बवाना हादसे की जांच रिपोर्ट का निष्कर्ष- मुनाफे की हवस में जल कर ख़ाक हो गए 17 मजदूर!

20 जनवरी 2018 को बवाना इंडस्ट्रियल क्षेत्र, सेक्टर पांच, नई दिल्ली में एक फैक्टरी में आग लगने से मजदूरों की जलकर हुई दर्दनाक मौत पर प्राथमिक जांच रिपोर्ट

20 जनवरी 2018 की शाम को बवाना के सेक्टर पांच जिसमें मुख्यतः प्लास्टिक की फैक्टरियां काम करती हैं, की एफ-83 नम्बर की एक फैक्टरी में आग लगी। इस फैक्टरी में पटाखें बनते थे। बारूद के धमाकों और तेजी से आग फैलने, एक ही निकासी होने की वजह से वहां काम कर रहे मजदूर भयावह मौत के शिकार हो गये। लगभग सारे ही अखबारों ने खबर लगाई कि आग लगने के समय फैक्टरी में कम से कम 30 मजदूर काम पर थे जिसमें से 17 मजदूर जलकर मर गये।

23 जनवरी 2018 को हम पांच सदस्यीय टीम ने इस मामले की तहकीकात करने के उद्देश्य से बवाना के उद्योगिक इलाका के सेक्टर पांच में गये। टीम सदस्य रोहित (छात्र, दिल्ली विश्वविद्यायल), जयगोबिन्द (संयोजकः मजदूर एकता मंच, दिल्ली), अभिनव (मजदूर वर्ग अध्ययन केंद्र, डीयू), अविनाश (छात्र, दिल्ली विश्वविद्यालय) और खालिद (संयोजकः दरख्त, सांस्कृतिक संगठन) थे। हमने आग लगी फैक्टरी और आसपास की फैक्टरियों को देखा। आसपास के मजदूरों और चाय की रेहड़ी लगाने वाले, ट्रांसपोर्ट में काम करने वाले और फैक्टरी में आग लगने से प्रभावित हुए कुछ लोगों से बातचीत किया। इस इलाके के मजदूरों से बात करते समय यह साफ था कि मजदूर डरे हुए हैं और बात करते हुए अपने नाम का उल्लेख करने से बच रहे थे। लेकिन लगभग सभी लोगों का कहना था कि फैक्टरी में आग लगने से मजदूरों की मौत की संख्या 17 से अधिक है। और, यह आग एक ऐसी जानीबूझी घटना है जो मुनाफा की हवस में इन मजदूरों को वहां झोंक दिया गया।

दिल्ली से लगभग 23 किमीे उत्तरी-पश्चिम इलाके में बसा बवाना क्षेत्र इस सदी के शुरू होने के पहले तक राजधानी का अंतिम ग्रामीण क्षेत्र माना जाता था। 1999 में इस इलाके को औद्योगिक विकास के अंतर्गत लाया गया और इसके लिए लगभग 778 हेक्टेयर जमीन को विभिन्न सेक्टर में विभाजित किया गया। इसके बाद से यहां औद्योगिक क्षेत्र के फैलाव में तेजी आई। आॅटोमोबाईल, इंजिनियरिंग, टूल्स, प्लास्टिक, टैक्सटाइल्स आदि के उद्योग पर जोर दिया गया। इस क्षेत्र में औद्योगिक विकास के ठीक पहले से यानी 1995 और उसके बाद के समय में दिल्ली में मजदूर बस्तियों को उजाड़ने का दौर चलाकर मजदूरों को बवाना में ‘बसाने’ का दौर शुरू हो चुका था। लेकिन जितने मजदूरों को उजाड़ा जा रहा था उसके चंद हिस्से को ही इस ‘बसावट’ में जगह मिली। शेष मजदूर स्थानीय निवासियों के जैसे तैसे बनाये घरों में रहने के लिए विवश हुए।

