झारखंड की रघुबर सरकार हज़ार दिन पूरे करने का जश्न बड़े पैमाने पर मना रही है। इस बीच एक ही हफ़्ते में चार ग़रीबों की भूख से मौत की ख़बर ज़मीनी हक़ीक़त बयान कर रही है। इन मौतों की चर्चा के बीच एक शब्द बार-बार उभर कर आ रहा है- आधार। मसला सिर्फ़ आधार नंबर या कार्ड होने भर का नहीं, अंगूठे और मशीन का रिश्ता ना बन पाने की तक़लीफ़ भी ग़रीबों को ही भुगतनी पड़ रही है।
ऐसे में, जिस आधार नंबर की वजह से सब्सिडी वगैरह में भ्रष्टाचार की कमी का दावा किया गया था, वह लगता है कि मौत बाँटने का हथियार बन रहा
देवघर जिले के मोहनपुर प्रखंड के गाँव भगवानपुर के 62 वर्षीय रूपलाल मरांडी की सोमवार को हुई मौत इसी अंधेरे की गवाही है। बायोमैट्रिक मशीन में अंगूठे का निशान ना मिलने की वजह से उसे दो महीने से राशन नहीं मिल रहा था। दो दिनों से उसके घर खाना भी नहीं बना था।
झारखंड से लगातार इस तरह की ख़बरें आ रही हैं। अगर आधार बनने या बायोमेट्रिक्स सिस्टम में ठीक से पहचान दर्ज ना हुई तो आख़िर ज़िम्मेदारी किसकी है ? क्या उस ग़रीब की जो भात माँगते हुए मर गया ?
‘ रघुबर सरकार जहां हजार दिन पूरा करने का जश्न मना रही है। वही गत एक सप्ताह में भूख व बदहाली से राज्य में चार जान जा चुकी है। सिमडेगा में संतोषी की मौत के बाद झरिया में बैद्यनाथ दास, गढ़वा में सुरेश उरांव और कल देवघर के मोहनपुर में रूपलाल मरांडी की मौत हो चुकी है।और इनमें से किसी के घर पर राशन नही पाया गया। जहां एक तरफ कई जरूरतमंदों को अबतक राशनकार्ड नही मिला है। तो कई को राशन कार्ड के बावजूद आधार से नही जुड़े होने के कारण राशन नही मिलता है।
देवघर के मोहनपुर प्रखंड में त्रिकुट पहाड़ की तलहटी में बसा भगवानपुर ग्राम के रूपलाल मरांडी के पास राशन कार्ड भी था आधार भी था। लेकिन इस
जाहिर है ये आपराधिक कृत्य है।
लेकिन देश भुखमरी में शतक मार रहा है और ये जश्न मना रहे है।
तस्वीर मृतक रूपलाल मरांडी के विधवा बेटी की।