CAA: क्या BJP पूरे दक्षिण एशिया से अम्बेडकरवाद को खत्म कर देना चाहती है?

भारत में मौजूदा मोदी सरकार ने हाल में ही ‘नागरिकता संसोधन बिल’ को संसद से पास करा कर कानून बना दिया है जिसका विरोध देश-विदेश में किया जा रहा है और इसे भारतीय संविधान की प्रस्तावना और मूल ढांचे के खिलाफ बताया जा रहा है क्योंकि इस संशोधन के माध्यम से धार्मिक भेदभाव (इस्लाम धर्म को बाहर रखा) गया है।

वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 22 दिसम्बर 2019 को कहा- “ये वो लोग हैं, जिनमें अधिकतर दलित हैं, जिनको पाकिस्तान में बंधुआ मजदूर बना कर रखा गया है”।

चूंकि मैंने अपना शोध पाकिस्तान के दलित समुदाय पर किया है, इसलिए सिर्फ शोध की बातें यहां रखूंगी ताकि आप सभी वाकिफ हो सकें कि असल में पाकिस्तान के दलितों पर जाहिर की गयी भारत के प्रधानमंत्री की चिंता क्या है?

पाकिस्तान के अंबेडकरवादी आंदोलन, पाकिस्तान के दलितों के हालात और पूरे दक्षिण एशिया में अंबेडकर कैसे पूरी राजनीति को प्रभावित/ आंदोलित कर रहे हैं?

क्या पाकिस्तान के दलितों को भारतीय नागरिकता देने का दम भरने वाले भारत के प्रधानमंत्री ने उस चेतना की तरफ कोई भी अध्ययन किया जो डॉक्टर अंबेडकर, जोगेन्द्रनाथ मण्डल के विचारों पर चलते हुये आज़ादी के बाद से संघर्ष करती हुई आज उस हालात में पहुँच गयी है जहां पाकिस्तान के दलितों का एक बड़ा हिस्सा हिन्दू होने को नकार कर दलित होने के दावे को मजबूती से पेश कर रहा है और और दलितों के अधिकार के लिए लगातार संघर्षरत है!

क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पाकिस्तान के दलितों को फिर से  से हिन्दू की पहचान देना चाहते हैं? अगर नरेंद्र मोदी को पाकिस्तान के दलितों की इतनी चिंता है तो क्यों नहीं सभी धर्मों के साथ अनुसूचित जाति का भी कॉलम नागरिकता संसोधन अधिनियम, 2019 में जोड़ दिया?

पाकिस्तान में 1956 में अनुसूचित जाति की एक लिस्ट बनाई गयी और राज्य द्वारा जनगणना के वक्त अनुसूचित जाति की अलग से गिनती भी कराई जाती है, ध्यान रहे कि ये पूरी तरह हिन्दू धर्म से अलग लिस्ट होती है और सरकार की तरफ से ये निर्देश होते हैं कि या तो कोई अपने आप को ‘हिन्दू’ दर्ज कराएगा या फिर ‘अनुसूचित जाति’।

1998 की जनगणना में जब अनुसूचित जाति की लिस्ट निकाली गयी तो उनकी संख्या 332,343 गिनी गयी, लेकिन दलित प्रतिनिधियों का कहना है कि दलितों की गिनती हिन्दू में कर दी गयी। 2017 की जातिगत जनगणना से पूर्व समान घनी खान ने एक लेख लिखा, जिसका शीर्षक था- “Mosasic Nation: what made the census flawed and controversial” , इस लेख में उन्होने दलित सूजग तहरीक संगठन की अध्यक्षा राधा भील का बयान शामिल किया है, राधा भील के अनुसार सेंसस ऑफिसर धर्म पूछता है और लोग जवाब में हिन्दू बोल देते हैं और वही गिनती कर ली जाती है, इस वजह से अनुसूचित जाति की पूरी और सही गिनती नहीं हो पाती है।

2017 की जातिगत जनगणना में अनुसूचित जाति की गिनती सही तरीके से हो इसलिए दलित सूजाग तहरीक, भील इंटेलेक्चुअल फॉरम और अन्य दलित प्रतिनिधि संगठनों ने अनुसूचित जाति जगराता रैली का आयोजन जगह-जगह पर किया ताकि दलितों की गिनती हिन्दू में न होकर अनुसूचित जाति में करवाई जा सके।

सवाल यहीं नहीं खत्म होते हैं,पाकिस्तान के जनरल जिया-उल-हक के शासनकाल में संविधान में संसोधन किए गए और अल्पसंख्यकों के लिए पृथक निर्वाचन व्यवस्था की ज्ञी जिसमें हिन्दू और दलितों को एक साथ पृथक निर्वाचन के अंतर्गत रखा गया था, इस फैसले के संदर्भ में 9 मई 2016 को ताहिर मेंहदी द्वारा लिखा गया एक लेख डान अखबार में प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक था- “Dalits dream of Pakistan”, इस लेख में बताया गया है कि जनरल जिया द्वारा हिन्दू और अनुसूचित जाति को एक व्यवस्था में रखने से दलितों कि पृथक पहचान छीन ली गयी है, जबकि दलित लगातार पृथक राजनीतिक पहचान के लिए संघर्ष कर रहे हैं, इस फैसले ने दलितों को वापिस हिन्दू ढांचे में ढकेल दिया, जिसके विरोध में जोगेंद्रनाथ मण्डल हमेशा अपना पक्ष रखते थे।

