प्रियंका तिरुमूर्ति / The Newsminute
वेदांता के स्टरलाइट कॉपर प्लांट के खिलाफ मंगलवार को हुई पुलिसिया गोलीबारी के पांच दिन बाद उस अफ़सर की शिनाख्त हो गई है जिसने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया था। दि न्यूज़ मिनट की ख़बर के मुताबिक इस मामले में दर्ज एफआइआर से पता चलता है कि जिले के 20 नागरिक समूहों के खिलाफ़ मुकदमा दर्ज किया गया है और प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश पुलिस को उप-तहसीलादार ने दिया था।
उप-तहसीलदार(चुनाव) पी. शेखर के मुताबिक, ”कोई 10,000 से ज्यादा ‘गैरकानूनी लोग’ ‘खतरनाक हथियार’ लेकर 22 मइ को दिन में 11 बजे कलेक्टरेट की ओर बढ़ रहे थे।” वे कथित तौर पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे थे और वापस जाने के पुलिस के आदेश की अवहेलना कर रहे थे। उप-तहसीलदार का दावा है कि भीड़ के पास पेट्रोल बम भी थे।
इस घटना से कलेक्टरेट में आए सरकारी कर्मचारी और जनता कथित रूप से डर गई थी। उप-तहसीलदार कहते हैं कि एलान कर के प्रदर्शनकारियों को चेताया गया कि अगर यह गैरकानूनी जुटान रुका नहीं तो आंसू गैस के गोले छोड़े जाएंगे। वे दावा करते हैं कि उन्होंने इस ओर इशारा किया था कि प्रदर्शन स्थल पर धारा 144 लगी हुई थी।
अपनी शिकायत में उप-तहसीलदार ने लिखवाया है, ”जब उन्होंने बात नहीं सुनी तो मैंने आंसू गैस के गोले छोड़ने का आदेश दिया। फिर वे पुलिस पर खतरनाक हथियारों और पत्थरों से हमला करने लगे।”
प्रदर्शनकारियों ने कथित रूप से वर्दीधारी लोगों को नुकसान पहुंचाने का एलान कर दिया और वे ”हत्या करने जैसा आक्रोश” दिखा रहे थे। उप-तहसीलदार की शिकायत आगे कहती है, ”हमने प्रदर्शनकारियों को चेतावनी दी कि यदि वे विसर्जित नहीं होते और हिंसक गतिविधि जारी रखते हैं तो हमें उन पर गोलबारी करनी होगी। लेकिन वे लगातार सार्वजनिक जनजीवन और संपत्ति के लिए खतरा बनते जा रहे थे।”
इसके बाद उप-तहसीलदार दावा करते हैं कि चेताने के लिए हवा में एक गोली चलाई गई। वे स्वीकार करते हैं, ”लेकिन इस सब का कोई असर नहीं हुआ। समूह लगातार हिंसक बना रहा। इसके बाद धैर्य बनाए रखना सार्वजनिक जनजीवन और जायदाद को काफी नुकसान पहुंचा सकता था। इसीलिए मैंने भीड़ को विसर्जित करने के लिए बंदूक के इस्तेमाल का आदेश दिया।”
क्या एक उप-तहसीलदार गोलीबारी का आदेश दे सकता है?
पिछले एक हफ्ते से सबसे ज्यादा एक ही सवाल हर ओर पूछा जा रहा है कि फायरिंग का आदेश किसने दिया। रिपब्लिक टीवी ने एक स्टिंग में उजागर किया कि पूर्व एसपी पी. महेंद्रन के अनुसार यह आदेश कार्यकारी मजिस्ट्रेट की ओर से आया था। कानूनी जानकारों ने टीएनएम को बताया है कि गोलीबारी का आदेश केवल मजिस्ट्रेट या मजिस्ट्रेटी अधिकारों वाला कोई अफ़सर ही दे सकता है।
जनता के खिलाफ एफआइआर
इस मामले में दर्ज एफआइआर से एक और चिंता सामने आती है। जानकारों का मानना है कि यह एफआइआर अपने आप में जनविरोधी है। एमजी देवसहायम कहते हैं, ”इसका नैरेशन ही कमज़ोर है लेकिन उसे दरकिनार कर दें तो 13 लोगों की पुलिस गोलीबारी में हुई मौत पर कोई धारा नहीं लगाई गई है। किसी मुठभेड़ में भी आपको 302 के तहत केस दर्ज करना होता है लेकिन यहां ऐसा नहीं है। इन्हें कम से कम 304 लगानी चाहिए थी।”
एफआइआर ने केवल ‘खतरनाक भीड़’ और उससे ‘सार्वजनिक जनजीवन और संपत्ति’ को संभावित नुकसान पर ज़ोर दिया है। एफआइआर में जो धाराएं लगाई गई हैं, वे हैं 147 (दंगा), 148 (घातक हथियार के युक्त, दंगा), 188 (लोकसेवक के आदेश की अवमानना), 353 (लोकसेवक को उसके कार्य में दखल देने के लिए हमला या आपराधिक ताकत), 323 (स्वेच्छया चोट पहुंचाना), 324 (खतरनाक हथियारों से स्वेच्छया चोट पहुंचाना), 436 (आग या विस्फोटक सामग्री से वार), 307 (हत्या का प्रयास) और 506 (आपराधिक धमकी)। इसके अलावा प्रदर्शनकारियों पर तमिलनाडु पब्लिक प्रॉपर्टी ऐक्ट और विस्फोटक सामग्री कानून भी लगाया गया है।
यह खबर thenewsminute.com से साभार है
बीजेपी को 19 करोड़ का चंदा देने वाली वेदांता और सरकारों के खूनी गठजोड़ का इतिहास!