेल ने इस्तीफा दिया, उन्हें कुछ वजहें बता देता हूं, जो पिछले छह माह से चल रही हैं।
1- बाजार में नकदी नहीं है। सरकार चाहती थी कि रिजर्व बैंक बेसल नियमों में ढील करे, जिससे बैंकों में ज्यादा पैसे आएं और पटेल कह रहे थे कि भारत में अगर यूरोप अमेरिका की तरह कर दिया गया तो सब कुछ छितरा जाएगा।
2- गैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों के पास नकदी नहीं है। उनसे महंगे ब्याज पर पैसे लेकर बर्बाद रियल एस्टेट कम्पनियां बैंको का कर्ज चुका रही हैं। रिजर्व बैंक पर दबाव था कि NBFC को पैसे दिए जाएं। पटेल का कहना था कि NBFC की बर्बादी की वजह IL&FS है न कि रिजर्व बैंक।
3- बिजली कंपनियों के करीब 4 लाख करोड़ रुपये बकाए की वसूली के लिए रिजर्व बैंक ने अध्यादेश निकाला कि जो एक भी रोज चूक करता है उसे डिफॉल्ट में डालो और दिवाला कार्रवाई कर उससे पैसे वसूलो। सरकार ने कहा कि अध्यादेश वापस लेकर कम्पनियों को रिलीफ दी जाए। पटेल ने कहा कि बिजली कंपनियों के बर्बाद होने की वजह बैंक या रिजर्व बैंक नहीं, दूसरी वजहें हैं (उनके संयंत्र तैयार हैं लेकिन उन्हें कोयला नहीं मिल रहा है, उनकी बिजली खरीदने वाला कोई नहीं है, घरों तक बिजली पहुंचाने का इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं
बना)। अगर बकाया वसूली न हुई तो सरकारी बैंक बर्बाद हो जाएंगे लेकिन बिजली
संयंत्रों को लाभ न होगा।
यह मामला लेकर बिजली कम्पनियां कोर्ट गईं। कोर्ट ने कहा कि हम इस मामले में हस्तक्षेप न करेंगे। सरकार नियम 7 का इस्तेमाल कर रिजर्व बैंक को आदेश दे सकती है, हम पर दबाव न बनाए।
आज तक किसी भी सरकार ने इस आपात प्रावधान का इस्तेमाल नहीं किया था। इसके तहत सरकार किसी मसले पर रिजर्व बैंक से राय मांगती है और अगर रिजर्व बैंक की राय सरकार के पक्ष में नहीं है तो वह रिजर्व बैंक को निर्देश दे सकती है।
कोर्ट के फैसले व नियम 7 का दुरुपयोग करते हुए सरकार ने बिजली मसले सहित 6 विभिन्न मसलों पर राय मांग डाली (खबरों के मुताबिक)। यह पटेल पर दबाव की
सबसे बड़ी वजह थी।
4- सरकार का दबाव था कि लघु और कुटीर उद्योग बर्बाद हैं, उन्हें नकदी दी जाए जिससे
रोजगार सृजन हो (ये नोटबन्दी की वजह से बर्बाद हैं, तभी से उनकी कमर सीधी नहीं हो सकी है)। इसके लिए भी बैंकों के पास पैसे चाहिए थे।
5- सरकार के मुताबिक रिजर्व बैंक के पास बहुत नकदी है। वह बैंकों को दे। पटेल का
कहना था कि विकासशील देश के लिए यह जरूरी है जिससे आपात स्थिति में निपटा जा सके।
कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था की बैंड बजी हुई है और सरकार का दबाव है कि रिजर्व बैंक पैसे दे। कुछ माह पहले इसी के बारे में राहुल गांधी ने जनता को समझाने के लिए सरल शब्दों में कहा था कि सरकार रिजर्व बैंक से पैसे के लिए दबाव बना रही है जिसे वह अपने कॉरपोरेट मित्रों को दे सके।
लेखक बिज़नैस स्टैंडर्ड के पत्रकार हैं