शनिवार को दिहाड़ी पर आधा दिन बीतने के बाद जब दोपहर करीब एक बजे शक़ीला खातून को यह पता लगा कि 60-70 लोग उनके मोहल्ले में आकर मुसलमानों के घर खाली कराने के लिए हल्ला कर रहे हैं, तो दिहाड़ी छोड़ शक़ीला सीधे अपने घर की ओर दौड़ीं. उनको घर से ज्यादा चिंता अपनी तीन लड़कियों की थी जो उस समय घर पर ही थीं. शक़ीला जब घर पहुंचीं तब तक धमकी देने आयी भीड़ जा चुकी थी. घर के आखिरी कमरे में उनकी लड़कियां दुबकी हुई थीं.
शक़ीला को देखते ही तीनों रोने लगीं. रोते हुए बड़ी बेटी ने शक़ीला को बताया कि 60-70 लड़कों की भीड़ आई थी जो सभी मुसलमानों को होली तक घर खाली करने की धमकी देकर गयी है.
शक़ीला हरियाणा-दिल्ली के बॉर्डर पर विकसित हुए निखिल विहार में रहती हैं, जो दिल्ली के कैर गांव और हरियाणा के इसरहेड़ी गांव की जमीन पर साल 2013 में आबाद होना शुरू हुआ था. इस मोहल्ले में ज्यादातर वे लोग रहते हैं जो नयी संभावनाओं की तलाश में दिल्ली आये थे. बाहरी दिल्ली के नज़फगढ़ से कैर गांव की तरफ चलने पर एक नहरी पुलिया के किनारे से एक कच्चा रास्ता खुलता है जिस पर करीब आधा किलोमीटर चलने के बाद निखिल विहार आता है.
वह दिल्ली के दंगों के हफ्ते भर बाद एक हल्की सर्द सुबह थी. सूरज उभर आया था. औरतों के कई झुंड कच्चे नहरी रास्ते से पक्की सड़क तक चले जा रहे थे. यहां के ज्यादातर निवासी कामगार हैं जिनके कदम हर सुबह काम की तरफ निकल पड़ते हैं. शक़ीला बीते शनिवार के बाद से काम पर नहीं जा रही हैं.
वे पूछती हैं, “मजूरी करने चली गयी और पीछे से किसी ने मेरा घर जला दिया तो कहां जाऊंगी? पूरी उम्र की बचत लगाकर यह मकान खड़ा किया था. अब ये लोग इसी को खाली करवाने के लिए कह रहे हैं. अगर हमसे हमारे घर ले लिए तो कहां जाएंगे हम?” बोलते-बोलते शक़ीला शांत हो जाती हैं. उनके पास खड़ी उनकी पड़ोसन पिंकी शक़ीला को अपने बच्चों के बारे में भी बताने को कहती हैं, लेकिन शक़ीला चुप ही रहती हैं.
शक़ीला की लम्बी चुप्पी देख पिंकी खुद ही उनका दुख बयान करने लग जाती हैं, “इनके तो अभी बड़ी वाली बेटी की शादी भी होने वाली है. “इतना सुनते ही शक़ीला बोल उठती हैं, “बड़े लाड-चाव से बेटी का रिश्ता किया था. ऐसे माहौल में पता नहीं क्या होगा. मैंने तो अपनी तीनों बेटियों को दिल्ली में रिश्तेदारों के यहां भेज दिया है. अगर हमारे बच्चों को कुछ हो गया तो समाज में क्या ही मुंह दिखाएंगे.”
इस मोहल्ले में ज्यादातर हिन्दू परिवार रहते हैं. केवल 20-22 घर ही मुसलमानों के हैं. शनिवार के बाद से ही सभी मुस्लिम परिवारों ने अपने बच्चों को अपने रिश्तेदारों के पास भेज दिया है. चार परिवार तो घर से कीमती सामान समेटकर अपने गांव वापस लौट गए हैं. कुछ पुरुष जरूर काम पर जा रहे हैं लेकिन सभी महिलाएं काम छोड़कर घर पर ही बैठी हुई हैं.
