सवालों के कठघरे में वे चार जज जिन्होंने जज लोया की मौत की रात साथ होने का दावा किया!

निकिता सक्सेना / The Caravan

जज बीएच लोया की जिंदगी की आखिरी रात वाले घटनाक्रम में द कारवां की ताज़ा पड़ताल ने उन चार जजों के बयानात पर कुछ चिंताजनक सवाल खड़े कर दिए हैं जिनका दावा है कि वे 30 नवंबर और 1 दिसंबर 2014 की दरमियानी रात लोया की मौत के वक्‍त उनके साथ थे। द कारवां ने नागपुर के उस सरकारी वीआइपी अतिथि गृह रवि भवन के मौजूदा और भूतपूर्व कुल 17 कर्मचारियों से बात की जहां लोया कथित तौर पर रुके थे। नवंबर 2014 में ये सभी कर्मचारी रवि भवन में कार्यरत थे। इनमें से किसी को भी उस वक्‍त कोई अंदाज़ा नहीं था वहां रुके एक जज की तबीयत बिगड़ गई थी, जैसा कि दूसरे जजों ने बताया है, और उसे देर रात अस्‍पताल ले जाया गया जहां उसकी मौत हो गई। इनमें से अधिकतर कर्मचारियों को लोया की मौत की जानकारी तीन साल बाद नवंबर 2017 में मिली जब कारवां ने लोया की मौत से जुड़ी संदिग्‍ध परिस्थितियों के बारे में उद्घाटन किया, जिसके बाद उनकी मौत की काफी कवरेज हुई और आखिरकार महाराष्‍ट्र राज्‍य गुप्‍तचर विभाग (एसआइडी) को मामले की जांच सौप दी गई।

द कारवां ने लोया की रहस्‍यमय मौत की कहानी जैसे ही छापी, चार जजों- श्रीकांत कुलकर्णी और एसएम मोदक जिन्‍होंने कहा था कि वे मुंबई से नागपुर जस्टिस लोया के साथ ही गए थे तथा वीसी बार्डे और रूपेश राठी, जो उस वक्‍त नागपुर में ही कार्यरत थे- ने महाराष्‍ट्र एसआइडी के आयुक्‍त संजय बर्वे को दस्‍तखतयुक्त अपने-अपने बयान सौंप दिए। यही बयान सुप्रीम कोर्ट में महाराष्‍ट्र सरकार के बचाव की पहली दलील का आधार बना, जहां उसने दलील दी कि लोया की मौत प्राकृतिक थी। भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी जो इस मामले में महाराष्‍ट्र सरकार के वकील हैं, उन्‍होंने कहा कि वे इस बात से ”हताश और सदमे में हैं” कि लोया की मौत की स्‍वतंत्र जांच की मांग कर रहे याचिकाकर्ताओं के वकील ने जजों की गवाहियों पर संदेह जताया है। एक याचिकाकर्ता के वकील दुष्‍यंत दवे ने अदालत के सामने आग्रह किया था कि उक्‍त चार जज इस मामले में केवल गवाह भर हैं इसलिए सुप्रीम कोर्ट के नियमों के हिसाब से उन्‍हें अपने बयानों का हलफनामा कोर्ट में जमा करवाना होगा और उनसे जवाब तलब भी किया जाएगा।

एसआइडी में जमा जजों के बयान के मुताबिक लोया ने पहले सीने में दर्द की शिकायत मोदक और कुलकर्णी से की। दोनों का कहना था कि वे रवि भवन में सुबह 4.00 बजे के वक्‍त लोया के साथ थे। बार्डे ने कहा कि कुलकर्णी ने उसे कॉल कर के लोया की हालत के बारे में सूचित किया और राठी के साथ उसे रवि भवन आने को कहा। राठी के अनुसार बार्डे अपनी कार में राठी को उनके घर से उठाने पहुंचे। फिर दोनों जज रवि भवन बार्डे की कार से गए। वे जब वहां पहुंचे तो ”जज लोया शौच में थे”, ऐसा राठी ने अपने बयान में लिखा है। ”उसके बाद वे नीचे आए और कहा कि उनके सीने में जलन हो रही है और दर्द हो रहा है और मदद का अनुरोध किया।” इसके बाद जजों ने बताया कि वे लोया के साथ दांडे अस्‍पताल गए और फिर मेडिट्रिना अस्‍पताल गए जहां कहते हैं कि उन्‍हें मृत घोषित कर दिया गया।

