तो अब सारी चर्चा के केंद्र में पाकिस्तानी हिंदू हैं. संयोग से मेरी अगली किताब जो लंबे समय से प्रकाशन के इंतजार में है के मुख्य पात्र पाकिस्तानी हिंदू ही हैं, इस सिलसिले में रिसर्च के दौरान मैं हिंदुस्तान के विभिन्न हिस्सों में शरणार्थी के रूप में रह रहे पाकिस्तानी हिंदुओं से मिलते रहा. यह बात सच है कि वे लोग पाकिस्तान के कट्टरपंथी ताकतों द्वारा प्रताड़ित हो कर ही वहां से भागने को मजबूर हुए थे और यहां भी सुविधाओं से विहीन दयनीय हालात में जीने को विवश हैं. लेकिन उनकी बातों में इस बात का गर्व भी था कि वे धर्मांध पाकिस्तान के बदले उस हिंदुस्तान में हैं जहां इंसान को धर्म के चश्में से नहीं देखा जाता. हिंदुस्तान का यह चरित्र पाकिस्तान के हुक्मरानों और कट्टरपंथी ताकतों भी को न सिर्फ चिढ़ाते रहा है बल्कि मो. अली जिन्ना के ‘टू-नेशन थ्योरी’ की प्रासंगिकता पर भी प्रश्न चिह्न खड़ा करते रहा है.
हिंदुस्तान के समग्र सोच पर आधारित व्यवहार के कारण उन्हें ‘टू-नेशन थ्योरी’ को जायज, प्रासंगिक साबित करने के लिए कई हथकंडे अपनाने को भी मजबूर होना पड़ा. इन ताकतों को राहत 1984, बाबरी मस्जिद विध्वंस, 2002 जैसी तारीखों से जरूर मिली जब वे हर्षोल्लास से ‘टू-नेशन थ्योरी’ को सही बता पाए.
नागरिकता कानून जैसे हमारे निर्णय के बाद पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ प्रताड़ना का बढ़ना अवश्यम्भावी है, अब उन्हें और मजबूती से कहा जायेगा कि वे हिंदुस्तान चले जाएं. तो क्या हमने यह निर्णय कर लिया है कि पाकिस्तान के सभी हिंदुओं को हिंदुस्तानी नागरिकता दे देनी है? ज्ञात रहे कि पाकिस्तान के हिंदू संगठन हिंदुओं की जनसंख्या सरकारी आंकड़े से दुगुनी अर्थात लगभग 80 लाख बताते हैं. यहां उनकी मुश्किलों का आकलन इस तरह भी कीजिए कि पाकिस्तान छोड़ने का दबाब उन्हें कट्टरपंथियों द्वारा सामाजिक रूप से दिया जाता है जिसमें शारीरिक, मानसिक, आर्थिक व धार्मिक शोषण शामिल है, जबकि पाकिस्तान की सरकारें वैश्विक छवि बचाने के लिए उन्हें हर कीमत पर पाकिस्तान में रोकने की कोशिश करती है तभी हर साल पाकिस्तान छोड़ने वाले लगभग 5 हजार हिंदू अस्थायी वीजा पर ही हिंदुस्तान आते हैं और फिर वापस नहीं जाते. वहां से आते वक्त ज्यादातर मामलों में उन्हें शपथ पत्र तक देना पड़ता है कि वे वापस लौट कर पाकिस्तान आएंगे, अन्यथा की स्थिति में उनके बचे परिजन और संपत्ति दोनों खतरे में होते हैं. इस तरह एक तरफ उन्हें सामाजिक रूप से पाकिस्तान छोड़ने के लिए मजबूर किया जाएगा तो दूसरी तरफ वहां की सरकार हर तरह से उन्हें रोक कर रखने की कोशिश करेगी.
