नागरिकता कानून और एनआरसी के देशव्यापी विरोध आन्दोलन में जहां छात्र और आम शहरी इन शीत भरी रातों में खुले आसमान के नीचे सड़क पर गुजार रहे हैं, ऐसे में लेखक कलाकार अपनी जिम्मेदारियों को कहां और किस हद तक निभा पा रहे हैं यह भी देखना महत्वपूर्ण है. देश की राजधानी में इस आन्दोलन में कलाकारों की भागीदारी और भूमिका पर प्रकाश डाल रहे हैं पत्रकार सुशील मानव. (संपादक)
जब मर जाऊँ तो अलग पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पर हिंदुस्तान लिख देना
एनआरसी – सीएए के खिलाफ़ हर कोई अपने अपने ढंग से विरोध कर रहा है। जामिया, डीयू, जेएनयू, जंतर मंतर और देश के दूसरे क्षेत्रों की सड़कों पर उड़ीसा की अंशुका की कलाकृतियां कई हाथों और दीवारों पर दिख जाएंगी। जामिया फाइन आर्ट की छात्राअंशुका महापात्रा कहती हैं– “शब्दों, नारों के जरिए हम ज़्यादा लोगो तक ज़्यादा प्रभावी ढंग से नहीं पहुँच पाते। शायरी, पोयट्री और चित्रों के जरिए हम ज्यादा अपील कर पाते हैं। मैं जामिया की छात्रा हूँ और मैं जानती हूँ कि उस दिन जामिया में क्या हुआ था? उस दिन अपनी आँखों से देखने के बाद ही मैं जान पाई कि कितना गलत हो रहा है, किस तरह से मुसलमान कम्युनिटी को जानबूझकर टारगेट किया जा रहा है। मैं अपनी कला को एनआरसी-सीएए-एनपीआर के विरोध को रचनात्मक बनाने के लिए कर रही हूँ।”
मेरे पुरखों ने सींचा लहू से इसे, छोड़कर इस जमीं को नहीं जाएंगे।”
इसके अलावा पीठ के बीचो-बीच भारत का नक्शा बना है और उसके चारो दिशाओं में हिंदू-मुस्लिम सिख ईसाई आपस में भाई भाई लिखा है। उसके नीचे पुलिस के डंडो और गोलियों के खिलाफ़ लिखा है- “मैं घर से माँ की दुआ लेकर चला हूँ।”
“ जब मर जाऊँ तो अलग पहचान लिख देना
लहू से मेरे पेशानी पर हिंदुस्तान लिख देना।”
सड़कों पर उकेरी गई कलाकृतियाँ, दीवारों पर नारे
जामिया की सड़कों पर ‘लड़ेंगे मगर प्यार से’ बैनर के साछथ प्रोटेस्ट कर रहे लोगों की कलाकृतियों उकेरी गई हैं। जामिया के दीवार पर लिखा है- अख़बार बिक गए तो हमने दीवारों को अपनी ज़बान बना ली।एक जगह लिखा है- “हम ज़िंदा कौम है साहेब, हमारे अंदर का ईमान बोलेगा”
एक जनवरी को मिन्हाज का जन्मदिन था और वो अपनी गर्लफ्रैंड अर्शी के साथ जामिया में प्रोटेस्ट में शामिल होने आए थे।अर्शी ने जो पोस्टर पकड़ रखा था उसमें लिखा था –“it’s so bad even our Birthday BOY is here.”
पटना के एक किसान ने अपने पोस्टर पर लिखा है- ‘दर्जनों भाषा, सैंकैड़ो विधि, हजारों विधान है, जो जोड़कर सबको रखे वो संविधान है।’
एक मेट्रो पिलर पर लिखा है- ‘गुमनाम हूं मैं, मुझे गुमनाम ही रहने दो, मत पूछो नाम मेरा बस, हिंदुस्तान रहने दो।’
एक ने भाजपा के निशान कमल यानि LOTUS को LOOT-US लिखा है।
पीड़ा में भी मजेदार पोस्टर बैनर्स
इस बेहद कठिन और दुरूह वक़्त में भी ह्युमर मुस्लिम समुदाय के लोगों की प्रचंड जीवटता का प्रमाण है।कुछ मजेदार पोस्टरों पर एक नज़र डालते हैं-अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पुलिसिया बर्बरता में अपना पैर तुड़वाने के बाद पैर पर चढ़े प्लास्टर के ऊपर छात्र ने लिखा है‘AMU rejects CAB’, एक पोस्टर में लिखा है-‘मोदी जी.. तुमने जलेबी खाई है? वो मुस्लिम विरासत से आई है’, ‘I am from GUJRAT my documents burned in 2002.’,
दूसरे ने एक और मजेदार तंज करते हुए पोस्टर में लिखा है- ‘अब्बा के वालिद जो थे दादा हमारे, वो बकरा पाला करते थे। बकरा कागज़ात खा गया और दादा बकरा खा गए। अब कागज़ात कहाँ से लाएँ??’
