”इस चुनाव के बाद भाजपा सर पटक कर मर जाएगी” : अफ़ज़ाल अंसारी
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में आखिरी दौर के मतदान को केवल एक दिन बचा है। चुनाव प्रचार थम चुका है। ज़मीन पर सन्नाटा है। जिसे जितना बोलना था, वो बोलकर जा चुका है। कौन जीतेगा और कौन हारेगा, यह सवाल 11 मार्च को हल होगा लेकिन पूर्वांचल में एक ख़ानदान ऐसा है जो अपनी ”पराजय में भी जय” को देख रहा है। ग़ाज़ीपुर की मोहम्मदाबाद सीट पर इस ख़ानदान का सबसे उम्रदार शख्स बसपा से खड़ा है- सिबग़तुल्ला अंसारी। मऊ से कुख्यात मुख़्तार अंसारी खड़े हैं तो घोसी से चुनाव मैदान में उनके सुपुत्र दाँव आज़मा रहे हैं। मुख़्तार फि़लहाल लखनऊ जेल में हैं, लिहाज़ा तीनों सीटों के प्रचार का जिम्मा तीसरे भाई अफ़ज़ाल अंसारी के सिर पर है। अफ़ज़ाल न केवल खानदान की तीन सीटों के लिए सोमवार शाम तक लगे रहे बल्कि उनके जिम्मे पूर्वांचल के मुसलमान वोट भी हैं और अपने ख़ानदान की प्रतिष्ठा भी, जिसका कम्युनिस्ट अतीत आज़ादी के आंदोलन से होता हुआ माफ़िया की छाया से गुज़र चुका है। इन चुनावों में अंसारी बंधुओं की भूमिका की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने भाषणों में मुख़्तार का जिक्र करना पड़ा है और अंसारी बंधुओं के प्रभावक्षेत्र में सपा और भाजपा मिलकर उन्हें हराने की रणनीति पर काम करते रहे। कहा जा रहा है कि चुनाव परिणाम अगर बसपा के पक्ष में आए तो बहुमत के लिए विधायक जुटाने की जिम्मेदारी भी अफ़ज़ाल के कंधे पर ही आने वाली है। उनके दादा डॉ.मुख़्तार अहमद अंसारी (जिनके नाम पर दिल्ली के दरियागंज में अंसारी रोड है) कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और नाना, ‘नौशेरा के शेर’ महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर उस्मान ने कश्मीर बचाने के लिए पाकिस्तान से लड़ते हुए शहादत दी थी, पर अब वे महज़ माफ़िया जाने जाते हैं !
इस व्यापक संदर्भ में बसपा के लिए पूर्वांचल में चुनाव की कमान संभाले अफ़ज़ाल अंसारी क्या सोचते हैं, यह जानना काफ़ी अहम होगा। अभिषेक श्रीवास्तव ने उनसे मोहम्मदाबाद स्थित उनके निजी आवास पर लंबी बातचीत की है। उत्तर प्रदेश की सियासत को समझने के लिए यह साक्षात्कार पढ़ा जाना ज़रूरी है।
देखिए मैं तो यही कहूंगा कि पूर्ण बहुमत की सरकार आ रही है। हम मानते हैं कि हमसे बेहतर आप देख रहे हैं क्योंकि आप उत्तर प्रदेश घूम रहे हैं। मैं तो सीमित क्षेत्र में घूम रहा हूं। ड्यूटी कर रहा हूं पार्टी की। उम्मीद है, कल्पना है और कामना है कि बसपा की सरकार आनी चाहिए लेकिन जब तक मतगणना न हो जाए तब तक क्या कहूँ।
पार्टी का कोई आँतरिक आकलन?
