दिल्ली के शाहीन बाग़ की ही तर्ज़ पर इलाहबाद के रोशनबाग़ धरने के खिलाफ़ भी अफवाहें फैलाई जा रही हैं। इन अफवाहों का मकसद धरने को कमजोर करना है। पहले इन धरनों को सांप्रदायिक और मुस्लिम वर्ग का विरोध बताया गया। बावजूद इसके ये देश के कोने कोने में फैलता चला गया। अब इसका वर्गीकरण करके सीएए-एनआरसी-एनपीआर के विरोध में चल रहे विरोध प्रदर्शन को कुलीन मुसलमानों का विरोध साबित करने की कोशिश की जा रही है।
कार्यक्रम के संयोजकों में से एक मोहम्मद सैफ बताते हैं कि यहां हर आर्थिक वर्ग की स्त्रियां आती हैं। कामता प्रसाद की रिपोर्ट पूर्वाग्रह से ग्रस्त और पूरी तरह से रोषशनबाग़ घरने को बदनाम करने के लिए लिखी गई है। इसमें कोई अचरज़ की बात नहीं है। हमने देखा जब शाहीन बाग़ का धरना मजबूत होने लगा था उसे भी बदनाम करने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाए गए थे।
कामगार स्त्रियां बहुत बड़ी संख्या में न सिर्फ़ यहां धरने में आती हैं बल्कि लगातार रातो-दिन डटी रहती हैं।कई अपने काम और आंदोलन के समय की बीच संयोजन स्थापित करके आती हैं तो कई काम काज छोड़कर पूरा समय आंदोलन को दे रही हैं। जहां मुल्क़, संविधान और अपनी नागरिकता बचाने की लड़ाई हो वहां रोजी-रोटी पहली प्राथमिकता नहीं रह जाती। इस बात को पसमांद और दलित मुस्लिम वर्ग के लोग बखूबी समझते हैं। जो ये कह रहे हैं कि मुस्लिम कामगार महिलाएं अपने वर्ग चरित्र और दिहाड़ी वर्ग दो जून की रोजी-रोटी जुटाने के संघर्ष से ही उबर नहीं पा रही वो गलत कह रहे हैं। आप आइए हम आपको ऐसी स्त्रियों से मिलवाएंगे जो जो कामगार भी हैं और लगातार आंदोलन में सक्रिय भागीदारी भी निभा रही हैं।”
सिलाई का काम करने वाली तरन्नुम कहती हैं- “ पिछले एक महीने से लगातार वो धरनास्थल पर आ रही हैं। इससे उनका काम-काज प्रभावित हुआ है। लेकिन कम खाकर भी वो धरने पर आती रही हैं और आगे भी आती रहेंगी। वो कहती हैं यहां स्त्री स्त्री में कोई भेद नहीं है। ये हम सबकी साझा लड़ाई है। इसमे कुलीन और दलित का भेद पैदा करके दरअसल आंदोलन को भटकाने और कमजोर करने की साजिश की जा रही है। ”
12 वीं कक्षा की छात्रा तूबा रोशनबाग़ के धरने में लागतार बैठ रही हैं। वो कहती हैं इससे हमारी पढ़ाई प्रभावित हुई है। मेरी बोर्ड परीक्षा शुरु हो गई है। बावजूद इसके मैं इस धरने में शामिल हूँ तो सिर्फ़ इसलिए क्योंकि ये मुल्क़ और संविधान मेरी पढ़ाई और बोर्ड परीक्षा से ज़्यादा महत्वपूर्ण है।
रोशनबाग़ मंसूर अली पार्क धरनास्थल पर पिछले एक महीने से लगातार चाय बेचने वाले मनोज बताते हैं- “मैं पश्चिम बंगाल का रहने वाला हूँ। और यहां इलाहाबाद में रहता हूँ। मैं पिछले एक महीने से यहां चाय बेच रहा हूँ। अगर एनआरसी-एनपीआर होता है तो मेरी भी नागरिकता छिन जाएगी क्योंकि मेरे पास भी नागरिकता को साबित करने वाले कागज नहीं हैं।
मनोज को एनआरसी-एनपीआर के बारे में कुछ नहीं मालूम था लेकिन यहां धरनास्थल पर लगातार बेचते हुए लोगों की बाते सुन सुनकर उन्होंने जाना कि एनआरसी-एनपीआर-सीएए कितनी ख़तरनाक चीज है। मनोज बताते हैं कि यहां हर तरह की स्त्रियां हैं। अमीर-गरीब और छुआछूत जैसी बात यहां नहीं हैं। यहां धरने में शामिल होने वाले हर व्यक्ति का मकसद एक ही है।यहां धरनास्थल पर आपको गरीब तबके के बच्चे (जो अपनी माँओं के साथ आए हैं) सारा दिन आपको खेलते कूदते दिख जाएगें।