बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में पार्टियों के प्रचार में एक ख़ूबसूरत तस्वीर उभर कर सामने आ रही है की सामान्यतः नेता और पार्टियां जन सरोकार के मुद्दों की बात कर रहें हैं| विगत कुछ वर्षों में जिस तरह साम्प्रदायिक और जातिगत समीकरणों तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को विधानसभा चुनावों में प्रमुखता दी जा रही थी बिहार चुनाव में उससे उलट तस्वीर नजर आ रही है|
ऐसे में जबकि युवा शक्ति और युवाओं से जुड़े मुद्दे प्रमुखता रख रहे हैं तो यह देखना भी जरूरी हो जाता है की बिहार की उच्च शिक्षा किन हालात में हैं। इस रिपोर्ट में बिहार के मुख्य विश्वविद्यालयों की हालिया स्थिति है;
बिहार के विश्वविद्यालय लम्बे समय से अपने तमाम अनियमितताओं के लिए सुर्खियाँ बटोरते रहे हैं। जैसे कि समय पर परीक्षाओं का ना होना, 3 वर्ष के स्नातक का 6 से 7 वर्षों में पूरा होना या एक ही सत्र में दो-दो सत्रों के परीक्षाओं को आयोजन कराना।
रोजगार के अभाव के साथ-साथ बदहाल उच्च शिक्षा भी बिहार से युवाओं के पलायन का एक बड़ा कारण है|
मगध विश्वविद्यालय (गया)
मगध युनिवर्सिटी में देर से चल रहे सत्रों के कारण 3 लाख विद्यार्थी प्रभावित है| 2018-21 सत्र में स्नातक प्रथम वर्ष की परीक्षा जो की मई 2019 से पहले पूरी ही जानी चाहिए थी, अभी तक आयोजित भी नही हुई है| मार्च 2020 तक सत्र 2019-22 की स्नातक की परीक्षाएं शुरू भी नही हुई थी| परास्नातक सत्र 2017-19 जो की मई 2019 तक पूर्ण हो जानी चाहिए थी, के दो ही सेमेस्टर की परीक्षाएं पूर्ण है| परास्नातक के सत्र 2018-20 के 2 साल में एक भी सेमेस्टर की परीक्षा आयोजित नही हुई है|
जयप्रकाश नारायण विश्वविद्यालय (छपरा)
स्नातक कोर्स के सत्र 2015-18 तथा सत्र 2016-19 के सिर्फ दो वर्षों की ही परीक्षाएं पूर्ण हुई हैं जबकि ये दोनों सत्र क्रमशः 2018 तथा 2019 में पूर्ण हो जानी चाहिए थी| परास्नातक के 2016-18 सत्र की परीक्षाएं अभी तक पूर्ण नहीं हुई साथ ही साथ इसके बाद के कुछ सत्रों के लिए नामांकन की प्रक्रिया भी नही की गई है|
पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय
2018 में स्थापित पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय में स्नातक के कोर्स तो सामान्यतः नियमित रूप से हैं मगर परास्नातक की परीक्षाएं अपुर्ण हैं| पाटलिपुत्र से सम्बद्ध कुछ महाविद्यालय जो की पूर्व में मगध विश्वविद्यालय के अंतर्गत संचालित थे अनके परास्नातक के जो सत्र मगध विश्वविद्यालय से प्रारम्भ किये गए थे वे भी अपूर्ण हैं|
बी एन मंडल विश्वविद्यालय
इस विश्वविद्यालय के 2015-18 के मध्य संचालित होने वाले स्नातक कोर्स के सत्र के अंतिम परिणाम 2 वर्ष से ज्यादा विलम्बित होने के साथ-साथ बाढ़ के सभी सत्र अपने नियत समयावधि से 1 वर्ष से ज्यादा पीछे चल रहें हैं| साथ ही साथ परास्नातक के सत्र 2016-18 तथा उसके बाद के सत्र 1 वर्ष से भी ज्यादा पीछे चल रहें हैं|
इनके साथ ही साथ पूर्णिया विश्वविद्यालय, के वी एस आय विश्वविद्यालय, बी आर एस बिहार विश्वविद्यालय और तिलकामांझी विश्वविद्यालय के भी स्नातक और परास्नातक के कई कोर्स अपने नियत समय से काफ़ी पीछे चल रहें हैं|
अब प्रश्न ये है की बिहार का युवा जब मतदान करने जाने को है तो क्या वह सरकार के इस गैर जिम्मेदाराना रवैये को रेखांकित करता है कि नहीं, क्योंकि दरअसल युवा ख़ुद ही समझ सकता है कि उसके लिए ये कितना अहम मुद्दा है और वह जाति और धर्म के आधार पर ही वोट करता रहेगा – तो उसको बदले में बेहतर शिक्षा आख़िर क्यों मिलेगी?