BJP की IT Cell के मालवीय: साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं!

राजेश वर्मा 

संभव है, अमित मालवीय को कर्नाटक विधानसभा चुनावों के पूरे कार्यक्रम का पहले से ठीक-ठीक पता रहा हो। भारतीय जनता पार्टी के आई.टी. सेल के इस प्रधान ने चुनाव तारीखों की घोषणा आखिर ऐसे ही तो नहीं कर दी होगी, वह भी कार्यक्रम के ऐलान के लिये चुनाव आयोग की प्रेस कांफ्रेंस से पहले। हो सकता है कि उन्हें चुनाव आयोग से भी पहले इन तारीखों की जानकारी रही हो। आखिर केन्द्र में उनकी सरकार है और गुजरात विधानसभा के चुनावों की घोषणा में दस-बारह दिन का विलम्ब कर प्रधान सेवक और उनकी पार्टी को 20-25,000 करोड रुपये के लोक-लुभावन कार्यक्रमों की रेवडी बांटने का मौका देने के चुनाव आयोग के अभी हाल के ही आचरण के बावजूद अगर मान लें कि केन्द्र इस संवैधानिक संस्था को तारीखें डिक्टेट नहीं करता, तब भी अवकाशग्रहण के बाद किसी ऊंचे, रसूखदार ओहदे की प्रत्याशा में आयोग के किसी अन्दरूनी स्रोत ने ही तो उन्हें पूरी निर्णय प्रक्रिया की ब्यौरेवार सूचना उपलब्ध करायी होगी। ऐसा कोई स्रोत न होता तो आई.टी. प्रमुख को कार्यक्रम की आधिकारिक घोषणा से पहले कैसे पता होता और कैसे वह अपने ट्विटर हैंडल पर पूरे भरोसे से इसे उजागर कर पाते। और ध्यान रहे कि आयोग के केवल पांच-छह शीर्ष पदस्थ अधिकारी चुनाव कार्यक्रमों के निर्धारण की इस पूरी प्रक्रिया में शामिल होते हैं।

आई.टी. प्रमुख कह रहे हैं कि उन्हें एक चैनल से यह जानकारी मिली थी, लेकिन यह सफाई वह अब दे रहे हैं, ट्विटर पर चैनल का कोई हवाला नहीं दिया गया था।

दिलचस्प यह है कि अगर सूचना इतनी सटीक थी और मतदान एक ही चरण में 12 मई को होने की उनकी खबर पक्की थी तो मालवीय साहब मतगणना की तारीख 18 मई 2018 कैसे बता गये? वर्षों चुनाव आयोग की बीट कवर करते रहे पत्रकार साथी बताते हैं कि मालवीय साहब के ट्विटर कारनामे के बाद अपनी साख बचाने के लिये, प्रेस कांफ्रेंस से ठीक पहले, अंतिम क्षणों में आयोग ने यह तारीख 18 मई से बदलकर 15 मई कर दी हो, यह असंभव है। तब क्या यह माना जाये कि आयोग की साख बचाने के लिये खुद मालवीय साहब ने मतगणना की तारीख जानबूझकर गलत बतायी? वैसे भी, 2013 में कर्नाटक विधानसभा के पिछले चुनाव में भी मतदान के केवल तीन दिन बाद मतगणना करा ली गयी थी, लिहाजा मतदान की तिथि की ठोस जानकारी के बाद मतों की गिनती का तारीख 15 मई 2018 बताना पर्याप्त सुरक्षित होता।

अब अगर इसके बावजूद मानें कि आयोग की साख बचाने की खातिर आई.टी. प्रमुख ने मतगणना की तारीख जान-बूझकर गलत कर दी तो क्या ट्विट करने के लिये आधिकारिक घोषणा तक रुक जाना अधिक श्रेयस्कर नहीं होता? इससे आयोग की साख पर कोई बट्टा ही नहीं लगता। हां, शायद तब यह धारणा बनाने में असुविधा होती कि कोई भी संस्थान हो, सरकार का कोई भी मंत्रालय, कानून-प्रवर्तन एजेंसियां, रिजर्व बैंक जैसी कोई स्वायत्त संस्था, न्यायपालिका, प्रेस या कोई अन्य संवैधानिक निकाय, एक सर्वशक्तिमान शासक के और उसके कारकूनों के कहे-किये से बाहर कोई नहीं है।

अब अंतिम तौर पर तो शायद यह आयोग की जांच से पता चले और शायद, इसलिये कि जांच समिति को पांच-छह शीर्ष अधिकारियों में से वह आई.टी. प्रमुख का वह स्रोत ढूंढ निकालना है, लेकिन क्या फिलहाल कह सकते कि चुनाव की सही तारीख बताने और मतगणना की तारीख बताने में चूक की अदा लगभग यह है कि

‘‘खूब पर्दा है के चिलमन से लगे बैठे हैं/साफ छुपते भी नहीं, सामने आते भी नहीं।’’


लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह टिप्पणी उनके फेसबुक से साभार है 

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