झारखंड फर्जी विश्वविद्यालय घोटाले का सरगना कौन ?

कोलकाता, 22 सितंबर । पश्चिम बंगाल में लंबे समय से फर्जी डिग्री का कारोबार करने वालों के साथ मिलकर झारखण्ड के सरगना ने फर्जी विश्वविद्यालय ही खुलवा दिया। हालांकि इस “प्रज्ञान इंटरनेशनल विश्वविद्यालय” का जमीनी स्तर पर कोई अस्तित्व नहीं लेकिन झारखंड विधानसभा से इस फर्जी विश्वविद्यालय को एक्ट के तौर पर पारित कराकर कोलकाता सहित देश के विभिन्न शहरों में फर्जी डिग्री बेचने का काम धड़ल्ले से शुरू कर दिया गया। इसकी जानकारी मिलने पर पश्चिम बंगाल सीआईडी टीम ने इस विश्वविद्यालय के चांसलर सुरेश अग्रवाल को गिरफ्तार कर लिया।

इसके बाद पश्चिम बंगाल सीआईडी टीम जब जांच के लिए झारखंड पहुंची, तो इस विश्वविद्यालय का फर्जीवाड़ा सामने आया। इसके पीछे झारखंड के कतिपय ताकतवर राजनेताओं और अधिकारियों की भूमिका बताई जा रही है। हालांकि इसके सरगना का पता अब तक नहीं चल सका है।
फिलहाल झारखंड विधानसभा से फर्जी यूनिवर्सिटी एक्ट पारित कराने की जांच की मांग की जा रही है। हैरानी की बात है कि यूजीसी ने जिस संस्था को छह साल पहले ब्लैक लिस्टेड कर दिया था, उसे झारखंड लाकर फर्जी डिग्री कारोबार का लाइसेंस दे दिया गया। इन सवालों का जवाब अब तक नहीं मिल पाया है कि इस निजी विश्वविद्यालय को खोलने से पहले उसकी अधिसंरचना की जांच किस कमेटी ने कब की? इसे राज्य कैबिनेट ने मंजूरी कब दी? इस मामले में किन राजनेताओं और अधिकारियों ने राजभवन और विधानसभा को गुमराह किया? विधानसभा से एक्ट पारित कराने की पूरी प्रक्रिया अवैध होने के बावजूद राजभवन से यह सच क्यों छुपाया?
हैरानी की बात है कि झारखंड में ऐसा निजी विश्वविद्यालय खोलने के लिए कम से कम 25 एकड़ जमीन तथा उस पर 11 हजार वर्गमीटर भवन होना जरूरी है। लेकिन ऐसे कैम्पस के बिना ही झारखंड सरकार ने इसे यूनिवर्सिटी की मान्यता देकर राज्यपाल द्वारा कराई फर्जी आदमी को चांसलर के रूप में नियुक्ति दे दी गई।
मिली जानकारी के अनुसार मोमेंटम झारखंड तथा राज्य में निवेश के नाम पर राज्य सरकार द्वारा फर्जी “प्रज्ञान इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी” की स्थापना की गई। प्रज्ञान इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के नाम पर सरकार ने जान बूझ कर फर्जी  विश्विद्यालय को स्थापित होने दिया।  मोमेंटम झारखंड के पहले कोलकाता में  रघुवर दास ने निवेशकों को रिझाने के लिए होटल ओबेरॉय में रोड शो किया था, वहीं प्रज्ञान यूनिवर्सिटी के  लिए प्रस्ताव मुख्यमंत्री जी को मिला। 30/11/15 को सरकार के सचिव ने प्रज्ञान विश्विविद्यालय के स्थापना हेतु कुछ शर्तों के साथ आदेश दिया। मुख्य शर्तों में 10-25 एकड़ जमीन, 1000 वर्ग मीटर का प्रशासनिक बिल्डिंग , 10,000 वर्ग मीटर का अकैडमिक बिल्डिंग-लाइब्रेरी-लेबोरेटरी आदि, छात्रों के लिए अलग से होस्टल , स्टाफ के लिए क्वार्टर आदि का निर्माण, लाइब्रेरी के लिए 10 लाख प्रतिवर्ष और न्यूनतम तीन वर्षों में 50 लाख की किताबें-जर्नल आदि, कम्प्यूटर तथा अन्य लैबोरेटरी के लिए न्यूनतम 20 लाख का उपस्कर एवं उपकरण, प्रोफेसर-एसोसिएट प्रोफेसर-असिस्टेंट प्रोफेसर आदि की नियुक्ति सहित कई शर्त रखी गयी थी। परंतु बिना शर्तों के पालन के तथा  बिना इन्क्वारी के झारखंड असेंबली से विश्विद्यालय को एक्ट के रूप में पारित कर दिया गया।