जनरल जिया उल हक़ का दौर चला गया, लेकिन पृथक निर्वाचन व्यवस्था में उच्च जाति हिंदुओं को ही वरीयता जारी रही। ऐसा ही मामला उच्च शिक्षण संस्थानों में भी हुआ जहां पर उच्च जाति के हिन्दू दाखिला लेते आ रहे हैं, लेकिन दलितों की हालत खराब है। कुल मिलाकर दलितों का अलग से कोटा न होना दलितों के विरुद्ध था, लेकिन हिन्दू उच्च जाति के प्रतिनिधियों ने कभी इस बात का नहीं रखा।

पाकिस्तानी हिन्दू और पाकिस्तानी दलितों के बीच भेदभाव, वैचारिक विरोध के मामले यहीं पर खत्म नहीं होते । पर्सनल लॉ के संबंध में भी दलितों और हिंदुओं के तलाक के मसले में अंतर है।

हिन्दू उच्च जाति के लोग तलाक को अपने धर्म की चीज नहीं मानते हैं। ऊपरी जाति कोड के अनुसार विवाह को भंग नहीं किया जा सकता है, लेकिन दलितों के साथ ऐसा नहीं है। ऊपरी जाति की मांग है कि हिंदू विवाह कानून में तलाक खंड शामिल नहीं होना चाहिए।

हिन्दू विवाह अधिनियम में यह बाधा रही है। ऊपरी जातियों द्वारा गठित सामुदायिक संगठनों के मुख्य रूप से धर्मार्थ लक्ष्य होते हैं और ‘जाति के उन्मूलन’ के मुद्दे कभी शामिल नहीं किये जाते हैं। चैरिटेबल ट्रस्ट के सदस्यता शुल्क अक्सर थार के अधिकांश दलितों की आय की तुलना में अधिक होती है। दलितों ने से शिकायत की है कि जब एक ऊपरी जाति की लड़की का  जबरन धर्म परिवर्तन किया जाता  है तब ऊंची जाति के लोग सिंध में उसके लिए तमाम आंदोलन करते हैं लेकिन दलित लड़कियों के साथ लगातार ऐसी घटनाएं होती रहती हैं तो कोई आंदोलन नहीं किये जाते।

पाकिस्तान के दलित यह भी शिकायत करते आए हैं कि उनकी संख्या और समस्या ज्यादा होने के बावजूद चुनावों में उनको टिकट न देकर उच्च जाति के हिंदुओं को दे दिया जाता है जिसमें ज़्यादातर ठाकुर जाति शामिल हैं। उदाहरण के लिए जिला चुनावों में मीथी तहसील के लिए पीपीपी से टिकट मिलने पर चेतन मल एक्स्प्रेस ट्रिब्यून से बातचीत में कहते हैं कि, “ हमारे इलाके में सिर्फ ठाकुर ही चुनाव जीतते हैं, मैं हमारे मेघवर परिवार का राजनीति में पहला आदमी हूँ”। ऐसे तमाम उदाहरणों से सिंध की सियासत भरी पड़ी है जहां दलित अपने ही हिन्दू उच्च जाति के लोगों से धोखा और शोषण सहते आ रहे हैं।

दलित सुजाग तहरीक पाकिस्तान का एक सामाजिक और राजनीतिक आन्दोलन है जो पाकिस्तान के दलितों के सामाजिक और राजनितिक सशक्तिकरण के लिए काम करता है यह एक धर्मनिरपेक्ष समाजवादी-लोकतान्त्रिक आन्दोलन है जो मूलतः बाबासाहेब और तमाम दलित आंदोलनों और दलित चिंतकों के विचारों पर आधारित है। इसका प्राथमिक उद्देश्य पाकिस्तान के दलितों के बीच राजनीतिक चेतना का विकास करना है ताकि वे अपने प्रतिरोध और आन्दोलन स्वयं दर्ज करा सकें। इसका संविधान भी बनाया गया है तथा यह संगठन फेसबुक और सोशल मीडिया के अन्य मंचों पर भी बेहद सक्रीय रहा है, इसके साथ ही इस संगठन ने पाकिस्तान में दलित आंदोलन को एक नयी दिशा दी है।

दलित सुजाग तहरीक की अध्यक्ष राधा भील हैं जो मीरपुरखास, सिंध से 2018 का चुनाव भी लड़ी, इस चुनाव में उनका चुनाव चिन्ह पेंसिल था। राधा भील की तरह ही दो अन्य महिलाएं सदस्य भी 2018 का चुनाव लड़ी थीं। नेशनल असेंबली के लिए दलित सुजाग तहरीक के सदस्य लेलन (लोहार) और तुल्ची बाई ने चुनाव में भाग लिया। सिंध असेंबली के लिए मूलचंद उमरकोट 3 से चुनाव लड़े।