बहरहाल, इस औद्योगिक  विकास की गति तेजी से बढ़ी। कुल पांच सेक्टर बसाये गए और बवाना इंडस्ट्रियल एरिया में आज लगभग 6 लाख मजदूर काम करते और रहते हैं। ‘2016 में 18,000 औद्योगिक इकाइयां थी जो अब 51,697 इकाइयों तक पहुंच चुकी हैं। लेकिन दिल्ली राज्य उद्योगिक और अधिरचना विकास निगम लिमिटेड, एमसीडी और फायर विभाग के पास इसका सही आंकड़ा उपलब्ध नहीं है (हिन्दुस्तान टाइम्स पोर्टल न्यूज, 21जनवरी 2018). अवैध फैक्टरियों का चलन मानो औद्योगिक विकास का हिस्सा हो चुका है जिसमें राज्य के प्रशासनिक संस्थानों और यहां तक सत्ताशाली पार्टियों और स्थानीय दबंगों की भागीदारी मुख्य रहती है। ये लोग मजदूरों की रिहाइश ही नहीं बल्कि उनके काम, हालात और मजदूरी तक भी तय करते हैं जो सरकारी मानकों से कत्तई मेल नहीं खाते।

 

फैक्टरी के आसपास रह रहे लोगों ने बताया:

  1. शाम साढ़े चार बजे 46 चाय का आर्डर मिला था जिसे मैंने फैक्टरी में पहुंचा दिया था। फैक्टरी में बाहर से ताला बंद रहता है इसलिए चाय हमें एक जगह रख देनी होती थी। फिर शाम को पांच बजे इतनी ही चाय का आर्डर आया। लेकिन मुझे दुकान बंद करनी थी इसलिए मैंने चाय नहीं दी। एक अन्य चाय वाले ने यह आर्डर लिया। (आग लगी फैक्टरी में चाय बनाकर पहुंचाने वाले)। नोटः फैक्टरी में आग लगभग साढ़े सात लगी थी।
  2. आग बुझाने के लिए 15 के आसपास दमकल थे। आग विस्फोट के साथ लगी। इसमें बारूद था और आग एकदम से पकड़ लिया। आग बुझने के बाद मैंने लाश निकलते हुए देखा। हमने खुद 29 लाश को निकलते हुए देखा है। (फैक्टरी माल ढोने वाला एक ड्राइवर)।
  3. इस दौरान कुछ फैक्टरियों में होली के त्योहार से जुड़े हुए सामानों का उत्पादन होता है। यह फैक्टरी भी इसी तरह के माल बनाने के नाम पर आई। हम लोगों को नहीं पता था कि यहां पटाखे बन रहे हैं। इस सेक्टर में तो प्लास्टिक का ही उत्पादन होता था। बीच बीच में फैक्टरी के भीतर कुछ छोटे विस्फोट की आवाजें तो आती थीं लेकिन हम लोगों ने इतना ध्यान नहीं दिया। (पास की फैक्टरी में काम करने वाला मजदूर)।
  4. आमतौर पर शनिवार को फैक्टरी बंद रहती है लेकिन इस फैक्टरी का मालिक पूरे हफ्ते 12 घंटे के शिफ्ट पर काम कराता था और इसके बदले 5000 हजार रूपये देना तय था। मेरी रिश्तेदार भी काम पर गई थी और उसी में जलकर मर गई। फैक्टरी में आग लगने की सूचना हमें रात लगभग दस बजे मिली। हम भागकर फैक्टरी पहुंचे फिर अस्पताल पहुंचे। वहां हमने मदीना (मृत महिला मजदूर) की शिनाख्त की। परिवार में एकमात्र वही कमाती थी जिससे बच्चों का खर्च चलता था (अख्तर, साईकल बनाने की दुकान चलाने वाले और मदीना के रिश्तेदार और फिरोज, मदीना का बेटा; मेट्रो विहार कालोनी के निवासी)।
  5. मेरी बहन रीता वहां काम करती थी। वह फैक्टरी आग में जलकर खत्म हो गई। उसकी उम्र फैक्टरी में काम करने वाली थी। वह 18 वर्ष से कम की थी। घर की आर्थिक हालत खराब होने की वजह से वह भी काम करती थी। फैक्टरी में 13-14 साल के और भी बच्चे काम करते थे। (दीपू, रीता का भाई)।
  6. मुझे पता था कि वहां पटाखे बनते हैं। मैंने अपने बेटे को कई बार मना किया लेकिन फैक्टरी का मालिक उसे दारू की लत लगा दिया था और उससे काम कराता रहता था। पैसा भी अधिक नहीं देता था (मृतक मजदूर अविनाश के पिता)।
  7. पांच सदस्यीय एक परिवार फैक्टरी में काम करता था। वह पूरा परिवार उसमें जलकर मर गया है। यह फैक्टरी यहां पर 15 दिन पहले से ही काम करना शुरू किया था लेकिन इसके पहले वह दूसरे सेक्टर में काम किया। वहां पर भी आग लगने की वजह से उसे भगा दिया गया था। फिर यहां आया। यह हमेशा फैक्टरी में बाहर से ताला लगा देता था। कभी फैक्टरी के बाहर बोर्ड नहीं लगाया जाता कि यहां पर क्या बन रहा है, किस तरह की सावधानी रखनी है, आदि (मेट्रो विहार काॅलोनी के कई मजदूर)।