साथ ही राज्य के राज्यपाल को अंधेरे में रखकर फर्जी सुरेश अग्रवाल को 28-6-2016 को राज्यपाल द्वारा चांसलर नियुक्ति का पत्र दिलवा दिया गया। ये वही सुरेश अग्रवाल है जिसे अभी फर्जी  एमबीबीएस और एम डी डिग्री बेचने के आरोप में कलकत्ता पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया है। प्रज्ञान विश्विद्यालय के वेबसाइट पर एक भी तस्वीर छात्र, शिक्षक, बिल्डिंग, लाइब्रेरी, लैब आदि का नहीं है। वेबसाइट पर कैंपस का अधूरा पता दिया गया है। वेबसाइट पर जो तस्वीर है उसमें सिर्फ मुख्यमंत्री रघुवर दास और मंत्री राज पलिवार को विश्विद्यालय का प्रॉस्पेक्टस जारी करते हुए दिखाया गया है  तथा शिक्षा मंत्री द्वारा 28-6-2017 को दिए गए शुभकामना संदेश का तस्वीर है  जिसमें शिक्षा मंत्री ने कहा कि झारखंड सरकार ने इस यूनिवर्सिटी की स्थापना की गयी है.
सत्र 2016-17 में 4-9-2016 को एक दैनिक अखबार के माध्यम से इस विश्विद्यालय के नामांकन के लिए विज्ञापन भी निकाला  गया पर जो दो संपर्क नंबर दिया गया, वो दोनो नम्बर वैध नहीं है। यूनिवर्सिटी का कैम्पस तो दूर, कार्यालय भी नहीं  है। ऐसे में सूबे के मुख्यमंत्री रघुवर दास और शिक्षा मंत्री इस फर्जी विश्वविद्यालय को मान्यता देने के आरोपी हैं। सवाल ये उठता है कि बिना जाँच के और बिना शर्तों को पूरा किये रघुवर दास ने इस विश्विद्यालय को मान्यता कैसे दिया और राज्यपाल से फर्जी आदमी को  चांसलर के रूप में कैसे  नियुक्ति कराई। और तो और बिना अहर्ता को पूरा किये कोर्स को शुरू करने का आदेश सरकार ने किस जांच कमिटि के रिपोर्ट के आधार पर  दिया।
जांच का विषय है कि नियमों को ताक पर रखकर, बिना जांच के इस विश्विद्यालय को मान्यता कैसे मिल गयी और साथ ही जिस समिति के जांच रिपोर्ट पर सरकार ने इस विश्विद्यालय को कॉर्स शुरू करने का आदेश दिया उस जांच रिपोर्ट को भी सार्वजनिक करने पर असलियत का पता चल सकेगा।
यूजीसी ने जिसे ब्लैक लिस्टेड कर दिया हो, उसे झारखंड लाकर फर्जी डिग्री कारोबार के संरक्षक नेताओं, अधिकारियों के नाम अब तक सामने नहीं आए हैं।
दिलचस्प बात यह भी है कि राज्य सरकार इस फर्जी विश्वविद्यालय को सारे पत्र कोलकाता के पता पर ही भेजती रही जबकि झारखंड में विश्वविद्यालय खुल चुका था। रांची में आम आदमी पार्टी नेता जयशंकर चौधरी, पवन पांडेय, कुणाल मिश्र तथा अवनीश कुमार ने संवाददाता सम्मेलन करके इस मामले की जांच की मांग की है।


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