खबर से जुड़े हमारे सरोकार उस खबर के लिए हमारी संजीदगी को निर्धारित करते हैं, मेरी समझ से मुझे अभी जिस खबर की बात करनी है उससे इस मुल्क के हर व्यक्ति का सरोकार होना चाहिए और इसके मतलब को संजीदगी से समझना चाहिए। खबर पाकिस्तान के सिंध प्रांत के एक शहर घोटकी से आई है।
Pakistan: Members of Hindu community staged protest at Teen Talwar, Karachi against the alleged murder of a Sindhi Hindu girl, Namrita Chandani. Namrita was found with a rope tied to her neck in Larkana, Sindh. pic.twitter.com/n1L7DhurQ1
— ANI (@ANI) September 18, 2019
सिंध कभी बॉम्बे प्रेसिडेंसी का हिस्सा था, जिसे अंग्रेजों ने अपनी ‘फूट डालो राज करो’ की नीति के तहत बांट दिया और तब सिंध प्रांत अस्तित्व में आया। अंग्रेजों ने ऐसा मुस्लिम लीग और मोहम्मद अली जिन्ना को खुश करने के लिए भी किया था ताकि एक मुस्लिम बहुल राज्य पर उनकी हुकूमत कायम हो सके। मुम्बई प्रेसिडेंसी से अलग हो कर अलग सिंध प्रान्त बनने के बाद से मुस्लिम लीग सिंध प्रान्त में अपना प्रभाव जमाने के लिये बेचैन थी। उस दौर की यह एक अजीब विडम्बना थी कि जहां एक तरफ बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के मुसलमानों पर मुस्लिम लीग और मोहम्मद अली जिन्ना का प्रभाव साफ़ तौर पर देखा जा सकता था वहीं मुस्लिम बहुल राज्य सिंध उनकी सुनने को तैयार नहीं था। जिन्ना की राह का सबसे बड़ा रोड़ा तत्कालीन मुख्यमंत्री इत्तेहाद पार्टी के अल्लाह बक्स सूमरो थे जो कांग्रेस के समर्थन से सरकार चला रहे थे। जिन्ना, अल्लाह बक्स को अपने पाले में कर सिंध में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए हर यत्न कर रहे थे जिससे कि मुसलमानों का एकमात्र नुमाइंदगी करने का उनका दावा मजबूत हो और पाकिस्तान की मांग मानने पर अंग्रेज मजबूर हो जाएं। लेकिन न तो अल्लाह बक्स जिन्ना को सुनने को तैयार थे न ही सूफी संतों की धरती सिंध ही उनकी सुन रही थी।
बॉम्बे प्रेसिडेंसी का बॉम्बे हिंदुस्तान में शुरू की गई ‘पुनः नामकरण’ की अद्भुत योजना के तहत अब मुंबई है और एक जमाने में सूफी संतों के सान्निध्य में साम्प्रदायिक समरसता का मिसाल रहा पाकिस्तान का सिंध आज अकलियत हिंदुओं पर अत्याचार की रोज एक नई दास्तां सुनने को मजबूर है।
अभी जिस नोतन दास की गिरफ्तारी की मांग को लेकर पाकिस्तानी कट्टरपंथी इतना उग्र हो गए कि उन्होंने न सिर्फ तीन मंदिरों में तोड़-फोड़ मचाई और उसे तहस-नहस किया बल्कि वहां के हिंदुओं के घरों में घुसकर उनके साथ अत्याचार भी किया। वे पहले से ही ऐसे तत्वों के निशाने पर थे। दरअसल नोतन दास ने कुछ समय पहले एक हिंदू लड़की मोनिका के जबरन धर्मांतरण का पुरजोर विरोध किया था और उसे अपने यहां पनाह दी थी।
घोटकी की इस घटना के बीच ही लरकाना, सिंध के ही मेडिकल कॉलेज की हिंदू छात्रा नम्रता चंदानी की हत्या बर्बर तरीके से उसी के हॉस्टल में कर दी गई। इस छात्रा की हत्या कर इसे आत्महत्या करार देने की साजिश रची गई।
Pakistan: Body of a girl, Namrita Chandani found with a rope tied to her neck in Ghotki, Sindh. Dr Vishal Sundar, her brother says, "There are marks on other parts of her body too, like a person was holding her. We are a minority, please stand up for us." pic.twitter.com/1EJYKD5MAy
— ANI (@ANI) September 17, 2019
अब नम्रता चंदानी के परिवार वाले और पाकिस्तान के अकलियत हिंदू इंसाफ की मांग कर रहे हैं। इस तरह की घटनाएं हर रोज हैं, हर जगह हैं। वैसे वहां के बहुसंख्यक मुसलमानों में कुछ अमनपसंद लोग भी हैं जो ऐसी घटनाओं का विरोध करते रहे हैं लेकिन इनकी आवाज सेना और सरकार द्वारा सामान्यतः अनसुनी कर दी जाती है।