मैंने रवि भवन के 17 मौजूदा और पूर्व कर्मचारियों का पता लगाया जो गेस्‍ट हाउस के दैनंदिन कामों को देखते थे- प्रशासन से लेकर रिसेप्‍शन और रूम सर्विस से लेकर इंजीनियरिंग के काम और अन्‍य विविध कामों तक। वे महाराष्‍ट्र में अलग-अलग जगहों पर थे। मैंने 17 में से 15 से निजी मुलाकात की और उनके इंटरव्‍यू किए। मैं कई बार कुछ सवाल लेकर वापस इनके पास गई। इन व्‍यक्तियों की पहचान को छुपाने के लिए द कारवां ने तय किया है कि जिस क्रम में इनसे पहली मुलाकात हुई, उस क्रम से इन्‍हें चिन्हित किया जाए। इन कर्मचारियों द्वारा दिए गए विवरण जजों के बयानात में दिए विवरणों पर सवाल खड़े करते हैं।

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यह संभव नहीं दिखता कि जजों ने अपने बयानात में जैसी हड़बड़ी वाली गतिविधियों का जिक्र किया है, वे बहुत शांति से हुई होंगी। पहले लोया की खराब सेहत, फिर कुलकर्णी द्वारा बोर्डे को किया गया कॉल, उसके बाद बोर्डे और राठी का कार से साथ वहां आना, लोया के ‘नीचे” आने तक जजों के बीच का संवाद और आखिरकार जजों के साथ लोया का दांडे अस्‍पताल के लिए प्रस्‍थान- इस घटनाक्रम में बेशक कुछ तो आवाज़ हुई ही होगी, भले हो-हल्‍ला न मचा हो।

इसके बावजूद रवि भवन के मौजूदा और पूर्व 17 कर्मचारियों के मुताबिक उस रात रवि भवन में ड्यूटी पर तैनात किसी भी स्‍टाफ को- रिसेप्‍शन से लेकर रूम सर्विस और विविध तक- इस बात का अंदाजा नहीं लगा कि 1 दिसंबर 2014 की सुबह एक गेस्‍ट को अस्‍पताल ले जाया गया है। मैं जिस तीसरे कर्मचारी से मिली उसने मुझे बताया, ”हमें तो पता ही नहीं चला कि हमारे परिसर में रह रहे एक जज की मौत हो गई है। जब अखबार उसके बारे में लिखने लगे (2017 में) और जांच शुरू हुई, तब जाकर हमें पता चला।” कुल 17 वर्तमान और पूर्व कर्मचारियों में से 15 ने मुझे बताया कि उन्‍हें लोया की मौत की खबर ऐसे ही मिली थी। बाकी दो को तो तब तक यह पता नहीं चला था जब तक मैं उनका इंटरव्‍यू करने गई।

दूसरे कर्मचारी ने बताया, ”आम तौर से अगर इतनी बड़ी कोई घटना घटती है तो रात की पारी वाले कर्मचारी सुबह वालों से इस बारे में बात करते हैं, लेकिन हम में से किसी को अंदाजा तक नहीं था कि ऐसा कुछ हुआ है।” मैंने जिस पहले कर्मचारी से मुलाकात की, उसने बताया, ”रवि भवन में उन्‍हें दिल का दैरा पड़ा था? ये तो मैं पहली बार सुन रहा हूं।” उसने बताया कि उसे एक डायरी रखने की आदत है जिसमें वह गेस्‍ट हाउस में अपनी ड्यूटी के दौरान हुई हर छोटी-मोटी घटना को दर्ज करता है। पहले कर्मचारी ने कहा कि अगर किसी जज को रवि भवन में दिल का दौरा पड़ा होता, उसे भोर में अस्‍पताल ले जाया गया होता और फिर उसकी मौत हो गई होती, तो इसे याद ज़रूर रखा जाता।

दूसरे ने कहा, ”ये चीजें छुप नहीं सकती हैं। यहां तक कि जब बड़े-बड़े लोग गेस्‍ट हाउस में शराब पीते हैं और देर रात लडकी ले आते हैं, तब भी हमें कानाफूसी से पता लग ही जाता है कि क्‍या हुआ है… ये कैसे संभव है कि किसी जज को भोर में चार बजे अस्‍पताल ले जाया गया हो और उसकी मौत हो गई हो, लेकिन हमें पता तक नहीं?”