जो मालिक लोग हैं वो करते होंगे। हमारे जैसे औक़ात के कार्यकर्ता केवल प्रचार करते हैं। आपको यह महसूस हुआ होगा कि पहले दौर में बीएसपी आगे है। बीजेपी जात-वात का विरोध करती है लेकिन उसने अतिपिछड़ी जातियों में काफी कोशिश की है। उसकी वजह से वे काफी पीछे चले गए। दूसरे दौर में सुधार हुआ है बसपा की स्थिति में, इसमें भी हम ही अव्वल हैं। तीसरे दौर में सपा का प्रदर्शन आधे से भी कम है। पहले दो दौर में तो वैसे ही सपा कमज़ोर थी। इसमें भी बीजेपी हमसे नीचे है। चौथे दौर में बुंदेलखंड में सपा साफ हो गई है। इसमें बीजेपी हमसे लड़ी है, सपा से नहीं। पांचवें दौर में उम्मीद बहुत ज्यादा सपा के पक्ष की थी, लेकिन इस बार भाजपा वो दौर जीत रही है। सपा पहले के मुकाबले कम हो रही है। मुझे लगता है कि इस दौर में हम सपा के बराबर में हैं। छठा दौर 49 सीटों का है। घाघरा उस पार योगी का क्षेत्र है। इसमें इतना है कि हमसे जीत नहीं सकेगी भाजपा। उधर से वो बढ़ के भी आए तो घाघरा इस पार में हम चार सीट में उसकी औकात नाप देंगे। सातवें दौर में तो प्रधानमंत्री ही उतर गए हैं। क्या कर दें चमत्कार पता नहीं। यहां वे जातीय समीकरण पर भरोसा कर रहे हैं।
मतलब सेंध लगाई है भाजपा ने पिछड़ी जातियों में?
सेंध नहीं लगाई… पटेल में सेंध नहीं लगा पाए। केवल 25 फीसदी। मौर्या में 80 फीसदी। राजभर में 75 फीसदी। निषाद में भी 70 फीसदी। बहुत से लोग ऐसी बात कहने की कोशिश करते हैं ताकि नतीजे आने के बाद वे सही रहें। जैसे, बिंद की संख्या 65000 है लेकिन 45000 बताई जा रही है। अब अगर वो जीत जाएँ तो अपने सिर सेहरा बाँध लेंगे।
जब सपा और कांग्रेस का गठबंधन हुआ था तो बसपा का कार्यकर्ता मान रहा था कि सरकार बनना मुश्किल है, लेकिन अब बसपा मज़बूत दिख रही है। आख़िर इस बीच बदलाव क्या हुआ ?
शुरू से मीडिया की निगाह बसपा के लिए अपने दिल की बात सुनती रही। मेरा मशविरा है कि अब मीडिया को रिव्यू करना चाहिए क्योंकि अब सपा लडाई में नहीं है। ऐसा क्यों हुआ, इसके कारण बहुत से हो सकते हैं। बसपा का अच्छा संगठन है, मज़बूत जनाधार है, समाजवादी पार्टी पारिवारिक झगड़ों में ऐसे उलझ गई कि बहुत से लोगों का भरोसा टूटा। इस बार लोग मान रहे हैं कि ये समाजवादी पार्टी वो समाजवादी पार्टी नहीं है। इसने उसका नाम और निशान चुरा लिया है। ये मुलायम सिंह की पार्टी नहीं रह गई है। चौधरी चरण सिंह के बाद किसानों की आवाज सबसे मजबूती से मुलायम सिंह ने उठाई है। जब यूपी का चुनाव शिखर पर हो और मुलायम सिंह जैसा नेता सीन से गायब हो, तो लोग उसकी वजह ढूंढते हैं। इसकी वजह खुद उनके सुपुत्र हैं, युवा जोश है। मुलायम सिंह की जैसी दुर्गति हुई है, उसका खमियाज़ा अखिलेश को भुगतना पड़ रहा है। वो समझते हैं कि मुलायम के बिन भी हम सब कुछ हैं। मुलायम के बगैर वे कुछ नहीं है। अब तक वे सत्ता में थे तो उनका जलवा था। 11 के बाद यह जलवा भी खत्म होगा और फिर से एक बार समाजवादी पार्टी एक नए बिखराव की तरफ़ बढ़ेगी। अखिलेश यादव के बस का नहीं है। परिवार भी टूटेगा और पार्टी फिर से टूटेगी। कई लोगों को इन्होंने टिकट दिया है और हराने का इंतज़ाम भी कर दिया है।
क्या ऐसा हो रहा है वाकई…
क्यों नहीं… इसी गाज़ीपुर जिले में जाइए जमानिया। ओमप्रकाश सिंह का गला काटने की पूरी तैयारी है। क्या दिशा है? किस मुंह से कहोगे कि समाज में, प्रदेश की राजनीति में, कि मैं भाजपा से लड़ूंगा? अभी तो केवल दीवार दरकी है। गिरी नहीं, गिर जाएगी। मोहम्मदाबाद की सीट खुला नमूना है। पूरी सपा भाजपा के लिए वोट मांग रही है। आप जिससे चाहे पूछ लीजिए। सपा का जो जनाधार है भाजपा पर चढ़ाओ, यही चुनउवे है, और क्या है। और क्या चुनाव है?