Assam: All Assam Students' Union (AASU) holds protest in Guwahati against #CitizenshipAmendmentAct. pic.twitter.com/B7xzpywyME
— ANI (@ANI) December 13, 2019
1947 के बाद 2019 को याद तो किया जायेगा, जो अभी हुआ इस तरह ऐतिहासिक तो है ही. आज से 72 साल पहले पाकिस्तान ने और हमने अलग-अलग राह पकड़ी थी, हमारी यात्रा भी अलग रही, हासिल भी अलग ही रहा. उनके रहनुमा मो.अली जिन्ना के लिए धर्म पहला पैमाना था व्यक्ति और राष्ट्र को देखने का लेकिन हमारे लिए यह सोच हमारे हजारों साल पुराने ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ और ‘सर्व धर्म समभाव’ वाले महान चरित्र के खिलाफ था, इसलिए वर्जित भी था. पाकिस्तान संकुचित धार्मिक विद्वेषपूर्ण सोच के कारण किस हश्र पर पहुंचा यह जगजाहिर है, उसके उलट रास्ते पर चलकर हमारी उपलब्धि भी सर्वविदित है. अब अचानक हमारी राह एक होने लगी है, हमने उनके रास्ते को चुनने का निर्णय किया है, चूंकि अब उनका हश्र हमारे सामने है तो यह समझने में मुश्किल नहीं होनी चाहिए कि हमारा हश्र क्या होगा. आने वाली पीढ़ी जब हमारे बारे में सोचेगी उनकी नजरों में हमारे लिए लगभग वही इज्जत होगी जो आज हमारी नजरों में मो.अली जिन्ना के लिए है.
मोहम्मद अली जिन्ना को हम भारतीय पसंद नहीं करते, यह कई बार नफरत की हद तक भी जाहिर होता है, लेकिन इस नापसंदगी, नफरत की वजह क्या है? यही न कि जिन्ना के लिए राष्ट्र का मुख्य आधार धर्म था, उन्हें ऐसा मुल्क चाहिए था जो मुख्यतः मुसलमानों के लिए हो. एक समय हिंदू-मुस्लिम एकता के बड़े पैरोकारों में से एक, और पहले पहल पाकिस्तान की परिकल्पना से पूरी तरह असहमत जिन्ना की सोच का इस तरह बदलना इस मुल्क के लिए किस कदर घातक साबित हुआ यह हम अच्छी तरह जानते हैं और जिसकी कीमत हम आज तक चुका रहे हैं. पाकिस्तान का हश्र यह बता रहा कि उन्हें हमसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ी, इकट्ठा, अविभाजित मुल्क आज कहीं बड़ा राजनीतिक, आर्थिक ताकत होता जिसका सीधा लाभ दोनों हिस्सों के आमजन को मिलता.
लेकिन यदि आज हम किसी भी वजह से, किसी भी परिस्थिति में अपने इस हिंदुस्तान में धर्म को आगे करेंगे, धार्मिक आधार पर किसी विसंगति को जन्म देंगे, मुल्क के आधार के रूप में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से धर्म को स्थापित करेंगे तो कहीं न कहीं जिन्ना की नकल कर रहे होंगे. उस विचारधारा की नकल जिसने न सिर्फ हमलोगों को क्षति पहुंचाई बल्कि उनलोगों को भी बर्बाद किया जो तथाकथित रूप से जिन्ना को तब ज्यादा अपने लगे थे, जिनके लिए उन्होंने पाकिस्तान बनाया. पाकिस्तान बनने के बाद वे कहने को कहते रहे कि वह मुल्क सभी धर्मों के लोगों के लिए है लेकिन वे जिस जलजले की आगाज कर चुके थे उस पर उनका भी बस नहीं होना था औऱ नहीं ही हुआ.
आजादी के बाद हमारा सत्तर साल का इतिहास, हमारा विकास, वैश्विक रूप से हमें हासिल हुई प्रतिष्ठा साबित करती है कि महात्मा गांधी के मार्गदर्शन में चुना गया हमारा रास्ता सही था और जिन्ना का गलत. पूरी दुनिया इसी वजह से आज महात्मा गांधी और हमें ज्यादा सम्मान की नजर से देखती है. यह हमारा हासिल है, हम इसे क्यों गंवाना चाह रहे हैं ? यदि यह हुआ और यदि हमनें ऐसा होने दिया तो आने वाली पीढ़ी हम से भी उसी तरह नफरत करेगी जिस तरह हम जिन्ना से करते हैं.
इतिहास के पास सभी का लेखा-जोखा होगा, हमारी चुप्पी का भी, हमारे बोलने का भी.
लेख में लेखक के निजी विचार है