जिस पांचवें कर्मचारी से मैं मिली, उसने कहा कि उस सुबह रवि भवन से लोया के जाने को लेकर जैसी गोपनीयता दिखाई देती है वह ”सामान्‍य नहीं है”। ”लेकिन हम कर ही क्‍या सकते हैं- जो हुआ हम तो उतना भी नहीं जानते। यह केस सामान्‍य नहीं लग रहा है।”

द कारवां ने पहले एक स्‍टोरी में बताया था कि जजों ने भले लोया के परिजनों को उनकी मौत के बाद बताया था कि वे उनके साथ ही रवि भवन में रुके थे, लेकिन वहां के रजिस्‍टर में लोया का नाम दर्ज नहीं था। रजिस्‍टर के मुताबिक सुइट 10 में कुलकर्णी ठहरे थे। मोदक ने अपने बयान में बताया है कि वे यानी कुलकर्णी, लोया और खुद मोदक ”एक कमरे में सोते थे।” इसका मतलब यह हुआ कि लोया, मोदक और कुलकर्णी के साथ सुइट संख्‍या 10 में थे।

सुइट 10 रवि भवन परिसर के भीतर पहली बिल्डिंग में स्थित है। इसी बिल्डिंग में रिसेप्‍शन भी है। रिसेप्‍शन ग्राउंड फ्लोर पर है जबकि सुइट 10 पहली मंजिल पर है। रिसेप्‍शन के बाएं हाथ पर करीब 40 कदम गलियारे में चलने के बाद एक सीढ़ी है जो पहले तल के सुइट 10 में ले जाती है। कुल 20 सीढि़यां हैं और सुइट 10 से नीचे आने के लिए यही सबसे छोटा रास्‍ता है।

सुइट और रिसेप्‍शन जितने करीब हैं, उस लिहाज से यह संभव नहीं दिखता कि सुइट के भीतर या आसपास किसी गतिविधि का पता रात की पारी में तैनात लोगों को नहीं लग पाएगा। इन कर्मचारियों के मुताबिक रात के गार्ड और फोन ऑपरेटर के अलावा रात की पारी- नवंबर 2014 के ड्यूटीचार्ट के मुताबिक रात 10 से सुबह 6 बजे तक- का अधिकतर स्‍टाफ रिसेप्‍शन पर ही इकट्ठा रहता है। पारी खत्‍म होने से पहले ये कर्मचारी कुछ देर के लिए आराम करते हैं। कुछ लोग रिसेप्‍शन काउंटर के नीचे गद्दा बिछाकर सोते हैं तो कुछ बगल वाले कमरे में- जहां 2014 में फोन ऑपरेटर बैठा करता था- जबकि कुछ और लोग सोफे पर या रिसेप्‍शन के पास फर्श पर ही सो जाते हैं।

अधिकतर कर्मचारियों के मुताबिक रवि भवन के रिसेप्‍शन का दरवाजा रात में आम तौर से बंद कर दिया जाता है लेकिन इनमें कांच के बड़े-बड़े पैनल लगे हैं। कमरे में भी चार विशाल खिड़कियां हैं जो सोफे के ठीक ऊपर हैं और जहां से मुख्‍य प्रवेश द्वार से लेकर रिसेप्‍शन तक की सड़क देखी जा सकती है जहां से आने-जाने वाली सभी गाडि़यां सामान्‍यत: गुजरती हैं।

बारहवें कर्मचारी ने कहा, ”बहुत गहरी नींद का सवाल ही नहीं है, (जब हम में से अधिकतर रात की पारी में होते हैं) हम बमुश्किल ही सो पाते हैं।” पांचवें कर्मचारी ने कहा, ”लेटे रहते हैं, नींद तो आती नहीं क्‍योंकि ड्यूटी रहती है तो प्रेशर रहता है।”

तीसरे कर्मचारी के मुताबिक हलका सा खटका भी आराम कर रहे कर्मचारियों को चौकन्‍ना कर देता है। उसने बताया, ”अगर किसी तार में कोई स्‍पार्क हुआ तो हमें पता चल जाता है।” उसने एक बार की घटना याद करते हुए बताया कि कैसे रिसेप्‍शन वाली बिल्डिंग के पीछे वाली बिल्डिंग में कुछ अतिथि रात में 1 बजे लिफ्ट मे फंस गए थे। उन्‍होंने तुरंत लिफ्ट के भीतर वाला अलार्म बजा दिया और कर्मचारियों ने सुन लिया। तीसरे कर्मचारी ने कहा, ”हम तुरंत  भागकर गए और बिजलीवाले को बुला लाए और उन्‍हें बाहर निकाला।” उसने बताया कि 2017 की एक रात साथ लगे हुए परिसर में एक गाय तारों में फंस गई और मर गई। कर्मचारियों को इस बारे में अगली सुबह पता लगा। ”गेस्‍ट हाउस में कुछ भी होता है- आग लगती है, कोई बीमार होता है- सबसे पहले तो हमें ही खबर लगती है न।”

