अयोध्या का फैसला: कानून के राज को ‘एक झटका’

द टेलीग्राफ (The Telegraph) ने आज सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कलीस्वरम राज की राय छापी है – “सुप्रीम कोर्ट ने जिन कार्रवाइयों को अवैध पाया उनके सम्मान की विडंबना”। अखबार के लिए इसे बैंगलोर से केएम राकेश ने प्रस्तुत किया है। वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह ने इसका अनुवाद किया है। पढ़िए: 


सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कलीस्वरम राज ने इतवार को कहा, अयोध्या मामले में सुप्रीमकोर्ट के फैसले में जो समझौदावादी रुख दिखाई दे रहा है उससे पता चलता है कि देश की राजनीति बहुसंख्यक दक्षिणपंथी हो गई है और इसलिए संविधान की मान्यताओं से न्याय नहीं करती है। उन्होंने द टेलीग्राफ से कहा, हम एक बहुसंख्यक दक्षिणपंथी राजनीति के युग में पहुंच गए हैं जो संवैधानिक आदर्शों से सहमत नहीं है। इसलिए, मौजूदा फैसला संवधानिक सिद्धातों के लिए एक बड़े झटके की तरह है। इसमें कानून का शासन और धर्मनिरपेक्षता शामिल है।

राज ने सबसे पहले कहा कि देश की सर्वोच्च अदालत का फैसला अंतिम है और हर किसी को इसे स्वीकार करना चाहिए और किसी को भी ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे शांति प्रभावित हो। आगे उन्होंने यह भी कहा कि यह फैसला एक ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे से संबंधित है कि इसपर लंबे समय तक चर्चा की जाती रहेगी। केरल के मूल निवासी राज नई दिल्ली में रहते हैं और कई महत्वपूर्ण मामलों में सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए हैं। इनमें धारा 497 खत्म करने वाला मामला और केरल के एनडोसल्फान (एक तरह का कीटनाशक) पीड़ितो को सुप्रीम कोर्ट से मुआवजा दिलाना शामिल है।

राज ने आगे कहा, अयोध्या के फैसले से जुड़ी बुनियादी विडंबना यह है कि इसमें उन कार्रवाइयों को सम्मानित करने की कोशिश की गई है जिसे अदालत ने अवैध और गैरकानूनी माना था। उन्होंने बताया कि कैसे पांच जजों की पीठ ने निर्विवाद रूप से बाबरी मस्जिद गिराने को गलत माना फिर भी मंदिर बनाने के लिए जमीन दे दी। भीड़ की हिंसा या किसी भी तरह के उपद्रव से लाभ लेने की इजाजत नहीं होनी चाहिए क्योंकि किसी भी लोकतंत्र में कानून का राज बुनियादी जरूरत है। सबसे बड़ा नुकसान कानून के शासन की अवधारणा को है। फैसला जिस ढंग का है वह मूल रूप से संवैधानिकता के विचार के खिलाफ है।

उन्होंने कहा कि लोगों को पूछना चाहिए कि जिस फैसले में कानून के उल्लंघन की बात कही गई है वही अपराधियों को पुरस्कृत करता है न कि पीड़ितों को। अदालत ने बाबरी मस्जिद गिराने में कानून के उल्लंघन को साबित किया और उसी ने उसी जगह पर मंदिर बनाने का समाधान पेश किया है। इस विरोधाभास की चर्चा आने वाले समय में की जाती रहेगी। अय़ोध्या फैसले को उन्होंने एसआर बोम्मई मामले में 1994 के महत्वपूर्ण फैसले के उलट पाया। इसमें 1989 में जनता पार्टी की सरकार को बर्खास्त किए जाने का मामला देखा गया था।

वैसे तो बोम्मई मामले को आमतौर पर सिर्फ धारा 356 के उल्लंघन की दृष्टि से देखा जाता है पर इस मामले में छह (राज्य) सरकारों की बर्खास्तगी शामिल थी। इनमें तीन राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारें बाबरी मस्जिद गिराए जाने से संबंधित थीं। राज ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने बोम्मई मामले में कहा था कि राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश की सरकारें भंग करना न्यायोचित है क्योंकि बाबरी मस्जिद गिराने के लिए कार सेवकों को लाने में उनकी सक्रिय भूमिका थी। उस फैसले में नौ सदस्यीय पीठ ने स्पष्ट कहा था कि धर्मनिरपेक्षता संविधान की बुनियादी खासियत है। अयोध्य के फैसले ने बोम्मई मामले में फैसले को उलट दिया है। इस (अयोध्या) फैसले में धर्मनिरपेक्षता की भावना बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुई है।”

एक सवाल के जवाब में राज ने कहा, “समाज मुख्य रूप से इस फैसले की चर्चा समय के राजनीतिक संदर्भ में करेगा। बेशक अयोध्या फैसले को सिर्फ राजनीतिक संदर्भ में पढ़ा जाएगा। एक बार आप फैसले को मौजूदा संदर्भ में पढ़ लें तो आप समझ जाएंगे कि सुप्रीम कोर्ट स्वतंत्रता की रक्षा में अक्षम रहा है।” “इसका मतलब यह हुआ कि इन सारी बातों से यह सीख मिलती है कि सुप्रीम कोर्ट एक अनुदार राज्य का भाग है। यह लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक प्रवृत्ति है।” उन्होंने कहा कि भारत का सुप्रीम कोर्ट दुनिया का “सबसे शक्तिशाली” कोर्ट है इसलिए अयोध्या फैसले से संबंधित सवाल पूछे जाते रहेंगे।

उन्होंने कहा, “मैं सुप्रीम कोर्ट को दुनिया में सबसे शक्तिशाली कहता हूं क्योंकि भारत में सभी नीतिगत मामलों पर मुकदमा होता है। इसलिए, सभी राजनीतिक और नीतिगत मामले न्यायिक समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचते हैं।” उन्होंने आगे कहा, “ऐसी स्थिति में अदालत अगर कार्यपालिका की कार्रवाई की समीक्षा शुद्ध रूप से संविधान के सिद्धांतों के आधार पर नहीं कर पाएगी तो इस बात के जोखिम हैं कि न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच का अंतर कम हो जाएगा।” इस फैसले के कारण समाज में लोगों को चिन्ता क्यों हुई है इसपर राज ने कहा, “चिन्तित और परेशान होने के पर्याप्त कारण हैं। समस्या यह है कि न्यायापालिका हरेक व्यावहारिक लिहाज से सरकार या सत्ता का भाग है।”

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