छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता की चुनौतियों का पता लगाने के लिए 13 से 15 मार्च के बीच एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया की जो फैक्ट फाइंडिंग टीम वहां गई थी, उसकी रिपोर्ट में कुछ ऐसी चौंकाने वाली बातें शामिल हैं जिन्हें जान कर दिल्ली व दूसरे महानगरों में बैठे पत्रकारों और संपादकों की आँखें खुल सकती हैं.
मसलन, अगर आपको यह बताया जाए कि बस्तर का प्रशासन राष्ट्रीय मीडिया को माओवादियों का समर्थक मानता है, तो इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? इसका सीधा सा मतलब यह है कि यदि आप दिल्ली के पत्रकार हैं, खुद को राष्ट्रीय मीडिया का हिस्सा मानते हैं और बस्तर में विजिटर के तौर पर असाइनमेंट पर जा रहे हैं, तो सतर्क हो जाइए क्योंकि वहां न तो आपका प्रेस कार्ड काम आएगा और न ही राष्ट्रीय मीडिया का बैनर, क्योंकि आप पहले से ही माओवादी समर्थक माने जा चुके हैं.
आइए, एडिटर्स गिल्ड की रिपोर्ट के कुछ ऐसे ही चौंकाने वाले अंशों पर निगाह डालते हैं:
- बस्तर पत्रकार संघ के अध्यक्ष करीमुद्दीन ने बताया, ‘‘मैं जगदलपुर से बाहर की किसी भी जगह बीते छह साल से नहीं गया हूं क्योंकि मुझे सच लिखने की मनाही है और आप जो देखते हैं अगर उसे लिख नहीं सकते, तो फिर बाहर जाकर सूचना जुटाने का कोई मतलब नहीं बनता।’’ वे पिछले तीन दशक से ज्यादा वक्त से यूएनआइ के बस्तर प्रतिनिधि हैं।
- एक स्थानीय अखबार के संपादक दिलशाद नियाज़ी ने बताया कि वे डर के मारे पिछले आठ साल से पड़ोसी जिले बीजापुर नहीं गए हैं।
- मालिनी सुब्रमण्यम ने बताया कि यदि कोई पत्रकार सूचना जुटाने के लिए बाहर जाने की हिम्मत भी कर लें, तो माना जाता है कि उसे लोगों से बात नहीं करनी है। उन्होंने बताया, ‘‘पुलिस अधिकारी पत्रकारों से यह उम्मीद करते हैं कि उनकी कही बात का भरोसा कर के वे छाप दें। अगर कोई पत्रकार तथ्यों को जुटाने के लिए थोड़ी भी अतिरिक्त मेहनत करने की मंशा रखता हो, तो यह उन्हें पसंद नहीं आता। एक आत्मसमर्पण के मामले में मैंने जब कुछ लोगों से बात करने की कोशिश की, तो पहले मुझसे पूछा गया कि मैं उन लोगों के नाम बताऊं जिनसे मैं बात करना चाहती हूं और मेरे वहां पहुंचने से पहले ही उन्हें बता दिया गया था कि मुझसे क्या बोलना है।’’
- जैसा कि स्थानीय पत्रकार कहते हैं, बस्तर में पत्रकारों की तीन श्रेणियां हैं- सरकार समर्थक, सरकार के थोड़े कम समर्थक और माओवादी समर्थक या उनसे सहानुभूति रखने वाले पत्रकार।
- स्ट्रिंगर और समाचार एजेंटः ये लोग बस्तर में पत्रकारिता की रीढ़ हैं। संघर्ष-क्षेत्र के सुदूर इलाकों में तैनात इन लोगों को स्ट्रिंगर, न्यूजएजेंट और यहां तक कि हॉकर भी कहा जाता है। ये लोग खबरें जुटाकर या तो जगदलपुर ब्यूरो में या फिर सीधे मुख्यालय में भेजते हैं। इन्हें अपने अखबार से न तो कोई औपचारिक नियुक्ति पत्र मिलता है और न ही काम के बदले कोई पारिश्रमिक मिलता है।
- स्थानीय अधिकारियों ने दावा किया कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि जगदलपुर से कोई स्क्रोल डॉट इन नामक वेबसाइट के लिए लिख रहा है। जगदलपुर के कलक्टर ने इस बारे में कहा, ‘‘वह तो मुख्यधारा का मीडिया भी नहीं है।’’
- स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि इस विवाद के सामने आने से पहले खुद उन्हें नहीं पता था कि मालिनी सुब्रमण्यम स्क्रोल डॉट इन के लिए लिखती हैं। मालिनी ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने कभी भी सरकार के जनसंपर्क विभाग में एक पत्रकार के बतौर अपना पंजीकरण करवाने की परवाह नहीं की क्योंकि वे दैनंदिन घटनाओं को कवर नहीं करती थीं।
- आलोक पुतुल छत्तीसगढ़ से बीबीसी हिंदी के लिए लिखते हैं। वे खबर करने के लिए बस्तर गए थे और बस्तर के आइजी एसआरपी कल्लूरी व पुलिस अधीक्षक नारायण दास से मिलने की कोशिश कर रहे थे। कई कोशिशों के बाद उन्हें आइजी की ओर से यह संदेश मिला, ‘‘आपकी रिपोर्टिंग बहुत एकतरफा और पूर्वाग्रहग्रस्त होती है। आप जैसे पत्रकारों पर अपना समय खर्च करने का कोई मतलब नहीं है। मेरे साथ मीडिया और प्रेस का एक राष्ट्रवादी और देशभक्त तबका खड़ा है और वह मेरा समर्थन भी करता है। बेहतर है कि मैं उन्हें वक्त दूं। शुक्रिया।’’
- पुलिस अधीक्षक ने भी ऐसा ही संदेश भेजा, ‘‘हाय (अंग्रेज़ी में अभिवादन) आलोक, मुझे देश के लिए बहुत सारे काम करने हैं। मेरे पास आप जैसे पत्रकारों के लिए वक्त नहीं है जो एकतरफा तरीके से खबरें लिखते हैं। मेरा इंतजार मत करना।’’
- इस बारे में टीम द्वारा सवाल किए जाने पर जगदलपुर के कलक्टर अमित कटारिया ने हंसते हुए कहा, ‘‘आलोक पुतुल और आइजी के बीच कुछ कम्युनिकेशन गैप रहा होगा, और कुछ नहीं।’’
- राज्य सरकार चाहती है कि माओवादियों के साथ सरकार की लड़ाई को मीडिया राष्ट्र के लिए की जा रही लड़ाई के रूप में देखे, उसे राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले की तरह बरते और इस बारे में कोई सवाल न खड़ा करे।
एडिटर्स गिल्ड की इस अहम फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट को मीडियाविजिल अपने पाठकों को हिंदी में उपलब्ध करवा रहा है. हिंदी में पूरी रिपोर्ट यहाँ जाकर पढ़ें और डाउनलोड करें.
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