तीसरे कर्मचारी ने कहा कि उसे विश्‍वास ही नहीं हो सकता है रिसेप्‍शन के पास कोई कर्मचारी सोया रहा हो और वह जजों के जाने की आवाज़ से जगा नहीं हो। ”गाड़ी आते हुए दिख ही जाती है तब”।

जिस तेरहवें कर्मचारी से मैं मिली उसने कहा, ”देर रात काफी सन्‍नाटा रहता है (उस रात भी था), इसलिए हलकी सी भी आवाज़ होती है तो काउंटर पर बैठा स्‍टाफ आगे बढ़कर देखता है कि क्‍या हो रहा है, लोग आखिर जा कहां जा रहे हैं और क्‍यों जा रहे हैं।” ”अजीब बात है, गाड़ी आती है, ऊपर से बंदे को लेके जा रही है और किसी को पता नहीं चलता है। बहुत ही अजीब बात है।”

इस महीने एक शाम करीब साढ़े सात बजे मैं जब रिसेप्‍शन के बाएं हाथ लगे सोफे पर बैठी थी, एक बस आई और सुइट 10 तक ले जाने वाली सीढि़यों के सामने सड़क पर रुक गई। अंधेरे के बावजूद बस से उतरने वाला हर व्‍यक्ति साफ़ दिख रहा था। ऐसे में यह कल्‍पना करना मुश्किल हो जाता है कि बिलकुल शांत परिस्थिति में जज कैसे निकले होंगे- पहले बार्डे और राठी कार में आए होंगे, फिर लोया जब ”शौच” में थे तो जजों ने इंतज़ार किया होगा और फिर लोया ”नीचे आए होंगे”, राठी के मुताबिक बातचीत हुई होगी और फिर वे लोग परिसर से निकल गए होंगे- और इसमें से कुछ भी किसी को पता नहीं चला होगा।

सत्रह कर्मचारियों ने जो कुछ भी बताया था, उसकी प्रतिक्रिया की उम्‍मीद में मैंने नागपुर में लोक निर्माण विभाग के मुख्‍य अभियंता उल्‍हास देबद्वार से बात की- नागपुर में यह सर्वोच्‍च अधिकारी हैं जो रवि भवन के प्रबंधन के लिए जिम्‍मेदार हैं। देबद्वार ने कहा कि वे इस मसले पर कोई टिप्‍पणी नहीं कर सकते चूंकि गेस्‍ट हाउस में क्‍या हुआ इसका उन्‍हें ”कोई आइडिया नहीं है”। उन्‍होंने मुझे कनिष्‍ठ अधिकारी से बात करने को कहा। देबद्वार को रिपोर्ट करने वाले नागपुर लोक निर्माण विभाग के अधिशासी अभियंता पीडी नाओघरे ने मुझे बताया कि उन्‍हें इस मसले के बारे में कुछ नहीं मालूम है। उन्‍होंने कहा कि मैं गेस्‍ट हाउस के लोगों से बात करूं।

मैं जिस दसवें कर्मचारी से मिली, उसने कहा, ”आप रवि भवन में किसी से भी पूछ लें, कोई भी आपको नहीं बता पाएगा कि क्‍या हुआ था… मेरा खयाल है कि यह घटना यहां हुई ही नहीं थी।” तेरहवें कर्मचारी ने कहा, ”गोलमाल ही है पूरा, डाइरेक्‍ट कुछ भी नहीं बता पा रहे।” नौंवें कर्मचारी ने कहा, ”कुछ महीने पहले तक पूरे रवि भवन को खबर नहीं थी कि यहां ऐसा कुछ भी हुआ था, अब आप लोग (मीडिया से) जब आए हो और पूछ रहे हो तो हम पता लगा रहे हैं कि यहां जो कुछ हुआ बताया जा रहा है उसके बारे में क्‍या बात चल रही है।” उसने कहा, ”मैं तो यह भी पक्‍के तौर पर नहीं कह सकता कि लोया यहां ठहरे थे, वो तो आप कह रही हो कि वे यहां ठहरे थे।”