मोहल्ले में परचून की दुकान चलाने वाली बेबी खान ने शनिवार के बाद से ही अपनी दुकान नहीं खोली है. ग्यारहवीं में पढ़ रही उनकी बेटी की सोमवार को वार्षिक परीक्षा थी, लेकिन उन्होंने अपनी बेटी को वापस बदायूं में गांव भेज दिया है.
बेबी बताती हैं, “उस दिन करीब साठ-सत्तर लोग बिना सवारी के पैदल-पैदल आए थे. मैं दुकान में थी लेकिन जैसे ही मुझे यह पता लगा कि ये लोग मुसलमानों को ढूंढ रहे हैं, मैंने तुरंत दुकान का शटर मूंदकर बच्चों को अंदर वाले कमरे में बन्द कर दिया था. दो पैसे कमाने-खाने के लिए यहां आए थे लेकिन अब इतनी दहशत का माहौल है यहां कि बाहर भी नहीं निकल सकते.”
करीब छह साल पहले बिहार से यहां आकर रह रहे मोहमद जाहिद अब रात के बाद से ठीक से सो नहीं पाते हैं. वह कभी सोते हैं तो कभी जागते हैं. शनिवार के बाद से ही उन्हें चैन की नींद नसीब नहीं हुई है.
वे कहते हैं, “यहां हम सब मिलजुल कर रहते हैं. ये कुछ बाहर के लोग आए और हमें डराकर चले गए. यहां रहने वाले हिन्दू भाई हमारे साथ खड़े हैं. वो भी हमारा दर्द समझ रहे हैं.”
उनके पास ही खड़े शशिप्रकाश उनकी बात काटते हुए एकदम बोल पड़ते हैं, “ये सिर्फ आप लोगों का दर्द नहीं है. हमारा भी है. हम लोग अभी 4-5 साल पहले ही तो आए हैं, पूरी जिंदगी की कमाई से घर खरीदे हैं. अगर जाना पड़ा तो बहुत भारी पड़ेगा. इतना पैसा थोड़ी न है कि कोई घर छोड़कर चला जाए. आज इनके ऊपर दुख पड़ा है, कल हमारे ऊपर भी पड़ेगा. हम कभी नहीं चाहेंगे कि आप लोग यहां से जाएं और न ही हम इन्हें जाने देंगे.”
मोहल्ले के बीचों-बीच पसरी लम्बी गली के आखिरी छोर पर हरियाणा पुलिस की एक जिप्सी खड़ी थी, जो शनिवार की शाम से ही यहां तैनात है. फ़ोन पर हुई बातचीत में डीएसपी अशोक कुमार बताते हैं, “हमें शनिवार को शिकायत मिली थी. तभी हमने एफआइआर दर्ज कर ली थी. अभी आरोपियों तक हम पहुंच नहीं पाए हैं लेकिन छानबीन जारी है. परिवारों को बार-बार कह रहा हूं कि डरिए मत. पुलिस आपके साथ है.”
वे बताते हैं, “देखो जी, पूरे गांव में घूम लो, कोई भी हां नहीं भरेगा कि वहां जाकर उन लोगों को धमकाया है. लेकिन कई बच्चे थे हमारे गांव के जो वहां धमकाने गए थे. बाकी दिल्ली के कई दूसरी जगहों से आए थे. कई दिन से ही गांव के कई छोरे ज्यादा हिन्दू हिन्दू चिल्लाने लगे हुए हैं. पता नहीं कौन इनके दिमाग खराब कर रहा है.”
धर्म बचाने के नाम पर गांव में बनी फौज के बारे में किसी के पास कोई ठोस जवाब नहीं है, लेकिन कई लोग यह जरूर मान रहे हैं कि पिछले कई दिनों से इनकी भरमार हो गई है. गांव के बुजुर्गों के पास सिर्फ अपने बच्चों की चिंताएं हैं और मुंह में एक वाक्य, “गलत करा बालकों ने. समझाएंगे जी.”