फैक्टरी में आग लगने और मजदूरों की मौत के बाद मीडिया में खबर तेजी से फैली। आमतौर पर रिपोर्ट प्रशासन के हवाले से दिया गया। फैक्टरी में आग लगने के बाद दिल्ली सरकार और एमसीडी के पार्टी नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला और एक दूसरे को दोषी ठहराने का क्रम जारी रहा। हालांकि दिल्ली में इस तरह आग लगने और मजदूरों के मरने की पहली घटना नहीं थी। लेकिन यह घटना बहुत तेजी से राजनीतिक परिदृश्य से गायब हो गयी। आइए, एक नजर इन औपचारिक रिपोर्ट पर डालते हैंः

  1. हिन्दुस्तान टाइम्स, न्यूज पोर्टल, 21 जनवरी 2018, श्वेता गोस्वामी की रिपोर्ट के अनुसार वहां कम से कम 30 लोग घटना के समय काम कर रहे थे। और फैक्टरी के भीतर सिर्फ दो आग बुझाने वाले बाॅक्स थे। रिपोर्टर के अनुसार, ‘कायदे से वहां प्रत्येक फ्लोर पर धुंआ डिटेक्टर, अलार्म और पानी छिड़कने वाला संयत्र होना चाहिए था। लेकिन इस बिल्डिंग में ऐसा कुछ भी नहीं था। (अतुल गर्ग, अतिरिक्त निदेशकः दिल्ली फायर सर्विस)’।
  2. उपरोक्त रिपोर्ट के अनुसार फैक्टरी बेसमेंट, ग्राउंड और प्रथम तल पर काम करती थी। ‘बेसमेंट में एक और ग्राउंड फ्लोर पर तीन लोग मिले। 13 लोग प्रथम तल में थे। मृतकों में से कुछ एक दूसरे को पकड़कर लेटे या बैठे हुए थे। (अतुल गर्ग, अतिरिक्त निदेशकः दिल्ली फायर सर्विस)।’
  3. ‘अब तक की जांच में उसने बताया है कि हरिद्वार, उत्तर प्रदेश और अन्य जगहों से विस्फोटक और विस्फोटक सामग्री, कच्चा माल यहां रखता था। उसे इस तरह का सामान रखने की लाइसेंस नहीं था। (पुलिस अफसर का कोर्ट में 23 जनवरी 2018 को बयान)।’
  4. ‘फैक्टरी मालिक मनोज जैन को पुलिस के अनुसार शनिवार की शाम को गिरफ्तार कर लिया गया। उस पर इंडियन पीनल कोड की धारा 285, 304, 337 के तहत बवाना पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया है। (इंडियन एक्सपे्रस, 21 जनवरी 2018)।‘
  5. 22 जनवरी 2018, इंडियन एक्सप्रेसः ‘यहां ज्यादातर फैक्टरीयां अवैध है इसके चलते हमें कोई सुरक्षा कार्ड उपलब्ध नहीं है। आमतौर पर हमारी तनख्वाह में से 150 रूपये काट लिया जाता है, …जो हमारे स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए है लेकिन चूंकि फैक्टरी कागज पर होता नहीं इसलिए हमें कोई लाभ भी नहीं मिलता। (जौनपुर से आया एक मजदूर)।’ ‘यह जमीन एक आदमी को डीएसआईआईडीसी से मिली। इसने एमसीडी से एक खास फैक्टरी के लिए लाईसेंस लिया। लेकिन यह होता नहीं है। अस्सी प्रतिशत फैक्टरीयों के मालिक इसे बंद कर देते हैं और फिर किसी किराये पर उठा देते हैं। यह नया आदमी नया लाईसेंस नहीं लेता। लेकिन वह वही पैदा करने में लग जाता है जिसका उत्पादन वह चाहता है। इसलिए यहां असली बंदा नहीं मिलेगा क्योंकि जो रिकार्ड बुक में है वह नहीं बल्कि कोई और फैक्टरी चला रहा है। (गोरखपुर से आया हुआ एक मजदूर।)’ नोटः फैक्टरी चलाने वाला मनोज जैन है लेकिन इस फैक्टरी को किराया पर उठाने वाला ललित गोयल है, वह भी अब सहअभियुक्त है। इस फैक्टरी आग में मरने वाले सबसे अधिक महिला और बच्चे हैं।
  6. ‘फैक्टरी आग से बच निकलने वाले दो लोगों में से एक 40 साल की सुनिता हैं। उन्हांेने बताया कि वह वहां दो दिन से काम कर रही थीं। ‘मुझे 6000 रूपये प्रति महीने …200 रूपये प्रतिदिन मिल रहा था। …मैं पटाखों में बारूद भरने का काम कर रही थी तब मुझे दिखा कि धुंआ उठ रहा है। किसी ने भाग निकलने के कहा और मैं सबसे ऊपरी तल पर चली गई। तब तक लोग चीखने चिल्लाने लगे थे। वे बोल रहे थे कि कूदने के अलावा कोई रास्ता नहीं है। इस तरह मैं कूद गई और बेहोश हो गई। जब मैं उठी तो मैं अस्पताल में थी और मेरा पैर टूटा हुआ था। (21 जनवरी 2018, इंडियन एक्सपे्रस)।’ इसी रिपोर्ट में और लोग इतने सौभाग्यशाली नहीं थे। अब भी लोग ‘गायब’ हैं और उनके बच्चे इस उम्मीद में हैं कि उन्हें हम खोज लेंगे। देखेंः 21 जनवरी 2018, इंडियन एक्सप्रेस, अभिषेक अंगद और आनंद मोहन की रिपोर्ट।
  7. घोषित मृतकों की संख्या 17 है जिसमें से 10 महिलाएं हैं।

हमारी टीम ने फैक्टरी के इलाके और मजदूर बस्ती के एक हिस्से में 23 जनवरी 2018 को छह घंटे तक जांच-पड़ताल की। निश्चित रूप से यह जांच-पड़ताल सीमित स्तर तक ही हो सकी। हम प्रभावित परिवारों और उस क्षेत्र लोगों से मिले जो निश्चय ही तकलीफ, डर और संशय से गुजर रहे थे। इस दौरान हम अखबारों में छप रही खबरों पर नजर रखे हुए थे। अन्य मजदूर इलाकों और आमतौर पर मजदूरों के काम के हालात की खबरें, लेखों से रूबरू होने पर यह साफ था कि यहां भी हालात अन्य जगहों जैसे ही बदतर हैं। हम अपनी ओर से फैक्टरी में आग, मृतकों की संख्या और अन्य मसलों पर अपनी राय रख रहे हैंः