कुल 17 में से महज एक कर्मचारी ने याद करते हुए बताया कि उसने लोया को रवि भवन में देखा था। इस दूसरे कर्मचारी ने बताया कि 30 नवंबर को दिन में जब वह गेस्‍ट हाउस में ड्यूटी दे रहा था तो उसने लोया को एक कमरे में देखा था। और किसी भी कर्मचारी को याद नहीं कि आता कि उसने लोया को दिन में या रात में कभी भी रवि भवन में देखा हो।

रवि भवन के कई कर्मचारी जिनसे मैंने बात की, वे इस तथ्‍य से हैरान थे कि लोया, मोदक और  कुलकर्णी जिस आपात स्थिति में थे, ऐसे में किसी ने एक कॉल भी रिसेप्‍शन पर क्‍यों नहीं की। सातवें कर्मचारी ने कहा, ”दिन हो चाहे रात, अतिथि की मदद करना हमारी ड्यूटी है। अब जब वे हमें बताएंगे ही नहीं तो हमें पता कैसे चलेगा?”

जिस गोपनीयता के साथ जजों ने लोया को अस्‍पताल ले जाने का जुगाड़ किया, वह और ज्‍यादा इसलिए चौंकाता है जब आप यह सोचते हैं कि कुलकर्णी ने शहर के दूसरे हिस्‍से में बैठे बार्डे और राठी को क्‍यों फोन किया होगा और उनके आने का इंतज़ार क्‍यों किया होगा। बजाय इसके कि या तो रिसेप्‍शन से तुरंत मदद ली जाती या किसी एम्‍बुलेंस को सीधे बुलवा लिया जाता।

तेरहवें कर्मचारी ने मुझे बताया, ”दरअसल, यहां यह होता है कि हलकी सी समस्‍या के लिए भी पहला कॉल आम तौर से काउंटर पर ही आता है… हर कमरे में एक इंटरकॉम है। लेकिन इस मामले में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।”

तेरहवें कर्मचारी ने समझाया कि मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति में वे यहां क्‍या होने की अपेक्षा रखते हैं। रवि भवन में अगर कोई अतिथि बीमार हो जाए, तो वह रिसेप्‍शन पर कॉल कर सकता है। फिर स्‍टाफ के लोग गेस्‍ट हाउस के इनचार्ज से संपर्क करते हैं। यह व्‍यक्ति या तो एम्‍बुलेंस की व्‍यवस्‍था करता है या फिर चिकित्‍सीय सहायता रवि भवन तक भेजता है। तेरहवें कर्मचारी ने कहा, ”यह सब कुछ 15 से 20 मिनट में हो सकता है, लेकिन यहां उसे (लोया) दिल का दौरा पड़ा फिर भी उन लोगों ने न तो कॉल कर के मदद मांगी न ही सूचना दी… मैं ये कैसे मान लूं?”

अधिकतर कर्मचारी जिनसे मैंने बात की, उन्‍होंने कहा कि जजों ने जैसी मेडिकल आपातस्थिति का रवि भवन में विवरण दिया है ऐसा उन्‍हें कभी तजुर्बा नहीं रहा। जब मैंने जोर देकर पूछा कि अगर मान लो कि ऐसी कोई स्थिति आ ही जाए तो वे कैसी कार्रवाई की उम्‍मीद करेंगे। उन्‍होंने तेरहवें कर्मचारी की ही बात को दुहरा दिया कि उनकी जानकारी में ऐसा कोई तय मानक नहीं है लेकिन उन्‍होंने कहा कि शुरुआती कदम के तौर पर अगर उन्‍हें संपर्क किया जाए तो वे या तो उच्‍च अधिकारी से संपर्क करेंगे या फिर अस्‍पताल को फोन लगाएंगे।

हमारी बातचीत के दौरान पांचवें कर्मचारी ने टिप्‍पणी की कि तीन लोगों को रवि भवन के एक सुइट में ठहरना ही अपने में असामान्‍य बात है जबकि 30 नवंबर 2014 को खाली सुइट उपलब्‍ध थे। उन्‍होंने बताया कि हर सुइट में दो बिस्‍तर हैं और सामान्‍य हालात में रवि भवन अपनी ओर से अतिरिक्‍त गद्दे की पेशकश अतिथियों को नहीं करता है। पांचवें कर्मचारी ने कहा, ”ज्‍यादा से ज्‍यादा, इतने सीनियर हैं, बड़े लोग हैं तो क्‍या होता है कि एक रूम में नहीं रहना चाहते हैं।” ”उन्‍हें अपने स्‍तर पर ही इंतज़ाम करना होता है अगर वे वाकई चाहते हैं।” सवाल उठता है कि तीनों जज निजी स्‍तर पर एक गद्दे का इंतज़ाम करने की हद तक क्‍यों गए होंगे। यह स्‍पष्‍ट नहीं है।

