मर्दों के क्रिकेट के शोर में डूबे हुए इस देश को कौन बताए कि इसकी एक बेटी 100 मीटर फर्राटा दौड़ में पूरे विश्व को झकझोर आई है। सोचिए 100 मीटर फर्राटा। जिस देश में मर्द धावक जब तक पैरों की एड़ियां सही करते हैं, जमैका का उसेन बोल्ट 100 मीटर की दौड़ का एक चौथाई सिरा पार कर जाता है, वहां ऐसी उपलब्धि के आगे सौ क्रिकेट वर्ल्ड कप किनारे कर दिए जाएं तो भी बराबरी न होगी!
जब से इटली के नेपल्स में आयोजित ‘वर्ल्ड यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप’ में उड़ीसा की दुती चंद के 100 मीटर फर्राटा जीतने की खबर पढ़ी है, तभी से सोच रहा हूं कि धोनी, विराट और भारत रत्न सचिन के ग्लैमराइजेशन के इस दौर में दुती चंद होने के मायने क्या हैं? क्या दुतीचंद की जीत पर देश के किसी भी हिस्से में खुशी से बौराए लोगों के तिरंगा लेकर दौड़ने की खबर देखी या सुनी?
मीडिया में भारत और अफगानिस्तान के लीग मैच की तुलना में दुतीचंद की इस उपलब्धि की 0.0001 प्रतिशत भी कवरेज दिखी क्या? वो तो गनीमत है कि प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने दुती चंद को ट्वीट कर अपनी खुशी और शुभकामना जाहिर की वरना देश के राजनीतिज्ञों की 90 फीसदी फौज तो ये भी नही जानती होगी कि दुती चंद हैं कौन? 11.24 सेकेंड का राष्ट्रीय रिकार्ड रखने वाली दुती चंद किसी भी विश्व स्तरीय चैंपियनशिप में 100 मीटर फर्राटा गोल्ड जीतने वाली देश की पहली महिला बन गई हैं। अपनी जीत की तस्वीर के साथ उन्होंने एक बेहद ही भावुक बात लिखी है- “मुझे नीचे खींचो, मैं और भी मजबूती से वापसी करूंगी, Pull me down, I will come back stronger।”
अभिषेक उपाध्याय की फेसबुक वाल से साभार