  1. फैक्टरी में काम के हालात अत्यंत खराब हैं। फैक्टरीयों में आमतौर पर निकासी गेट और प्रवेश गेट एक ही है। फैक्टरी के बाहर सुरक्षा निर्देश, फैक्टरी के बारे में जानकारी के बोर्ड हमें कहीं नहीं दिखे। जिस फैक्टरी में आग लगी थी उस फैक्टरी में काम करते वक्त बाहर से ताला लगा दिया जाता था। यह भी फैक्टरी में मालिकों द्वारा बंधक बनाकर काम लेने का एक तरीका है। फैक्टरियों के भीतर रजिस्टर, मजदूरों का पंजीकरण नहीं के बराबर होता है। ठेका प्रथा ने इस स्थिति को और भी बदतर बना दिया है। प्रवासी मजदूर आमतौर पर अकेले ही काम करने आते हैं। उनकी रिहाइश की स्थिति भी बदतर स्थिति में होने और नियमित काम न होने से यह जान सकना भी मुश्किल रहता है कि मजदूर किस फैक्टरी में कब काम कर रहा है। इस हालात में फैक्टरी के भीतर आग लगने पर होने वाली मौतों की संख्या निर्धारित करना एक कठिन काम है। ज्यादातर अखबारों ने फैक्टरी के भीतर काम करने वालों की संख्या 30 निर्धारित किया है। आमतौर पर वहां के मजदूर लोग यह संख्या 40 या उससे ऊपर बता रहे हैं। हमारा मानना है कि बताई गई मृतकों की संख्या संदिग्ध है। इस संदर्भ में एक जांच कमेटी बननी चाहिए।
  2. दिल्ली सरकार ने मृतकों को पांच लाख और घायलों को एक लाख मुआवजा देने की घोषणा की है। इस रिपोर्ट को आप के सामने पेश करने तक अखबारों ने खबर दी है कि यह रकम चेक द्वारा प्रभावित लोगों को दी जा चुकी है। हमारा मानना है कि यह रकम एक परिवार को आर्थिक और सामाजिक रूप से खड़ा करने के लिए अत्यंत कम है। यह रकम कम से कम 20 लाख रूपये होनी चाहिए।
  3. दिल्ली सरकार के श्रम मंत्री और एमसीडी मेयर दोनों ही अवैध तरीके से चल रही फैक्टरी और उसमें लगी आग में मजदूरों की मौत के लिए जिम्मेदार हैं। उन्हें अपने पद पर बने रहने का कोई अधिकार है। हम उनसे उनकी इस्तीफ़े की मांग करते हैं। पुलिस और एमसीडी कर्मचारियों की फैक्टरी मालिक के साथ मिलीभगत साफ है। हम मांग करते हैं कि दोषी लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाय।
  4. फैक्टरियों में काम के जो हालात हैं उसमें मजदूरों की मृत्यु या दुर्घटनाग्रस्त होने संभावना कहीं ज्यादा है। भीतर न तो न्यूनतम सुविधाएं हैं और न ही न्यूनतम मजदूरी दी जाती है। ऐसे में मजदूरों और उसके परिवार की जीवन सुरक्षा की गारंटी दिल्ली और केंद्र की सरकार को लेनी चाहिए।
  5. जिसके नाम से फैक्टरी पंजीकृत थी उसने उसे बंद कर दिया था और इसे वह मनोज जैन नाम के व्यक्ति को फैक्टरी चलाने के लिए किराये पर उठा दिया था। यह वहां सारे नियमों का उल्लंघन कर विस्फोटक इकठ्ठा करने और पटाखा बनाने आदि का काम कर रहा था। ऐसे में एमसीडी मेयर और दिल्ली सरकार के मंत्री के बीच आरोप-प्रत्यारोप से इतना साफ है कि फैक्टरी चलाने वाले पैसे और पहुंच का इस्तेमाल कर मजदूरों की जिंदगी दांव पर लगाकर मनमाने तरीके से मुनाफा कमाने में लगे हुए हैं। ऐसे में दोषी अधिकारियों और पार्टियों के पदाधिकारियों के खिलाफ भी मामला दर्ज करना चाहिए।