पाकिस्तान में दलित आंदोलन की वैचारिकी को लेकर सजग और दलित सुजाग तहरीक के संस्थापक सदस्य गुलाम हुसैन के हवाले से पता चलता है कि पाकिस्तान के 2018 के नेशनल असेंबली के चुनाव में सिंध की विभिन्न सीटों से 10 दलित/अनुसूचित जाति के लोग स्वतंत्र या किसी संगठन से चुनाव में उतरे थे। इन उम्मीदवारों में वीरो मल( स्वतंत्र), फलक शेर ओद( स्वतंत्र यूएसपी), रूप चंद( स्वतंत्र), लेलन (लोहार) (स्वतंत्र,डीएसटी), चतरो( स्वतंत्र), नीलम वालजी ( पीएमएल-एन), तुल्ची बाई ( स्वतंत्र, डीएसटी), ज्ञानचंद ( स्वतंत्र), हेमून( स्वतंत्र), अब्दुल रहमान मल्लाह (स्वतंत्र) चुनाव लड़े। इसमें आपको और भारत सरकार को ध्यान देने की जरूरत है कि ये सारे दलित उच्च जाति हिंदुओं के खिलाफ भी चुनाव में भागीदारी कर रहे थे और अपनी पृथक पहचान, अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

2018 के चुनाव के वक्त मैं सिंध और पाकिस्तान के चुनाव को जब देख रही थी। जब मैंने गिट्टी बालू के ढेर पर एक छोटा सा माइक लेकर राधा भील और लेलन लोहार को लोगों को संबोधित करते, अपने अधिकारों का दावा करते देखा तो यकीन मानिए इन दलित महिलाओं को अपने दावों के लिए हिम्मत करते हुये देखकर सलाम करने का मन हुआ। जरा सोचिए कि जिस जाति और जिन लोगों के पास अपना मंच भी नहीं है बोलने के लिए, उस समाज की महिलाओं ने सड़क को ही अपना मंच बना लिया और यही पाकिस्तान के दलित आंदोलन की जीत है।

भारत के प्रधानमंत्री को जबरन धर्म परिवर्तन कराए हुए लोगों की भी बहुत चिंता है और उन्होंने मुस्लिमों को बिल से बाहर किया हुआ है, इस हालात में जिन लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन हुआ भी होगा तो वो वापिस कैसे आ पाएंगी? क्या दक्षिण एशिया का समाज लड़कियों के लिए इतना लचीला है कि वो अपनी मर्जी से धार्मिक जातिगत चीजें बदल पाएँ?

बातें और तथ्य बहुत से हैं सबको एक साथ नहीं लिखा जा सकता है। भारत सरकार और दुनिया के लोगों को पाकिस्तान के दलितों पर बोलने से पहले और उनको “हिन्दू” की श्रेणी में शामिल करने से पहले उस आंदोलन को समझना होगा जो पाकिस्तान के दलित वर्षों से लड़ रहे हैं।

पाकिस्तान के जो दलित डॉक्टर अंबेडकर और जोगेन्द्रनाथ मण्डल के विचारों पर चलकर बराबरी और पृथक पहचान का दावा करते हुये जी रहे हैं, दलित चेतना को मजबूत कर रहे हैं, उन्हें भारत सरकार फिर से हिन्दू बनाकर डॉक्टर अंबेडकर, जोगेन्द्रनाथ मण्डल और तमाम दलित- बहुजन विचारकों के संघर्षों को खत्म कर देना चाहती है। ये बिलकुल वैसा ही है जैसे 1950 में भारत के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने एक ऑर्डर में अनुछेद 341 (3) ले आए और घोषित किए कि जो हिन्दू हैं और परिवर्तन नहीं किए हैं, सिर्फ उन्हे ही दलित माना जाएगा और कोटे का फायदा सिर्फ उन्हें ही मिलेगा। हालांकि बाद में ठीक आज के नागरिक संशोधन अधिनियम बिल की तरह सिख और बौद्ध दलितों को हिन्दू दलितों के साथ आरक्षण में शामिल किया गया और आज भी मुस्लिम और ईसाई दलित वंचित हैं, आज तक उसकी लड़ाई सेलेक्टिव तरीके से इग्नोर की जाती है।

मुझे 341(3) और नागरिकता संशोधन अधिनियम एक ही जैसे विचार के लगते हैं, क्योंकि दोनों ही दलितों को हिन्दू देखना पसंद करते हैं, दोनों के लिए ही हिन्दू होने पर फायदा मिलने की शर्त है और दोनों ही अंबेडकर को खत्म कर देना चाहते हैं। भारत की मौजूदा सरकार पूरे दक्षिण एशिया से दलितों को हिन्दू का लोलिपोप देकर अंबेडकर को गैर- प्रासंगिक बनाना चाहती है।
पाकिस्तान के दलित आंदोलन को सलाम, दुआ और प्यार रहेगा और उम्मीद रहेगी कि दक्षिण एशिया में अंबेडकर और मानवता जिंदा रहे।


लेखिका सेंटर फॉर साउथ एशियन स्टडीज़ सेंटर SIS, JNU में शोधार्थी हैं. 

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