Suite 10, Ravi Bhawan, Nagpur

नवंबर 2014 में रवि भवन में काम कर रहे जितने भी कर्मचारियों से मैंने बात की थी उनके पास मैं दोबारा गद्दे के बारे में सवाल पूछने गई। उनमें से किसी ने भी अतिरिक्‍त गद्दे के अनुरोध की बात नहीं कही। यह पूछने पर कि क्‍या अतिरिक्‍त गद्दे का कोई अनुरोध किया गया था, पांचवें कर्मचारी ने कहा कि उस अवधि के दौरान ”ऐसा कभी नहीं हुआ है।” अधिकतर के मुताबिक अगर रवि भवन के किसी कर्मचारी के पास ऐसा कोई अनुरोध आता तो वह सीधे अतिथि को सेवा कुंज का संपर्क दे देता। सेवा कुंज नागपुर में एक स्‍टोर है जो किराये पर सामान देता है। इस स्‍टोर का रवि भवन के साथ पुराना रिश्‍ता रहा है। रवि भवन के रिसेप्‍शन पर सेवा कुंज के नाम का एक कैलेंडर टंगा है जो हर आगंतुक का स्‍वागत करता है। सेवा कुंज के मालिक ने बताया कि जब विधानसभा का सत्र चलता है, तो स्‍टोर को आम तौर से रवि भवन में माल सप्‍लाइ करने का ठेका मिल जाता है- बरतन, अतिरिक्‍त गद्दे, इत्‍यादि। मालिक ने मुझे बताया कि दूसरे महीनों में भी अगर रवि भवन को कोई सामग्री चाहिए होती है तो सेवा कुंज से ही खरीद को तरजीह दी जाती है। स्‍टोर के नवंबर 2014 के लिखित रिकॉर्ड मैंने देखे थे। उसके मुताबिक उस साल 29 या 30 नवंबर को न तो गद्दे का कोई अनुरोध आया था और न ही रवि भवन को कोई गद्दा सप्‍लाई हुआ था।

तीनों जजों की रिहाइश के संबंध में मोदक का विवरण भी कुछ सवाल खड़े करता है। जैसा कि मोदक ने एसआइडी को बताया, अगर तीनों एक ही कमरे में रुके हुए थे और जैसा कि कर्मचारियों ने मुझे बताया, एक गद्दा बेशक भीतर गया होगा तो इस लिहाज से यह तय बनता है कि गद्दा कमरे के बाहर भी आया होगा। इसके अलावा, लोया का लगेज और निजी सामान भी कमरे में रह गए होंगे। मैंने जितने भी कर्मचारियों से बात की, उनके मुताबिक 1 दिसंबर को वहां ड्यूटी पर तैनात किसी भी कर्मचारी ने न तो लोया की मौत के बारे में सुना और न ही उनके पास लोया के लगेज और निजी सामान को लेकर कोई सूचना थी।

लोया के निजी सामान से जुड़ा सवाल ही असल कुंजी है: द कारवां ने पहले भी लिखा था कि लोया की बहन अनुराधा बियाणी के अनुसार परिवार को लोया का मोबाइल फोन उनकी मौत के तीन दिन बाद सौंपा गया। रवि भवन से लोया का निजी सामान कौन ले गया- और क्‍या वे वास्‍तव में वहीं ठहरे हुए थे- यह अस्‍पष्‍ट है। चूंकि रवि भवन के 17 मौजूदा और पूर्व कर्मचारियों को तीन साल बाद तक उनकी मौत की कोई खबर नहीं थी और जजों के बताये मुताबिक घटनाक्रम की वे पुष्टि नहीं कर पा रहे, यह एक बार फिर से बताता है कि लोया की मौत के इर्द-गिर्द परिस्थितियां कैसी संदिग्‍ध थीं।


यह कहानी द कारवाँ पर 29 मार्च 2018 को प्रकाशित है, वहीं से साभार 

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