एक आदमी ने अपने पोस्टर में लिखा है- ‘ मेरे कागज़ चूहा खा गया, चूहे को बिल्ली खा गई, बिल्ली को कुत्ता खा गया, कुत्ते को सरकारी गाड़ी ले गई, इस हिसाब से मेरे कागज़ सरकार के पास जमा हो गए।’
एक ने पोस्टर में हिटलर और मोदी की तस्वीर एक साथ लगाकर लिखा है-‘Now I do believe in Dusra janam। (अब मैं दूसरे जन्म में विश्वास करने लगा हूँ।)’
एक जनाब अपने पोस्टर में लिखे हुए हैं- ‘जॉनी देश चलाना बच्चों का काम नहीं, तुम चाय बेचो हमारा हिंदोस्तान नहीं।’
एक बहुत ही सुंदर कार्ड में लिखा है- ‘ तुम्हारी गलतफहमी है कि तुमने हमें डरा दिया है, सच ये है कि तुमने हमें जगा दिया है!’ और उसके बगल में दिया जलाकर रखा गया है।
कुछ और पोस्टर इस तरह हैं- ‘BJP is that toxic partner that you need to BREAK-UP! Run & save your life’, ‘मोदी मेरे डॉक्युमेंट्स तेरी चाय की दुकान पर रह गए।’,‘ इस संविधान की कीमत तुम क्या जानो फेकू बाबू’ , ‘opposition से डर नहीं लगता साहब, स्टूडेंट से लता है’-मोदी।’, ‘इंडियन नेशनलिस्ट्स अंगेस्ट हिंदुत्व नेशनलिस्ट्स’, ‘कपड़ों से पहचाने जाएंगे, हम कागज नहीं दिखाएंगे’, ‘हम जरा कुछ दिन घर क्या बैठे, संसद आवारा हो गया’, ‘ इलाहाबाद ही प्रयागराज है, और NPR ही NRC है।’
एक ने लिखा है- ‘लालू जी चारा ले गए, आप भाईचारा ले गए।’
एक पोस्टर में लिखा है- ‘माँ और मुल्क़ बदले नहीं जाते।’
एक बैनर में मोदी शाह को संविधान की अर्थी कंधे पर उठाए शवयात्रा निकालते दिखाया गया है।
एक पोस्टर में लिखा है- ‘Respect my EXISTANCE or expect my RESISTANCE.’
शाहीन बाग़ का एक पोस्टरलोकतांत्रिक मूल्यों को परिभाषित करता है- ‘We RESIST therefore we EXIST’
एक लड़की ने सेकुलरिज्म को लेकर लिखा है- ‘जो कौम बाबरी मस्जिद पर ख़ामोश रही, वही संविधान के खोने पर उद्वेलित हो गई।’
एक ने आरएसएस की गणवेश बनाकर ऊपर लिखा है-‘the real tukde tukde gang’
एक लड़की ने अपने पोस्टर में लिखा है- ‘We grew up reading Harry Potter & not BAL NARENDRA’
एक पोस्टर है- ‘हम भारत के लोग एकस्वर में घोषणा करते हैं, मोदी बीमार हैं, शाह तड़ीपार हैं, आरएसएस/भाजपा गद्दार हैं।’
एक पोस्टर है- ‘ न तुम्हारे बुलाए आए थे, न तुम्हारे भगाए जाएंगे।’
एक बैनर पर लिखा है- ‘हिंदू हूँ , चूतिया नहीं।’
एक ने मोदी के अच्छे दिन वाले जुमले पर लिखा है-‘ मुझे मेरे बुरे दिन लौटा दो।’
एक ने डिजिटल इंडिया के जुमले पर पूछा है ‘डिजिटल इंडिया विदाउट इंटरनेट?’
कुछ लोगो ने हद ही कर दी हैएक ने पुलिस के लिए लिखा है- ‘मुठ मारो, स्टूडेंट नहीं।’
एक बैनर है- ‘हिंदू-मुस्लिम-सिख एक है, मोदी शाह फेक है।’
एक ने तो मोदी की अर्थनीति पर सवाल करके लिखा है- ‘Indian economy is lost, if found please return.’
एक ने लिखा है- ‘Help our PM is sick.’
एक लड़की ने डिजिटल इंडिया के जुमले का मजाक उड़ाते हुए लोकतंत्र पर हुए हमले पर लिखती हैं- ‘Error 404: DEMOCRACY not found. ’
एक बुजुर्ग बैनर पे लिखते हैं- ‘500 साल पुरानी मस्जिद के डॉक्युमेंट दिखाने पर भी मस्जिद नहीं मिली। 70 साल के डॉक्युमेंट दिखाने परसिटिजनशिप मिलेगी क्या?????????’