एक शेर है- तारीख़ ने देखी हैं ऐसी भी कई घडि़याँ, लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई। गुनाह तो इतना हो रहा है, लेकिन इस गुनाह का ज़हर फैलेगा बहुत दूर तक। अव्वल तो मैं कोशिश करूंगा इस सीट को बचा लिया जाए और अगर नहीं भी बचेगी तो हम मिटते-मिटते इनको मिटा देंगे।
मतलब समाजवाद का किला गया…
लड़ाई भाजपा और बसपा के बीच है। सपा तीसरे नंबर पर है। छठे और सातवें वोट में हम लोगों को दरकिनार करने की वजह से जितना भी इनका
भाजपा जो ओबीसी को चारा डालकर फँसा रही है, बसपा उससे कैसे निपट रही है?
अब निपटने का वक्त नहीं रह गया.. अपना-अपना वोट है सबका। अब समय नहीं बचा।
यूपी की सामाजिक न्याय की राजनीति आगे के वर्षों में भाजपा से कैसे लड़ेगी?
मोदीजी इस देश में आरएसएस का एजेंडा लागू करना चाहते हैं। कुछ नया करने के लिए कानून बनाना होगा। कानून बनाने के लिए लोकसभा में बिल लाइए, फिर राज्यसभा में जाएगा, पास हुआ तो क़ानून बनेगा। यहीं गाड़ी उनकी फँस जाती है क्योंकि राज्यसभा में इनका बहुमत नहीं है। यूपी ऐसा राज्य है जहाँ से बड़ी संख्या में सांसद जाते हैं। उनकी चाहत है कि ऐसा हो, कि यहां हुकूमत मिले तो वो सब करेंगे जो करना चाहते हैं। मुझे लगता है उनका नापाक मंसूबा इस चुनाव के बाद असफल हो जाएगा। इस चुनाव के बाद वो सर पटक कर मर जाएंगे। ये चुनाव एक प्रयोग है। ये प्रयोग अगर कामयाब हो गया, उसके करीब भी पहुंच गया तो आगे के लिए ज़बरदस्त समीकरण तैयार हो जाएगा।
कैसा प्रयोग?
जो जिसके साथ खड़ा है, उस लिहाज से… अल्पसंख्यक और दलित अगर ठीक से मिल जाएँ उत्तर प्रदेश में तो इनका सारा समीकरण मिट्टी में मिल जाएगा। अब क्या कीजिएगा, बांग्लादेश से वोट देने आएगा कोई ? 22 और 20 मिलाकर ये 42 परसेंट हैं। अन्य अतिपिछड़ा वर्ग जो वहां से ठगा जाएगा, अपने रास्ते पर आएगा। प्रोफेसर वैद्य ने क्या बयान दिया, मोहन भागवत के पेट में क्यों गैस बनती है आरक्षण को लेकर- इसे वो समझेगा। जब समझेगा तो इनके नापाक मंसूबे मिट्टी में मिल जाएँगे। हिंदुस्तान के लोकतंत्र में इतनी पेचीदगी है कि ये उलझन में रह गए तीन साल तक… बस उछलते रह गए। अभी सब भाजपा के लिए कह रहा है न पूर्ण बहुमत ? ये मीडया वाले लोग हैं। तीसरा नेत्र या तो शंकर भगवान के पास है या आपके मीडिया के पास। ये तीसरा नेत्र मीडिया के मालिकों के पास है। आप ग्राउंड जीरो पर घूमते रहिए, आपका मालिक जो आदेश देगा वो छपेगा। हम कहते हैं कि मुख्तार अंसारी को आप शंकराचार्य मत लिखिए, लेकिन अंसारी परिवार का एक पूरा इतिहास है देश के लिए कुछ करने का… इसी का रिएक्शन होता है… हम लोग आखिर क्या हैं, इसे समझने के लिए बस इतना जानिए कि राष्ट्रीय स्तर पर हमारे खिलाफ षडयंत्र होता है… कहीं न कहीं हम इस औकात में तो हैं कि हमसे लड़ने के लिए मोदी और अखिलेश को मिल जाना पड़ता है। हमारी पराजय में भी जय है। मैं तो सांसद का भी चुनाव हारा, लेकिन एक घंटे के लिए भी दूर नहीं रहा। भरत सिंह का पूछ लीजिए, तीन साल हो गया दर्शन नहीं…।
है, मुसलमान से ज्यादा किसी की पार्टिये नहीं है, लेकिन मुसलमान से ज्यादा कोई सेकुलर नहीं है। वो ऐसे पार्टी के लीडरों को तवज्जो नहीं देता। आप बताइए ओवैसी साहब क्या हैं।
अभी उभरते हुए हैं…
अरे? उभरते हुए हैं? अरे बाप रे बाप, सीधे चारमीनार से कूदते हैं तो चले आते हैं… एक जंप में सीधे… मेरा मानना है कि मुसलमान जहाँ भी रहे, इकट्ठा रहे, अपनी पार्टी की बात मैं नहीं मानता।
अपनी एक पार्टी होने में क्या खतरा है?