  6. मनोज जैन इस फैक्टरी को लगाने के पहले अन्य जगहों पर फैक्टरी लगाया था। ऐसा लगता है कि वह अपनी फैक्टरी किराये पर चलाता आया है। लोगों ने बताया कि इसके पहले भी उसकी फैक्टरी में दुर्घटना हो चुकी है। ऐसे में नये जगह पर फैक्टरी लगाते समय पुलिस को जानकारी न हो, ऐसा नहीं हो सकता। खासकर, बारूद मंगाना, उसे रखना, उसका प्रयोग करना आदि पुलिस की जानकारी के बिना संभव नहीं है। पुलिस की संदिग्ध भूमिका और इसे नजरअंदाज करने वाले अफसरों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।
  7. मनोज जैन और ललित गोयल पर जिन धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज हुए हैं वह नाकाफी हैं। उसने फैक्टरी के गेट पर ताला लगाकर मजदूरों से काम कराया जबकि ये मजदूर बारूद के साथ काम कर रहे थे और फैक्टरी के अंदर सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं थी। ऐसे में इन पर मुकदमा इसके अनुरूप धाराओं के तहत दर्ज होना चाहिए। यहां हम मारुति सुजुकी में एक प्रबंधक की मौत पर सैकड़ों मजदूरों को हत्या के मामलों में पकड़ा गया, कई सालों तक मजदूरों को जेल में रखा गया और अंततः न्यायाधीश ने 13 मजदूरों को आजीवन कारावास की सजा दी। जबकि प्रबंधक की मौत संदिग्ध हालत में हुई थी और किसी एक मजदूर या मजदूरों के समूह पर आरोप तय सकना भी मुश्किल था। वस्तुतः यह पुलिस की भूमिका थी जिसने एक प्रबंधक की मौत पर सैकड़ों मजदूरों को जेल में डाला और कुल 17 मजदूरों को सजा तक पहुंचा दिया। यह पुलिस ही है जो बवाना में फैक्टरी मालिक की वजह से कम से कम 17 लोगों की मौत को मालिक के ‘लापरवाही’ तक सीमित कर देना चाहता है। हम मांग करते हैं कि मनोज जैन और ललित गोयल के खिलाफ मजदूरों की इरादतन हत्या करने की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया जाय। और, साथ ही उन पर बंधुआ मजदूर निवारण अधिनियम 1976 के तहत भी मुकदमा दर्ज किया जाय।
  8. हम मांग करते हैं कि दिल्ली में मजदूरों के काम के हालात, न्यूनतम मजदूरी, नियुक्ति, नियमितिकरण, सुरक्षा, जीवन बीमा नीति, संगठन और रिहाईश जैसे मसलों का अध्ययन के लिए कमेटी गठित करे और इसे ठीक करने के लिए तुरंत कदम उठाये। मजदूर परिवारों की सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए तुरंत कदम उठाये। दोषी फैक्टरी मालिकों के खिलाफ सख्त कदम उठाया जाय।
  9. हम छात्रों और बुद्धिजीवी समुदाय से अपील करते हैं कि वह मजदूर वर्ग के पक्ष में खड़े हो। मजदूर वर्ग को संगठित होने में अपनी भूमिका दर्ज करे और देश में जनवाद को बनाने के लिए उनके साथ खड़े होकर एकजुटता प्रकट करे।

रोहित कुमार (08743803045), जयगोबिन्द (08802903407),अविनाश (07836816345), खालिद (07838624792), अभिनव (08789234469) द्वारा जारी

दिनांक: 29 जनवरी 2018, दिल्ली

 

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