अपनी अगली किताब के रिसर्च के दौरान मुझे पाकिस्तान की जो भयावह सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक स्थिति दिखी वह एक पल के लिए अविश्वसनीय था। दरअसल जिस किसी मुल्क में बहुसंख्यकवाद, धर्मान्धता चरम पर हो उसे नष्ट होने से, तबाह होने से बचा पाना असंभव है। विश्व इतिहास ऐसे अनेक उदाहरणों से भरा पड़ा है जिसमें सिर्फ हिटलर की जर्मनी और बोको हरम, अलकायदा के प्रभाव वाले मुस्लिम बहुल मुल्क ही नहीं हैं।
अब इस खबर से हमारे सरोकार की बात, जो कि एकदम साफ और स्पष्ट है। धर्म के आधार पर मुल्क निर्माण का अनोखा प्रयोग कर बना पाकिस्तान आज 70 साल बाद बहुसंख्यकवाद की आग में जलकर सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक रूप से बर्बादी के कगार पर खड़ा है और अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए संघर्ष कर रहा है। इन्हीं 70 साल में धर्मनिरपेक्षता, सहनशीलता के बल पर हिंदुस्तान विश्व के चंद विकासशील से विकसित राष्ट्र बनने को अग्रसर राष्ट्रों में से एक है। जब धर्मान्धता, बहुसंख्यकवाद के दुष्परिणाम का इतना साफ उदाहरण हमारे पड़ोस में मौजूद है तो क्या आज हमें पूरी ईमानदारी से अपने गिरेबां में झांकने की आवश्यकता नहीं है? क्या हमें स्वमूल्यांकन नहीं करना चाहिए कि हमारे मुल्क के बहुसंख्यक वर्ग का व्यवहार अकलियतों के साथ किस तरह का है?
क्या हमें यह देखना नहीं चाहिए कि कहीं हम भी तो कोई वैसी गलती नहीं कर रहे जो पाकिस्तान पिछले 70 वर्षों में करता रहा और आज इस दयनीय हालत में पहुंच गया? लगभग एक सी परिस्थिति में एक साथ चलने के पश्चात हिंदुस्तान और पाकिस्तान का बिलकुल भिन्न निष्कर्ष, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक स्थिति और वैश्विक प्रतिष्ठा में अंतर क्या यह साबित करने के लिए काफी नहीं है कि धर्मान्धता, बहुसंख्यकवाद और फासीवादी दृष्टिकोण किसी भी मुल्क के लिए किस हद तक घातक हो सकता है। और यह निष्कर्ष क्या हमें बार-बार आगाह नहीं कर रहा कि हम धर्मनिरपेक्षता जैसी अपनी मूल पूंजी को खोने की भूल नहीं कर सकते।
यह बात सच है कि इस मुल्क के ऊपर भी 1984, 2002 जैसी तारीख़ों का कलंक है पर इसके बावजूद हमारा व्यवहार पाकिस्तान की तुलना में काफी संयत रहा है और तभी हमने इतनी प्रगति की, विश्व में प्रतिष्ठा पाई और महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर हो पाये। लेकिन पिछले कुछ समय में इस मुल्क में अल्पसंख्यकों के साथ कभी गो-रक्षा के नाम पर तो कभी किसी अन्य वजह से हुई मॉब लिंचिंग की घटना न सिर्फ हमें शर्मसार और चिंतित करने के लिए काफी है बल्कि यह काफी हद तक पाकिस्तान के व्यवहार का नकल भी प्रतीत होता है और यदि ऐसा वास्तव में है तो क्या हम अपनी बर्बादी की कहानी खुद नहीं लिख रहे हैं? पाकिस्तान अपने बहुसंख्यकवाद से, उसकी परिणति से, अपनी दयनीय स्थिति से रोज हमें शिक्षा दे रहा है, हमें सतर्क होने का मौका दे रहा है- प्रश्न यह है कि हम इससे सीखने और समझने को तैयार हैं भी या नहीं?
आज की दुनिया 1947 की दुनिया से बहुत तेज है। यदि हमारे अंदर पाकिस्तान सरीखा कोई तत्व मौजूद हो या हम उनकी नकल कर रहे हों तो यकीन मानिए हमें आज के पाकिस्तान की हालत में पहुंचने में उसके जितना वक्त नहीं लगेगा। यह हम पर निर्भर है कि 70 साल के शानदार सफर के पश्चात अब हम आने वाली पीढ़ियों के लिए किस तरह का मुल्क छोड़ कर जाते हैं। यह भी हमारे आज के व्यवहार पर निर्भर है कि आने वाले समय में वे हम पर फ़ख्र करेंगे या शर्मिंदा होंगे।
प्रभात प्रणीत लेखक हैं, पटना में रहते हैं