मैं कई बार कह चुका हूं कि ओवैसी महाकट्टरपंथी हैं। वो ठीकेदार है। कट्टरपंथी तो दिखाने के लिए हैं। असलियत में भाजपा को फायदा पहुंचाने वाला ठीकेदार है। उत्तर प्रदेश के लिए जब हमने उनसे कहा तो फ़रमाने लगे कि महाराष्ट्र में हमने दो सीटें जीती हैं। मैंने कहा कि इसका मतलब ये है कि महाराष्ट्र में आपने भाजपा की सरकार बनवाई है। तो हम भी उत्तर प्रदेश में दो सीटें जीत लें तो चलें चारमीनार लड़ने ?
उलेमा काउंसिल के बारे में भी यही मानते हैं आप?
अब देखिए, वो हमारी पार्टी का समर्थन कर रहे हैं तो अब कुछ कहने की स्थिति नहीं है। हम अपने लिए कह सकते हैं कि सात साल तक हम अपने झंडे पर लड़े। अभी तो सवाल ये आकर खड़ा होगा कि मुसलमान के नाम पर राजनीति की जाए या अच्छाई और बुराई के नाम पर? मेरे राजनीतिक गुरु थे कामरेड सरजू पांडे। हम इन पार्टियों के कृपा पर राजनीति नहीं शुरू किए थे। लाल झंडा लेकर चार बार जीते। उसके बाद समाजवादी पार्टी में आए। किसी को भी कौम के नाम पर राजनीति करने का हक नहीं। राजभर अपनी पार्टी बनाया, पटेल अपनी पार्टी बनाया, निषाद अपनी पार्टी बनाया, केवल इसलिए मुसलमान अपनी पार्टी बना ले, इसका कोई मतलब नहीं है। अगर अपनी पार्टी बनाकर कोई कुछ कर दे तो ठीक, लेकिन इनका राष्ट्रीय अध्यक्ष भी अपना चुनाव हार जाता है। कहीं न कहीं अंत में आपको झुकना ही होगा, तो शुरू में ही सही ताकत के साथ जुडि़ए।
अच्छा अंत में ये बताइए कि ग़ाज़ीपुर में इतनी एसयूवी गाडि़याँ क्यों दिखती हैं? अचानक इतनी संपन्नता कैसे आ गई।
यार, आप क्या समझते हो… माननीय भारत सरकार में गाज़ीपुर का जो स्थान है आप उसे इतने हलके में क्यों ले रहे हो। संचार मंत्रालय हमारे पास, रेलवे मंत्रालय हमारे पास, हमारे छोड़े हुए लोग… लंबा साम्राज्य है… प्रधानमंत्री के चुनाव क्षेत्र के हम ही जिम्मेदार हैं। तो यहाँ नहीं दिखेंगी तो कहां दिखेंगी। आधा पीएमओ बनारस में बैठा है… अब तो पूरा पीएमओ आ गया है…।
तो सारी गाडि़यां उन्हीं की हैं?
बहुत से लोगों की हैं लेकिन कोई उसी पैटर्न का एक माहौल बना देता है तो दूसरे लोग भी वही करते हैं।